मंगलवार, 8 नवंबर 2022

श्रीविष्णुसहस्रनाम_स्तोत्रम् [भाग-१]°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

#श्रीविष्णुसहस्रनाम_स्तोत्रम् [भाग-१]
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#विष्णु_सहस्त्रनाम_की_सही_विधि_जानें_महत्व_और_फायदे
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🚩जयश्री महाकाल दोस्तों....
गुरुवार का दिन #भगवानविष्णु और #देवगुरुबृहस्पतिदेव को समर्पित होता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने और व्रत आदि करने से व्यक्ति को पापों से छुटकारा मिलता है।#भगवानविष्णु को सृष्टि का पालहरा भी कहा जाता है।चातुर्मास की अवधि मे भगवान #श्रीहरि योग निद्रा में चले जाते हैं जो कि चार माह बाद समाप्त होता है।
#ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चातुर्मास में पूजा-पाठ, जप, तप और साधना आदि का विशेष महत्व बताया जाता है. ऐसे में #विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष लाभदायी बताया गया उस। बता दें कि #विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ सही विधि और नियमों का पालन करके किया जाए। तो व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं। आइए जानें #विष्णुसहस्त्रनाम की सही विधि और फायदे.
#विष्णुसहस्त्रनाम की सही विधि:-
१.#विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ वैसे तो कभी भी किया जा सकता है, लेकिन अगर सूर्योदय के समय किया जाए, तो उत्तम होता है. पाठ करने से पहले तन और मन दोनों की पवित्रता का विशेष ध्यान रखें.

२.पाठ की शुरुआत गुरुवार के दिन करें.स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आह्वान करें और फिर पाठ की शुरुआत करें.
- पाठ शुरू करने से पहले कलश पर आम के पत्ते और नारियल रखें. पाठ समाप्त होने के बाद भगवानविष्णु को लगाया पीला भोग ग्रहण करें.
३.किसी विशेष इच्छा की पूर्ति के लिए पीले रंग के वस्त्र पहनें.पानी से भरा कलश रखें।कहते हैं कलश के बिना ये पाठ अधूरा माना जाता है।
#विष्णुसहस्त्रनाम_के_फायदे
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४.धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गुरुवार या फिर किसी विशेष अवसर पर पूजा के बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.
५.मान्यता है कि #विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ में भगवान विष्णु के 1000 नामों का वर्णन किया गया है. इसे करने से व्यक्ति की सभी भौतिक सुविधाएं पूरी होती हैं. साथ ही, व्यक्ति के बिगड़े काम बनते हैं.
६.शास्त्रों के अनुसार कुंडली में बृहस्पित के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए #विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है.
७.इस पाठ का नियमिच जाप करने से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास की बढ़ोतरी होती है. मन एकाग्र होता है और तनाव से राहत मिलती है.
८.ऐसा माना जाता है कि नियमित रूप से #विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ सुनने मात्र से ही व्यक्ति का भय कम होता है. साथ ही, लक्ष्य को प्राप्त करने की शक्ति मिलती है.
९.इसका नियमित जाप करने से घर में सौभाग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, आर्थिक पक्ष में मजबूती मिलती है.

भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार माना जाता है। मान्यता है कि जिस व्यक्ति पर इनकी कृपा होती है,वह किसी भी परिस्थिति में असफल नहीं होता है और उसे भाग्य, धन व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। बता दें की #भगवानविष्णु चातुर्मास में चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि का कार्यभार #भगवानशिव संभालते हैं। पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु को पूजा-पाठ के द्वारा योग निद्रा से जगाया जाता है। 
शास्त्रों में बताया गया है कि #भगवानविष्णु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन चार मास के योग निद्रा से जागते हैं। 

#चातुर्मास_में_क्यों_योग_निद्रा_में_जाते_हैं #श्रीहरि

किवदंतियों के अनुसार भगवानविष्णु अपने भक्तों की प्रार्थनाओं को सुनने में इतने लीन हो गए थे कि वह कई दिनों तक आराम नहीं करते थे। जिसके कारण माता लक्ष्मी और उनकी सेवा में लगे देवी-देवताओं को भी आराम नहीं मिल पाता था। लेकिन जब वह सोते थे तब कई वर्षों के लिए निद्रा धारण कर लेते थे। ऐसे में माता लक्ष्मी उन्हें नींद लेने के लिए एक नियम बनाने का सुझाव दिया। ताकि श्री हरि के साथ-साथ उन्हें भी कुछ समय आराम मिल सके। तब से भगवान विष्णु ने चातुर्मास में योग निद्रा लेते हैं।

#प्रार्थना
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महाभारतमें भगवान के अनन्य भक्त #पितामहभीष्मद्वारा भगवान के जिन परम पवित्र सहस्र नामोंका उपदेश किया गया,उसीको #श्रीविष्णुसहस्रनाम कहते हैं । भगवान के नामोंकी महिमा अनन्त है । हीरा,लाल,पन्ना सभी बहुमूल्य रत्न हैं पर यदि वे किसी निपुण जड़ियेके द्वारा सम्राट् के किरीटमें यथास्थान जड़ दिये जायँ तो उनकी शोभा बहुत बढ़ जाती है और अलग अलग एक एक दानेकी अपेक्षा उस जड़े हुए किरीटका मूल्य भी बहुत बढ़ जाता है । यद्यपि भगवान के नामके साथ किसी उदाहरणकी समता नहीं हो सकती, तथापि समझनेके लिये इस उदाहरणके अनुसार भगवान् के एक सहस्र नामोंको शास्त्रकी रीतिसे यथास्थान आगे पीछे जो जहाँ आना चाहिये था वहीं जड़कर भीष्म सदृश निपुण जड़ियेने यह एक परम सुन्दर, परम आनन्दप्रद अमूल्य वस्तु तैयार कर दी है । एक बात समझ रखनी चाहिये कि जितने भी ऐसे प्राचीन नामसंग्रह, कवच या स्तवन हैं वे कविकी तुकबन्दी नहीं हैं । सुगमता और सुन्दरताके लिये आगे पीछे जहाँ तहाँ शब्द नहीं जोड़ दिये गये हैं । परन्तु इस जगत् और अन्तर्जगत्का रहस्य जाननेवाले, भक्ति, ज्ञान, योग और तन्त्रके साधनमें सिद्ध, अनुभवी पुरुषोंद्वारा बड़ी ही निपुणता और कुशलताके साथ ऐसे जोड़े गये हैं कि जिससे वे विशेष शक्तिशाली यन्त्र बन गये हैं और जिनके यथा रीति पठनसे इहलौकिक और पारलौकिक हु कामना सिद्धिके साथ ही यथाधिकार भगवान् की अनन्यभक्ति या सायुज्य मुक्तितककी प्राप्ति सुगमतासे हो सकती है । इसीलिये इनके पाठका इतना महात्मय है और इसीलिये सर्वशास्त्रनिष्णात परम योगी और परम ज्ञानी सिद्ध महापुरुष प्रात स्मरणीय आचार्यवर श्रीआद्यशङ्कराचार्य महाराजने लोककल्याणार्थ इस #श्रीविष्णुसहस्रनामका भाष्य किया है । आचार्यका यह भाष्य ज्ञानियों और भक्तों दोनोंके लिये ही परम आदरकी वस्तु है ।
(संकलित पोस्ट)
#क्रमशः-

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[ ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक ]
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#निष्कर्ष:-
हम उम्मीद करते है की,आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा अगर उपयोगी साबित हुआ हैं तो,आगे इसे अपने दोस्तों और परिचितों को शेयर करे एवं लाइक अवश्य करे।जिससे अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।जिससे वह भी इसके बारे में जान सके और इसका लाभ उठा सके।
#धन्यवाद 🙏🏻

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रविवार, 30 अक्तूबर 2022

महिलाओं_को_नहीं_करने_चाहिए_ये_काम

#महिलाओं_को_नहीं_करने_चाहिए_ये_काम?
🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
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#हवन_करना
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स्त्री हवनकर सकती हैं. लेकिन स्त्री कभी भी अकेले हवन नहीं कर सकती हैं. हवन के दौरान स्त्री को मुख्य यजमान के रूप में अपने पति को साथ में रखना होता हैं. कोई भी स्त्री हवन के लिए मुख्य यजमान नहीं बन सकती हैं. सनातन धर्म के पुराने शास्त्रों में इसकी मनाई हैं।

#हनुमानजी_को_स्पर्श_करना
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ये सभी जानते हैं कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं. मान्यता है कि हनुमान बाबा महिलाओं को माता समान मानते थे. इसलिए शास्त्रों में महिलाओं द्वारा उन्हें स्पर्श न करने की बात कही गई है. हालांकि वे दूर रहकर हनुमान जी की पूजा कर सकती हैं।

#नारियल_फोड़ना
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आपने अपने घर और मंदिरों में अगर गौर किया हो तो देखा होगा किन पूजा पाठ या किसी अन्य शुभ कार्य के दौरान नारियल फोड़ने का काम पुरूष ही करते हैं. महिलाओं के लिए इसे वर्जित माना गया है. दरअसल नारियल को मां लक्ष्मी और उर्वरा का प्रतीक माना जाता है. हालांकि महिलाएं भगवान के समक्ष नारियल का भोग खुद सकती हैं।

#जनेऊ_धारण_करना
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हिंदू धर्म में जनेऊ भी पुरुष ही धारण करते हैं महिलाएं नहीं. दरअसल जनेऊ को लेकर शास्त्रों में काफी नियम बनाए गए हैं, साथ ही इसकी शुद्धता का भी विशेष ख्याल रखने की बात कही गई है. मासिक धर्म के समय महिलाओं को शुद्ध नहीं माना जाता, इस दौरान उन्हें पूजा पाठ करने या भगवान को छूने की इजाजत भी नहीं होती. ऐसे में महिलाएं जनेऊ को पहनकर उसके नियमों का पूरी तरह पालन नहीं कर पाएंगी. इसीलिए उनके लिए इसे पहनने की मनाही है. हालांकि शुद्ध रहते हुए वे जनेऊ बना जरूर सकती हैं।

#बलि_देना
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जब भी किसी देवी या देवता को बलि दी जाती है तो ये काम हमेशा पुरुष ही करते हैं क्यों कि महिलाओं के लिए इस काम की भी शास्त्रों में मनाही कि।
द्वारा सोशल मीडिया चित्र एवम् लेख

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विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुची को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किये जाते है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति मे न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
#धन्यवाद 🙏🏻

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए?

