मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

साक्षी रहो स्वतंत्र रहो ,मुस्कुराते रहो

साक्षी रहो स्वतंत्र रहो ,मुस्कुराते रहो
खुल के जियो और जैसे हो वैसे ही रहो,तुम जैसे हो ईश्वर ने तुम्हे वैसे ही बनाया है किसी का प्रतिरूप ना बनो,नियम संस्कार इंसानी भेजे की पैदाइश है।जिस दिन आपके भीतर की ग्रंथियां बिखर जायेगी उस दिन ध्यान उपलब्ध हो जाएगा,सत्य से परिचय हो जाएगा।तुम उस परमेश्वर से पुनः मिल जाओगे।एक बूंद पुनः सागर से मिल जायेगी।किसी से ना बंधो ना धर्म से ना कर्म से ,जैसे हो वैसे रहो मात्र साक्षी रहो बहती सरिता और लहरों के सामान।ईश्वर ने तुम्हे कुछ सीखा के नहीं भेजा यदि भेजा है तो उसे संसार में आकर तुमने ही भुला दिया है,याद करो माता के गर्भ में तुम क्या थे क्या धर्म था तुम्हारा क्या संस्कार था?
वो मालिक भावनाओ को समझता है संवेदनाओं को समझता है जैसे गर्भस्त शिशु माता को और माता अपने शिशु की धड़कन और हलचल को समझती है।स्वतंत्र हो जाओ ,स्वतन्त्र हो जाओ

*****जयश्री महाकाल****
******स्वामी राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।किसी भी सिद्धि साधना को गंभीरता पूर्वक व सोच समझकर अथवा इस विषय के किसी प्रकांड विद्वान से परामर्श करके ही आरंभ करें। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

एक आध्यात्मिक प्रयास

एक आध्यात्मिक प्रयास ...इस पोस्ट को एक बार अवश्य पढ़े
मित्रो ये तंत्र मंत्र विद्या और जादू टोना इन दोनों में बहुत बड़ा भेद है इन मंत्रों और तंत्रो को सीखने के लिए बहुत लोगो से धोखा खाया है मैंने ,अब बस ,अब ये समझे विशवास करे मैं आपको सीखा सकता हु समझा सकता हु किन्तु सिखने वाला भी तो मिलना चाहिए ,किसी के अहित करने की इच्छा कभी आपको ये गुह्य विद्या सीखा नहीं सकती,बचपन में पिता के जेब से पैसे चोरी करके इन तथाकथित गुरुओं को मैंने समर्पित कर दिए ,बदले में पिता की मार मिली ,किन्तु इन गुरुओं का कुछ नहीं बिगड़ा,ये गुरु ही थे या नहीं पता नहीं ये मुझे .......धंधा सीखा रहे थे।नही हुआ ऐसा ...खोज बाहर चलती रही किन्तु कुछ ना मिला जिस दिन खोज ख़त्म हुई उस दिन भीतर देखने का मौका मिला बस,अब किसी की गुलामी नहीं ,ना गुरु बनना है ना चेला ,अब बनना है सेवक एक दास ,जो आपकी आध्यात्मिक प्यास को बुझा सके ,,,खुल कर प्रश्न करे उत्तर आता होगा तो अवश्य बताऊंगा यदि नहीं आता हो तो तलाश कर बताऊंगा ।किन्तु ना किसी बंधन में आप मुझसे बंधे ना मुझे किसी बंधन में बांधे आपसे निवेदन है।
प्रश्न करे तब तक करे जब तक प्रश्नों का भण्डार समाप्त ना हो जाए किसी की अवहेलना ना करे ,किसी धर्म की ,ना संप्रदाय की ,ना जुड़े ना मुझे जोड़े ,,,मात्र खोजे अपने भीतर नहीं मिलेगा तो किसी अन्य के भीतर मिलेगा किन्तु स्मरण रहे मैं और तुम दोनों भीतर से एक है,जुड़े हुए है इसी लिए प्रश्न करने में भेद ना करे।।।

*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है। 
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।किसी भी सिद्धि साधना को गंभीरता पूर्वक व सोच समझकर अथवा इस विषय के किसी प्रकांड विद्वान से परामर्श करके ही आरंभ करें। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

क्या प्रसाद खाने से,पूजा कराने से बर्बादी हो सकती है?

