बुधवार, 26 जुलाई 2017

आध्यात्मिक भ्रम या नशे का असर

आध्यात्मिक भ्रम या नशे का असर
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मेरे यारो मेरे दोस्तों,लकड़ी से ना मुझको जलाना
चुन चुन कर गाँजे के डंठल,से मुझको जलवा देना
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ,ऐसी दम लगवा देना।

जो लोग आध्यात्मिक है तंत्र-मंत्र-यंत्र,ज्योतिष,अघोर,साबर के विषय मे लगातार पढ़ते और बात करते रहते है साथ ही साथ वे शराब,गांजा,भांग,हशीश,चरस और मुख्य रूप से गांजे का सेवन करते रहते है उन्हें इस प्रकार का आध्यात्मिक भ्रम पैदा होने लगता है जैसे कि उनका इष्ट उनके साथ है कोई उनको देख रहा है किसी ने उन्हें कुछ जादू-मंत्र कर दिया है ऐसी अवस्था मे उन्हें किसी ज्योतिष,तांत्रिक,अघोरी या बाबा की शरण ना लेते हुए उन्हें मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए,ऐसा ना करते हुए ज्योतिष पत्रिका खंगालने लगते है वही भ्रमित नशेड़ी साधक पुनः एक नई साधना शुरू कर देते है।कोई नदि के तट पे भ्रम में नाच रहा है कोई स्मशान में।
आज साधना के नाम पे ,अध्यात्म के नाम पे एक बहुत बड़ा युवा वर्ग नशे की गर्त में समा रहा है।मैंने कई तांत्रिक अघोरीयो के चेलो की फौज देखी है जो मात्र नशे के कारण गुरु धारण कर जैगुरु जैगुरु का जयकारा लगाते रहते है और जब उनसे मैने अकेले में पूछा कि तुम्हारा भगवान कौन है तो कहते है कौन भगवन कैसा गुरु ,40-50 रोज मिलते है और क्या चाहिए,अब चाहे मुर्दा छानने बोल दो या मुर्दा खोद के उस पर बैठने ।
ये कैसा अध्यात्म है ये कैसा हमारा भविष्य है।जो विद्या कल तक मोक्ष का मार्ग थी वो आज भविष्य को जलाने की विद्या बन गई है।एक तरफ चलचित्रों की नग्नता युवाओं का शिकार कर रही है वही दूसरी तरफ नशे से नपुंसकता पैदा हो रही है।पोस्ट पढ़कर यदि किसी मित्र का हृदय आहत हो तो कृपया क्षमा करें।

व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
।।राहुलनाथ।।

यार मेरे मरने के पहले,भर के चिलम पिला देना
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ,ऐसी दम लगवा देना।।

एक गाँजा लाया,उसे पानी मे भिगाया
ऊँगली से यू मसला,गुुद से यूँ रगड़ा
तम्बाकू मंगवाई गाँजे में मिलवाई
फिर चिलम उठाई,की उसकी सफाई
फिर कंकड़ अंदर डाल के,मस्ती ऐसी आई
लगी जो फूँक ऐसी,बड़ी मेहनत से चिलम बनाई।
और चिलम बनाते हुए,मालिक की याद आई
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ ऐसी दम लगवा देना।

अल्हड़ मस्त जवा और कोमल,कोरी अछूती और मस्तानी
चुन चुन कर कलियाँ बांगो से,गाँजे की मंगवा देना
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ,ऐसी दम लगवा देना।

घर से लेकर श्मशानों तक,दौर चिलम का चलता रहे
धुंए में मेरा निकले जनाजा,ये सबको बतावा देना
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ,ऐसी दम लगवा देना।

मेरे यारो मेरे दोस्तों,लकड़ी से ना मुझको जलाना
चुन चुन कर गाँजे के डंठल,से मुझको जलवा देना
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ,ऐसी दम लगवा देना।

मेरे बाद में मेरे धन का,मेरी जमी का क्या होगा
चुन चुन तमाम गजेडीयो में,यारो में लुटवा देना
पी के सीधा स्वर्ग में पहुँचूँ,ऐसी दम लगवा देना।