स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए?
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पूजा के यह विविध प्रकार पंचोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार पूजन कहे जाते हैं। इन सभी प्रकारों में सर्वश्रेष्ठ प्रकार षोडषोपचार पूजन विधि का माना गया है। षोडषोपचार पूजन विधि में सोलह विविध उपचारों से भगवान की पूजा की जाती है जिसमें अंतिम उपचार षाष्टांग दंडवत प्रणाम माना गया है। दंडवत प्रणाम की हमारी पूजा विधि में सर्वाधिक मान्यता होती है। 

दंडवत प्रणाम को सभी प्रकार के प्रणामों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है किंतु क्या आप यह जानते हैं कि हमारे शास्त्रों में स्त्रियों को दंडवत प्रणाम करने का सर्वथा निषेध है। शास्त्रानुसार स्त्रियों को कभी भी किसी के भी सम्मुख दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए।
स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं।
इसलिए दंडवत प्रणाम को स्त्रियां नहीं कर सकती है। जो करती भी है उन्हें यह प्रणाम नहीं करना चाहिए। । ज्योतिष शास्त्र का मेरा ज्ञान ही इस उत्तर का मूल स्रोत है । चित्र-लेख सोर्स है सोशल मीडिया ।
इसका समाधान हमें 'धर्मसिन्धु' नामक ग्रंथ में मिलता है, जिसमें स्पष्ट निर्देश हैI।चित्र-लेख सोर्स है सोशल मीडिया ।
जी🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल  🔱

#राहुलनाथ_राहुलनाथ्™ भिलाई 
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क्या होता है अध्यात्म?(भाग-1)

 क्या होता है अध्यात्म?(भाग-1)

🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
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अध्य +आत्म =अध्याय आत्मा का कहा से शुरू करे ??
मै कौन हूँ ।यही पहला अध्याय है आत्मा का!
मै कौन हु ?पूछो अपने आप से,आपका नाम तो माँ बाप ने अपनी पहचान के लिए नाम रखा!समाज के पहचान के लिए दिया है।
तो तुम कौन ???? पता तो करो ।यही साधना है ।।
साधना ये शव्द बड़ा विचित्र है साफ साफ़ कहा है साध ना
जिसे साधना मना है फिर भी प्रयास तो करना ही होगा
पुछो क्या जानना है साधना के विषय में ।।
किसकी साधाना।।।
किसको साधना है ?
खुद को या खुदा को?
वो जो खुद ही आ सकता है किसी के पुकारने से जो नहीं आता वही खुदा है।
जिसको भी साधना है पहले उसका नाम रखो माता बनके पिता बन के जैसे राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या अन्य कोई भी नाम।
बचपन में जब मुझे डर लगता था तो मै मेरे दोस्त का नाम लेता था
दीपक बचा ले,और मै भय मुक्त हो जाता था।
मन को स्थिर करने के लिए मन से दूर होना पडेगा।
शत्रु जैसा व्यवहार करना पडेगा। जैसे पिता के मना करने पर पुत्र पिता को शत्रु समझने लगता है।
किसी कर्म काण्ड की आवश्यकता नहीं है इसमें ।।
कर्म काण्ड मतलब देवताओं को प्रसन्न करने के अलग अलग उपाय।
अध्यात्म का कर्म काण्ड से कोई लेना देना नहीं है।
वो तो लक्ष्मी के पुजारियो का कार्य है।
रोज मन की एक इच्छा पूरी करो।
इससे संकल्प शक्ति का निर्माण होता है।
इसे ही "संकल्प साधना" कहते है।
मन को एक नाम दो।
राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या गुरुदेव कोई भी नाम।
और सब कुछ उस नाम को समर्पित कर दो।।
किन्तु दिमाग का क्षेत्र गुरु का है। और गुरु को ज्ञान महागुरु ही दे सकते है कोई सद्गुरु ही दे सकते है।।। पढ़ा तो जा सकता है किन्तु उसे समझाना गुरु का ही कार्य होता है।
तंत्र कहता है बच्चे की बलि दो शिशु की बलि दो
और तांत्रिक मानव शिशु पशु को बलि दे देते हैं जो की गलत है।। शास्त्रों में मन को ही पशु कहा गया है। इस पशु के ऊपर नियंत्रण करने वाला ही पशुपति नाथ कहलाता है। पहले किसी एक विषय का चुनाव करो अन्याथा सब भटक जायेगे।
तो पहले क्या? विषय होना चाहिये ।।शान्ख्या,ध्यान,आत्मा,पूजा, इत्यादि।।
तो प्रारम्भ करते है ध्यान से।
ध्यान?
ध नाम का यान।ध+यान=ध्यान
ध=धड़कन +यान
धडकनों का यान
ध्यान ?
धडकनों के यान का नियन्त्र।
इस यान की ऊर्जा क निर्माण श्वास एव भोजन से होता है
जीतनी श्वास  बढाओगे उतनी गति  इस यान की बड़ जायेगी।
और जितना घटा ओगे गति कम हो जायेगी।
किन्तु ध्यान मोक्ष का मार्ग है।
ध्यान के बिंदु का चयन करना होगा की
ध्यान लगाना कहाँ है
बाहर या भीतर।।।
किन्तु श्वासों को मात्र बढ़ाना या घटाना प्राणायाम नहीं होता।
प्राणायाम तो मात्र एक आयाम है
प्राणायाम से मंत्र सिद्धि नहीं मिलती।सिद्धि में सहायता मिलती ।।
एकाग्रता मिलती है।
जीतनी श्वासों की गति  बढाओगे उतने नीचे के चक्रो पे पहुचोगे ।
और जितना श्वासों को घटाने से ऊपर के चक्रो पर पहुचोगे।।
सबसे निचे मूलाधार चक्र उ[ व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©²⁰¹⁷ ]पस्थित होता है।
इस चक्र में श्वासों के गति की आवश्यकता होती है और श्वास के प्रहारों से काम क्षेत्र में स्पंदन होने लगता है।जिससे काम ऊर्जा का जन्म होता है ।
जो वशीकरण में काम आती है
ऊपर सहस्त्रार जहा श्वासों की आवश्यकता ही नहीं होती।वहा शान्ति है मौन है ।एकान्त है यही महादेव का वास है।।
बिना रुके माता के पहाड़ पे चढ़ जाने से भी श्वास बड जायेगी।।
एक जगह बैठे रहो कम हो जायेगी।।
ऊपर के चक्रो में धन नहीं है
ह्रदय चक्र तक ही धन धान्य या।
और जब खुद ही सभी भावो पे नियंत्रण कर लोगे।
तो शिव हो जाओगे।गोरख हो जाओगे।
क्रमशः

👉 आपका
#राहुलनाथ _राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
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स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार

#स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार


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🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
यदि स्वप्न के वैज्ञानिक आधार पर दृष्टि तो सत्य वनों की क्षणिक अनुभूति का कारण यही है कि वह आत्मा के सुपना शीर्षक में गिरता है या है।जत अवस्था में मस्तिष्क के द्वारा ही शरीर और मन दोनों का होता है, जबकि सुप्तावस्था में सुषुम्ना का 'गेमेंटर' ही मस्तिष्क के समान कार्य करने लगता है। उस स्थिति में यह अपेक्षित नहीं कि सूचनाओं से अवगत रहे। इसे स्पष्ट समझने के लिए यह उदाहरण पर्याप्त होगा कि यदि किसी जागे हुए मनुष्य के शरीर पर बैठ जाएं तो मनुष्य तुरन्त हटा देगा. परन्तु निद्वावस्था में मस्तिष्क को उसका ज्ञान न रहने के कारण मक्खी को हटाने का कार्य सुषुम्ना द्वारा ही किया जाएगा।

मस्तिष्क का उभरा हुआ भाग 'गायराई' कहा जाता है। दो गायराइयों के मध्य एक दरार होती है, जिसे सलकस' कहते हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग (फोरब्रेन) में जो एक गहरा 'सलकस' होता है, उस केन्द्रीय सलकर के समक्ष 'गायरस' में समूचे शरीर को आज्ञा देने वाले कोष होते हैं, जिनका शरीर की सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण रहता है। आगत नसें, जिन्हें पाश्चात्य भाषा में 'अफरेन्ट नर्स' कहते हैं, सूचना लाती और इफरेंट नर्स' सूचना ले जाती हैं। इस प्रकार जटिल से जटिल समस्याओं को भी यह कोष सुलझाते हैं।

#मनुष्य_शरीर_में_विद्यमान_नाड़ियां
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प्राचीन आचार्यों के मत में मानव शरीर में बहत्तर हजार से भी अधिक नाड़ियों की विद्यमानता है, किन्तु इनमें तीन नाड़ियां अत्यन्त प्रमुख तथा प्रसिद्ध हैं। उनके नाम हैं-1. इड़ा 2. पिंगला 3. सुषुम्ना। इन तीनों में भी सुषुम्ना महत्त्व अधिक है। अध्यात्म विद्या में तो उसे सर्वोपरि प्रमुखता दी जाती है। सुषुम्ना की प्रमुखता को तो वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं। का

#सुषुम्ना_का_रहस्य
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सुषुम्ना का महत्त्व जानने के लिए उसके स्वरूप को समझ लेना भी आवश्यक होगा। सुषुम्ना में आकाश के समान पोल होती है तथा यह प्रकाशमयी भी है। अतः इस प्रकाशमयी नाही को ही सूर्यात्मक आकाश और ब्रह्माण्ड के रहस्य से मन फल
सम्बन्ध जोड़ने तथा उसे व्यापक बनाने वाली माना गया है। उसी सुषुम्ना में मन के प्रवाहित होने से मनुष्य को दिव्य स्वप्न दिखाई देते हैं। उस समय मानव की चेतना विराट् क्षेत्र में तैरती है, इसलिए मनुष्य को स्वप्न में नदी, पर्वत, वन, उपवन, भवन, नगर, दुर्ग, खेत, पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा अन्यान्य दिव्य आकृतियाँ दिखाई देती हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में मन का प्रवाह ही उन स्वप्नों का कारण होता है, जो दिव्य तथा स्वप्न होते हैं। यह एक तथ्य है कि मन जब मस्तिष्क का अनुवर्ती न रहकर सुषुम्ना का अनुवर्ती हो जाता है, तब उसकी स्थूलता नष्ट होकर सूक्ष्मता आ जाती है। इस प्रकार स्थूल से सूक्ष्म हुआ चेतन मन ही (सुक्ष्म होने पर) अवचेतन बन जाता है।

इस प्रकार मन के जो भेद चेतन और अवचेतन अथवा बहिर्मन और अन्तर्मन के नाम से कहे हैं, उनमें बहिर्मन जो कार्य नहीं कर सकता, उसे करने में अन्तर्मन सर्वथा समर्थ है। क्योंकि बहिर्मन स्थूल होने के कारण उतनी सामर्थ्य नहीं रखता जितनी कि सूक्ष्म होने के कारण अन्तर्मन रखता है। स्थूल बहिर्मन किसी भी कार्य में स्वतन्त्र नहीं होता, जबकि सूक्ष्म अन्तर्मन अपना कार्य करने में स्वतन्त्र हो जाता है।

