गुरुवार, 21 जुलाई 2016

।।मातंगी महाविद्या एवम् कवच विधि।।

।।मातंगी महाविद्या एवम् कवच विधि।।
मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं। पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।
।। श्रीदेव्युवाच ।।
साधु-साधु महादेव ! कथयस्व सुरेश्वर !
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।
श्री-देवी ने कहा – हे महादेव ! हे सुरेश्वर ! मनुष्यों को सर्व-सिद्धि-प्रद दिव्य मातंगी-कवच अति उत्तम है, उस कवच को मुझसे कहिए ।
।। श्री ईश्वर उवाच ।।
श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं ।
गोपनीयं महा-देवि ! मौनी जापं समाचरेत् ।।
ईश्वर ने कहा – हे देवि ! उत्तम मातंगी-कवच कहता हूँ, सुनो । हे महा-देवि ! इस कवच को गुप्त रखना, मौनी होकर जप करना ।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिःऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि । विराट् छन्दसे नमः मुखे । श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
।। मूल कवच-स्तोत्र ।।
ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ।।
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ।।
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ।।
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि ! हृदयं पातु सर्वदा ।।
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ।।
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि ! देवानां हित-कारिणी ।।
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ।।
मातंगिनी देवी मेरे मस्तक की रक्षा करे, भुवनेश्वरी दो नेत्रों की, तोतला देवी दो कर्णों की, त्रिपुरा देवी मेरे बदन-मण्डल की, महा-माया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा दोनों पार्श्वों की और कामेश्वरी मेरे गुह्य-देश की रक्षा करे ।
चण्डी दोनों ऊरु की, रति-प्रिया जंघा की, महा-माया दोनों चरणों की और कुलेश्वरी मेरे सर्वांग की रक्षा करे । वैष्णवी सतत मेरे अंग-प्रत्यंग की रक्षा करे, मातंगी ब्रह्म-रन्घ्र में अवस्थान करके मेरी रक्षा करे । महा-पिशाचिनी बराबर मेरे ललाट की रक्षा करे, सुमुखी चक्षु की रक्षा करे, देवी नासिका की रक्षा करे ।
महा-पिशाचिनी वदन के पश्चाद्-भाग की रक्षा करे, लज्जा मेरे दन्त की और सम्मार्जनी-हस्ता मेरे दो ओष्ठों की रक्षा करे ।
हे महा-देवि ! तीन ‘ठं’ मेरे चिबुक और कण्ठ की और तीन ‘ठं’ सदा मेरे हृदय-देश की रक्षा करे । लीला माँ मेरे नाभि-देश की रक्षा करे, कालिका चक्षु की रक्षा करे, चामुण्डा जठर की रक्षा करे और कात्यायनी लिंग की रक्षा करे । उग्र-तारा मेरे गुह्य की, अम्बिका मेरे पद-द्वय की, शर्वाणी मेरे दोनों बाहुओं की और चण्ड-भूषण मेरे हृदय-देश की रक्षा करे । मातृका रसना की रक्षा करे, पुष्टिका पूर्व-दिशा की तरफ, विजया दक्षिण-दिशा कीतरफ और मेधा पश्चिम दिशा की तरफ मेरी रक्षा करे । श्रद्धा नैऋत्य-कोण की तरफ, लक्ष्मणा वायु-कोण की तरफ, शुभ-कारिणी मातंगी देवी ईशान-कोण की तरफ, सुवेशा अग्नि-कोण की तरफ, बाला उत्तर दिक् की तरफ और देव-वृन्द की हित-कारिणी महा-देवी ऊर्ध्व-दिक् की तरफ रक्षा करे । विश्व-रुपिणि वशिनी सर्वदा पाताल में मेरी रक्षा करे । ‘ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंगिन्यै फट् स्वाहा” – यह सार्द्धेकादश-वर्ण-मन्त्रमयी मातंगी सतत सकल स्थानों में मेरी रक्षा करे ।
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं देवि ! गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।
त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ।।
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ।।
गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ।।
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ।।
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि ! लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ।।
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।
राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ।।
सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ।।
झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ।।
तस्मै मातंगिनी देवी, सर्व-सिद्धिं प्रयच्छति ।।
हे देवि ! तुमसे मैंने यह “त्रैलोक्य-मोहन” नाम का अति गुह्य देव दुर्लभ कवच कहा है । जो नित्य इसका पाठ करता है, वह सम्पत्ति का आधार होता है और अतुल परमैश्वर्य प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं है । यथा-विधि गुरु-पूजा करके उक्त कवच का पाठ करने से ऐश्वर्य, सु-कवित्व और वाक्-सिद्धि निश्चय ही प्राप्त की जा सकती है । मातंगी उसे नित्य नारी-संग दिलाती है । हे देवि ! ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, दूसरे प्रधान देव-वृन्द, ब्रह्म-राक्षस, वैताल, ग्रह आदि भूत-गण उस साधक को देखकर लज्जित होते हैं ।
जो व्यक्ति इस कवच को धारण करता है, वह सर्व-सिद्धियाँ लाभ करता है । नृपति-गण उसका दासत्व करते हैं । वह षट्-कर्म साधन कर सकता है । अधिक क्या, वह सर्वत्र सिद्ध होता है । इस कवच को न जानकर, जो मातंगी की पूजा करता है, वह अल्पायु, धन-हीन और मूर्ख होता है । गुरु-भक्ति सर्वदा परमावश्यक है । इस कवच पर भी दृढ़ मति अर्थात् पूर्ण विश्वास रखना परम कर्तव्य है । फिर मातंगी देवी सर्व-सिद्धियाँ प्रदान करती है
॥ ह्रीं क्लीं हुं मातंग्यै फ़ट स्वाहा ॥
मातंगी साधना संपूर्ण गृहस्थ सुख प्रदान करती है.
यह साधना जीवन में रस प्रदान करती है.
गुलाबी या लाल वस्त्र तथा आसन होगा.
उत्तर दिशा की ओर देखते हुए मंत्र जाप करेंगे.
रात्रि 9 से सुबह ४ बजे के बीच मंत्र जाप होगा.
कम से कम ११ माला जाप करें.
रुद्राक्ष माला से जाप करें.जाप के बाद माला गले में धारण कर लें.

