शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

सहस्त्रनाम सिद्धि

सहस्त्रनाम सिद्धि
किसि भी प्रकार के सहस्त्रनाम या शतको को सिद्ध करने की अपनि निश्चित विधि होति है जाहे वि किसि भि देवता का क्यो न हो! जैसे उदाहरण स्वरुप शिव सहस्त्रनाम को सिद्ध करना या उपासना करने हेतु उस सहस्त्रनाम का रोज पाठ नही करना होता ! रोज एक नाम का चिंतन ,मनन या जाप करना होता है इस प्रकार पुरे सहस्त्रनाम को सिद्ध या शिव जी की कृपा प्राप्ति हेतु पुरे 1001 दिनों का समय लगता है ! असके बाद 1001 नामो के प्रारंभ मे ऊँ एवं अंत मे स्वाहा का उच्चारण कर 1001  नामो से हवन करना ही सही विधि है किन्तु ये विधि शास्त्रिय नही है ! मुझे जो स्वप्न में जानकारी मिलि है मै असके द्वारा ही आपको बताना चाह रहा हुं -(व्यक्तिगत विचार)
Rahulnath Osgy ,bhilai

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

तन्त्र

तन्त्र-
तन्त्र मुख्यत: तीन भागों में विभक्त है-कादि,हादि और कहादि!
इन्हें कूट्लय कहते हें!जो तन्त्र महाशक्ति श्री महाकाली के विषय का प्रतिपादन करता है वह कादि है,जो श्रीविद्या के रहस्य का प्रतिपादन करता है वह हादि है और जो तन्त्र तारा के रहस्य को प्रतिपादित करता है वह कहादि कहलाता है !कादि,हादि और कहादि तन्त्र साधना क्षेत्रमत मान लिए गए हैं,तदनुसार कादिमत,हादिमत और कहादिमत के अलग-अलग मन्त्र और यन्त्र विभक्त कर दिए गर है<!इन मन्त्रोंऔर यन्त्रों की साधनाएँ भी अपने-अपने मत के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं!जैसे कादिमत(महाकाली) के सम्बब्धित यन्त्र केवल त्रिकोणों से बनते हैं!हादिमत(श्रीविद्या) से सम्बन्धित यन्त्र शिव शक्ति त्रिकोणों से बनते हैं!कहादिमत(तारा) से सम्बन्धित यन्त्र उभयात्मह होते हैं अर्थात शक्ति त्रिकोणों औरशिवशक्ति त्रिकोणो कामिश्रण इन यन्त्रों की रचना में होता हैं!तान्त्रिक साधना शैव,शाक्त,वैष्णव,,सौर और गाणपत्य पाँच प्रकार की है! शिव की साधना करने वाला शैव,शक्ति की साधना करने वाला शाक्त,विष्णु की साधना करने वाला वैष्णव ,सूर्य की साधना करने वाला सौर और तन्त्रों में सम्प्रदाय भेद,अम्नाय भेद,महाविद्या भेद होने से विभिन्न तन्त्र शास्त्र ओर विभिन्न तान्त्रिक साधनाएँ हैं!!.....इन शास्त्रों,ग्रन्थों की गणना सम्भव नहीं है!शाक्त सम्प्रदाय में ही ग्रन्थ सैकडों-हजारों की संख्या से अधिक है!कालपर्यय मार्ग से शाक्त तन्त्र 64 हैं,उपतन्त्र 321 हैं,संहिताएँ 30 हैं,चूडामणि 100 हैं,अर्णव 9 हैं,यामल 8 हैं,इनके अतिरिक्त डामरतन्त्र,उड्डामर तन्त्र,कक्षपुटी तन्त्र,विभीषणी तन्त्र,उद्यालाप तन्त्र आदि हजारो ,लाखों की संख्या में है!अगर यह कहा जाए की तन्त्र किनारारहित सागर है तो गलत न होगा !विविध प्रकार के तन्त्र अधिकारी भेद से भिन्न-भिन्न कोटि में नियोजित होतें है! यान-काल आदि भिन्न-भिन्न पर्यायों में इनकी गणना अलग-ालग है ,इसलिए कोई भी यह कहने का दावा नही कर सकता की तन्त्र विद्या केवल इतनी ही है!तन्त्र साधना में दीक्षा की आवश्यक्ता साधक को शुद्ध बनाने के लिए है! दीक्षारुपी अग्नि किण्डली के जाग्रत होने से साधक का मल नष्ट हो जाता है कर्ममल समाप्त हो जाता है और वह शिवतत्वमत बन जाता हैं! दीक्षा ,अभिषेक,भूतशुद्धि प्रत्येक तान्त्रिक साधना के प्रारम्भ का ऎसा विधान है,जो विग्यान और क्रिया द्वारा साधक का निर्मल हो जाना ही ईन विधानो क मुखय उद्देश्य है!निर्मलता प्राप्त होने पर साधक को सहज अवस्था प्राप्त होती है और सहज अवस्था प्राप्त होनेपर शक्ति बोध होता है !जो वेदान्तियों का ब्रह्म है,शैवो काशिव,वैष्णवो का विष्णु,इस्लाम का अल्लाह,ईसाइयों का स्वर्ग-पिता है,बोद्धों का निर्वाण है जो सभी धर्मों का मूल है!!!!अलख आदेश ........
Rahul nath Osgy,bhilai
9827374074

