बुधवार, 30 नवंबर 2016

पनौती

पनौती
कुछ ऐसे लोग जिंदगी में हमारे आ जाते है जिनके आने मात्र से हमारे जीवन में पनौती लग जाती है झील सी शांत जिंदगी में अचानक मानो समुन्दर के लहरों जैसे थपेड़े लगने लगते है।आप पता करे यदि आप परेशान है तो वो कौन है जिसको आखरी बार आपने अपना,मित्र बनाया।उसको आखरी इस लिए कह रहा हु क्योकि उस पनौती के बाद कोई मित्र ही नहीं बनता और जो मित्र थे वे भी छोड़ के चले जाते है।उससे मित्रता अभी इसी समय छोड़ दे।
यदि आपके जीवन में अचानक धन की कमी हो रही है तो पता करे आप।की वो कौन है जिसकी धन से सहायता करने के बाद आपकी आय रुक गई है धन की कमी हो गई है और पता चलते ही उस पनौती से मिले एवं उसके हाथ से कम से कम एक रुपया ले कर स्थिर तलाब में डाल दे लाभ होगा।
अक्सर ये पनौती हाथ या आँख मिलाने से लग जाती है शायद इसी लिए ऋषि मुनियों ने शीश झुका के प्रणाम करने एवं चरण स्पर्श करने का संस्कार हमें प्रदान किया होगा।
अक्सर पनौती उनकी भी लगती है जो आपको देखते है किंतु आपको अहसास होने नहीं देते,कॉम्पिटिशन रखते है एक प्रकार का।फेसबुक पे ऐसी पनौतिया बहुत सी है ऐसी ही एक पनौती मुझे भी लगी थी जब तक समझ आता 1 वर्ष बीत चुका था।
सावधान रहिये इन पनौतियो से।
आइये एक पनौती प्रार्थना करे
।।पनौती प्रार्थना ।।
हे ईश्वर हमारी इन पनौतियो से रक्षा करे,एवं ऐसा आशीर्वाद दे की हम जिसके जीवन में जाए उसका जीवन सफल हो जाए और पनौती को पनौती लग जाए।
इस पनौती देवता के नाम से एक मुट्ठी नमक जल में विसर्जित करे।

*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )

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मंगलवार, 29 नवंबर 2016

तंत्र एक वैदिक विद्या

तंत्र एक वैदिक विद्या
तंत्र के संबंध में जन सामान्य में सदियों से बहुत सी गलत धारणा मन में बैठी हुई है या बैठा दी गई है कि तंत्र एक हानिकारक विद्या है जबकि तंत्र शास्त्र भी वेदों का एक अंग है एक बार भगवान इंद्र की उकंठा को शांत करने के लिए गुरु बृहस्पति ने इस विद्या का ज्ञान इन को करवाया और बताएं कि तंत्र मंत्र हो या यंत्र तीनों की उत्पत्ति भी वेदों से ही हुई है जितने भी मंत्र हैं उनको तीन भागों में विभाजित किया गया है जैसे जो मंत्र वेदों में वर्णित किये गए हैं जिन्हें ऋषीयो द्वारा बताया गया हैं उन मित्रों को वैदिक मंत्र कहा जाता है तंत्र आचार्य तांत्रिक द्वारा रचित मंत्र तांत्रिक मंत्र एवं औघड़ अवधूत अघोरी द्वारा रचित मंत्र शाबर मंत्र कहलाते हैं शाबरमंत्र के जनक मत्स्येन्द्रनाथ जी को माना गया है जिन्होंने शाबर मंत्र की व्याख्या की एवं उनका निर्माण किया ।इंद्र की शंका का निवारण करते हुए देव गुरु ने कहा कि है हे इंद्र तंत्र शक्ति के समक्ष अस्त्र शस्त्र की शक्ति भी तुच्छ होती है तंत्र शक्ति द्वारा सैकड़ों करोड़ों मिल दूर से भी किसी भी असाध्य कार्य को साध्य बनाया जा सकता है।
प्रारंभ से ही तांत्रिक साधना का स्वरुप अत्यंत रहस्यमई एवं गुप्त रहा है जिसे गुप्त लिपि में लिखा जाता रहा है नेपाल के राज्य पुस्तकालय में
निःश्वासतंत्र संहिता नामक ग्रन्थ सुरक्षित रखा गया है जो कि प्राचीन गुप्त लिपि में लिखा हुआ है 8 वी शताब्दी में यह ग्रंथ प्रचलित रहा था इसके 5 विभाग है और प्रत्येक का नाम सूत्र है लौकिक सुत्र ,धर्म सूत्र,मूल सूत्र,उत्तर सूत्र,नयसूत्र,एवं गुह्य सूत्र ।
वस्तुतः तंत्र विद्या की जनक सदाशिव ही है सौंदर्य लहरी नामक ग्रंथ में तंत्रो की संख्या 64 बताई गई है उसमें उपतंत्र,यामल,डामर,शाबर आदि का उल्लेख किया गया है ।
मृगेंद्र तंत्र में तांत्रिक विकास तथा विभाग का परिचय मिलता है इससे निश्फल शिव के अवबोध रूप ज्ञान पहले नाद के आकार में प्रसूत होता है कामिक आगम बताते हैं कि सदाशिव के ही प्रत्येक मुख से पांच स्रोतों का निर्गम हुआ है इसमें पहला अलौकिक दूसरा वैदिक तीसरा अध्यात्मिक चौथा अतिमार्ग और पांचवा मंत्रात्मक है सदाशिव पंचमुखी है इसलिए स्रोतों की  संख्या भी समस्ति रुप से 25 है लौकिक तथा वैदिक तंत्र भी 5 प्रकार का है
इन सभी पांच स्रोतों की अपनी विशेषता एवं विशिष्टता भी है यथा पूर्वमुख से उत्पन्न तंत्र सभी प्रकार के विघ्नों का हरण करने वाला गरुड़ तंत्र है उत्तर मुख से उद्भुत तंत्र सबके वशीकरण के लिए है पश्चिम मुख से उत्पन्न तंत्र भूत ग्रह निवारक भूततंत्र है तथा दक्षिण मुख से उत्पन्न तंत्र  भैरव तंत्र शतक्षय करता है स्वायंभुव में कहा गया है कि शिव मुख से उत्पन्न ज्ञान स्वरुप्रपरता एक  होने पर भी अर्थ संबंध भेद से  विभिन्न प्रकार है हम इस दृष्टि से शिव ज्ञान 10 प्रकार के तथा रूद्र ज्ञान 18 प्रकार  के होते है उपासना की दृष्टि से तांत्रिक साधना का विभाजन भी होता है उपास्य भेद से भी उस का विभाजन किया जाता है उपास्य में देवी के प्रकार ,भेद के अनुसार विभाजन प्रचलित है उसमे महाविद्यानुसारी विभाग ही अति प्रसिद्ध है इस दृष्टि से काली,तारा तथा श्रीविद्या की साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।कालिकिताब
।।राहुलनाथ।।
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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

नाथ शक्ति आह्वान एवं अस्त्र शस्त्र

नाथ शक्ति आह्वान एवं अस्त्र शस्त्र
सामान्यतः साधारण भाषा में अस्त्र शस्त्र दोनों शब्द को एक ही रूप में लिया जाता है या यु कहे की इन दोनों के भेद को सभी नहीं समझ पाते । अस्त्र उसे कहते है जो मंत्रो की शक्ति से दूर तक पहुचाये जा सकते है ये अस्त्र आवश्यक नहीं की किसी धातु के बने हो ,इन अस्त्रों को भभूत के ऊपर,स्मशान की भस्म के ऊपर अभिमंत्रित कर के भी प्रक्षेपण किये जा सकते है।कुछ शस्त्र ऐसे भी होते है जिनपे मंत्रो का उपयोग कर अस्त्रों में परिवर्तित किया जा सकता है।प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है,और जब इन शस्त्रो को अभिमंत्रित किया जाता है तब ये अस्त्रों में परिवर्तित हो जाते है।वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं। वैदिक काल के  बहुत से शास्त्रो एवं महाभारत,रामायण एवं अन्य युद्धों में बहुत से अस्त्रों उल्लेख किया गया है।
जैसे:-नारायणास्त्र,नागास्त्र,वायवास्त्र,आग्नेयास्त्र,पन्नग,गरुडास्त्र,पाशुपास्त्र,
वरुनास्त्र,ब्रह्मशिरा,एकागिन्न,अमोघास्त्र

