गुरुवार, 18 अगस्त 2022

मेरी मृत्यु

हम कौन होते मृत्यु का चयन करने वाले।जीवन उसने दिया है।मृत्यु भी वही देगा।फिर ना रात देखेगा,ना दिन और ना दोपहर।बस चलती घड़ी बंद हो जाएगी मेरी।बाकी सब घड़िया चलते रहेगी,एक दिन रुकने के लिए...

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बुधवार, 17 अगस्त 2022

तन्त्र एवं नाजायज संबंधो के परिणाम !! !! प्रेम-त्रिकोण !!

तन्त्र एवं नाजायज संबंधो के परिणाम !! !! प्रेम-त्रिकोण !!
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हर वो पुरुष या स्त्री जिसने अपनी साली/देवर से घनिष्टा रखी है सालि/देवर से विवाह किया है या अनैतिक संबध बनाया है फिर क्यो न पत्नि/पति की मृ्त्यु के बाद!
तो ऎसी अवस्था मे उनके संतान को बहुत कष्ट होगा!!
या मृ्त्यु तक हो सकति है !!
साथ ही यह सुचक है की उसके उपर दुर्गा देवि क्रोधित है जिसने ये कार्य किया!
उसकी कुंडली मे मंगल ग्रह की स्थिति अनुकुल नही होगी !!
और इसके साथ साथ यदि दांतों मे दर्द हो,बातो बातो मे अचानक हकलाहट प्रारंभ हो जाति हो,स्वभाव अधिक चंचल होगया हो, नशे के प्रति रुझान बड गया हो,तो निष्चित है कि उसका काल निकट है !!इस समस्या के बहुत से समाधान है किन्तु सरल सस्ता समाधान यह है की ! अपनि मन की बातो को अपने किसि निकट के मित्र को बताये !!और संतान को किसी भी मंदीर मे किसी रिश्तेदार को 1 रु मे बेच दे मान्सिक रुप से!!
एवं और यह कार्य संतान को ना बताये ! फिर आगे के जिवन मे जब तक संतान अपने आपको सम्हालने योग्य ना हो जाये तब तक मात्र उसका रक्षक बन कर रहे पिता-माता बनकर नही !! इस प्रकार अन्य नाजयज संबंधो के भि अलग अलग परिणमा होते है !!और कई जिवन बर्बाद हो जाते है!

 🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल महादेव 🔱

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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।©कॉपी राइट एक्ट 1957))