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र
किसी भी प्रकार का दोष होने से फिर वो ग्रह का हो या भूतप्रेत,शत्रु का। इस स्तोत्र का पाठ करने मात्र से सफलता प्राप्त होती है।

।।सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र।।
ॐ गं गणपतये नमः। 
सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, 
ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, 
ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, 
ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। 
ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। 
सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। 
ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। 
रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं 
भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् 
नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् 
हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, 
पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, 
ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। 
हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी 
ॐ ऐं ठः ठः। 
ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। 
सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। 
श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। 
मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। 
शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। 
य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। 
तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। 
अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। 
संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। 
सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। 
द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। 
किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। 
लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। 
ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। 
शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। 
नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। 
भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। 
इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। 
पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। 
विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। 
सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

।।‘श्रीभृगु संहिता’ सर्वारिष्ट निवारण खण्ड ।।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

स्वप्नानुभूतियो में आत्मा का गमन

स्वप्नानुभूतियो में आत्मा का गमन
24 घंटे में आत्मा को एक बार शरीर का त्याग कर के ,शरीर से बाहर आना ही होता है ये आत्मा का परमात्मा से मिलने का समय होता है।आत्मा का शरीर से बाहर निकलने के बाद वापस आने का समय कोई निश्चित नहीं होता ।शरिर में आत्मा क्षण भर में वापस आ सकता है।जब तक आत्मा का शरीर अचेत अवस्था में रहता है तब तक आत्मा निश्चिन्त रूप से आध्यात्मिक जगत में विचरण कर सकता है ।आत्मा के विचरण में किसी कारण वश ,आत्मा का शरीर यदि जागृत या चेतन हो जाए तो आत्मा को अपनी यात्रा को छोड़ कर वापीस शरिर में आना ही पढता है।