क्या प्रसाद खाने से,पूजा कराने से बर्बादी हो सकती है?
जी हां हो सकती है ये इसपर निर्भर करता है कि पूजा किसकी की गई है और प्रसाद किसको चढ़ाया गया है।आप ये समझते ही होंगे की सारी अंगुलिया एक समान नहीं होती उसी प्रकार,सभी देवता एक समान नहीं होते।कोई अच्छे देवता होते है कोई बुरे देवता होते है और कोई अच्छे बुरे दोनों स्वभाव के होते है और कोई कोई तटस्त देवता होते है।जिनमे तटस्त देवता महादेव एवं नारद ही है बाकी सभी देवता गुण प्रदान है।आप समझे की जो शैतान होगा तो उसका भी तो कोई भगवान अवश्य होगा जिसकी शरण में वो कृत्य करता होगा।एक डाकू का भी देवता होगा तो एक पुलिसकर्मी का भी भगवान होगा जो दोनों को उनकी इच्छा के अनुसार प्रदान करता होगा।यहाँ अच्छे और बुरे देवताओ की सूची नहीं दी जा रही है इसे आपको स्वयं समझना होगा बस इतना समझे की ये देवता काले से प्रारम्भ हो कर चमकीले सफ़ेद में बदल जाते है और मध्य में ये साँवले हो जाते है इस प्रकार इन देवताओ का उनके गुणों के अनुसार रंग बदलता चित्रों और मूर्तियों में दिखाया जाता है।काले से सफ़ेद रंगों के बदलाव में इनके कुल 9 रंग बनते जैसे काला,लाल,नीला,पिला इत्यादि ।इन रंगों से इनके गुणों का पता लगाया जा सकता है।ये देवता अपने कर्मो के अनुसार मारण,मोहन,स्तम्भन,विद्वेषण,उच्चाटन,वशीकरण,जैसे एवं दया,ममता,आशीर्वाद इत्यादि प्राप्त करते है।
अब समझने वाली बात ये है कि यदि स्तंभन के देवता को जो पीले रंग का है यदि उसे आपके नाम से प्रसाद चढ़ा दिया जाए और कुछ गुप्त बाते जो जन्म पत्रिका का नामाक्षर होता है और आपका गोत्र,माता-पिता का नाम और एक जानकारी जो गुप्त है बता के आपके नाम से पूजा दे कर किसी प्रकार उस पूजा का प्रसाद या फल फूल आप तक पहुचा दिया जाये तब आपके प्रसाद ग्रहण करते ही आपके जीवन का स्तम्भन हो जाएगा।इसी प्रकार अन्य यदि किसी सात्विक देवता को भी आपके लिए पूजा प्रसाद चढ़ा कर यदि आपके जीवन को अच्छा करने के लिए आशीर्वाद माँगा जाए और यदि ये फल फूल प्रसाद का आप भोग कर ले तो आपका जीवन अच्छा हो सकता है।किंतु आपको यदि देवताओ के गुणों की जानकारी नहीं हो तो आप क्या करेंगे।बहुत से लोग अपने दुःख और बिमारी दूर करने प्रसाद चढ़ाते है इस कामना से की उनका दुःख और बिमारी ठीक हो जाए मतलब एक रोगी का रोग = सवा किलो प्रसाद,जो वो अपने रोग को 10 बीस लोगो में बराबर बाँट देता है,मित्रो प्रकृति का नियम समानता का है यहां कुछ भी ख़त्म नहीं होता मात्र रूप बदलता है यदि आप 1 ग्राम जल को जलायेगे तो जल 1 ग्राम भाप बन जाएगा जल नष्ट नहीं होगा।कुछ लोग अपनी सफलता के लिए प्रसाद बांटते है जिसे ग्रहण करने वाले का जीवन सफल होने लगता है ऐसी अवस्था में क्या आप सभी से प्रसाद लेने के पहले क्या उनसे प्रसाद देने का कारण पूछेंगे ,नहीं ना??
यहां तो सभी देवताओं को पिता एवं देवियो को माता कहा जाता है।जबकि शास्त्रो में बहुत सी जगह देवी शब्द लिखा गया है बल्कि सामान्य उसे माता कहकर पुकारते है।
अभी तक जो बातें ऊपर लिखी गई वो देवताओ के विषय में थी अब जरा सोचिए यहाँ तो ऐसे लोग भी है जो मुर्दो की पूजा करते है मसान की पूजा करते है और प्रसाद बांटते है और मुर्दो में अच्छा या बुरा ढूंढना तो और परेशान करने वाला कार्य है।
ये एक बहुत जटिल विषय है इसीलिए इसे गुरु शिष्य परंपरा में सिखाया जाता है जिससे जगत की हानि ना हो किन्तु होता ठीक इसके विपरीत ही है शक्ति मिलते ही ज्यादा से ज्यादा लोग भस्मासुर बन जाते है।स्मरण रहे ये देवी देवता एक ऊर्जा है विद्युत् है और विद्युत किसी की माता या पिता नहीं होती,बिना सुरक्षा के माता माता कह के छु लिया तो मृत्यु निश्चित है।
*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।किसी भी सिद्धि साधना को गंभीरता पूर्वक व सोच समझकर अथवा इस विषय के किसी प्रकांड विद्वान से परामर्श करके ही आरंभ करें। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