इस गंजेड़ी भजन को bhajandiary.com से लिया गया है।bhajandiary.com/yar-mere-mere-marne-se-pahle-lyrics/

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

गोरख फटकार अस्त्र

गोरख फटकारास्त्रं(गुरुप्रसाद)
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गोरक्ष डिब्बी जहां खाई वही दब्बी ।गोरक्ष डिब्बी गोरक्ष फटकार, पढ़कर मारू मंगलवार, काले तिल गोरी राई ,चौराहे की मिट्टी मसान की छाई। जो न लगे तो गुरु गोरक्षनाथजी की दुहाई ,गोबर खाय विष्टा खाय कपड़े फाड जंगल भाग जाय। फिर न देखे घरबार भर मता फिरे दशवा द्वारा फुर मंत्र ईश्वर महादेव तेरी वाचा फुरे। घट पिंड की रक्षा श्री गुरु गोरक्षनाथजी करे।

जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि ये फटकार है इस अस्त्र से यदि किसी को फटकार चलाई तो उसका जीवन इस मंत्रानुसार हो जाता है ये भगवान गोरख का अस्त्र है इसकी काट बहुत मुश्किल है ।गुरुदेव ने प्रदान करी थी मुझे ।इनका घर मे पाठ नही करना चाहिए ।इस अस्त्र को यहां लिखने का उद्देश्य इसके घातक प्रभाव को बताना है इसका जाप गुरु मार्ग दर्शन में पूर्ण विधि एवं सुरक्षा में करे।इस फटकार से देवी देवता,
भूत-प्रेत,पिशाच सभी को फटकारा जा सकता है इस विषय के जानकर बहुत कम है मंत्र तो बहुतो को आता होगा किन्तु विधि कुछ ही लोगो को पता है।इसकी जाप विधि में थोड़ी सी गलती होने से ये फटकार उल्टी साधक पे पड़ती है फिर साधक को नानी याद आ जाती है।

।।राहुलनाथ।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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चेतावनी:-लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से  साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़(©कॉपी राइट एक्ट 1957)
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शनिवार, 22 जुलाई 2017

पशुपतास्त्र मंत्र साधना

पशुपतास्त्र मंत्र साधना
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मंत्र - ऊँ श्लीं पशु हुं फट्।

विनियोग
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ऊँ अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, पशुपतास्त्ररूप पशुपति देवता, सर्वत्र यशोविजय लाभर्थे जपे विनियोगः।

षडंग्न्यास
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ऊँ हुं फट् ह्रदयाय नमः। श्लीं हुं फट् शिरसे स्वाहा। पं हुं फट् शिखायै वष्ट्। शुं हुं फट् कवचाय हुं। हुं हुं फट् नेत्रत्रयाय वौष्ट्। फट् हुं फट् अस्त्राय फट्।

ध्यान
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मध्याह्नार्कसमप्रभं शशिधरं भीमाट्टहासोज्जवलम् त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रु-स्फुरन्मूर्द्धजम्। हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्गरमसिं शक्तिदधानं विभुम् दंष्ट्रभीम चतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररूपं स्मरेत्।।

विनियोग
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ऊँ अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, पशुपतास्त्ररूप पशुपति देवता, सर्वत्र यशोविजय लाभर्थे जपे विनियोगः।

।।पाशुपतास्त्र स्त्रोतम।।
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ऊँ नमो भगवते महापाशुपतायातुलबलवीर्यपराक्रमाय त्रिपञ्चनयनाय नानारूपाय नानाप्रहरणोद्यताय सर्वांगरंक्ताय भिन्नाञ्जनचयप्रख्याय श्मशान वेतालप्रियाय सर्वविघ्ननिकृन्तन-रताय सर्वसिद्धिप्रप्रदाय भक्तानुकम्पिने असंख्यवक्त्रभुजपादय तस्मिन् सिद्धाय वेतालवित्रासिने शाकिनीक्षोभ जनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णु-कवचाय खंगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रुद्रशूलाय ज्वलज्जिह्वाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षय-कारिणे।