यहाँ समझने वाली बात है कि शरीर का नियंत्रण पंचेन्द्रियों के द्वारा होता है पंचेन्द्रिया जो भी महसूस करती है वो दिमाग को बता देती है,और दिमाग शरीर को सन्देश भेज कर उसे सक्रिय कर देता है।आत्मा के विचरण काल में यदि शरीर के किसी भी अंग को हानि बहुचने की अवस्था में इंद्रिया जैसे:-तीव्र ध्वनि,तीव्र सुगंध,वार्तालाप या मच्छर के काटने मात्र से ,इंद्रिया शरीर को सक्रीय कर देती है और आत्मा को वापस आना ही पढता है।
इंद्रियों के मरण की अवस्था ही समाधि की अवस्था होती है।
जब भी हम सोते है तो उस समय क्या होता है हमारे साथ?
पहले हम बिस्तर पर लेटते है जिससे धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय होना सुरु होता उसके बाद क्रमशः अन्य इंद्रिया,मन ,बुद्धि ।
इस अवस्था में हमारी आत्मा कुछ क्षणों के लिए शरीर को त्यागती है किंतु एक सफ़ेद चमकीली डोर से आत्मा शरीर से जुडी होती है और जैसे ही शरिर को खतरा महसूस होता है तो वो आत्मा को सीधे सन्देश भेजती है जिससे अचानक सफ़ेद और चमकीली डोर सुकुड़ जाती है और आत्मा तत्काल शरिर में वापस आ जाती है।
आत्मा के इस विचरण काल में हम जो भी देखते है वो स्वप्न के रूप में हमें दिखाई देते है,हमको लगता है कि हमने जो देखा वो मात्र एक सपना था,तो यह सही नहीं होता।उस काल में आत्मा हकीकत में उस स्थान में रहती है जो आपको स्वप्न में दिखी हो।उदाहरण के लिए यदि आने स्वपन देखा की आप उड़ रहे है इससे आशय यह है कि रात्रि में आपकी आत्मा विचरण कर रही थी उड़ रही थी और हलकी हो गई थी।
ये सारी अनुभूतियां जो स्वप्न में होती है वो आत्मीय अनुभूतियां है इनका शरीर से कोई लेना देना नहीं होता,शरिर और इंद्रिया रुकावट मात्र है।
इस स्वप्निय अनुभूतियों में आत्मा अपने शरीर से निकलकर अपने माता-पिता,गुरु,मित्र,साधू-संतो के दर्शन एवं अन्य रिश्तेदारों से मिलन करती है।इस समय आत्मा अपनी इच्छा शक्ति से  देवलोक,पितरलोक,पृथ्वीलोक या अन्य रहस्यमयी दुनिया से संपर्क साध लेती है।
दिव्य साधक गण बिना सोये ध्यान की एकाग्रता से इस आयाम में अपने आपको पहुचाने में सक्षम होते है इस अवस्था को पाने के लिए साधको को वर्षो साधना करना होता है प्रशिक्षित होना होता है।इसके विपरीत सामान्य जीवो के लिए जो कड़ी साधना नहीं करते उनके लिए प्रकृति ने अपने आप इस गमन की व्यवस्था बनाई हुई है।

क्रमशः
*****जयश्री महाकाल****
******स्वामी राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)


शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

शुक्रनीति

शुक्रनीति...गुप्तता एवं रहस्यमय के चमत्कारी वचन

शुक्राचार्य यद्दपि असुरों के गुरु है , किन्तु ये भगवान् के अनन्य भक्त हैं | ये योगविद्द्या के आचार्य है और इनकी शुक्रनीति बहुत प्रसिद्ध् है | असुरों के साथ रहते हुए भी ये उन्हें सदा धर्मकी, नीतिकी, सदाचारकी शिक्षा देते रहे | इन्ही के प्रभाव से प्रह्लाद, बलि तथा विरोचन आदि भगवद्भक्त बने | शुक्रनीति में अनेक सुन्दर बातें आई हैं, उनमें से कुछ यहाँ दी जा रही हैं –

(१) व्यक्ति को चाहिये कि वह दूरदर्शी बने | सोचविचारकर विवेक से कार्य करे, आलसी किंवा प्रमादी न बने –

दीर्घदर्शी सदा च स्यात् .......... | चिरकारी भवेन्न हि ||

(२) बिन सोचे – समझे किसीको मित्र न बनाये |

(३) विश्वस्तका भी अत्यन्त विश्वाश न करे – ‘नात्यन्तं विश्वसेत् कञ्चित् विश्वस्तमपि सर्वदा ‘|

(४) अन्नकी निन्दा न करे – ‘अन्न न निन्द्दात् |’