इसके विपरीत शस्त्र सामान्य हथियारो को कहा जाता  हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु भी होती है। सामान्यतः इन हथियारो का अधिक उपयोग किया जाता रहा हैं।प्राचीन काल के युद्धों में सामान्य सैनिको की पहुच अस्त्रों तक नहीं होती थी वे मात्र शस्त्रो द्वारा ही युद्ध किया करते थे।
जैसे:-तलवार,चंद्रहास,खंजर,खड्ग,भाला,मुद्गर,चक्र,भुशुण्डि,गदा,वज्र कुलिश,त्रिशूल इत्यादि

श्रीनाथ सिद्धो में एवं नाथ संप्रदाय में अस्त्रों को पूर्ण रूप से स्वीकार किया है एवं श्री नाथजी ने स्वयं बहुत से अस्त्रों का निर्माण कर बहुत से चमत्कार किये है पहले अस्त्रों को शस्त्रो पे ही अभिमंत्रित कर प्रक्षेपण किया जाता रहा था किंतु श्री नाथजी ने मात्र भस्म द्वारा ही सभी अस्त्रों को चलाने की विद्या का अविष्कार किया ।श्रीनाथ साहित्यों में मुख्य रूप से एक मंत्र प्रचलन में रहा है जिसके अनुसार ,गोरख कहे गोरख  फटकार,हनुमंत का विरास्त्र, काली चलाएं कलास्त्र, भैरव भया अघोरास्त्र ।।इस पंक्ति के अनुसार फटकार अस्त्र के गोरखनाथजी,विरास्त्र के हनुमानजी,कालास्त्र के कालीजी एवं अघोरास्त्र के भैरवजी देवता है।इसमें से जो फटकारास्त्र है ये अपने नाम के अनुरूप किसी भी शत्रु को फटकार लगाने में एवं घर से बेघर करने में सक्षम है एक विशेष विधि द्वारा इस अस्त्र को बना कर यदि शत्रु पे प्रक्षेपित कर दिया जाए तो वो शत्रु के बचाव की शायद ही कोई काट हो,इस अस्त्र को सिद्ध कर प्रेत ग्रस्त या भूत बाधा से ग्रसित व्यक्ति को झाड़ा जाए तो उसे तत्काल लाभ होता है इस अस्त्र से सिद्ध कवच को यदि मोर के पंख के जाड़े में मंगलवार को बांध कर रोगी को झाड़ा जाए तो ,शीघ्र लाभ प्राप्त होता है किंतु इस अस्त्र को सिद्ध करना सामान्य व्यक्ति के सक्षमता के बाहर का विषय है।गुरुदेव ने मुझे इन अस्त्रों की सिद्ध विधि पूर्ण रूप से बताई है।किन्तु इसके विध्वंसक प्रभाव को देखते हुए इन अस्त्र मंत्र को मैंने जल में प्रवाहित कर दिया किन्तु समयानुसार इसका पुनः निर्माण किया जा सकता है।इन अस्त्रों को "गुप्त मंत्र" के नाम से भी जाना जाता है।इन चारों अस्त्रों में विरास्त्र को छोड़ कर बाकी तीन अस्त्रों का निर्माण स्मशान में ही संभव होता है एवं विरास्त्र का निर्माण गाँव या शहर के बाहर के हनुमान मंदिर में एकांत में किया जाता है।।श्री नाथजी द्वारा रचयित इन अस्त्र मंत्रो में दोगुनी शक्तियां समाहित होती है जहां ये शत्रु पे मारक् प्रभाव डालते वही ये अस्त्र मंत्र प्रक्षेपण करने वाले की रक्षा भी करते है।
इन मुख्य अस्त्रों के अलावा भी श्री नाथ साहित्यों में अन्य अस्त्रों का उल्लेख प्राप्त होता है जैसे:-वज्र पंजर अस्त्र,वासव अस्त्र,मोहनी अस्त्र,गौरव अस्त्र,,माया अस्त्र,वाताकर्षण अस्त्र,वायु अस्त्र,स्पर्शास्त्र,दानवास्त्र,कालिकास्त्र,सूर्यासत्र,एकादश सहयंत्रआस्त्र,धुमास्त्र,नागास्त्र,खगेन्द्रास्त्र,चक्रास्त्र,त्रिशूलास्त्र,अग्नि अस्त्र,विभक्तास्त्र,भरमास्त्र,ज्ञानास्त्र,उद्कास्त्र,प्रेरकास्त्र,अघोरास्त्र,कालास्त्रा,विरास्त्र,फटकारास्त्र इत्यादि ।।
ईन अस्त्रों की सिद्धि विधि गुरु गम्य है एवं जन साधारण के लिए ये सुलभ नहीं है ।कही कही इन अस्त्र मंत्रो को कुछ किताबो में बिना चेतावनी के लिखा पाया गया है जो की मानव के साथ खिलवाड़ मात्र है जब तक कोई इसका सही धारण करने की योग्यता का साधक ना मिले इन्हें नहीं देना चाहिए।इन अस्त्रों की अपनी एक निजी काट अस्त्र मन्त्र होते है यदि आपको इनकी काट नहीं पता तो आपके लिए यह  मंत्र शेर के मुख में हाथ डालने के बराबर ही होंगे।समाज के कल्याणार्थ एवं गुरु कृपा से ही इन अस्त्रों का ज्ञान होना संभव होता है।श्री गोरख पुराण एवम अन्य नाथ साहित्यों में इन अस्त्रों का उल्लेख किया गया है।