गणेशजी_के_संस्कृत_श्लोक

#गणेशजी_के_संस्कृत_श्लोक ।।
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।।श्रीगणेश ध्यान।।
*"जय श्रीगणेश"*
"गजवदनमचिन्त्यं तीक्ष्णदृष्टं त्रिनैत्रम्।"
"बृहदुदरमशेषं भूतिराजं पुराणम्।।"
"अमरवरसुपूज्यं रक्तवर्णं सुरेशम्।"
"पशुपतिसुतमीशं विघ्नराजं नमामि।।"
"जय श्रीहेरम्ब"
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एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।
भावार्थ: एक दन्त भगवान गणेश का ही नाम हैं, जिन्हे हम सभी जानते हैं। घुमावदार सूंड वाले भगवान का ध्यान करते हैं। श्री गजानन हमें प्रेरणा प्रदान करते हैं।
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ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥
भावार्थ:
सभी सुखों को प्रदान करने वाले सच्चिदानंद के रूप में बाधाओं के राजा गणेश को नमस्कार। गणपति को नमस्कार, जो सर्वोच्च देवता हैं, बुरे बुरे ग्रहों का नाश करने वाले।
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सिद्धिबुद्धि पते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने।
मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः॥
भावार्थ:
भगवान! आप सिद्धि और बुद्धि के विशेषज्ञ हैं। माया के अधिपति और भ्रम फैलाने वालों को मिलन में जोड़ा गया है। बार-बार नमस्कार
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अभिप्रेतार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः।
सर्वविघ्नच्छिदे तस्मै गणाधिपतये नमः॥
भावार्थ:
मैं विघ्नों के नाश करने वाले गणधिपति (गणेश) को नमन करता हूं, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं। गणेश (= गण + ईश) को भगवान शिव के गणों (अनुयायियों) का स्वामी या स्वामी कहा जाता है।
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लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च।
अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः॥
भावार्थ:
तुम लम्बोदर हो, सबके पेट में जठर रूप में निवास करते हो, तुम पर किसी का भ्रम काम नहीं करता और तुम ही माया के आधार हो। आपको बार-बार नमस्कार।
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यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोः यतः सम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः।।
भावार्थ:
उनकी कृपा से मोक्ष की इच्छा रखने वालों की अज्ञानी बुद्धि नष्ट हो जाती है, जिससे भक्तों को संतुष्टि का धन प्राप्त होता है, जिससे विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और कार्य में सफलता मिलती है, ऐसे गणेश जी को हम सदा प्रणाम करते हैं। हाँ, वे उसकी पूजा करते हैं।
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त्रिलोकेश गुणातीत गुणक्षोम नमो नमः।
त्रैलोक्यपालन विभो विश्वव्यापिन् नमो नमः॥
भावार्थ:
हे त्रैलोक्य के भगवान! हे गुणी! हे मेधावी! आपको बार-बार नमस्कार। हे त्रिभुवनपालक! हे विश्वव्यापी! आपको बार-बार नमस्कार।
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मायातीताय भक्तानां कामपूराय ते नमः।
सोमसूर्याग्निनेत्राय नमो विश्वम्भराय ते॥
भावार्थ:
आपको नमस्कार है जो मायावी और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। आपको नमस्कार है जो चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के नेत्र हैं, और जो संसार को भरते हैं।
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जय विघ्नकृतामाद्या भक्तनिर्विघ्नकारक।
अविघ्न विघ्नशमन महाविध्नैकविघ्नकृत्॥
भावार्थ:
हे भक्तों के विघ्नकर्ताओं का कारण, विघ्नरहित, विघ्नों का नाश करने वाला, महाविघ्नों का मुख्य विघ्न! आपकी जय हो।
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मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र।
वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते।।
भावार्थ:
हे भगवान, जिनका वाहन चूहा है, जिनके हाथों में मोदक (लड्डू) हैं, जिनके कान बड़े पंखों की तरह हैं, और जिन्होंने पवित्र धागा पहना हुआ है। जिनका रूप छोटा है और जो महेश्वर के पुत्र हैं, जो सभी विघ्नों का नाश करने वाले हैं, मैं आपके चरणों में नतमस्तक हूं।
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शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।
भावार्थ:
समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए श्वेत वस्त्रधारी श्रीगणेश का ध्यान करना चाहिए, जिनका रंग चन्द्रमा के समान है, जिनकी चार भुजाएँ हैं और जो सुखी हैं।
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वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा।।
भावार्थ:
हे हाथी के समान विशाल, जिसका तेज सूर्य की एक हजार किरणों के समान है। मेरी कामना है कि मेरा काम बिना
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नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च।।
भावार्थ:
मैं भगवान गजानन की पूजा करता हूं, जो सभी इच्छाओं के पूर्तिकर्ता हैं, जो सोने की चमक से चमकते हैं और सूर्य की तरह तेज हैं, एक सर्प की बलि का पर्दा पहनते हैं, एक दांत वाले, सीधे और कमल के आसन पर विराजमान हैं।
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एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ:
मैं दिव्य भगवान हेराम को नमन करता हूं, जो एक दांत से सुशोभित हैं, एक विशाल शरीर है, सीधा है, गजानन है और जो बाधाओं का नाश करने वाला है।
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विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
भावार्थ:
वरदान दाता विघ्नेश्वर, देवताओं के प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत् के हितैषी, दृष्टि, वेदों और यज्ञों से सुशोभित पार्वती के पुत्र को नमस्कार; हे गिनती! बधाई हो।
(संकलितं)
🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

