मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

तन्त्र

तन्त्र-
तन्त्र मुख्यत: तीन भागों में विभक्त है-कादि,हादि और कहादि!
इन्हें कूट्लय कहते हें!जो तन्त्र महाशक्ति श्री महाकाली के विषय का प्रतिपादन करता है वह कादि है,जो श्रीविद्या के रहस्य का प्रतिपादन करता है वह हादि है और जो तन्त्र तारा के रहस्य को प्रतिपादित करता है वह कहादि कहलाता है !कादि,हादि और कहादि तन्त्र साधना क्षेत्रमत मान लिए गए हैं,तदनुसार कादिमत,हादिमत और कहादिमत के अलग-अलग मन्त्र और यन्त्र विभक्त कर दिए गर है<!इन मन्त्रोंऔर यन्त्रों की साधनाएँ भी अपने-अपने मत के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं!जैसे कादिमत(महाकाली) के सम्बब्धित यन्त्र केवल त्रिकोणों से बनते हैं!हादिमत(श्रीविद्या) से सम्बन्धित यन्त्र शिव शक्ति त्रिकोणों से बनते हैं!कहादिमत(तारा) से सम्बन्धित यन्त्र उभयात्मह होते हैं अर्थात शक्ति त्रिकोणों औरशिवशक्ति त्रिकोणो कामिश्रण इन यन्त्रों की रचना में होता हैं!तान्त्रिक साधना शैव,शाक्त,वैष्णव,,सौर और गाणपत्य पाँच प्रकार की है! शिव की साधना करने वाला शैव,शक्ति की साधना करने वाला शाक्त,विष्णु की साधना करने वाला वैष्णव ,सूर्य की साधना करने वाला सौर और तन्त्रों में सम्प्रदाय भेद,अम्नाय भेद,महाविद्या भेद होने से विभिन्न तन्त्र शास्त्र ओर विभिन्न तान्त्रिक साधनाएँ हैं!!.....इन शास्त्रों,ग्रन्थों की गणना सम्भव नहीं है!शाक्त सम्प्रदाय में ही ग्रन्थ सैकडों-हजारों की संख्या से अधिक है!कालपर्यय मार्ग से शाक्त तन्त्र 64 हैं,उपतन्त्र 321 हैं,संहिताएँ 30 हैं,चूडामणि 100 हैं,अर्णव 9 हैं,यामल 8 हैं,इनके अतिरिक्त डामरतन्त्र,उड्डामर तन्त्र,कक्षपुटी तन्त्र,विभीषणी तन्त्र,उद्यालाप तन्त्र आदि हजारो ,लाखों की संख्या में है!अगर यह कहा जाए की तन्त्र किनारारहित सागर है तो गलत न होगा !विविध प्रकार के तन्त्र अधिकारी भेद से भिन्न-भिन्न कोटि में नियोजित होतें है! यान-काल आदि भिन्न-भिन्न पर्यायों में इनकी गणना अलग-ालग है ,इसलिए कोई भी यह कहने का दावा नही कर सकता की तन्त्र विद्या केवल इतनी ही है!तन्त्र साधना में दीक्षा की आवश्यक्ता साधक को शुद्ध बनाने के लिए है! दीक्षारुपी अग्नि किण्डली के जाग्रत होने से साधक का मल नष्ट हो जाता है कर्ममल समाप्त हो जाता है और वह शिवतत्वमत बन जाता हैं! दीक्षा ,अभिषेक,भूतशुद्धि प्रत्येक तान्त्रिक साधना के प्रारम्भ का ऎसा विधान है,जो विग्यान और क्रिया द्वारा साधक का निर्मल हो जाना ही ईन विधानो क मुखय उद्देश्य है!निर्मलता प्राप्त होने पर साधक को सहज अवस्था प्राप्त होती है और सहज अवस्था प्राप्त होनेपर शक्ति बोध होता है !जो वेदान्तियों का ब्रह्म है,शैवो काशिव,वैष्णवो का विष्णु,इस्लाम का अल्लाह,ईसाइयों का स्वर्ग-पिता है,बोद्धों का निर्वाण है जो सभी धर्मों का मूल है!!!!अलख आदेश ........
Rahul nath Osgy,bhilai
9827374074

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