(५) आयु, धन, गृहके दोष, मन्त्र, मैथुन, औषध, दान, मान तथा अपमान – इन नौ विषयों को अत्यन्त गुप्त रखना चाहिये, किसीसे कहना चाहिये –

आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रम मंत्रमैथुनभेषजं |

दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेत ||

(६) किसी के साथ कपटपूर्ण व्यवहार तथा किसी की आजीविका की हानि नहीं करनी चाहिये एवं कभी भी किसीका मन से भी अहित नहीं सोचना चाहिये |

(७) दुर्जनों की संगति का परित्याग करना चाहिये –

‘त्यजेदुर्जनसंगतं ‘ |

(८) सुख का उपभोग अकेले न करे , न सभी पर विश्वास ही करे और न सभी पर शंका ही करे –

नैकः सुखी न सर्वत्र विश्रोब्धो न च शङ्कितः |

सब प्रकार के राजधर्म और नीतिसंदर्भों को बताकर अंत में महामति शुक्राचार्य जी भगवान श्री राम को सर्वोपरि नीतिमान बताते हुए कहते है कि इस पृथ्वी पर भगवान श्री राम के समान कोई दूसरा नीतिमान राजा नहीं हुआ –

‘न रामसदृशो राजा पृथिव्यां नीतिमानभूत ‘

इस नीतिवचन द्वारा शुक्राचार्य यही संदेश प्रसारित करते हैं कि राजाओं को श्री रामके समान बनाना चाहिये और प्रजा को श्री राम के आचरणों का अनुकरण करना चाहिये –

‘रामादिवद वर्तितव्यं ‘| इसी में सबका परम कल्याण है |

।।ये 6 वस्तु कभी नहीं टिकती।।
श्लोक

यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।

1. यौवन और रूप
हर कोई चाहता हैं कि उसका रूप-रंग हमेशा ऐसे ही बना रहे, वो कभी बूढ़ा (old) न हों, लेकिन ऐसा होना किसी के भी संभव नहीं होता है। यह प्रकृति का नियम (rule of nature) है कि एक समय के बाद हर किसी का युवा अवस्था (young age) उसका साथ छोड़ती ही है। अब हमेशा युवा बने रहने के लिए मनुष्य चाहे कितनी ही कोशिशें कर ले, लेकिन ऐसा नहीं कर पाता।

2. जीवन
जन्म और मृत्यु मनुष्य जीवन के अभिन्न अंग (important part) है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित ही है। कोई भी मनुष्य चाहे कितने ही पूजा-पाठ कर ले या दवाइयों (medicines) का सहारा ले, लेकिन एक समय के बाद उसकी मृत्यु (death) होगी ही। इसलिए, अपने या अपने किसी भी प्रियजन के जीवन से मोह बांधना अच्छी बात नहीं है।

3. मन
हर किसी का मन बहुत ही चंचल होता हैं, यह मनुष्य की प्रवृत्ति (nature) होती है। कई लोग कोशिश करते हैं कि उनका मन उनके वश में रहे, लेकिन कभी न कभी उनका मन उनके वश से बाहर हो ही जाता है और वे ऐसे काम कर जाते हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए। कुछ लोगों का मन धन-दौलत में होता है तो कुछ लोगों का अपने परिवार (family) में। मन को पूरी तरह से वश में करना तो बहुत ही मुश्किल (very difficult) है, लेकिन योग (yog) और ध्यान की मदद से काफी हद तक मन पर काबू पाया जा सकता है।

4. परछाई
मनुष्य की परछाई (shadow) उसका साथ सिर्फ तब तक देती है, जब तक वह धूप में चलता है। अंधकार आते ही मनुष्य की छाया भी उसका साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य की अपनी छाया हर समय उसका साथ नहीं देती ऐसे में किसी भी अन्य व्यक्ति से इस बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वे हर समय हर परिस्थिति में आपका साथ देंगे।