ऊँ कृष्णपिंगलाय फट्। हुंकारास्त्राय फट्। वज्रह-स्ताय फट्।
शक्तये फट्। दंडाय फट्। यमाय फट्। खड्गाय फट्। नैर्ऋताय फट्। वरुणाय फट्। वज्राय फट्। ध्वजाय फट्। अंकुशाय फट्। गदायै फट्। कुबेराय फट्। त्रिशुलाय फट्। मुद्गराय फट्। चक्राय फट्। शिवास्त्राय फट्। पद्माय फट्। नागास्त्राय फट्। ईशानाय फट्। खेटकास्त्राय फट्। मुण्डाय फट्। मुंण्डास्त्राय फट्।
कंकालास्त्राय फट्। पिच्छिकास्त्राय फट्। क्षुरिकास्त्राय फट्। ब्रह्मास्त्राय फट्। शक्त्यस्त्राय फट्। गणास्त्राय फट्।
सिद्धास्त्राय फट्। पिलिपिच्छास्त्राय फट्। गंधर्वास्त्राय फट्। पूर्वास्त्राय फट्। दक्षिणास्त्राय फट्। वामास्त्राय फट्।
पश्चिमास्त्राय फट्। मंत्रास्त्राय फट्। शाकिन्यास्त्राय फट्। योगिन्यस्त्राय फट्। दंडास्त्राय फट्। महादंडास्त्राय फट्।
नमोअस्त्राय फट्। सद्योजातास्त्राय फट्। ह्रदयास्त्राय फट्। महास्त्राय फट्। गरुडास्त्राय फट्। राक्षसास्त्राय फट्।
दानवास्त्राय फट्। अघोरास्त्राय फट्। क्षौ नरसिंहास्त्राय फट्। त्वष्ट्रस्त्राय फट्। पुरुषास्त्राय फट्। सद्योजातास्त्राय फट्।
सर्वास्त्राय फट्। नः फट्। वः फट्। पः फट्। फः फट्। मः फट्।
श्रीः फट्। पेः फट्। भुः फट्। भुवः फट्। स्वः फट्। महः फट्।
जनः फट्। तपः फट्। सत्यं फट्। सर्वलोक फट्। सर्वपाताल फट्। सर्वतत्व फट्। सर्वप्राण फट्। सर्वनाड़ी फट्। सर्वकारण फट्। सर्वदेव फट्। ह्रीं फट्। श्रीं फट्। डूं फट्। स्भुं फट्। स्वां फट्।
लां फट्। वैराग्य फट्। मायास्त्राय फट्। कामास्त्राय फट्। क्षेत्रपालास्त्राय फट्। हुंकरास्त्राय फट्। भास्करास्त्राय फट्। चंद्रास्त्राय फट्। विध्नेश्वरास्त्राय फट्। गौः गां फट्। स्त्रों स्त्रों फट्।
हौं हों फट्। भ्रामय भ्रामय फट्। संतापय संतापय फट्।
छादय छादय फट्। उन्मूलय उन्मूलय फट्। त्रासय त्रासय फट्। संजीवय संजीवय फट्। विद्रावय विद्रावय फट्।
सर्वदुरितं नाशय नाशय फट्।

यह स्तोत्र अग्नि पुराण के 322 वें अधयाय से लिया गया है। यह अत्यन्त प्रभावशाली व शीघ्र फलदायी प्रयोग है। भारतीय इतिहास में पाशुपतास्त्र एक अस्त्र का नाम है जो अत्यन्त विध्वंसक है और जिसके प्रहार से बचना अत्यन्त कठिन। यह अस्त्र शिव, काली और आदि परा शक्ति का हथियार है जिसे मन, आँख, शब्द से या धनुष से छोड़ा जा सकता है। इस अस्त्र को अपने से कम बली या कम योद्धा पर नहीं छोड़ा जाना चाहिये। पशुपातास्त्र सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता है। यह पशुपतिनाथ का अस्त्र है, उन्होने इसे ब्रह्माण्ड की सृष्टि से पहले ही घोर तप करके आदि परा शक्ति से प्राप्त किया था। यह ब्रह्मास्त्र द्वारा रोका जा सकता है किन्तु यह विष्णु के किसी अस्त्र को नहीं रोक सकता।