पेज-18 ,किताब-स्वप्न ज्योतिष और शकुन विचार,
©प्रकाशकाधीन,प्रकाशक : डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.,X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-2,नयी दिल्ली-110020,वितरक : पंजाबी पुस्तक भण्डार दरीबा कलां, दिल्ली-110006,प्रथम संस्करण: 1998

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सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

झाड़ा_मंत्र_शरीर_रक्षा_हेतु_प्रचण्ड_मंत्र

#झाड़ा_मंत्र_शरीर_रक्षा_हेतु_प्रचण्ड_मंत्र
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  ०१-
धूम-धूम धूमावती। मसान में रहती, मरघट जगाती। 
सूप छानती, जोगनियों के संग नाचती। 
डाकनियों के संग मांस खाती। 
मेरे बैरी.........  का भी तू मांस खाए। 
कलेजा खाए, तू लहू पीए, प्यास बुझाए। 
मेरे बैरी को तड़पा-तड़पा मार। 
ना मारे, तो तोहुं को माता पारबती के 
सिन्दुर की दुहाई। कनीपा औघड़ की आन ।

 ०२-
ॐ आदेश, गुरुजी को आदेश । 
वज्र की कोठड़ी, वज्र किवाड़ा। 
वज्र छायों, दसों द्वारा। 
गणेश सौंगली, शेष कुण्डा। 
ब्रह्मा कुंजी, विष्णु ताला। 
भोले शंकर की चौकी, भैरों बलि, 
हनुमन्त वीर का पहरेदारा। 
जो इस घट-पिण्ड पर करे घाव, 
तो शिव-शक्ति की फिरे दुहाई। 
मेरी भक्ति, गुरु की भक्ति ।
 चले मंत्र, गुरु गोरखनाथ का वाचा फुरे ।

👆ऊपर दिया गया झाड़ा मंत्र बहुत शक्ति शाली है मंत्र को सामान्य रूप से 1या 2 बार पढ़ने से उस मे लिखे शब्दो को ध्यान से पढ़े की मंत्र किस की धारा में जा रहा है।अतः मात्र गुरु आदेश से इस विषय पे आगे बढ़े।


शरीर रक्षा हेतु प्रचण्ड मंत्र
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● ॐ नमः परमात्मने परब्रह्मा मम शरीरं बंधनाये पाहि पाहि कुरु कुरु स्वाहा।
●ॐ नमः परमात्मने अंजनी सुताय हुं हुं हुं मम शरीर बंधनाए रक्षां कुरु कुरु स्वाहा। 
● ॐ नमः बज्र का कोठा जिसमें पिंड हमारा पैठा ईश्वर कूंजी ब्रह्मा का ताला मेरे आठों याम का 
यती हनुमान रखवाला। 



🚩🄹🅂🄼🔱🄾🅂🄶🅈 🙏🄰🄰🄳🄴🅂🄷񲀊
संकलन कर्ता
।।राहुलनाथ राहुलनाथ।।™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
🚪+919827374074(व्हाट्सएपएप)
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☠️ #चेतावनी_डिसक्लेमर:-☠️
इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,लोक मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि एवं भविष्य की धरोहर समझ एकत्रीकरण ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

सोमवार, 19 सितंबर 2022

चमत्कारी प्रयोग

#चमत्कारी_प्रयोग 
डूबा धन या डूबा व्यवसाय निरंतर घाटा होने से,यह चमत्कारी प्रयोग करे...
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दिन मंगलवार हो या रविवार,दोनो में से किसी एक दिन यह प्रयोग करना है ।आपको लौंग लेनी है जो बिना टूटी-फूटी हो ।आपका जीतना धन डूबा है उसके अनुसार,जैसे मान लेते है कि 1000 रु डूबे है तो 10 लौंग लेनी है 10000 पे 100 लौंग।इस प्रकार से आगे की धनराशि के अनुसार लौंग ले ले,साथ ही 50 ग्राम कौड़ी लुभान, इन दोनों वस्तुओं को एकत्रित करे और दोनों को मिला कर जिससे धन लेना है या व्यापार में घाटा हो रहा है तो उसका उल्लेख कर लकड़ी कोयले पे इन वस्तुओं को जला दीजिये।जिससे धन लेना हो उसका नाम अवश्य ले ।सारी लौंग जलने तक उसी स्थान पे रहे ,दोनो वस्तुएं जलने के बाद 3 चुटकी भस्म की पुड़िया बना कर अपने पास रखे,प्रयोग गुप्त रखे।महाकाल की कृपा से काम हो जाएगा।
🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल महादेव 🔱

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#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,
📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)

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#चेतावनी_डिसक्लेमर:-
इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-
साबरी ग्रंथो,लोक मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)

#तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)
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#शक्ति_के_विविध_रूप-
माया, महामाया, मूल-प्रकृति, अविद्या, विद्या, अव्यक्त, अव्याकृत, कुण्डलिनी, महेश्वरी, आदिशक्ति, आदिमाया, पराशक्ति, परमेश्वरी, जगदीश्वरी, तमस, अज्ञान ये सभी ‘शक्ति’ के पर्यायवाची हैं।

नवदुर्गा, काली, अष्टलक्ष्मी, नवशक्ति, देवी आदि एक ‘पराशक्ति’ की ही अभिव्यक्तियाँ हैं।

महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली शक्ति के तीन प्रधान व्यक्त स्वरूप हैं। राधा और रुकिमणि लक्ष्मी के ही दूसरे रूप हैं और तारा तथा चण्डी देवी के रूप हैं।

प्रकृति व्यक्त और अव्यक्त है। मूल-प्रकृति अव्यक्त है, और इस भेद जगत का बीज है। इसमें जड़ तथा चेतन अभिन्न रूप में रहते हैं। जब ये शरीर में स्थित मूलाधारचक्र की अधिष्ठात्री देवी बनती है, तब ये ‘डाकिनी’ का रूप धारण कर लेती है; स्वाधिष्ठान चक्र में ये ‘राकिनी’ बन जाती है, मणिपुर चक्र में ये ‘लाकिनी’ के रूप में रहती है, अनाहत में ये ‘काकिनी’ के रूप में रहती है तथा विशुद्ध चक्र में ये ‘शाकिनी’ के रूप में रहती हैं।

परा और अपरा प्रकृति
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शक्ति सत्व, रज और तम के द्वारा अपना कार्य करती है। इस स्थूल जगत की सृष्टि के लिये आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी, ये पाँच तत्व अर्थात पंचमहाभूत उनके साधन हैं।  ये पंचतत्व और मन, बुद्धि और अहंकार मिलकर जड अथवा अपरा प्रकृति कहलाते हैं। यह स्वयं संसार के लिये बंधनरूप हैं। 

परा प्रकृति विशुद्ध हैं। ये स्वयं आत्मरूप है, क्षेत्रज्ञ है। ये ही जीवन को धारण करती है। यह समस्त जगत के अन्दर प्रवेश कर उसे धारण किये हुए है। इसे चैतन्य प्रकृति भी कहते हैं।

शक्ति की अवस्थाएँ –
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शक्ति की दो अवस्थाएँ होती हैं – गुण-साम्यावस्था और वैषम्यावस्था। गुण-साम्यावस्था वह अवस्था है जिसमें तीनों गुण – सत्व, रज और तम साम्यावस्था में स्थित रहते हैं, जो प्रलयकाल में होती है। उस समय असंख्य जीव अपने संस्कारों तथा अधिष्ठाता (अधिष्ठाता का अर्थ – कर्म की अदृश्य शक्ति अथवा फलदायिनी शक्ति जो कर्म के अन्दर छिपी रहती है) के साथ अव्यक्त अवस्था में रहते हैं।

वैषम्यावस्था वह अवस्था है जब प्रलय के पश्चात साम्यावस्थित शक्ति में स्पंद अर्थात स्फूर्ति होती है, ताकि तिरोहित जीवों को अपने-अपने कर्मों का फल भोगने की इच्छा होती हैं। इससे बह्म सृष्टि के हेतु बाध्य हो जाते हैं और उनके संकल्प मात्र से सृष्टि उत्पन्न हो जाती हैं। 

सृष्टि के समय जब आदिशक्ति के अन्दर क्षोभ होता है तो तीनों गुण- सत्व, रज और तम व्यक्त हो जाते हैं।

दस महाविद्याओं का नाम
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दस महाविद्याओं का सम्बन्ध सती, शिवा और पार्वती से हैं। ये ही विभिन्न रूपों में नवदुर्गा, शक्ति, चामुण्डा, विष्णुप्रिया आदि नामों से पूजित और अर्चित की जाती हैं। देवीपुराण में एक कथा आती है कि जब माता सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में जाना चाही तब भगवान् शिव ने निषेध किया। इससे क्रोधित हो भगवती ने अपनी अङ्गभूता दस देवियों को प्रकट की। माता आदिशक्ति की ये स्वरूपा शक्तियाँ ही दस महाविद्याएँ, जिनके नाम हैं-

काली, तारा, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, मातङ्गी और कमला।
(शक्तियां एक ही है किंतु अलग-अलग नामो से इनको पुकारा जाता है)

शम्भो ! मैं भयंकर रूपवाली भैरवी हूँ। आप भय न करें। ये सभी मूर्तियाँ बहुत सी मूर्तियों में प्रकृष्ट अर्थात मुख्य हैं।

चामुण्डा तन्त्र के अनुसार ये दस महाविद्याएँ हैं- 

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी ।

भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमवती तथा ।।

बगला सिद्धविद्या च मातङ्गी कमलात्मिका ।

एता दस महाविद्या: सिद्धि विद्या: प्रकीर्तिता ।।

दस महाविद्याएँ का स्वरूप –
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वास्तव में काली, तारा, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, और धूमावती – ये महाविद्याएँ रूप और विग्रह में प्रकट रूप में कठोर किन्तु अप्रकट करुण-रूप हैं। भुवनेश्वरी, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, मातङ्गी और कमला ये विद्याओं के सौम्यरूप हैं। एक ही महाशक्ति कभी रौद्र तो कभी सौम्य रूपों में विराजती हैं। रौद्र के सम्यक साक्षात्कार के बिना माधुर्य को नहीं जाना जा सकता और माधुर्य के अभाव में रौद्र की सम्यक परिकल्पना नहीं की जा सकती। इन महाविद्याओं का स्वरूप अचिन्त्य और शब्दातीत है, पर भक्तों और साधकों के लिये इनकी करुणामयी कृपा का कोष नित्य-निरन्तर खुला रहता है। दस महाविद्याओं का स्वरूप इसी रहस्य का परिणाम है, जो अत्यंत गोपनीय है। जिसमें महान दार्शनिक तथा धार्मि क तत्व निहित है। जो काली से कमला तक की ये यात्रा दस स्तरों में पूर्ण होती हैं। (संकलितं पोस्ट एवं छाया चित्र साभार गूगल)