*****जयश्री महाकाल****
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बुधवार, 23 नवंबर 2016

त्रिपुर सुंदरी साधना

त्रिपुर सुंदरी साधना****
मुख्य नाम : महा त्रिपुरसुंदरी।
अन्य नाम : श्री विद्या, त्रिपुरा, श्री सुंदरी, राजराजेश्वरी, ललित, षोडशी, कामेश्वरी, मीनाक्षी।भैरव : कामेश्वर।
तिथि : मार्गशीर्ष पूर्णिमा।भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध :          भगवान परशुराम।
कुल : श्री कुल ( इन्हीं के नाम से संबंधित )।
दिशा : नैऋत्य कोण।
स्वभाव : सौम्य।
सम्बंधित तीर्थ स्थान या मंदिर : कामाख्या मंदिर, ५१ शक्ति पीठों में सर्वश्रेष्ठ, योनि पीठ गुवहाटी, आसाम।
कार्य : सम्पूर्ण या सभी प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने वाली।शारीरिक वर्ण : उगते हुए सूर्य के समान।संकलित

।।साधना विधि।।
श्री गणेशाय नमः कामेश्वर भैरवाय नमः
।।श्री गुरु ध्यान ।।
ओम गुरुजी।ओमकार आदिनाथ ज्योति स्वरूप बोलियेे। उदयनाथ पार्वती धरती स्वरूप बोलियेे। सत्यनाथ ब्रहमाजी जल स्वरूप बोलियेे। सन्तोषनाथ विष्णुजी खडगखाण्डा तेज स्वरूप बोलियेे। अचल अचम्भेनाथ शेष वायु स्वरूप बोलियेे। गजबलि गजकंथडानाथ गणेषजी गज हसित स्वरूप बोलियेे। ज्ञानपारखी सिद्ध चौरंगीनाथ चन्द्रमा अठारह हजार वनस्पति स्वरूप बोलियेे। मायास्वरूपी रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ   माया मत्स्यस्वरूपी बोलियेे। घटे पिण्डे नवनिरन्तरे रक्षा करन्ते श्री शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ बाल स्वरूप बोलियेे। इतना नवनाथ स्वरूप मंत्र सम्पूर्ण भया, अनन्त कोटि सिद्धों मेंं नाथजी ने कथ पढ़ सुनाया। नाथजी गुरुजी को आदेष! आदेष!!