पशुपति नाथाष्टकम्
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।।अथ ध्यानम् ।।

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

।।स्तोत्रम् ।।

पशुपतीन्दुपतिं धरणीपतिं भुजगलोकपतिं च सती पतिम् ॥

गणत भक्तजनार्ति हरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ १॥

न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च भूरिबलं कुलम् ॥

अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ २॥

मुरजडिण्डिवाद्यविलक्षणं मधुरपञ्चमनादविशारदम् ॥

प्रथमभूत गणैरपि सेवितं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्  ॥ ३॥

शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम् ॥

अभयदं करुणा वरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्  ॥ ४॥

नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं वृषभध्वजम् ॥

चितिरजोधवली कृत विग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ५॥

मुखविनाशङ्करं शशिशेखरं सततमघ्वरं भाजि फलप्रदम् ॥

प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ६॥

मदम पास्य चिरं हृदि संस्थितं मरण जन्म जरा भय पीडितम् ॥

जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ७॥

हरिविरिञ्चिसुराधिम्प  पूजितं यमजनेशधनेशनमस्कृतम् ॥

त्रिनयनं भुवन त्रितयाधिपं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ॥ ८॥

पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरिचित पृथिवी पति सूरिणा ॥

पठति संशृनुते मनुजः सदा शिवपुरिं वसते लभते मुदम् ॥ ९॥

पशुपत्यष्टकम्
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इस जगत के सम्पूर्ण चर, अचर प्राणी (पशु) के स्वामी भगवान शिव ही हैं| उन  सहस्त्र नामों से जाने जाते हैं महेश्वर के आठ प्रमुख नामों में एक है – पशुपति जो शिव के प्राणीमात्र के स्वामी होने को इंगित करता है | प्रस्तुत अष्टक शिव के इन्ही पशुपति स्वरूप की स्तुति है |

पशुपतिं द्युपतिं धरणिपतिं भुजगलोकपतिं च सतीपतिम्।
प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।1।।

हे मनुष्यों! स्वर्ग, मर्त्य तथा नागलोक के जो स्वामी हैं, और जो शरणागत भक्तजनों की पीड़ा को दूर करते हैं, ऐसे पार्वतीवल्लभ व पशुपतिनाथ आदि नामों से प्रसिद्ध परमपुरुष गिरिजापति शंकर भगवान् का भजन करो।

न जनको जननी न च सोदरो न तनयो न च भूरिबलं कुलम्।
अवति कोऽपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।2।।

हे मनुष्यों! काल के गाल में पड़े हुए इस जीव को माता, पिता, सहोदरभाई, पुत्र, अत्यन्त बल व कुल; इनमें से कोई भी नहीं बचा सकता है। अत: परमपिता परमात्मा पार्वतीपति भगवान् शिव का भजन करो।

मुरजडिण्डिमवाद्यविलक्षणं मधुरपञ्चमनादविशारदम्।
प्रमथभूतगणैरपि सेवितं, भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।3।।

हे मनुष्यों! जो मृदङ्ग व डमरू बजाने में निपुण हैं, मधुर पञ्चम स्वर में गाने में कुशल हैं, और प्रमथ आदि भूतगणों से सेवित हैं, उन पार्वती वल्लभ भगवान् शिव का भजन करो।

शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम्।
अभयदं करुणावरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।4।।

हे मनुष्यों! ‘शिव, शिव, शिव’ कहकर मनुष्य जिनको प्रणाम करते हैं, जो शरणागत को शरण, सुख व अभयदान देते हैं, ऐसे करुणासागरस्वरूप भगवान् गिरिजापति का भजन करो।

नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भुजगहारमुदं वृषभध्वजम्।
चितिरजोधवलीकृतविग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।5।।

हे मनुष्यों! जो नरमुण्ड रूपी मणियों का कुण्डल पहने हुए हैं, और सर्पराज के हार से ही प्रसन्न हैं, शरीर में चिता की भस्म रमाये हुए हैं, ऐसे वृषभध्वज भवानीपति भगवान् शंकर का भजन करो।