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
हे मां ! आप बुद्धि के रूप में सबों के हृदय में स्थित हो !
क्रमशः:-

#तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-1) पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पे क्लिक करे।👇
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2066685210206589&id=100005953891679

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''इस लेख वर्णित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है।यहां वर्णित नियम/सूत्र/व्याख्याए/तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु
/वैदिक/तांत्रिक/आध्यात्मिक/साबरी ग्रंथो/लोक मान्यताओं/विभिन्स माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी गई है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''हम इसकी पुष्टि नहीं करते।इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।©कॉपी राइट एक्ट 1957))

तंत्र के क्षेत्र में दस महाविद्याएं(भाग-1)

तंत्र के क्षेत्र में दस महाविद्याएं(भाग-1)
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तंत्र के क्षेत्र में आये नए भक्तो को ये जानना आवश्यक है कि,तंत्र में 18 महाविद्या का उल्लेख होता है उसमें से मात्र 10 विद्याएं ही प्राप्त होती है और इन 10 महाविद्याओ को दो मार्गो में विभक्त किया गया है।
☀️प्रथम:-काली कुल
☀️काली कुल के अन्तर्गत 4 महाविद्याएं आती है।
🔵1.काली
🔵2.तारा
🔵5.भुवनेश्वरी
🔵3..छिन्नमस्ता
एवं 
☀️द्वितीय:-श्री कुल के अन्तर्गत 6 महाविद्याएं आती है।
🔵6.त्रिपुर भैरवी
🔵2.भैरवी
🔵4.षोडशी
🔵10.कमला
🔵7.धूमावती
🔵8.बगलामुखी
🔵9.मातंगी
तंत्रशास्त्र के अंतर्गत ये ही दस महाविद्याएं होती है।
☀️ सामान्य रूप से इनका क्रम इस प्रकार है।👇
🔵1.काली 
🔵2.तारा 
🔵3.छिन्नमस्ता 
🔵4.षोडशी 
🔵5.भुवनेश्वरी 
🔵6.त्रिपुर भैरवी, 
🔵7.धूमावती, 
🔵8.बगलामुखी, 
🔵9.मातंगी 
🔵10.कमला।
👉आगे की जानकारी हर भाग में क्रमशः प्रदान की जाएगी।
क्रमशः-

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शनिवार, 10 सितंबर 2022

संतोषी_माँ_की_व्रत_कथा_संतोषी_माता_की_व्रत_कथा_और_आरती

#संतोषी_माँ_की_व्रत_कथा_संतोषी_माता_की_व्रत_कथा_और_आरती
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शुक्रवार के दिन माँ संतोषी का व्रत पूजन किया जाता है| पूजा के दौरान संतोषी माता की आरती,पूजन और माता की कथा सुनाई जाती है |
संतोषी माता को सुख और वैभव की देवी माना जाता है| यह व्रत शुकल पक्ष के पहले शुक्रवार से शुरू किया जाता है |संतोषी माता श्री गणेश जिकी पुत्री है |

संतोषी माता की पूजा करने से मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है और संतोषी माता के व्रत और पूजन करने से संतोषी माता प्रसन होकर मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण करती है|

संतोषी माता के 16 शुक्रवार का व्रत रखने का विधान है शुक्रवार के दिन कोईभी खट्टी चीज़ न तो घर में लानी चाहिए और न ही खानी चाहिए

संतोषी माता की व्रत कथा
एक बुढ़िया थी उसके सात बेटे थे,6 कमाने वाले थे और एक कुछ नहीं कमाता था| बुढ़िया 6 की रसोई बनाती ,भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वो सातवे को दे देती |

एक दिन वह पत्नी से बोला-देखो मेरी माँ को मुझसे कितना प्रेम है | वह बोली क्यों नहीं होगा प्रेम वो आपको सबका जूठा जो खिलाती है|वो बोला ऐसा नहीं हो सकता जब तक मैं अपनी आँखों से न देख लू मैं नहीं मान सकता |

कुछ दिन बाद त्यौहार आया घर में सात प्रकार का भोजन और लडू बने| वह जांचने को सर दर्द का बहाना कर पतला वस्त्र सर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया वह कपडे में से सब देखता रहा सब भाई भोजन करने आये उसने देखा माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछाया हर प्रकार का भोजन रखा और उन्हें बुलाया |वह देखता रहा |

जब छेहो भाई भोजन करके उठे तो माँ ने उनकी जूठी थालियों से लडू के टुकड़े उठाकर एक लडू बनाया | झूठन साफ़ करके बुढ़िया माँ ने उसे पुकारा बेटा छेहो भाई भोजन कर गए तू कब खायेगा |वो कहने लगा माँ मुझे भोजन नहीं करना मैं प्रदेश जा रहा हु |

माँ ने बोला कल जाता हुआ आज ही चला जा वो बोला आज ही जा रहा हु |यह कह कर वह घर से निकल गया |
चलते समय पत्नी की याद आ गयी |वह गोशाला में कंडे(उपले )थाप रही थी |

वह जाकर बोला –
हम जावे प्रदेश आवेंगे कुछ काल,
तुम रहियो संतोष से धरम अपनों पाल |

वह बोली –
जाओ पिया आनंद से हमारो सोच हटाए,
राम भरोसे हम रहे ईश्वर तुम्हे सहाय|
दो निशानी आपन देख धरु मैं धीर,
सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गंभीर|

वह बोला मेरे पास तो कुछ नहीं ,यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे |
वह बोली मेरे पास क्या है ,यह गोबर भरा हाथ है | यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थप मार दी |वह चल दिया,चलते चलते दूर देश पहुंचा | वह एक साहूकार की दुकान थी |

वह जाकर कहने लगा -भाई मुझे नौकरी पर रख लो |साहूकार को जरुरत थी बोला रह जा |लड़के ने पूछा तन्खा क्या दोगे| साहूकार ने कहा काम देख कर दाम मिलेंगे |अब वह सुबह ७ बजे से १० तक नौकरी करने लगा |कुछ दिनों में वो सारा काम अच्छे से करने लगा |

सेठ ने काम देखकर उसे आधे मुनाफे का हिसेदार बना दिया |वह कुछ वर्षो में बहुत बड़ा सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया |

उधर उसकी पत्नी को सास ससुर दुःख देने लगे सारा घर का काम करवा कर उसको लकड़िया लेकर जंगल में
भेजते| घर में आटे से जो भी भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी | एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी ,रस्ते में बहुत सी महिलाये संतोषी माता का व्रत करती दिखाई देती है |

वह वहां खड़ी होकर कथा सुन ने लगी और उनसे पूछने लगी बहनो तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है यदि तुम मुझे इस व्रत का महत्व समजाओगे तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी होंगी | तब एक महिला बोली सुनो-यह संतोषी माता का व्रत है इसे करने से दरिदरता का नाश होता है और जो कुछ मैं में कामना हो सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है

वह महिला बोली -सवा आने का गुड़ चना लेना ,प्रतेक शुक्रवॉर को निरहार रह कर कथा सुन्ना और मनोकामना पूर्ण होने पर उद्यापन करना शुक्रवार के दिन घर में कहते नहीं आनी चाहिए यह सुन बुढ़िया की बहु चल दी |

रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसो से गुड़ चना लेकर माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी – यह मंदिर किसका है सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर माता के चरणों से लिपट गयी और विनती करने लगी माँ मैं अनजान हु व्रत का कोई नियम नहीं जानती हु,मैं दुखी हु | हे माता | जगत जननी मेरा दुःख दूर करो मैं आपकी शरण में हु |

माता को बड़ी दया आयी एक शुक्रवार बिता की दूसरे शुक्रवार उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्र उसके पति ने उसको पैसे भेज दिए यह देख जेठ – जेठानी का मुँह बन गया और उसको ताने देने लगे की अब तोह इसके पास पैसा आ गया अब यह बहुत इतरायेगी| बेचारी आँखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर चली गयी और माता के चरणों में बैठकर रोने लगी और रट रट बोली माँ मैंने पैसा कब माँगा |

मुझे पैसे से क्या काम मुझे तो अपना सुहाग चाहिए |मैं तो अपने स्वामी के दर्शन करना चाहती हु |तब माता ने प्रसन होकर कहा -जा बेटी तेरा स्वामी आएगा |

यह सुन कर ख़ुशी ख़ुशी घर जाकर काम करने लगी अब संतोषी माँ विचार करने लगी इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया तेरा पति आएगा लेकिन कैसे ? वह तो इसे स्वपन में भी याद नहीं करता |

उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा इस तरह माता उस बुढ़िया के बेटे के स्वपन में जाकर कहने लगी साहूकार के बेटे सो रहा है या जगता है | वो कहने लगा माँ सोता भी नहीं जागता भी नहीं कहो क्या आज्ञा है ? माँ कहने लगी -तेरा घर बार कुछ है के नहीं |वह बोला -मेरे पास सब कुछ है माँ -बाप है बहु है क्या कमी है |

माँ बोली -भोले तेरी पत्नी घोर कष्ट उठा रही है तेरे माँ बाप उसे परेशानी दे रहे है |वह तेरे लिए तरस रही है तू उसकी सुध ले |वह बोला हां माँ मुझे पता है पर मैं वहां जाऊ कैसे ?

माँ कहने लगी -मेरी बात मान सवेरे नाहा धो कर संतोषी माता का नाम ले ,घी का दीपक जला कर दुकान पर चला जा |देखते देखते सारा लेंन देंन उतर जायेगा सारा माल बिक जायेगा सांझ तक धन का भरी ढेर लग जायेगा |थोड़ी देर में देने वाले रूपया लेन लगे सरे सामान का ग्राहक सौदा करने लगे |

शाम तक धन का भरी ढेर इकठा हो गया और संतोषी माता का यह चमत्कार देख कर खुश होने लगा और धन इकठा कर घर ले जाने के लिए वस्त्र,गहने खरीदने लगा और घर को निकल गया | उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है |लौटते वक़्त माता जी के मंदिर में आराम करती है |

प्रतिदिन वह वही विश्राम करती थी अचकन से धूल उड़ने लगी धूल उड़ती देख वह माता से पूछने लगी -हे माता यह धूल कैसी उड़ रही है |

हे पुत्री तेरा पति आ रहा है अब तू ऐसा कर लकड़ी के तीन ढेर तैयार कर एक एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर में रख और तीसरा अपने सर पर |

तेरे पति को लकड़ियों का गठर देख तेरे लिए मोह पैदा होगा वह यहाँ रुकेगा ,नाश्ता पानी खाकर माँ से मिलने जायेगा |तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर चौक पर जाना और गठर निचे रख कर जोर से आवाज़ लगाना |लो सासुजी |

लकड़ियों का गठर लो,भूसी की रोटी दो ,नारियल के खेपड़े में पानी दो ,आज मेहमान कौन आया है ?
माता जी से अच्छा कह कर जैसा माँ ने कहा वैसा करने लगी |

इतने में मुसाफिर आ गए | सूखी लकड़ी देख उनकी इच्छा हुई कि हम यही आराम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। आराम करके गांव को चले गए । उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह आती है। लकड़ियों का बोझ आंगन में उतारकर जोर से आवाज लगाती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने के लिए कहती है- बहु ऐसे क्यों कह रही है ? तेरा मालिक आया है। आ बैठ भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है।

अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है। मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। वह बोला- ठीक है मां मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की चाबी दो, उसमें रहूंगा।

मां बोली- ठीक है,तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।

पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जेठानी के लड़कों को भोजन के लिए गई। उन्होंने कहा ठीक है पर पीछे से जेठानी ने अपने बच्चों से कहा , भोजन के वक़्त खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन न हो।

लड़के गए खीर खाकर पेट भर गया , लेकिन खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, हमने खीर नहीं खानी है। वह कहने लगी खटाई नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।

लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए। लड़के उसी समय इमली लेकर खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने गुस्सा किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी कहने लगे। लूट-लूट कर धन लाया था , अबपता लगेगा जब जेल की मार खाएगा। बहु से यह सहन नहीं हुए।

रोती हुई मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, यह क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी। माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। वह कहने लगी- माता मैंने क्या अपराध किया है, मैंने भूल से लड़कों को पैसे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली- अब भूल मत करना।

वह कहती है- अब भूल नहीं होगी,अब वो कैसे आएंगे ? मां बोली- जा तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति मिला।उसने पूछा – कहां गए थे?

वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह खुश होकर बोली अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया|

वह बोली- मुझे दोबारा माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा- करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना।

लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो। वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, दक्षिणा की जगह उनको एक-एक फल दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।

माता की कृपा हुई नवमें मास में उसे सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी। मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।

देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल चली आ रही है, लड़कों इसे निकालो , नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रौशनदान में से देख रही थी, ख़ुशी से चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है।

इतने में सास को क्रोध आ गया | वह बोली- क्या हुआ है है? बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।

वह बोली- मां मैं जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है। सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम नादान हैं , तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो। बोलो संतोषी माता की जय।

#संतोषी_माता_की_आरती
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जय संतोषी माता,मैया जय संतोषी माता ।

अपने सेवक जन को,सुख संपति दाता ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

सुंदर चीर सुनहरी,मां धारण कीन्हों ।

हीरा पन्ना दमके,तन श्रृंगार लीन्हों ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

गेरू लाल छटा छवि,बदन कमल सोहे ।

मंदर हंसत करूणामयी,त्रिभुवन मन मोहे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी,चंवर ढुरे प्यारे ।

धूप, दीप,नैवैद्य,मधुमेवा,भोग धरें न्यारे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

गुड़ अरु चना परमप्रिय,तामें संतोष कियो।

संतोषी कहलाई,भक्तन वैभव दियो ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

शुक्रवार प्रिय मानत,आज दिवस सोही ।

भक्त मण्डली छाई,कथा सुनत मोही ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

मंदिर जगमग ज्योति,मंगल ध्वनि छाई ।

विनय करें हम बालक,चरनन सिर नाई ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

भक्ति भावमय पूजा,अंगीकृत कीजै ।

जो मन बसे हमारे,इच्छा फल दीजै ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

दुखी,दरिद्री ,रोगी ,संकटमुक्त किए ।

बहु धनधान्य भरे घर,सुख सौभाग्य दिए ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

ध्यान धर्यो जिस जन ने,मनवांछित फल पायो ।

पूजा कथा श्रवण कर,घर आनंद आयो ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

शरण गहे की लज्जा,राखियो जगदंबे ।

संकट तू ही निवारे,दयामयी अंबे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

संतोषी मां की आरती,जो कोई नर गावे ।

ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति,जी भरकर पावे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

संतोषी माता व्रत विधि
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◆सुख की कामना से संतोषी माता के 16 शुक्रवार व्रत किये जाते है
◆घर में सुन्दर पवित्र जगह पर संतोषी माता की प्रतिमा लगाए।
◆संतोषी माता के सामने एक कलश भर के रखे कलश के   ऊपर एक बर्तन में चना गुड़ भरकर रखे।
◆संतोषी माता के सामने घी का दीपक जलाये।
◆संतोषी माता को फूल,नारियल ,लाल वस्त्र या चुनरी चढ़ाये।
◆माता संतोषी को गुड़ और चने का भोग लगाए।
◆संतोषी माता का नाम लेकर कथा शुरू करनी चाहिए।
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🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈
🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल

*राहुलनाथ™* 🖋️....
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)

#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
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शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

चमत्कारी_मंत्र_सभी_खतरों_से_सुरक्षित_रखता_है

#चमत्कारी_मंत्र_सभी_खतरों_से_सुरक्षित_रखता_है
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भगवान गौतम बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया। उन्होंने दुःख, और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया, उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है, उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की भी निंदा की। 
वैशाख माह की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है।
अगर आप अपने जीवन में कभी निराशा और मार्ग से भटक जाओ तो भगवान गौतम बुद्ध के उपदेश को जरूर पढ़े, यह सरे विचार आपको सत्य के मार्ग पर लेकर जायँगे।

बौद्ध धर्म का यह चमत्कारी मंत्र सभी प्रकार के खतरों से सुरक्षा के लिए जपा जाता है। यह निम्न षडाक्षरीय मंत्र आने वाले हर संकटों से सुरक्षित रखता है। इस षडाक्षरीय मंत्र का उल्लेख अवलोकितेश्वरा में किया गया है। पढ़ें मंत्र- 
 #बीज_मंत्र - 
 'ॐ मणि पदमे हूम्‌' 
 
* इस मंत्र का जप बौद्ध धर्म की महायान शाखा में प्रमुख रूप से किया जाता है। 
* यह मंत्र अक्सर प्रार्थना चक्र, स्तूपों की दीवार, धर्म स्थानों के पत्थरों, मणियों आदि में खुदा हुआ या चित्रित रूप में मिल जाता है। 
* जिस प्रार्थना चक्र पर यह मंत्र खुदा होता है उसको 1 बार घुमाने पर माना जाता है कि उसने इस मंत्र को 10 लाख बार जपा है। 
* यह मंत्र अंगूठी या अन्य आभूषणों में भी मुद्रित रहता है।
 * बताया जाता है कि जो कोई इस मंत्र को जपता है, 
    वह सब खतरों से सुरक्षित हो जाता है। 
    (संकलित पोस्ट)

🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल महादेव 🔱

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#चेतावनी_डिसक्लेमर:-
इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-
साबरी ग्रंथो,लोक मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

मेरी मृत्यु

हम कौन होते मृत्यु का चयन करने वाले।जीवन उसने दिया है।मृत्यु भी वही देगा।फिर ना रात देखेगा,ना दिन और ना दोपहर।बस चलती घड़ी बंद हो जाएगी मेरी।बाकी सब घड़िया चलते रहेगी,एक दिन रुकने के लिए...

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बुधवार, 17 अगस्त 2022

तन्त्र एवं नाजायज संबंधो के परिणाम !! !! प्रेम-त्रिकोण !!

तन्त्र एवं नाजायज संबंधो के परिणाम !! !! प्रेम-त्रिकोण !!
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
हर वो पुरुष या स्त्री जिसने अपनी साली/देवर से घनिष्टा रखी है सालि/देवर से विवाह किया है या अनैतिक संबध बनाया है फिर क्यो न पत्नि/पति की मृ्त्यु के बाद!
तो ऎसी अवस्था मे उनके संतान को बहुत कष्ट होगा!!
या मृ्त्यु तक हो सकति है !!
साथ ही यह सुचक है की उसके उपर दुर्गा देवि क्रोधित है जिसने ये कार्य किया!
उसकी कुंडली मे मंगल ग्रह की स्थिति अनुकुल नही होगी !!
और इसके साथ साथ यदि दांतों मे दर्द हो,बातो बातो मे अचानक हकलाहट प्रारंभ हो जाति हो,स्वभाव अधिक चंचल होगया हो, नशे के प्रति रुझान बड गया हो,तो निष्चित है कि उसका काल निकट है !!इस समस्या के बहुत से समाधान है किन्तु सरल सस्ता समाधान यह है की ! अपनि मन की बातो को अपने किसि निकट के मित्र को बताये !!और संतान को किसी भी मंदीर मे किसी रिश्तेदार को 1 रु मे बेच दे मान्सिक रुप से!!
एवं और यह कार्य संतान को ना बताये ! फिर आगे के जिवन मे जब तक संतान अपने आपको सम्हालने योग्य ना हो जाये तब तक मात्र उसका रक्षक बन कर रहे पिता-माता बनकर नही !! इस प्रकार अन्य नाजयज संबंधो के भि अलग अलग परिणमा होते है !!और कई जिवन बर्बाद हो जाते है!

 🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल महादेव 🔱

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मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।©कॉपी राइट एक्ट 1957))