।।आसन ।।
‘सुखपूर्वक स्थिरता से बहुत काल तक बैठने का नाम आसन है।‘

आसन अनेको प्रकार के होते है। अनमे से आत्मसंयम चा‍हने वाले पुरूष के लिए सिद्धासन, पद्मासन, और स्वास्तिकासन – ये तीन उपयोगी माने गये है। इनमे से कोई सा भी आसन हो, परंतु मेरूदण्ड, मस्तक और ग्रीवा को सीधा अवश्ये रखना चाहिये और दृष्टि नासिकाग्र पर अथवा भृकुटी में रखनी चाहिये। आलस्य न सतावे तो आंखे मुंद कर भी बैठ सकते ‍है। जिस आसन से जो पुरूष सुखपूर्वक दीर्घकाल तक बैठ सके, वही उसके लिए उत्तम आसन है।

शरीर की स्वाभाविक चेष्टा के शिथिल करने पर अर्थात् इनसे उपराम होने पर अथवा अनन्त परमात्मा में मन के तन्मय होने पर आसन की सिद्धि होती है। कम से कम एक पहर यानी तीन घंटे तक एक आसन से सुखपूर्वक स्थिर और अचल भाव से बैठने को आसनासिद्धि कहते है।

।।आसन मंत्र।।
सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी।
ऊँ गुरूजी मन मारू मैदा करू, करू चकनाचूर। पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बेठू आसन पूर।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।

।।धूप लगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी। धूप कीजे, धूपीया कीजे वासना कीजे।
जहां धूप तहां वास जहां वास तहां देव जहां देव तहां गुरूदेव जहां गुरूदेव तहां पूजा।
अलख निरंजन ओर नही दूजा निरंजन धूप भया प्रकाशा। प्रात: धूप-संध्या धूप त्रिकाल धूप भया संजोग।
गौ घृत गुग्गल वास, तृप्त हो श्री शम्भुजती गुरू गोरक्षनाथ।
इतना धूप मन्त्र सम्पूर्ण भया नाथजी गुरू जी को आदेश।

।।ज्योति जगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश।
ऊँ गुरूजी। जोत जोत महाजोत, सकल जोत जगाय, तूमको पूजे सकल संसार ज्योत माता ईश्वरी।
तू मेरी धर्म की माता मैं तेरा धर्म का पूत ऊँ ज्योति पुरूषाय विद्येह महाज्योति पुरूषाय धीमहि तन्नो ज्योति निरंजन प्रचोदयात्॥
अत: धूप प्रज्वलित करें।

।।रक्षा मन्त्र।।
ॐ सीस राखे साइंया श्रवण सिरजन हार ।
नैन राखे नरहरी नासा अपरग पार ।
मुख रक्षा माधवे कंठ रखा करतार।
हृदये हरी रक्षा करे नाभी त्रिभुवन सार ।
जंघा रक्षा जगदीश करे पिंडी पालनहार।
सीर रक्षा गोविन्द की पगतली परम उदार
आगे रखे राम जी पीछे रावण हार।
वाम दाहिणे राखिले कर गृही करतार ।
जम डंक लागे नाही विघन काल ते दूर।
राम रक्षा जन की करे बजे अनहद तुर ।
कलेजो रखे केसवा जिभ्या कू जगदीश ।
आतम कं अलख रखे जीव को जोतिश ।
राख रख सरनागति जीव को एके बार ।।
संतो की रक्षा करे शिव गुरु गोरख़ सत गुरु सृजनहार ।।

।।त्रिपुर सुंदरी ध्यान मंत्र।।

बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों।

नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।।

हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती।

श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।

।।त्रिपुर सुंदरीआवाहन मंत्र।।

ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।

इसके बाद देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित कर दें। इसे तिलक करें और धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजन पूर्ण करें अब कमल गट्टे की माला लेकर करीब 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जप करें

(षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी)

ऊं ह्रीं क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।

।।विसर्जन मंत्रं।।
पूजकन के अंत में अपने हाथ में चावल,फूल लेकर देवी भगवतीत्रिपुर सुंदरी  का इस मंत्र को पढ़ कर  विसर्जन करना चाहिए-

