गुरुवार, 21 जुलाई 2016

।।सप्तद्वार ।।

।।सप्तद्वार ।।Rahulnaath.Bhilai
बहुत दिनों से अधिकतर पोस्ट पढने के बाद एक बात समझ आई की वे लोग जो इन विद्याओ को जानते है वे अपना सही ज्ञान आपसे बाटना नहीं चाहते या फिर उन्हें भी ज्ञान नहीं हो पाया है।कौन देवता है कौन नहीं ,कौन फैसला करेगा इस बात का ।
सभी चमत्कारी शक्तियों की बुनियाद कुण्डलिनी साधना है जो गुरु द्वारा प्राप्त होती है,इसका मतलब यह नहीं की इसके लिए आपको वर्षो साधना करनी पढ़े ,गुरु आशीर्वाद या शक्तिपात से यह पल भर में ये जाग जाती है और यदि गुरु आशीष ना हो तो आप कितना भी प्रयास करे यह नहीं जागती।किन्तु आज के इस आधुनिक युग में साधनो के द्वारा इसे जल्दी जगाने का प्रयास तो किया जा सकता है।
यदि आप साधना या सिद्ध पाना चाहते है तो आपको पहले इस पुरे कांसेप्ट को समझना होगा की ये है क्या और काम कैसे करता है।
इसकी शुरुआत मूलाधार चक्र से होती है जो शरीर में योनि स्थान पर उपस्थित होता हैं इसे सभी धर्म के लोगो ने अलग अलग नाम दिए हुए है किन्तु सभी यही साधना करते है,नाम से कोई फर्क नहीं पढ़ता ।देवताओ को मानने वाले इसे गणेश एवम् देवी को मानने वाले इसे काली कहते है ।इसी स्थान से सारी सृष्टि का जन्म हुआ है यहि वो स्थान एवम् द्वार है जहा से आवागमन होता रहा है हम सब का।
ये स्थान भूमि कहलाता है धरती कहलाता है यहाँ जिस वस्तु भावना को रोप दिया जाए ये स्थान उस वस्तु भावना को करोडो गुना बढ़ा कर आपको वापस कर देता है इसे काली विद्या कह सकते है।इस स्थान से निर्मित शक्ति समाज का हित एवम् अहित दोनों कर सकती है।सारे संसार की निधि सुख सुविधाये यहाँ पर विराजमान है
इस चक्र के ऊपर क्रमश 6 चक्र और है जो लगातार स्थूल से सूक्षमता की और ले जाते है।मूलाधार के विपरीत ऊपर की और अंतिम चक्र सहस्त्रार है इस स्थान में गुरुदेव का आसान है जो पत्थर का बना है !यहाँ वैराग के अलावा कुछ भी नहीं है !आज सब लोग इस चक्र का विज्ञापन कर रहे है और जो इस चक्र का गुरु बन विज्ञापन कर रहे है वे स्वयं इस चक्र पे ध्यान नहीं रखते वे स्वयं सभी सुखो को भोग रहे है जैसे अच्छा भोजन,लगजरियस ए. सी. युक्त  आश्रम,महंगे वाहन,महंगे मोबाइल फोन्स,इंटरनेशनल रोमिंग पे बात करते है,शिष्य कम शिष्याओं का जमघट अपने चारो और लगाए रहते है,कुल मिलाकर पूर्णाआनंद मूलाधार का ही उठा रहे है और प्रवचन सहस्त्रार का दे रहे है,कह रहे है सब माया है सब धोखा है ,सब का त्याग करो और यदि आप त्याग करते है तो वो बटोरने का कार्य करते है।
मात्र वस्त्रो को बदला ,मुखड़े और वाणी को उन्होंने बदला है भीतर से वे वही जैसे ठहरा हुआ तालाब का पानी,सडा हुआ ,बदबूदार।।
मेरे लिखने का आशय ये नहीं की मै किसी संत का फ़क़ीर का अनादर करता हु।ये तो मात्र मेरा एक अनुभव है जो मैंने आपसे साझा करना चाहा है।मैंने अपने छोटे से जीवन काल में बहुत से संतो से भेट की जिनमे बहुत से सिद्ध थे।उनकी साधना को देख कर उनकी दिव्या साधना का उल्लेख करने के लिए मेरे पास सबद नहीं है।वे सदा भीड़ से दूर रहते रहे है और समाज के कल्याणार्थ कभी कभीं प्रकट भी होते है।मेरे किसी सबद से किसी भी व्यक्ति को दुःख पहुचा हो तो करबद्ध क्षमा मांगता हूँ।।