मखविनाशकरं शशिशेखरं सततमध्वरभाजिफलप्रदम्।
प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।6।।

हे मनुष्यों! जिन्होंने दक्ष यज्ञ का विनाश किया, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है, जो निरन्तर यज्ञ करने वालों को यज्ञ का फल देते हैं, और प्रलयावस्था में जिन्होने देव दानव व मानव को दग्ध कर दिया है, ऐसे पार्वती वल्लभ भगवान् शिव का भजन करो।

मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं मरणजन्मजराभयपीडितम्।
जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम् ।।7।।

हे मनुष्यों! मृत्यु, जन्म व जरा के भय से पीड़ित, विनाशशील एवं भयों से व्याकुल इस संसार को अच्छी तरह देखकर, चिरकाल से हृदय में स्थित अज्ञानरूप अहंकार को छोड़कर भवानीपति भगवान् शिव का भजन करो।

हरिविरञ्चिसुराधिपपूजितं यमजनेशधनेशनमस्कृतम्।
त्रिनयनं भुवनत्रितयाधिपं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम्।।8।।

हे मनुष्यों! जिनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु व इन्द्र आदि करते हैं, यम, जनेश व कुबेर जिनको प्रणाम करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं और जो त्रिभुवन के स्वामी हैं, उन गिरिजापति भगवान शिव का भजन करो।

पशुपतेरिदमष्टकमद्भुतं विरचितं पृथिवीपतिसूरिणा।
पठति संशृणुते मनुजः सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदम्।।9।।

जो मनुष्य पृथिवीपति सूरी के द्वारा रचित इस पशुपतिअष्टकम् का पाठ या इसका श्रवण करता है,वहशिवपुरीमेंनिवासकरकेआनन्दितहोताहै।

।। राहुलनाथ ©₂₀₁₇।।™,भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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रविवार, 16 जुलाई 2017

एकलिंगी महादेव

एकलिंगी महादेव,जानिए क्या होता है।
******************************** एकलिंगी महादेव शिवलिंग?
एक ऐसा शिव लिंग की चारो और वृत्त के 1.5 किलोमीटर के बीच मे यदि कोई और शिवलिंग नही होता है उसे एकलिंगी महादेव का शिवलिंग कहते है इनकी पूजा अर्चना एवं दुग्धाभिषेक से विशेष फल प्राप्त होता है सावन में इनका अभिषेक अनंत कोटि फलों को प्रदान करने वाला होता है।
जयश्री महाकाल
।।राहुलनाथ।।©