।।मातंगी मंत्र।।
1-अष्टाक्षर मातंगी मंत्र- कामिनी रंजनी स्वाहा

विनियोग— अस्य मंत्रस्य सम्मोहन ऋषि:, निवृत् छंद:, सर्व सम्मोहिनी देवता सम्मोहनार्थे जपे विनियोकग:।

ध्यान--- श्यामंगी वल्लकीं दौर्भ्यां वादयंतीं सुभूषणाम्। चंद्रावतंसां विविधैर्गायनैर्मोहतीं जगत्।
2-दशाक्षर मंत्र------ ऊं ह्री क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।

विनियोग— अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि:र्विराट् छंद:, मातंगी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्ति:, क्लीं कीलकं, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोग:।

अंगन्यास--- ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रैं, ह्रौं, ह्र: से हृदयादि न्यास करें।
3-लघुश्यामा मातंगी का विंशाक्षर मंत्र--------- ऐं नम: उच्छिष्ट चांडालि मांतगि सर्ववशंकरि स्वाहा।
4-एकोन विंशाक्षर उच्छिष्ट मातंगी तथा द्वात्रिंशदक्षरों मातंगी मंत्र

मंत्र (एक)--- नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

मंत्र (दो)---- ऊं ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्टचांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वशंकरि स्वाहा।
5-सुमुखी मातंगी प्रयोग

इसमें दो मंत्र हैं जिसमें सिर्फ ई की मात्रा का अंतर है पर ऋषि दोनों के अलग-अलग हैं। इसमें फल समान है।

पहला मंत्र---- उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि अज, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।
दूसरा मंत्र----- उच्छिष्ट चांडालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठ: ठ: ठ:।
इसके ऋषि भैरव, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

।।मातंगी महाविद्या शाबर मन्त्र।।

ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।


******राहुलनाथ********
{आपका मित्र,लेखक,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
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(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

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