☯️राहुलनाथ™ भिलाई
शिवशक्ति ज्योतिष वास्तु एवं अनुष्ठान 
भिलाई,३६गढ़,भारत 
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#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञान एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ही ग्रहण करे।बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

साधना_में_ब्रह्मचर्य_का_महत्व

#साधना_में_ब्रह्मचर्य_का_महत्व
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गुरुओ ने,ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मचर्य की साधना के लिए चिंतन करने को कहा है। कोई दूसरा आपको ब्रह्मचर्य की ओर नहीं ले जा सकता,ये काम स्वयं करना होता है। कामवासना को प्रबल इच्छाशक्ति से रोका जा सकता है। कामवासनाओं को नष्ट करने में सक्षम व्यक्ति अखंड ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है। प्राण शक्ति, स्फूर्ति, बुद्धि यह सब वीर्य के ऊर्ध्वगामी होने से प्राप्त होती है। अस्तु, वीर्य की रक्षा प्राणपण से की जानी चाहिए। विवाहित हों, तो केवल संतानोत्पादन के लिए वीर्य-दान की प्रक्रिया अपनाई जाय अथवा कठोरतापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाय। इससे प्रत्येक साधना सधती है।
कैसा भी योगाभ्यास करने वाला साधक हो,धारणा,ध्यान,त्राटक आदि करता हो लेकिन यदि वह ब्रह्मचर्य का आदर नहीं करता,संयम नहीं करता तो उसका योग सिद्ध नहीं होगा। साधना से लाभ तो होता ही है लेकिन ब्रह्मचर्य के बिना उसमें पूर्ण सफलता नहीं मिलती।
राम के सुख के बाद संसार में यदि अधिक-से-अधिक आकर्षण का केन्द्र है तो वह काम का सुख है। शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गन्ध इन पाँचों विषयों में स्पर्श का आकर्षण बहुत खतरनाक है। व्यक्ति को कामसुख बहुत जल्दी नीचे ले आता है।जहॉ भगवती काली का स्थान है।यही कुंडलिनी योग में मूलाधार का स्थान है।
बड़े-बड़े राजा-महाराजा-सत्ता धारी उस काम-विकार के आगे तुच्छ हो जाते हैं। यहाँ तक स्वयं महादेव शव स्वरुओ हो जाते है।काम-सुख के लिये लोग अन्य सब सुख,धन,वैभव,पद-प्रतिष्ठा कुर्बान करने के लिये तैयार हो जाते हैं। इतना आकर्षण है काम-सुख का। राम के सुख को प्राप्त करने के लिए साधक को इस आकर्षण से अपने चित्त को दृढ़ पुरुषार्थ करके बचाना चाहिये।
जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा। लेकिन जिसके ब्रह्मचर्य का कोई ठिकाना नहीं ऐसे व्यक्ति के आगे साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण आ जायें,भगवान विष्णु आ जायें,ब्रह्माजी आ जायें,माँ अम्बाजी आ जायें,तैतीस करोड़ देवता आ जाये ये सब मिलकर भी उपदेश करें फिर भी उसके विक्षिप्त चित्त में आत्मज्ञान का अमृत ठहरेगा नहीं। जैसे धन कमाने के लिए भी धन चाहिये,शांति पाने के लिये भी शांति चाहिये,अक्ल बढ़ाने के लिये भी अक्ल चाहिये,वैसे ही आत्म-खजाना पाने के लिये भी आत्मसंयम चाहिये। ब्रह्मचर्य पूरे साधना-भवन की नींव है। नींव कच्ची तो भवन टिकेगा कैसे?
क्रमशः....