5. लक्ष्मी ( धन)
धन-संपत्ति हर किसी की चाह होती है। हर मनुष्य चाहता है कि उसके पास धन-दौलत हो, जीवन की सभी सुख-सुविधाएं हों। ऐसे में कई लोग धन से अपना मोह बाध लेते हैं। वे चाहते हैं कि उनका धन हमेशा उन्हीं के पास रहें, लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। मन की तरह ही धन (money)का भी स्वभाव बड़ा ही चंचल होता है। वह हर समय किसी एक जगह पर या किसी एक के पास नहीं टिकता। इसलिए धन से मोह बांधना ठीक नहीं होता।

6. सत्ता या अधिकार
कई लोगों को पॉवर (power) यानि अधिकार पाने का शौक होता है। वे लोग चाहते हैं कि उन्हें मिला पद (post) या अधिकार पूरे जीवन उन्हीं के साथ रहें, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। जिस तरह परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी तरह पद और अधिकारों का परिवर्तन (change) भी समय-समय पर जरूरी होता है। ऐसे में अपने वर्तमान पद या अधिकार को हमेशा अपने ही पास रखने की इच्छा मन में नहीं आने देनी चाहिए।

जानें कौन सी हैं वे 9 बाते जिन्हें हमेशा गुप्त रखना चाहिए।

आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मंत्रमैथुनभेषजम्।
दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेतू।।

1. मान

कई लोगों के अपने मान-सम्मान का दिखावा करने की आदत होती है। यह आदत किसी भी मनुष्य के लिए अच्छी नहीं होती। मान-सम्मान का दिखावा करने से लोगों की नजर में आपके प्रति नफरत का भाव आ सकता है। साथ ही इस आदत की वजह से आपके अपने भी आपसे दूरियां बना सकते हैं।

2. अपमान

मनुष्य को यदि कभी अपमान का सामना करना पड़ जाए तो उसे इस बात को सभी से गुप्त ही रखना चाहिए। यह बात दूसरों को बताने से आपके लिए ही नुकसानदायक साबित हो सकती हैं। दूसरों को पता चलने पर वे भी अपना सम्मान करना छोड़ देंगे और आप हंसी का पात्र भी बन सकते हैं।…

3. मंत्र

कई लोग भगवान की कृपा पाने के लिए रोज उनकी पूजा-पाठ करते हैं। ऐसे में आप जिन मंत्रों का जप करते हैं, ये बात किसी को भी नहीं बताना चाहिए। कहा जाता है जो मनुष्य अपनी पूजा-पाठ और मंत्र को गुप्त रखता है, उसे ही अपने पुण्य कर्मों का फल मिलता है।

4. धन

पैसों से जीवन में कई सुख-सुविधाएं पाई जा सकती हैं, लेकिन कई बार यही पैसा आपके लिए परेशानी का कारण भी बन सकता है। अपके धन की जानकारी जितने कम लोगों को हो, उतना ही अच्छा माना जाता है। वरना कई लोग अपके धन के लालच में आपसे जान-पहचान बढ़ाकर बाद में आपकों नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।

5. आयु

हमेशा से कहा जाता है कि मनुष्य को अपनी आयु हर किसी के सामने नहीं बतानी चाहिए। आयु को जितना गुप्त रखा जाए, उतना ही अच्छा माना जाता है। आपकी आयु को पता चलने पर आपके विरोध इस बात का प्रयोग समय आने पर आपके खिलाफ भी कर सकते हैं।

6. गृह के दोष

कई लोग गृहों के दोषों से पीड़ित होते हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई तरह की समस्याओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अपने गृह संबंधी दोषों का वर्णन किसी से भी करना आपके लिए नई मुसीबतों का कारण बन सकता है। गृह शांति के लिए किए जा रहे उपायों का वर्णन यदि किसी से कर दिया जाए तो फिर उसका कोई फल नहीं मिलता है।