गृहस्त को इन सब से दूर रहना चाहिए ,और नियंत्रित मूलाधार पे रहना चाहिए।और आवश्यकता पढ़ने पर ऊपर और निचे के चक्रों का आवागमन करना चाहिए ।
आप साधना करेगे तब भी,आप दान करेगे तब भी,आप गुरु धारण करेगे तब भी,आप प्रवचन सुनेगे तब भी ,आप मरेगे जरूर यही सत्य है।।।
सहस्त्रार का मार्ग,गुरु के मार्ग पे चलना ,सब कुछ खोना है खुद को भी,अपने अस्तित्व को भी।गुरु के पास न धन है ना मान न सम्मान,।न मोह है ना माया।
इस मार्ग पे चलना मतलब उन सब वादों कसमो को तोड़ना जो आपने अपने माता-पिता ,भाई-बहन,मित्र ,बंधू,समाज को दिए है।सब से मुह मोड़ना ।
मतलब साफ़ है अपने फर्ज से भागना ।।और याद रखने वाली बात ये है की जब तक आप अपने द्वार किये गए हर वचन को जब तक पूरा नहीं करेगे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी।।भागने में कुछ नहीं रखा है।अपने कर्तव्यों का पालन करना, जीवन का भोग करना,एवम् सामाज का कल्याण करने के लिए ही आपका जन्म हुआ है।इस का आनंद लीजिये । भागिए मत।।
कुछ दिन पहले एक साधू महात्मा से मुलाक़ात हुई थी मेरी ,मैंने देखा 6 फुट का साधु महात्मा ,भारी भरकम शरिर, हाथ में त्रिशूल,जटा बड़ी हुई,दाढ़ी बड़ी हुई,महादेव का नाम का गुंजन कर रहे थे वे।
मैंने उनसे पूछा आप को देख कर लगता है की आप साधू संत के भेष में है तो महात्मा ही होंगे ???किन्तु आपकी आखे कुछ और कहती है!इन आखो में छल दिखता है मक्कारारि दिखती है...आप सत्य बताये की आप का परिचय क्या है??
वे मुस्कुराये और कहने लगे की वे पहले कटनी मध्य प्रदेश में रहते थे एवम् सुपरवाइजर की ड्यूटी किया करते थे।और उनकी पत्नी ने उनका जीवन नर्क बना रखा था।सुबह शाम पत्नी उनको एक के बाद एक काम बतादेति थी,कभी राशन लाओ,सब्जी लाओ,बच्चों की फ़ीस भरो,.....
सुबह 8 बजे ड्यूटी जाना 5 बजे वापस आना और घर आ के महारानी और बच्चों की नौकरी बजाना ,बस यही जीवन हो गया था ।।।
एक दिन तंग आकर उन्होने अपनी पत्नी माता पीता बच्चों का त्याग किया और हरिद्वार पहुचे,वहा से किसी गुरुदेव से दीक्षा ली और अब वो साधू हो गए ।।
अब आप ही बताओ मित्रो ये कैसा संन्यास।।
एक समय मैं भी गया था उज्जैन अपने कान फड़वाने बाबा  के पास ,बाबा ने दीक्षा तो दी किन्तु कान फाड़ने  से मना किया ,और कहा अभी समय है अपने कर्तव्यों और वचनो को पूरा करके आओ भाग के ना आओ।
और मैं गुरु वचन से अपने कर्तव्यों को पूरा करने में लगा हु अभी तक ।।
विषयांतर के लिए क्षमा करे..
गृहस्ती के लिए मूलाधार सर्वोत्तम स्थान है पूरा बंगाल प्रांत इस स्थान की सेवा करता है ।महाकाली का कलकता में मुख्या स्थान है और यही महादेव महाकाली के साथ रमन करते है।