शनिवार, 15 जुलाई 2017

साधक संजीवनी

साधना संजीविनी
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वे साधक को समाज के कल्याणार्थ साधना सिद्धि के मार्ग पे प्रशस्त है उन्हें चाहिए कि अपने इष्ट के समक्ष दोनों चतुर्दशीयो के दिन ,उन शक्तियों के स्वामियों का आह्वान कर उन्हें पान,फूल एवं मिष्ठान से पूजन करना चाहिए।इससे ये शक्तियाँ तृप्त रहती है और साधक के आह्वाहन पर समाज के कल्याणार्थ सेवा कर मुक्त होने का प्रयास करती है।जो साधक लोगो के भलाई के लिए कार्य करते है उनकी शक्तियाँ सदैव बनी रहती है।
जिस प्रकार मानव में अच्छे ,बुरे एवं मिश्रित स्वभाव के लोग होते है ठीक उसी प्रकार शक्तियों के भी यही तीन रुप होते है जिसे सात्विक(+),तामसिक(-),राजसिक(+-) कहा जाता है।इनमे अच्छी शक्तियां मात्र अच्छा ही कर्म करती है बुरे से युद्ध कर उसका भोग करती है,बुरी शक्तियाँ सिर्फ बुरा करती है और अच्छी शक्तियों से दूरी बनाए रखती है उनके प्रभाव क्षेत्र में हस्तक्षेप नही करती।तीसरी शक्ति साधक की इच्छा के अनुसार उद्देश्य बदलते रहती है।साधक को किस शक्ति की साधना करना है ये साधक पे या गुरु आदेश पे निर्भर करता है।
यहां आप जिस प्रवृति की शक्ति की साधना करते है उनके अनुसार ही उसकी पूजा देने से ही लाभ होता है अन्यथा हानि ही होती है जैसे सात्विक शक्तियाँ पान,फूल मिस्ठान से प्रसन्न हो जाती है वही तामसिक शक्तियाँ मात्र इन भोगो से प्रसन्न नही होती है तामसिक शक्तियों को इन वस्तुओं के साथ साथ तामसिक भोग जैसे अंडा,माँस-मछली एवं शराब का भोग भी प्रदान करना होता है।जो कि सामान्य साधक के क्षेत्र के बाहर का विषय होता है यहां स्मरण रखने वाली बात यह है कि जहां गलती होने से सात्विक शक्तियाँ क्षमा कर देती है वही तामसिक शक्तियाँ साधक को क्षमा नही करती।राजसिक शक्तियों का भोग ,साधक अपनी इच्छानुसार प्रदान कर सकता है।धार्मिक ग्रंथों में इसीलिए कहा गया है कि साधना अपनी प्रवृति एवं संस्कार के अनुरूप करनी चाहिए ,क्योकि शक्तियों को अर्पित किया गया भोग-प्रसाद साधक को स्वंय ही ग्रहण करना होता है इसी भोग-प्रसाद को ग्रहण करने से साधक में शक्तियों का विकास होता है।अब यदि को ब्राह्मण तामसिक साधना करता है और अंडा,मांस-मछली और शराब को भोग रूप में चढ़ाता है और अंत मे उस भोग को स्वयं ग्रहण नही करता तो उसको तामसिक शक्तियाँ प्राप्त नही होगी।वही शराब एवं मांस-मछली की इच्छा रखने वाली शक्तियाँ खीर मिठाई से प्रसन्न नही होती।इन शक्तियों के निमित्त ही साधक की धीरे-धीरे,वेश-भूषा,आचरण,वाणीका निर्माण होने लगता है।जहां तामसिक साधक के चेहरे मे क्रूरता,वाणी दोष,बात-बात मे गालियाँ निकलना सामान्य सी बात है वही सात्विक साधक ठीक इसके विपरीत ही होता है।
तामसिक साधक की शक्तियां ,एक दिन भोग प्रसाद नही मिलने पर साधक को ही खा जाती है एवं अपने लोक में ले जाती है।
क्रमशः
व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©₂₀₁₇
।। राहुलनाथ।।™
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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

महाकालेश्वर चालीसा

महाकालेश्वर चालीसा
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दोहा

श्री महाकाल भगवान की महिमा अपरम्पार,
पूरी करते कामना भक्तों की करतार।
विद्या - बुद्धि - तेज - बल - दूध - पूत - धन - धान, 
अपने अक्षय कोष से भगवान करो प्रदान।।

चौपाई

जय महाकाल काल के नाशक। 
जय त्रिलोकपति मोक्ष प्रदायक।।१।।
मृत्युंजय भवबाधा हारी। 
शत्रुंजय करो विजय हमारी।।२।।

आकाश में तारक लिंगम्। 
पाताल में हाटकेश्वरम्।।३।।
भूलोक में महाकालेश्वरम्। 
सत्यम् - शिवम् और सुन्दरम्।।४।।

क्षिप्रा तट ऊखर शिव भूमि। 
महाकाल वन पावन भूमि।।५।।
आशुतोष भोले भण्डारी। 
नटराज बाघम्बरधारी।।६।।

सृष्टि को प्रारम्भ कराते। 
कालचक्र को आप चलाते।।७।। 
तीर्थ अवन्ती में हैं बसते। 
दर्शन करते संकट हरते।।८।।

विष पीकर शिव निर्भय करते। 
नीलकण्ठ महाकाल कहाते।।९।। 
महादेव ये महाकाल हैं। 
निराकार का रूप धरे हैं।।१०।।

ज्योतिर्मय - ईशान अधीश्वर। 
परम् ब्रह्म हैं महाकालेश्वर।।११।। 
आदि सनातन - स्वयं ज्योतिश्वर। 
महाकाल प्रभु हैं सर्वेश्वर।।१२।।