गणेशजी_के_संस्कृत_श्लोक

#गणेशजी_के_संस्कृत_श्लोक ।।
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।।श्रीगणेश ध्यान।।
*"जय श्रीगणेश"*
"गजवदनमचिन्त्यं तीक्ष्णदृष्टं त्रिनैत्रम्।"
"बृहदुदरमशेषं भूतिराजं पुराणम्।।"
"अमरवरसुपूज्यं रक्तवर्णं सुरेशम्।"
"पशुपतिसुतमीशं विघ्नराजं नमामि।।"
"जय श्रीहेरम्ब"
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एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।
भावार्थ: एक दन्त भगवान गणेश का ही नाम हैं, जिन्हे हम सभी जानते हैं। घुमावदार सूंड वाले भगवान का ध्यान करते हैं। श्री गजानन हमें प्रेरणा प्रदान करते हैं।
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ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥
भावार्थ:
सभी सुखों को प्रदान करने वाले सच्चिदानंद के रूप में बाधाओं के राजा गणेश को नमस्कार। गणपति को नमस्कार, जो सर्वोच्च देवता हैं, बुरे बुरे ग्रहों का नाश करने वाले।
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सिद्धिबुद्धि पते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने।
मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः॥
भावार्थ:
भगवान! आप सिद्धि और बुद्धि के विशेषज्ञ हैं। माया के अधिपति और भ्रम फैलाने वालों को मिलन में जोड़ा गया है। बार-बार नमस्कार
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अभिप्रेतार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्नच्छिदे तस्मै गणाधिपतये नमः॥
भावार्थ:
मैं विघ्नों के नाश करने वाले गणधिपति (गणेश) को नमन करता हूं, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं। गणेश (= गण + ईश) को भगवान शिव के गणों (अनुयायियों) का स्वामी या स्वामी कहा जाता है।
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लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च।
अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः॥
भावार्थ:
तुम लम्बोदर हो, सबके पेट में जठर रूप में निवास करते हो, तुम पर किसी का भ्रम काम नहीं करता और तुम ही माया के आधार हो। आपको बार-बार नमस्कार।
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यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोः यतः सम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।
भावार्थ:
उनकी कृपा से मोक्ष की इच्छा रखने वालों की अज्ञानी बुद्धि नष्ट हो जाती है, जिससे भक्तों को संतुष्टि का धन प्राप्त होता है, जिससे विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और कार्य में सफलता मिलती है, ऐसे गणेश जी को हम सदा प्रणाम करते हैं। हाँ, वे उसकी पूजा करते हैं।
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त्रिलोकेश गुणातीत गुणक्षोम नमो नमः।
त्रैलोक्यपालन विभो विश्वव्यापिन् नमो नमः॥
भावार्थ:
हे त्रैलोक्य के भगवान! हे गुणी! हे मेधावी! आपको बार-बार नमस्कार। हे त्रिभुवनपालक! हे विश्वव्यापी! आपको बार-बार नमस्कार।
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मायातीताय भक्तानां कामपूराय ते नमः।
सोमसूर्याग्निनेत्राय नमो विश्वम्भराय ते॥
भावार्थ:
आपको नमस्कार है जो मायावी और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। आपको नमस्कार है जो चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के नेत्र हैं, और जो संसार को भरते हैं।
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जय विघ्नकृतामाद्या भक्तनिर्विघ्नकारक।
अविघ्न विघ्नशमन महाविध्नैकविघ्नकृत्॥
भावार्थ:
हे भक्तों के विघ्नकर्ताओं का कारण, विघ्नरहित, विघ्नों का नाश करने वाला, महाविघ्नों का मुख्य विघ्न! आपकी जय हो।
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मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र।
वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते।।
भावार्थ:
हे भगवान, जिनका वाहन चूहा है, जिनके हाथों में मोदक (लड्डू) हैं, जिनके कान बड़े पंखों की तरह हैं, और जिन्होंने पवित्र धागा पहना हुआ है। जिनका रूप छोटा है और जो महेश्वर के पुत्र हैं, जो सभी विघ्नों का नाश करने वाले हैं, मैं आपके चरणों में नतमस्तक हूं।
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शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।
भावार्थ:
समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए श्वेत वस्त्रधारी श्रीगणेश का ध्यान करना चाहिए, जिनका रंग चन्द्रमा के समान है, जिनकी चार भुजाएँ हैं और जो सुखी हैं।
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वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा।।
भावार्थ:
हे हाथी के समान विशाल, जिसका तेज सूर्य की एक हजार किरणों के समान है। मेरी कामना है कि मेरा काम बिना
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नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च।।
भावार्थ:
मैं भगवान गजानन की पूजा करता हूं, जो सभी इच्छाओं के पूर्तिकर्ता हैं, जो सोने की चमक से चमकते हैं और सूर्य की तरह तेज हैं, एक सर्प की बलि का पर्दा पहनते हैं, एक दांत वाले, सीधे और कमल के आसन पर विराजमान हैं।
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एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ:
मैं दिव्य भगवान हेराम को नमन करता हूं, जो एक दांत से सुशोभित हैं, एक विशाल शरीर है, सीधा है, गजानन है और जो बाधाओं का नाश करने वाला है।
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विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
भावार्थ:
वरदान दाता विघ्नेश्वर, देवताओं के प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत् के हितैषी, दृष्टि, वेदों और यज्ञों से सुशोभित पार्वती के पुत्र को नमस्कार; हे गिनती! बधाई हो।
(संकलितं)
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साधना_में_ब्रह्मचर्य_का_महत्व

#साधना_में_ब्रह्मचर्य_का_महत्व
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गुरुओ ने,ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मचर्य की साधना के लिए चिंतन करने को कहा है। कोई दूसरा आपको ब्रह्मचर्य की ओर नहीं ले जा सकता,ये काम स्वयं करना होता है। कामवासना को प्रबल इच्छाशक्ति से रोका जा सकता है। कामवासनाओं को नष्ट करने में सक्षम व्यक्ति अखंड ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है। प्राण शक्ति, स्फूर्ति, बुद्धि यह सब वीर्य के ऊर्ध्वगामी होने से प्राप्त होती है। अस्तु, वीर्य की रक्षा प्राणपण से की जानी चाहिए। विवाहित हों, तो केवल संतानोत्पादन के लिए वीर्य-दान की प्रक्रिया अपनाई जाय अथवा कठोरतापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाय। इससे प्रत्येक साधना सधती है।
कैसा भी योगाभ्यास करने वाला साधक हो,धारणा,ध्यान,त्राटक आदि करता हो लेकिन यदि वह ब्रह्मचर्य का आदर नहीं करता,संयम नहीं करता तो उसका योग सिद्ध नहीं होगा। साधना से लाभ तो होता ही है लेकिन ब्रह्मचर्य के बिना उसमें पूर्ण सफलता नहीं मिलती।
राम के सुख के बाद संसार में यदि अधिक-से-अधिक आकर्षण का केन्द्र है तो वह काम का सुख है। शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गन्ध इन पाँचों विषयों में स्पर्श का आकर्षण बहुत खतरनाक है। व्यक्ति को कामसुख बहुत जल्दी नीचे ले आता है।जहॉ भगवती काली का स्थान है।यही कुंडलिनी योग में मूलाधार का स्थान है।
बड़े-बड़े राजा-महाराजा-सत्ता धारी उस काम-विकार के आगे तुच्छ हो जाते हैं। यहाँ तक स्वयं महादेव शव स्वरुओ हो जाते है।काम-सुख के लिये लोग अन्य सब सुख,धन,वैभव,पद-प्रतिष्ठा कुर्बान करने के लिये तैयार हो जाते हैं। इतना आकर्षण है काम-सुख का। राम के सुख को प्राप्त करने के लिए साधक को इस आकर्षण से अपने चित्त को दृढ़ पुरुषार्थ करके बचाना चाहिये।
जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा। लेकिन जिसके ब्रह्मचर्य का कोई ठिकाना नहीं ऐसे व्यक्ति के आगे साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण आ जायें,भगवान विष्णु आ जायें,ब्रह्माजी आ जायें,माँ अम्बाजी आ जायें,तैतीस करोड़ देवता आ जाये ये सब मिलकर भी उपदेश करें फिर भी उसके विक्षिप्त चित्त में आत्मज्ञान का अमृत ठहरेगा नहीं। जैसे धन कमाने के लिए भी धन चाहिये,शांति पाने के लिये भी शांति चाहिये,अक्ल बढ़ाने के लिये भी अक्ल चाहिये,वैसे ही आत्म-खजाना पाने के लिये भी आत्मसंयम चाहिये। ब्रह्मचर्य पूरे साधना-भवन की नींव है। नींव कच्ची तो भवन टिकेगा कैसे?
क्रमशः....

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मंगलवार, 9 अगस्त 2022

दस महाविद्या स्तोत्र | *******************दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।शिव ने कहा- तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे। प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है।तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।(संकलितं पोस्ट)🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🔱*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️📱➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

बुधवार, 3 अगस्त 2022

घोड़े_की_नाल

#घोड़े_की_नाल
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यदि घोड़े की नाल को उल्टा करके द्वार पर लगाया जाये तो भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक उर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।तंत्र शास्त्र के अनुसार, वैसे तो किसी भी घोड़े की नाल बहुत प्रभावशाली होती है लेकिन यदि काले घोड़े के अगले दाहिने पांव की पुरानी नाल हो तो यह कई गुना अधिक प्रभावशाली हो जाती है। 

अक्सर आपने किसी के घर के बाहर या अंदर कही उचित स्थान पर घोड़े की नाल को लटके हुए देखा होगा। कई लोग इस घर में लगाते हैं। घोड़े की नाल को घर के मुख्य प्रवेश द्वार या लिविंग रूम के प्रवेश द्वार पर बाहर की ओर लगाया जाता है। आखिर घोड़े की नाल को लगाने से क्या होता है और क्या यह उचित है?

क्या होती है घोड़े की नाल?
घोड़े के पैरों के तलवे में लोहे का एक यू शेप का सोल ठोंका जाता है जिससे घोड़े को चलने और दौड़ने में दिक्कत नहीं होती है। अंग्रेजी के यू के आकर के इस सोल में जहां-जहां कील ठोकी जाती है वहां-वहां छेद होते हैं। लौहे के इस सोल को नाल कहते हैं। हालांकि बाजार में आजकल घोड़े की नाल के नाम पर बस नाल ही मिलती है जिसे किसी भी घोड़े ने इस्तेमाल नहीं किया होता है। पुराने समय में जिस घोड़े की नाल बेकार हो जाती थी उसे ही उपयोग में लाया जाता है। इसके पीछे क्या कारण है? यह बताना मुश्किल है।
 
 
ज्योतिष और वास्तु अनुसार 
*वास्तुशास्त्री मानते हैं कि यदि घर का मुख्य द्वार उत्तर, उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में हो तो उसके ऊपर बाहर की तरफ घोड़े की नाल लगा देना चाहिए। घर के मुख्यद्वार पर काले घोड़े की नाल लगाने से घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती और बरकत बनी रहती है।

*मान्यता है कि काले घोड़े की नाल को अगर काले कपड़े में लपेटकर अनाज में रख दिया जाए तो कभी अनाज की कमी नहीं रहती है। मतलब बरकत बनी रहती है।

*यह भी कहते हैं कि काले घोड़े की नाल को किसी काले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख देने से धन में वृद्धि होती रहती है।

*मान्यता है कि घोड़े की नाल को घर में स्थापित करने से जादू-टोने, नकारात्मक ऊर्जा व बुरी नजर से मुक्ति मिलती है। 
 
*कहते हैं कि यदि किसी को दौड़ते हुए घोड़े के पैर के छिटक कर निकल पड़ी नाल मिल जाए और वो उसे घर में लाकर उचित स्थान पर लगा दे तो उसका दुर्भाग्य दूर होकर जीवन में खुशियां आ जाती है।
 
*दुकान के बाहर काले घोड़े की नाल को टांगने से बिक्री बढ़ जाती है।
 
क्या द्वार के ऊपर घोड़े की नाल लगाना उचित है?
कुछ विद्वानों के अनुसार यह उचित नहीं है। क्योंकि द्वार के उपर या तो गणेशजी की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है या कोई मंगल प्रतीक लगाया जाता है। अत: यदि आप घोड़े की नाल को द्वार पर लगाने का सोच रहे हैं तो किसी विद्वान से पूछकर ही ऐसा करें।...एक कथा अनुसार द्वार के महत्व को समझें... हनुमानजी लंका दहन करने में लगे थे तो उन्होंने विभिषण के घर के द्वार पर विष्णु और राम के मंगल प्रतीक देखकर उनके घर को छोड़ दिया था।
 