क्या प्रसाद खाने से,पूजा कराने से बर्बादी हो सकती है?

क्या प्रसाद खाने से,पूजा कराने से बर्बादी हो सकती है?
जी हां हो सकती है ये इसपर निर्भर करता है कि पूजा किसकी की गई है और प्रसाद किसको चढ़ाया गया है।आप ये समझते ही होंगे की सारी अंगुलिया एक समान नहीं होती उसी प्रकार,सभी देवता एक समान नहीं होते।कोई अच्छे देवता होते है कोई बुरे देवता होते है और कोई अच्छे बुरे दोनों स्वभाव के होते है और कोई कोई तटस्त देवता होते है।जिनमे तटस्त देवता महादेव एवं नारद ही है बाकी सभी देवता गुण प्रदान है।आप समझे की जो शैतान होगा तो उसका भी तो कोई भगवान अवश्य होगा जिसकी शरण में वो कृत्य करता होगा।एक डाकू का भी देवता होगा तो एक पुलिसकर्मी का भी भगवान होगा जो दोनों को उनकी इच्छा के अनुसार प्रदान करता होगा।यहाँ अच्छे और बुरे देवताओ की सूची नहीं दी जा रही है इसे आपको स्वयं समझना होगा बस इतना समझे की ये देवता काले से प्रारम्भ हो कर चमकीले सफ़ेद में बदल जाते है और मध्य में ये साँवले हो जाते है इस प्रकार इन देवताओ का उनके गुणों के अनुसार रंग बदलता चित्रों और मूर्तियों में दिखाया जाता है।काले से सफ़ेद रंगों के बदलाव में इनके कुल 9 रंग बनते जैसे काला,लाल,नीला,पिला इत्यादि ।इन रंगों से इनके गुणों का पता लगाया जा सकता है।ये देवता अपने कर्मो के अनुसार मारण,मोहन,स्तम्भन,विद्वेषण,उच्चाटन,वशीकरण,जैसे एवं दया,ममता,आशीर्वाद इत्यादि प्राप्त करते है।
अब समझने वाली बात ये है कि यदि स्तंभन के देवता को जो पीले रंग का है यदि उसे आपके नाम से प्रसाद चढ़ा दिया जाए और कुछ गुप्त बाते जो जन्म पत्रिका का नामाक्षर होता है और आपका गोत्र,माता-पिता का नाम और एक जानकारी जो गुप्त है बता के आपके नाम से पूजा दे कर किसी प्रकार उस पूजा का प्रसाद या फल फूल आप तक पहुचा दिया जाये तब आपके प्रसाद ग्रहण करते ही आपके जीवन का स्तम्भन हो जाएगा।इसी प्रकार अन्य यदि किसी सात्विक देवता को भी आपके लिए पूजा प्रसाद चढ़ा कर यदि आपके जीवन को अच्छा करने के लिए आशीर्वाद माँगा जाए और यदि ये फल फूल प्रसाद का आप भोग कर ले तो आपका जीवन अच्छा हो सकता है।किंतु आपको यदि देवताओ के गुणों की जानकारी नहीं हो तो आप क्या करेंगे।