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि त्रिपुर सुंदरी।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

(षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी साबर मंत्रं)

ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला |
योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता |

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं

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शनिवार, 19 नवंबर 2016

गोरखनाथजी और सनातन धर्म का इस्लामीकरण

गोरखनाथजी और सनातन धर्म का इस्लामीकरण
आज बहुत से लोग इस विषय पे बात कर रहे है कि नाथ पंथ या श्री नाथ जी द्वारा दिए गए इस्लामी मंत्रो द्वारा ,सनातन धर्म का इस्लामीकरण हो रहा है।ये बहुत ही मूर्खता पूर्ण एवं संकेतो से रहित तथ्य है।स्मरण रहे की श्री नाथ पंथ उस समय से धरती पे विराजमान है जब हिन्दू मुस्लिम जैसी अवधारना मन में नहीं होती थी।हिन्दू मुस्लिम का भेद तो स्वतंत्रता के साथ हुआ ,इसके पहले सभी एक साथ ही रहे है ।श्री नाथ जी ने सबको बराबर सम्मान प्रदान किया जो उस सम्मान के अधिकारी रहे ।श्री नाथजी के भक्ति में उस समय बहुत से मुसलमान ,हिन्दू ,बौद्ध जैसे बहुत लोगो ने नाथ धर्म के नियमो को स्वीकार किया ।ये नाथ धर्म एवं प्रतिष्ठा ही रही की ,नाथजी ने सब को बराबर सम्मान देते हुए अपने साथ रखा।इसका मतलब इस्लामीकरण से नहीं है ना ही सिक्खी करन से।किन्तु हां ये कह सकते है कि जो भी नाथजी के शरण में आया उनका नाथिकरन अवश्य हो गया।इस विषय में मैंने अपने गुरुदेव से भी कभी प्रश्न किया था तब गुरुदेव ने कहा था जो नाथ हो गया उसकी अपनी जात नाथ हो गई और स्मरण रहे की नाथ की कोई जात नहीं होती,नाथ वाही है जो सबको एक सामान ,एक ही दृष्टि से देखता हो फिर वो मानव हो या जिव-जंतु या वनस्पति।हां श्री नाथजी ने कठमुल्लाओं के विषय में कुछ वाणिया अवश्य लिखी है किंतु उन्होंने कोई भेद भाव नहीं किया,ठीक इसके विपरीत उन्होंने हिन्दू पंडितो के विषयमे भी लिखा है  इसमें कोई किसी का जोड़ नहीं है।
सोचने समझने का विषय ये है कि कुल मिला के मुख्य 54 सबद है जिनके द्वारा हिंदी, संस्कृत,उर्दू ,सिख सभी भाषाएं बोली और समझी जा सकती है थोड़े प्रयास से।और यहां सोचने समझने की बात ये भी है कि शबद की कोई जात नहीं होती।श्री नाथजी ने बहिष्कार किया आडम्बर का ढोंग का ,जो समाज में आज भी अपने पैर पसारने का कार्य कर रहा है।ऐसे में हमें शान्ति के साथ जो भी व्यक्ति इस विषय में जानना चाहता है उसे समझाना चाहिए एवं उनके भीतर बनने वाली ग्रंथियों को खोलकर समाज का कल्याण करना चाहिए।सोचिये उस परमात्मा ने जब संसार की रचना की होगी तो उसने हिन्दू,मुसलमान,सिक्ख,ईसाई, फ़ारसी,अरबी नहीं बनाए होंगे।उन्होंने इंसान को बनाया और कुछ लोगो ने अपनी अपनी सोच के बराबर के लोगो को जोड़ कर ,अपनी सामान मानसिकता के अनुसार धर्म बना दिया।मृत्यु जब आती है जो की एक सामान्य क्रिया है वो नहीं पूछती की तू हिन्दू है सिख है मुसलमान है वो तो आती है और ले जाती है।ये बात अलग है कि फिर धर्मानुसार उनका कफ़न दफ़न फिर धर्मानुसार कर दिया जाता है।
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