जय महाकाल महेश्वर जय - जय। 
जय हरसिद्धि महेश्वरी जय - जय।।१३।। 
शिव के साथ शिवा है शक्ति। 
भक्तों की है रक्षा करती।।१४।। 

जय नागेश्वर - सौभाग्येश्वर। 
जय भोले बाबा सिद्धेश्वर।।१५।। 
ऋणमुक्तेश्वर - स्वर्ण जालेश्वर। 
अरुणेश्वर बाबा योगेश्वर।।१६।।

पंच - अष्ट - द्वादश लिंगों की। 
महिमा सबसे न्यारी इनकी।।१७।। 
श्रीकर गोप को दर्शन दे तारी। 
नंद बाबा की पीढ़ियाँ सारी।।१८।।

भक्त चंद्रसेन राजा शरण आए। 
विजयी करा रिपु - मित्र बनाये।।१९।। 
दैत्य दूषण भस्म किए। 
और भक्तों से महाकाल कहाए।।२०।।

दुष्ट दैत्य अंधक जब आया। 
मातृकाओं से नष्ट कराया।।२१।। 
जगज्जननी हैं माँ गिरि तनया। 
श्री भोलेश्वर ने मान बढ़ाया।।२२।।

श्री हरि की तर्जनी से हर - हर। 
क्षिप्रा भी लाए गंगाधर।।२३।। 
अमृतमय पावन जल पाया। 
'ऋषि' देवों ने पुण्य बढ़ाया।।२४।।

नमः शिवाय मंत्र पंचाक्षरी। 
इनका मंत्र बड़ा भयहारी।।२५।। 
जिसके जप से मिटती सारी। 
चिंता - क्लेश - विपद् संसारी।।२६।।

सिर जटा - जूट - तन भस्म सजै। 
डम - डम - डमरू त्रिशूल सजै।।२७।।
शमशान विहारी भूतपति। 
विषधर धारी जय उमापति।।२८।।

रुद्राक्ष विभूषित शिवशंकर। 
त्रिपुण्ड विभूषित प्रलयंकर।।२९।। 
सर्वशक्तिमान - सर्व गुणाधार। 
सर्वज्ञ - सर्वोपरि - जगदीश्वर।।३०।।

अनादि - अनंत - नित्य - निर्विकारी। 
महाकाल प्रभु - रूद्र - अवतारी।।३१।।
धाता - विधाता - अज - अविनाशी। 
मृत्यु रक्षक सुखराशी।।३२।।

त्रिदल - त्रिनेत्र - त्रिपुण्ड - त्रिशूलधर। 
त्रिकाय - त्रिलोकपति महाकालेश्वर।।३३।। 
त्रिदेव - त्रयी हैं एकेश्वर। 
निराकार शिव योगीश्वर।।३४।।

एकादश - प्राण - अपान - व्यान। 
उदान - नाग - कुर्म - कृकल समान।।३५।। 
देवदत्त धनंजय रहें प्रसन्न। 
मन हो उज्जवल जब करें ध्यान।।३६।।

अघोर - आशुतोष - जय औढरदानी। 
अभिषेक प्रिय श्री विश्वेश्वर ध्यानी।।३७।। 
कल्याणमय - आनंद स्वरुप शशि शेखर। 
श्री भोलेशंकर जय महाकालेश्वर।।३८।।

प्रथम पूज्य श्री गणेश हैं , ऋद्धि - सिद्धि संग। 
देवों के सेनापति, महावीर स्कंध।।३९।। 
अन्नपूर्णा माँ पार्वती, जग को देती अन्न।
महाकाल वन में बसे, महाकाल के संग।।४०।।

दोहा

शिव कहें जग राम हैं, राम कहें जग शिव,
धन्य - धन्य माँ शारदा, ऐसी ही दो प्रीत।
श्री महाकाल चालीसा, प्रेम से, नित्य करे जो पाठ,
कृपा मिले महाकाल की, सिद्ध होय सब काज।।

।।इति श्री महाकालेश्वर चालीसा सम्पूर्ण।।