मूलाधार के चक्र का मुख्य गुण काम,क्रोध,ईर्ष्या,द्वेष भाव है,और इन भाव में भी कामभाव की प्राधानता होती है।इस स्थान की स्त्री(पत्नी)इस देवी होती है जिसपे शक्ति का वास होता है।इस स्थान की शक्ति को माँ नहीं कहा जा सकता है यहां की देवी का नाम लिया जाता है।फिर वो कोई नाम हो सकता है।
इस स्थान का मुख्या अस्त्र है उत्तेजना।काम भाव के सोचने से ,देखने से,बोलने से,नरम बिस्तर को छुने से,फूलो एवम् अगरबत्तियों की खुशबु से इस चक्र का चलना शुरू हो जाता है।इन चक्रों को आप पंखे कह सकते है जैसे एग्जास फैन,चार पंख वाला।जीतनी उत्तेजना बढेगी इस फैन की रफ़्तार उतनी बड़ जाती है। इसी प्रकार अन्य चक्रो(पंखो)की संख्या अलग अलग होती है।जब भी काम,क्रोध इत्यादि के जब भी मन में विचार उतपन्न हो तो मूलाधार को सक्रिय समझना चाहिए।मूलाधार की सक्रियता के परिणाम नियंत्रण नहीं करने के अवस्था में लड़ाई,झगड़े,बलात्कार जैसी विध्वंसक घटनाए घट सकती है।किन्तु इन भावनाओ की सक्रियता से उतपन्न ऊर्जा की दिशा बदल कर हम इस शक्ति का उपयोग सुन्दर एवम् आनंदित जीवन बिताने के लिए कर सकते है।
ऊर्जा की दिशा बदलने के लिए वही प्रक्रिया करे जैसे आप गाडी चलाते समय एक्सीलरेटर बदलने का कार्य करते है एक क्षण के लिए ठहर जाए स्थिर हो जाए।अपनी साँसों पे ध्यान दे एवम् भावना को बदल दे ।भावना को बदलते ही गेयर बदल जाता है।अब ये आप पे निर्भर करता है की आप ऊर्जा को किस चक्र पे स्थानांतरित करना चाहते है।सबसे पहले सब चक्रों की भावनाओ को समझने का प्रयास करे।जैसे अनाहत चक्र पे माता-पिता की भावनाओ का वास होता है,स्वाधिष्ठान पे भाई बहन की भावनाओ का वास होता है और सहस्त्रार पे गुरु की भावना स्वयं निवास करती है।
साँसों को रोकते ही अपनी भावना को बदले ,जिस चक्र की आप भावना करेगे तत्काल वह चक्र सक्रिय हो जाएगा।और उस चक्र के गुण आपमें चक्र के गुणों का आप में विकास होने लगेगा।।
मूलाधार की ऊर्जा से आप इलेक्ट्रिक मोटर के जैसे काम ले सकते है किन्तु मूलाधार की भावना को यदि आपको ट्रान्सफर करना नहीं आता तो इस चक्र से दूर ही रहना चाहिए ।इस ट्रान्सफर को सिद्ध करने के लिए सर्व प्रथम आज्ञा चक्र का नियंत्रण करना आवश्यक होता है क्योकि आज्ञा ही वो चक्र है जो सभी भावनाओ का नियंत्रक होता है।सांसोंके सयंम से आज्ञा चक्र को नियंत्रित किया जा सकता है।
समयाभाव के कारण एवम् आपकी जिज्ञासा को देखते हुए  अगली पोस्ट में इस विषय को निरंतर रखा जाएगा।किन्तु इस पोस्ट से कुंडली साधक बहुत से रहस्यों को समझ सकते है।

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

""जयश्री महाकाल""
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
******राहुलनाथ********
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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