7. औषध

औषध का अर्थ होता है डॉक्टर। चिकित्सक या डॉक्टर एक ऐसा व्यक्ति होता है, जो आपके बारे में कई निजी बातें भी जानता है। ऐसे में आपके दुश्मन या आपसे जलने वाले लोग चिकित्सक की मदद से आपके लिए परेशानी या समाज में शर्मिंदगी का कारण बन सकते हैं। इसलिए, बेहतर यही होगा कि आपके औषध या चिकित्सक की जानकारी सभी लोगों से गुप्त रखी जाए।

8. मैथुन यानि कामक्रिया

कामक्रिया पति और पत्नी के बीच की अत्यंत गुप्त बातों में से एक होती है। इस बात को जितना गुप्त रखा जाए, उतना अच्छा होता है। पति-पत्नी की निजी बातें किसी तीसरे मनुष्य को पता चलना, उसके लिए परेशानी और कई बार शर्म का भी कारण बन सकती है।

9. दान

दान एक ऐसा पुण्य कर्म है, जिसे गुप्त रखने पर ही उसका फल मिलता है। जो मनुष्य दूसरों की तारीफ पाने के लिए या लोगों के बीच अपनी महानता दिखाने के लिए अपने किए गए दान का दिखावा करता हैं, उसके किए गए सभी पुण्य कर्म नष्ट हो जाते है।

शुक्रनीति: जिस वंश में आ जाते हैं ऐसे अंश उसका हो जाता है अंत

अपने रोजमर्रा के जीवन में जो काम किए जाते हैं उनमें से कुछ बातों की आदत पड़ जाती है। जो धीरे-धीरे लत बन जाती है। कुछ आदतें ऐसे होती हैं जो लगता है की यह सामान्य हैं लेकिन जिस वंश में आ जाती हैं उस कुल का अंत कर देती हैं। शुक्रनीति के अनुसार 4 ऐसी आदते हैं जिनके करीब कभी भी किसी हालत में नहीं जाना चाहिए।

शुक्रनीति के श्लोक अनुसार-

अनृतात् पारदार्याच्च तथाभक्ष्यस्य भक्षणात्।

अगोत्रधर्माचरणात् क्षिप्रं नश्यति वै कुलम्।।

झूठ बोलना न केवल बुरी आदत है बल्कि पाप का भागी भी बनाता है। झूठ बोलने वाला चाहे स्वयं के हित को ध्यान में रखते हुए झूठ का सहारा लेता है लेकिन भविष्य में उसे दुःखों और परेशानियों से रूबरू होना पड़ता है। कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए।

हर परिवार की अपनी- अपनी परंपराएं होती हैं। उनका मान-सम्मान सभी छोटे-बड़े सदस्यों को करना चाहिए अन्यथा कुल का नाश होते समय नहीं लगता।

न केवल शुक्रनीति में बल्कि हिंदू धर्म के सभी शास्त्रों में पराई महिला पर बुरी नजर डालना अथवा उससे उसकी इच्छा के विरूद्ध या सहमती से संबंध स्थापित करना महापाप माना (व्यक्तिगत वअनुभूति एवं वगया है। जो पुरूष ऐसा करता है मरणोपरांत उसका वास नरक में होता है। इस पाप से वंश का तो नाश होता ही है साथ ही इसके दुष्प्रभाव का दाग आने वाली पीढ़ियों पर भी लग जाता है।

हिंदू धर्म के सभी धर्म शास्त्रों में मांस खाने की मनाही है। जो व्यक्ति जीव हत्या करके उसका सेवन करता है वह मनुष्य नहीं बल्कि राक्षस के समान है। भगवान ऐसे व्यक्ति पर कभी अपनी कृपा नहीं करते। उन्हें किसी भी धार्मिक काम का फल प्राप्त नहीं होता। मांसाहारी लोगों के जीवन में कभी स्थिरता नहीं आती।
संकलित पोस्ट द्वारा शुक्रनीति -राहुलनाथ

*****जयश्री महाकाल****
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