मंगलवार, 26 जुलाई 2016

!! रहस्यमयी ॐ!!

!! रहस्यमयी ॐ!!
!!आदेशम्!! (व्यक्तिगत अनुभूति)
जब हम कभी किसी भीड़ में घूमने जाते है अपने मित्रों के साथ
जैसे मेला या किसी उत्सव में या देवता के विसर्जन में !
तो पहले ही हमें निश्चित करना होता है की यदि हम में से कोई भटक जाए तो एक स्थान में हम सब मिलेगे !
और एक स्थान का चयन कर लिया जाता है,जैसे कोई चौक,दूकान,मंदिर या कोई भी स्थान,जहाँ आसानी से पहुचा जा सके!
उसी प्रकार जब हम ध्यान में प्रवेश करते है भीतर की और ,
तो वहाँ भी बहुत भीड़ होती है!भावनाओ की,वासनाओ की,कल्पनाओ की !
हजारो कुम्भ के मेले भीतर स्थित होते है!
बाहर के मेले में पुनः मिलने का स्थान नियुक्त ना किया जाए
तो भी शायद आप मिल भी जाए एक दूसरे को
किन्तु भीतर मिलना मुमकिन नहीं होता!क्योकि वहाँ इन सब के साथ साथ अनुभूतियों का भी एक संसार होता है जो बाहर नहीं होता!
उचित यही है की भीतर जाने से पहले ही एक ऐसे स्थान का चयन कर लिया जाए भटक भी जाए तो उस स्थान पे दोबारा लौटा जा सके!
जिससे की आप भीतर कही खो ना जाये,घूम ना जाये भावनाओ के भीड़ में ,कल्पनाओ की भीड़ में!
मेरी अनुभूति के अनुसार "ॐ "वही स्थान है "गुरु "वही स्थान है
जहां आ कर हमको मिलना होता है!कही भी भटको भीतर तो ,
"ॐ" पे आ जाओ ,कही भी भटको भीतर "गुरु" पे आ जाओ!
"ॐ" वही चौक है "गुरु" वही स्थान है जो भटकने नहीं देता!
ॐ ही गुरु है गुरु ही ॐ है ॐ ही महादेव ॐ ही ॐ है

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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