काले घोड़े की नाल के कुछ उपाय इस प्रकार हैं-

१.मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल
घोड़े की नाल को घर के मुख्य द्वार पर सीधा लगाने से दैवीय कृपा बनी रहती है।
२.भूत-प्रेत बाधा
यदि घोड़े की नाल को उल्टा करके द्वार पर लगाया जाये तो भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक उर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।
४.अक्सर बीमार रहता है कोई
यदि घर में कोई अक्सर बीमार रहता है तो उसके बेड के चारों कोने में काले घोड़े की नाल की कीलें चारों कोने में लगा देने से लाभ मिलता है।
५.बिजनेस बढ़ता है
लोगों का मानना है कि काले घोड़े की नाल को अपने व्यवसायिक स्थल पर लगाने से व्यापार में प्रगति होती है।
६.बरक्कत होती है
लोग मानते हैं कि घोड़े की नाल को काले कपड़े में बाॅधकर तिजोर में रखने से धन की बरक्कत होती है।
७.खिलाड़ियों के लिये लाभकारी
ऐसा मानना है कि खिलाड़ियों को घोड़े की नाल का छल्ला अवश्य पहना चाहिए। यदि पहनने में कोई दिक्कत हो तो उसे अपने पर्स में भी रख सकते हैं।
८.कमर का दर्द और घोड़े की नाल
ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों को कमर दर्द की शिकायत रहती है, उन्हें अपनी कमर में घोड़े की नाल का छल्ला काले धागे में पहनने से लाभ मिलता है।
अन्य उपाय
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1. यदि दुकान ठीक से नहीं चल रही हो या किसी ने दुकान पर तंत्र प्रयोग कर उसे बांध दिया हो तो दुकान के मुख्य द्वार की चौखट पर नाल को अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार में लगा दें। आपकी दुकान में ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगेगी और परिस्थितियां अनुकूल हो जाएंगी।
2. यदि घर में क्लेश रहता हो, आर्थिक उन्नति नहीं हो रही हो या किसी ने तंत्र क्रिया की हो तो घर के मुख्य द्वार पर नाल को अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार में लगा दें। कुछ ही दिनों में नाल के प्रभाव से सबकुछ ठीक हो जाएगा।
3. यदि शनि की साढ़े साती या ढय्या चल रही हो तो किसी शनिवार को काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी विधिपूर्वक दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण कर लें। आपके बिगड़े काम बन जाएंगे और साथ ही धन लाभ भी होगा।
4.   काले घोड़े की नाल से एक कील या छल्ला बनवा लें, शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भर कर ये छल्ला या कील उसमें डाल कर अपना मुख देखे और पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। इससे शनि दोष में कमी आएगी।
5. काले घोड़े की नाल एक काले कपड़े में लपेट कर अनाज में रख दो तो अनाज में वृद्धि होती है और तिजोरी में रख दें तो धन संबंधी लाभ होता है। घर में बरकत बनी रहती है।
6. अपने पैसों से किसी काले घोड़े के पैरों में नाल लगवा दें। इससे भी शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी कर सकते हैं। इससे साढ़ेसाती व ढय्या के अशुभ प्रभाव में भी कमी आती है।
7. एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें काले घोड़े की नाल डाल दें। अब इस कटोरी को अपने सिर से पैर तक 7 बार घुमा कर किसी सुनसान जगह पर गाड़ दें। इससे बुरी नजर भी उतर जाएगी और यदि शनि दोष होगा तो वह भी कम होगा।
8. अपनी लंबाई के बराबर काला धागा लें और उसमें 8 गठानें लगा लें। इस धागे को तेल में डूबोकर काले घोड़े की नाल पर लपेट लें और शमी वृक्ष के नीचे गाड़े दें। इससे सभी प्रकार के दुख-तकलीफों से मुक्ति मिलेगी। ये बहुत ही अचूक उपाय है।
(संकलित पोस्ट ज्योतिष वास्तु एवं तंत्रानुसार)


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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

शनिवार, 30 जुलाई 2022

शिवजी को प्रिय हैं ये फूल

शिवजी को प्रिय हैं ये फूल
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मदार, चमेली, बेला, हरसिंगार, गुलाब, अलसी, जूही और धतूरे जैसे फूल भगवान शिव को अतिप्रिय होते हैं. सभी फूलों से अलग-अलग मनोकामनाएं जुड़ी होती हैं. आप अपनी मनोकामना व इच्छानुसार शिवजी को सावन में ये फूल जरूर चढ़ाएं.
जानें किस मनोकामना के लिए चढ़ाएं कौन सा फूल
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चमेली-
सावन में शिवजी को चमेली का फूल चढ़ाने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है.

बेला-
शिवजी की विशेष पूजा में बेला फूल चढ़ाना चाहिए. इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और आपको मनचाहे जीवनसाथी का वरदान देते हैं.

हरसिंगार-
सावन में शिवजी की पूजा करते समय हरसिंगार का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस फूल को चढ़ाने से सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

मदार-
शिवजी की पूजा करते समय मदार के फूल जरूर चढ़ाएं. इसे आक और आंकड़े जैसे नामों से भी जाना जाता है. शिवजी को मदार के फूल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

धतूरा-
शिवजी को धतूरा अत्यंत प्रिय होता है. धतूरे के बिना शिवजी की पूजा अधूरी मानी जाती है. सावन में शिवजी की पूजा करते समय धतूरे के फल के साथ ही फूल भी चढ़ाना चाहिए. इससे संतान की प्राप्ति होती है.

गुलाब-
धन-समृद्धि के लिए सावन में शिवजी को गुलाब के फूल चढ़ाएं.
जूही- जूही के फूल से पूजा करने पर नौकरी-व्यापार में तरक्की होती है और धन संबंधी परेशानियां दूर होती है.

अलसी-
सावन में अलसी के फूल से शिवजी की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर होते हैं.संकलित पोस्ट

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शनिवार, 23 जुलाई 2022

#सर्वसिद्धिप्रद_बगलामुखी_मंत्र_एवं_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम

#सर्वसिद्धिप्रद_बगलामुखी_मंत्र_एवं_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम


माँ भगवती श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।
माँ बगलामुखी यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है।
माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।
प्रभावशाली मंत्र माँ बगलामुखी
#विनियोग -
अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

#आवाहन
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा ।

#ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

#मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्‍भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है।

मां पीताम्बरा कि अमोघ और अभेद्य कृपा से परिवार सुरक्षित रहे इस हेतु श्रीबगलामुखी शतनाम स्तोत्र के रोजाना १५ पाठ करे किसी विशिष्ट कार्य हेतु दस दिन मे एक हजार पाठ करे |यदि आप नित्य पाठ करने में सक्षम नही तो इनका पाठ विधि अनुसार योग्य साधक या भक्त से करवाये।
|| जय मां पीताम्बरा ||
#सर्वसिद्धिप्रद_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम_॥
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#श्रीर्जयति ||
#ध्यानम्
गंभीरां च मदोन्मत्तां स्वर्णकांतिसमप्रभाम् ।
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासनसंस्थिताम् ॥
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च बिभ्रतीं |
पीतांबरधरां देवीं दृढपीनपयोधराम् ||
ओम् ब्रह्मास्त्र-रूपिणी देवी  माता श्रीबगलामुखी । चिच्छक्तिर्ज्ञान-रूपा च ब्रह्मानन्दप्रदायिनी ॥१॥
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमङ्गला ॥२॥
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ॥३॥
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवाङ्कस्था शिवरूपा शिवप्रिया ॥४॥
सर्वसम्पत्करी देवी सर्वलोक-वशङ्करी ।
वेदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयङ्करी ॥५॥
स्तम्भरूपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥६॥
मेनापुत्री शिवानन्दा मातङ्गी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ॥७॥
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बरा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ॥८॥
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ॥९॥
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योरागविवर्द्धिनी ।
विष्णुरूपा जगन्मोहा ब्रह्मरूपा हरिप्रिया ॥१०॥
रुद्ररूपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ॥११॥
धनाध्यक्षा धनेशी च धर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ॥१२॥
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च रक्तबीजविनाशिनी ॥१३॥
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुरविनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥१४॥
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ॥१५॥
वज्रपाशधरा देवी जिह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ॥१६॥
          #फलश्रुती
                
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु य: पठेत् । रिपुबाधाविनिर्मुक्त: लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ॥
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीडानिवारणम् ।
राजानो वशमायान्ति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् । भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ॥
॥ इतिश्री रुद्रयामले सर्वसिद्धिप्रद-श्री-बगलाष्टोत्तर-शतनामस्तोत्रम् ॥

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मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

बुधवार, 20 जुलाई 2022

मृत्यु,समाधि और जीवात्मा ।।

मृत्यु,समाधि और जीवात्मा ।।
"मृत्यु केवल इन्द्रियों के स्वामी का शरीर से निकल जाना मात्र है"