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मंगलवार, 9 अगस्त 2022

दस महाविद्या स्तोत्र | *******************दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।शिव ने कहा- तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे। प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है।तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।(संकलितं पोस्ट)🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🔱*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️📱➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

बुधवार, 3 अगस्त 2022

घोड़े_की_नाल

#घोड़े_की_नाल
◆◆◆◆◆◆◆◆
यदि घोड़े की नाल को उल्टा करके द्वार पर लगाया जाये तो भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक उर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।तंत्र शास्त्र के अनुसार, वैसे तो किसी भी घोड़े की नाल बहुत प्रभावशाली होती है लेकिन यदि काले घोड़े के अगले दाहिने पांव की पुरानी नाल हो तो यह कई गुना अधिक प्रभावशाली हो जाती है। 

अक्सर आपने किसी के घर के बाहर या अंदर कही उचित स्थान पर घोड़े की नाल को लटके हुए देखा होगा। कई लोग इस घर में लगाते हैं। घोड़े की नाल को घर के मुख्य प्रवेश द्वार या लिविंग रूम के प्रवेश द्वार पर बाहर की ओर लगाया जाता है। आखिर घोड़े की नाल को लगाने से क्या होता है और क्या यह उचित है?

क्या होती है घोड़े की नाल?
घोड़े के पैरों के तलवे में लोहे का एक यू शेप का सोल ठोंका जाता है जिससे घोड़े को चलने और दौड़ने में दिक्कत नहीं होती है। अंग्रेजी के यू के आकर के इस सोल में जहां-जहां कील ठोकी जाती है वहां-वहां छेद होते हैं। लौहे के इस सोल को नाल कहते हैं। हालांकि बाजार में आजकल घोड़े की नाल के नाम पर बस नाल ही मिलती है जिसे किसी भी घोड़े ने इस्तेमाल नहीं किया होता है। पुराने समय में जिस घोड़े की नाल बेकार हो जाती थी उसे ही उपयोग में लाया जाता है। इसके पीछे क्या कारण है? यह बताना मुश्किल है।
 
 
ज्योतिष और वास्तु अनुसार 
*वास्तुशास्त्री मानते हैं कि यदि घर का मुख्य द्वार उत्तर, उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में हो तो उसके ऊपर बाहर की तरफ घोड़े की नाल लगा देना चाहिए। घर के मुख्यद्वार पर काले घोड़े की नाल लगाने से घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती और बरकत बनी रहती है।

*मान्यता है कि काले घोड़े की नाल को अगर काले कपड़े में लपेटकर अनाज में रख दिया जाए तो कभी अनाज की कमी नहीं रहती है। मतलब बरकत बनी रहती है।

*यह भी कहते हैं कि काले घोड़े की नाल को किसी काले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख देने से धन में वृद्धि होती रहती है।

*मान्यता है कि घोड़े की नाल को घर में स्थापित करने से जादू-टोने, नकारात्मक ऊर्जा व बुरी नजर से मुक्ति मिलती है। 
 
*कहते हैं कि यदि किसी को दौड़ते हुए घोड़े के पैर के छिटक कर निकल पड़ी नाल मिल जाए और वो उसे घर में लाकर उचित स्थान पर लगा दे तो उसका दुर्भाग्य दूर होकर जीवन में खुशियां आ जाती है।
 
*दुकान के बाहर काले घोड़े की नाल को टांगने से बिक्री बढ़ जाती है।
 
क्या द्वार के ऊपर घोड़े की नाल लगाना उचित है?
कुछ विद्वानों के अनुसार यह उचित नहीं है। क्योंकि द्वार के उपर या तो गणेशजी की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है या कोई मंगल प्रतीक लगाया जाता है। अत: यदि आप घोड़े की नाल को द्वार पर लगाने का सोच रहे हैं तो किसी विद्वान से पूछकर ही ऐसा करें।...एक कथा अनुसार द्वार के महत्व को समझें... हनुमानजी लंका दहन करने में लगे थे तो उन्होंने विभिषण के घर के द्वार पर विष्णु और राम के मंगल प्रतीक देखकर उनके घर को छोड़ दिया था।
 
काले घोड़े की नाल के कुछ उपाय इस प्रकार हैं-

१.मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल
घोड़े की नाल को घर के मुख्य द्वार पर सीधा लगाने से दैवीय कृपा बनी रहती है।
२.भूत-प्रेत बाधा
यदि घोड़े की नाल को उल्टा करके द्वार पर लगाया जाये तो भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक उर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।
४.अक्सर बीमार रहता है कोई
यदि घर में कोई अक्सर बीमार रहता है तो उसके बेड के चारों कोने में काले घोड़े की नाल की कीलें चारों कोने में लगा देने से लाभ मिलता है।
५.बिजनेस बढ़ता है
लोगों का मानना है कि काले घोड़े की नाल को अपने व्यवसायिक स्थल पर लगाने से व्यापार में प्रगति होती है।
६.बरक्कत होती है
लोग मानते हैं कि घोड़े की नाल को काले कपड़े में बाॅधकर तिजोर में रखने से धन की बरक्कत होती है।
७.खिलाड़ियों के लिये लाभकारी
ऐसा मानना है कि खिलाड़ियों को घोड़े की नाल का छल्ला अवश्य पहना चाहिए। यदि पहनने में कोई दिक्कत हो तो उसे अपने पर्स में भी रख सकते हैं।
८.कमर का दर्द और घोड़े की नाल
ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों को कमर दर्द की शिकायत रहती है, उन्हें अपनी कमर में घोड़े की नाल का छल्ला काले धागे में पहनने से लाभ मिलता है।
अन्य उपाय
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1. यदि दुकान ठीक से नहीं चल रही हो या किसी ने दुकान पर तंत्र प्रयोग कर उसे बांध दिया हो तो दुकान के मुख्य द्वार की चौखट पर नाल को अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार में लगा दें। आपकी दुकान में ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगेगी और परिस्थितियां अनुकूल हो जाएंगी।
2. यदि घर में क्लेश रहता हो, आर्थिक उन्नति नहीं हो रही हो या किसी ने तंत्र क्रिया की हो तो घर के मुख्य द्वार पर नाल को अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार में लगा दें। कुछ ही दिनों में नाल के प्रभाव से सबकुछ ठीक हो जाएगा।
3. यदि शनि की साढ़े साती या ढय्या चल रही हो तो किसी शनिवार को काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी विधिपूर्वक दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण कर लें। आपके बिगड़े काम बन जाएंगे और साथ ही धन लाभ भी होगा।
4.   काले घोड़े की नाल से एक कील या छल्ला बनवा लें, शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भर कर ये छल्ला या कील उसमें डाल कर अपना मुख देखे और पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। इससे शनि दोष में कमी आएगी।
5. काले घोड़े की नाल एक काले कपड़े में लपेट कर अनाज में रख दो तो अनाज में वृद्धि होती है और तिजोरी में रख दें तो धन संबंधी लाभ होता है। घर में बरकत बनी रहती है।
6. अपने पैसों से किसी काले घोड़े के पैरों में नाल लगवा दें। इससे भी शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी कर सकते हैं। इससे साढ़ेसाती व ढय्या के अशुभ प्रभाव में भी कमी आती है।
7. एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें काले घोड़े की नाल डाल दें। अब इस कटोरी को अपने सिर से पैर तक 7 बार घुमा कर किसी सुनसान जगह पर गाड़ दें। इससे बुरी नजर भी उतर जाएगी और यदि शनि दोष होगा तो वह भी कम होगा।
8. अपनी लंबाई के बराबर काला धागा लें और उसमें 8 गठानें लगा लें। इस धागे को तेल में डूबोकर काले घोड़े की नाल पर लपेट लें और शमी वृक्ष के नीचे गाड़े दें। इससे सभी प्रकार के दुख-तकलीफों से मुक्ति मिलेगी। ये बहुत ही अचूक उपाय है।
(संकलित पोस्ट ज्योतिष वास्तु एवं तंत्रानुसार)


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#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️
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