जो व्यक्ति नित्य सोने से पहले या प्रातः उठते ही प्रार्थना का प्रयोग करते है या नित्य ध्यान करते है,उन्हें अपनी मृत्यु के पहले,मृत्यु के समय का ज्ञान हो जाता है।यही निर्मल एवं शांत चित्त के  व्यक्तियो के साथ भी हो सकता है।जैसा की मैंने सूना है मृत्यु के 6 महीने पहले से मृत्यु की छाया पड़ने लगती है एवं मृत्यु के एक दो दिन या पाँच-छः घंटे पूर्व,इसका स्पस्ट आभास होने लगता है।मृत्यु के पहले मनुष्य को विशेष अनुभूतियाँ होती है और इन अनुभूतियों की पहले से जानकारी ना होने के कारण 80 प्रतिशत मनुष्य की मृत्यु भयभीत होने से,बेहोशी की अवस्था में हो जाती है उन्हें उनके मरने का ज्ञान ही नहीं हो पाता है।उन्हें पता ही नहीं चल पाता की उसकी मृत्यु हो गई है और वो शरीर से अलग हो चुका है।ठीक इसके विपरीत समाधि की अवस्था है इसमें भी मृत्यु होती है किन्तु इसमें साधक को मृत्यु से भय नहीं होता।समाधि होश में मृत्यु है।समाधि कोई आकास्मिक घटना नहीं है समाधि में एक बार मृत्यु नहीं है समाधि नाम हैं होष में रह कर शरीर के हर चक्रों-कोशो को मारते हुए अंत में सहस्त्रार (शीर्ष में उपस्थित चंद्र स्थान,जो बाल्यावस्था में पोला होता है) से प्राणों को बाहर निकाल देने का।ऐसी अवस्था को प्राप्त करने के लिए जीवन भर साधना एवं गहरी एकाग्रता की आवश्यकता होती है।इस एक पल की मृत्यु के लिए साधक को लगातार मृत्यु की साधना करनी होती है।एक बार की समाधि के लिए साधक को रोज रोज मारना होता है।
युवावस्था में या दुर्घटना वष मरने पर मनुष्य को मृत्यु का अनुभव होता है किन्तु 90 वर्ष की अवस्था में मृत्यु होने पे ये अनुभव नहीं होता क्योकि इस आयु तक अनुभव कराने वाले कोशो की पहली ही मृत्यु हो जाती है यदा-कदा ही इस आयु में किसी को इस क्षण का अनुभव हो पाता हो।सामान्यतः देखा जाता है की स्वस्थ व्यक्ति पहली ही बिमारी ने मर जाता है वही 90 वर्ष तक जीवित रहने वाले की मृत्यु भी मुश्किल ही हो जाती है जिसकी वासना जीतनी तीव्र होगी और जीवन भोगने की इच्छा जीतनी तीव्र होगी ,उसकी आयु भी उतनी लंबी होगी।मन में जितने जल्दी वैराग्य पैदा होगा,जितने जल्दी कामनाए समाप्त हो जायेगी। उतने ही जल्दी मुक्ति प्राप्त होती है 
दुर्घटना वष जिसकी मृत्यु होती है वह इस आकस्मिक घटना के कारण भयभीत नहीं होता और वह भी अपनी मृत्यु का साक्षी बन जाता है।आकस्मिक दुर्घटना में मृत हुए व्यक्ति के भविष्य की योजनाये एवं कामनाये समाप्त नहीं हो पाती जिससे की वह बिना देह के अपनी कामनाओ को पूर्ण करने हेतु भटकता रह जाता है।ये कामनाये इस मृतक को नए जीवन की ओर अग्रसर नहीं होने देती।स्वाभाविक मृत्यु एवं दुर्घटना में मृत्यु में भेद है,सामान्यः मृत्यु से पहले धीरे धीरे शरिर के सारे कोष एवं केंद्र मरते है।उसके जीवनकाल में किये गए कर्म चित्र की भाँती आँखों के सामने घूमने लगते है जिससे सामान्य व्यक्ति धीरे धीरे पहले से ही मृत्यु के लिए तैयार होता रहता है एवं अंत में प्राण नाभि पे सिकुड़कर एकत्रित हो जाता है फिर जो उसे मार्ग मिलता है उस मार्ग से निकल जाता है।
दुर्घटना में तो मानो ऐसा है जैसा की अचानक मटके को फोड़ दिया गया हो,जैसे पौधे को अचानक धरती से उखाड़ दिया गया हो,जैसे अचानक काल के हाथो बली चढ़ गई हो।
मृत्यु की यात्रा में मृतात्मा के साथ मृतात्मा की स्मृति जाती है किसी की स्मृति 3 दिन तक साथ रहती है किसी की 13 दिन तक।इसी कारण हिन्दू धर्म में तेरहवी का संस्कार होता है जिससे की मृतात्मा का अपनी पुरानी स्मृतियों का त्याग हो और वह नव जीवन प्राप्त कर सके।
आत्मा के शरीर से निकलने पर भी उसके शरीर से 3-4 दिन तक ऊर्जा का निष्कासन होता रहता है यह उसी प्रकार है जैसे वृक्षो के साथ होता है वे कटने के बाद भी मृत नहीं होते एवं कटने के बाद भी उसे 3-4 दिनों के भीतर धरती में रोप दिया जाए एवं उसकी देख-रेख की जाए तो वह पुनः प्राणवान हो जाता है।यहाँ इस विषय को वैज्ञानिक रूप से समझने का प्रयास करते है ।
वैज्ञानिक भाषा में मृत्यु दो प्रकार से संभव है प्रथम ह्रदय की धड़कन बंद होने से डॉक्टर इसे "क्लिकनील डैथ "(शारीरिक मृत्यु)कहते है और दूसरी मृत्यु जिसमे शरीर की सारी ऊर्जा बाहर निकल जाती है उसे "बायोलॉजिकल डैथ" (जैविक मृत्यु) कहते है।इसी सिद्धांत के अनुसार "सिद्धसाधक" मरने के बाद भी जैविक मृत्यु के पूर्व किसी विशेष विधि से यदि आत्मा को शरीर में प्रवेश करा दे तो वह पुनः जीवित हो सकता है।इसे ही परकाया प्रवेश द्वारा शरीर में प्रवेश करना कहते है।धर्म ग्रंथो के अनुसार इसी कारण मृत्यु के बाद शरीर को ज्यादा समय तक नहीं रखा जाता क्योकि ऐसी अवस्था में उसकी मृत्यु जैविक नहीं होती और हो सकता है की मृतक के शरीर में कोई और ईथर योनिया अपना घर बना ले,क्योकि मालिक हिन् गृह पे अक्सर आतातायी कब्जा कर लेते है।ऐसा बहुत कम अपवाद स्वरूप ही होता है की मृत शरीर में वही जीवात्मा वापस आ सके,क्योकि मृत्यु के बाद बिस्फोट के कारण जीवात्मा शरीर से बहुत दूर चला जाता है और उसके शरीर के पास आने से पहले हो सकता है कोई और योनि इस शरीर में प्रवेश कर जाए।
सामान्यतः शरीर की आयु निश्चित होती है किन्तु सही आहार-विहार एवं स्वास्थ नियमो का पालन कर कुछ आयु बढाई जा सकती है।इसके बावजूद जिस दिन जीवात्मा को ये महसूस होता है की ये शरिर काम का नहीं रहा उस दिन ये जीवात्मा शरीर का त्याग कर देता है।आप ज्ञानी बने ,तेजस्वी बने ,ध्यानी बने,या सामान्य जीवन यापन करने वाला गृहस्त बने हर अवस्था में मृत्यु ही सत्य है शास्वत है।
कभी कभी लगता है सुख भोगो या दुःख दोनों ही काल कोठरी है इससे क्या फर्क पड़ता हैं कि कोठरी पत्थर की है या स्वर्ण की।दोनों अवस्था में भी{व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार }
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१९
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गुरुवार, 14 जुलाई 2022

कीमत

#कीमत
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मेरी जड़ो को उसने ही खोदा जिसने मुझे रोपा था पहले उसने मेरी शाखाओं को तोड़ा ,फूलो को तोड़ा ,फलों को तोड़ा और अंत मे मेरी जड़ो को भी ...
किन्तु बीज का क्या होगा जो धरती से जुड़ गया था,मैं फिर खड़ा हो जाऊंगा बस स्मरण रहे अब ,मैं तेरा नही रहूंगा,क्योकि मुझको बोने की कीमत तू वसूल कर चुका है..
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१७
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आपके प्रश्न

आपके प्रश्न
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मुझे ख़ुशी है इस बात की ,इतनी भूख तो अभी भी बाकी है मित्रों ज्ञान की।।जहाँ प्रश्न होता है वहा उत्तर भी होता है और उत्तर न होने की अवस्था में ,फिर एक बार ,एक नई खोज प्रारम्भ हो जाती है।
धन्य है आप एवं आपके प्रश्न जो बार बार एक नई खोज के लिए प्रोत्साहित करते है।
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१७
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भगवान श्री राम के संस्कृत श्लोक एवं मंत्र संग्रह

भगवान श्री राम के संस्कृत श्लोक एवं मंत्र संग्रह
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एक श्लोकी रामायण 
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आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्‌ रावण कुम्भकर्ण हननम्‌, एतद्धि रामायणम्।।

भावार्थ
श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। श्रीराम ने बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंका का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया।

श्री राम वंदना श्लोक 
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लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और करुणा के भण्डार रुपी श्रीराम की शरण में हूं।

श्री राम गायत्री मंत्र 
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ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धी महि॥ तन्नो रामः प्रचोदयात्।।

भावार्थ

ॐ, दशरथ के पुत्र का ध्यान करें, माता सीता की सहमति, आज्ञा से मुझे उच्च बुद्धि और शक्ति दें, भगवान् श्री राम मेरे मस्तिस्क को  बुद्धि और तेज़ से प्रकाशित करें, बुद्धि और तेज प्रदान करें।

श्री राम ध्यान मंत्र 
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ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम, लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम।
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः।।

श्री रामाष्टक 
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हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्।।

राम पर श्लोक
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श्री राम का पाठ करने वाले हर साधक को जीवन में आने वाले कष्टों से राहत मिलती है। भगवान राम के आशीर्वाद साथ साथ हनुमान जी की भी कृपा बनी रहती है। हमने यहाँ पर हर परिस्थितियों के लिए राम पर श्लोक दिए है। जिसके रोजाना पढ़न से आपके जीवन के सारे कष्ट दूर होंगे।

सौभाग्य और सुख प्राप्ति मंत्र:
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श्री राम जय राम जय जय राम। श्री रामचन्द्राय नमः।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।

गरीबी/दरिद्रता निवारण मंत्र:
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अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद दवारि के।।

सफलता के लिए मंत्र:
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” ॐ राम ॐ राम ॐ राम ह्रीं राम ह्रीं राम श्रीं राम श्रीं राम – क्लीं राम क्लीं राम। फ़ट् राम फ़ट् रामाय नमः ।

धन-प्राप्ति मंत्र:
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जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।

अकाल मृत्यु निवारण मंत्र:
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|| नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ||

|| लोचन निजपद जंत्रित जाहि प्राण केहि बाट ||

संतान प्राप्ति मंत्र:
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प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

श्री राम तारक मंत्र:
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ॐ जानकीकांत तारक रां रामाय नमः।।

तारक मंत्र
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श्री राम, जय राम, जय जय राम।।

श्री राम संस्कृत श्लोक 
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जे सकाम नर सुनहि जे गावहीं।
सुख सम्पति नाना बिधि पावहिं।।

कवन सो काज कठिन जग माहीं। 
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
राम काज लगि तव अवतारा। 
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा।।

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।

श्री राम मूल मंत्र 
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ॐ ह्रां ह्रीं रां रामाय नम:।।

श्री राम सरल श्लोक 
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श्री राम शरणं मम्।

श्रीं राम श्रीं राम।

ॐ राम ॐ राम ॐ राम।

क्लीं राम क्लीं राम।

रामाय नमः।

ॐ रामाय हुँ फ़ट् स्वाहा।

ॐ श्री रामचन्द्राय नमः।

ह्रीं राम ह्रीं राम।

श्री राम जय राम जय जय राम।

श्री रामचन्द्राय नमः।

राम राम राम राम रामाय राम।
(संकलित पोस्ट)

🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
☯️राहुलनाथ™ 🖋️....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई'३६गढ़,भारत
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सोमवार, 16 मई 2022

हनुमान_तांडव_स्त्रोत

||  #हनुमान_तांडव_स्त्रोत ||

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
 भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, 
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, 
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥

 
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो 
हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ 
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
 
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, 
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, 
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
 
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, 
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः 
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
 
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, 
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
 
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं 
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
 
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं 
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् 
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
 
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा 
यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां 
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
 
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
 
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
 
ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥

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