बहुत से लोग अपने दुःख और बिमारी दूर करने प्रसाद चढ़ाते है इस कामना से की उनका दुःख और बिमारी ठीक हो जाए मतलब एक रोगी का रोग = सवा किलो प्रसाद,जो वो अपने रोग को 10 बीस लोगो में बराबर बाँट देता है,मित्रो प्रकृति का नियम समानता का है यहां कुछ भी ख़त्म नहीं होता मात्र रूप बदलता है यदि आप 1 ग्राम जल को जलायेगे तो जल 1 ग्राम भाप बन जाएगा जल नष्ट नहीं होगा।कुछ लोग अपनी सफलता के लिए प्रसाद बांटते है जिसे ग्रहण करने वाले का जीवन सफल होने लगता है ऐसी अवस्था में क्या आप सभी से प्रसाद लेने के पहले क्या उनसे प्रसाद देने का कारण पूछेंगे ,नहीं ना??
यहां तो सभी देवताओं को पिता एवं देवियो को माता कहा जाता है।जबकि शास्त्रो में बहुत सी जगह देवी शब्द लिखा गया है बल्कि सामान्य उसे माता कहकर पुकारते है।
अभी तक जो बातें ऊपर लिखी गई वो देवताओ के विषय में थी अब जरा सोचिए यहाँ तो ऐसे लोग भी है जो मुर्दो की पूजा करते है मसान की पूजा करते है और प्रसाद बांटते है और मुर्दो में अच्छा या बुरा ढूंढना तो और परेशान करने वाला कार्य है।
ये एक बहुत जटिल विषय है इसीलिए इसे गुरु शिष्य परंपरा में सिखाया जाता है जिससे जगत की हानि ना हो किन्तु होता ठीक इसके विपरीत ही है शक्ति मिलते ही ज्यादा से ज्यादा लोग भस्मासुर बन जाते है।स्मरण रहे ये देवी देवता एक ऊर्जा है विद्युत् है और विद्युत किसी की माता या पिता नहीं होती,बिना सुरक्षा के माता माता कह के छु लिया तो मृत्यु निश्चित है।
*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।किसी भी सिद्धि साधना को गंभीरता पूर्वक व सोच समझकर अथवा इस विषय के किसी प्रकांड विद्वान से परामर्श करके ही आरंभ करें। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

शिव और गोरख

शिव और गोरख
प्रारम्भ में शिव ही शिव थे ,शिव की ही सब पूजा करते रहे ।श्रीदादा गुरु मछिन्द्रनाथ जी ने भी शिव साधना ही करी।किन्तु अलग पन्थ या संप्रदाय नहीं बनाया।सब शिव की सेवा में ही रहे ।किन्तु गुरु गोरख के आने के बाद ये सब बदल गया।कारण सामान्यतः गुरु मछिन्दर के कामपुर त्रिया राज में प्रवेश करना ही रहा होगा।
शिव गृहस्ती है उनके छः पुत्र हुए गणेश,कार्तिकेय,सुकेश,जलंधर,अयप्पा और भूमा ।इन पुत्रो के अलावा पुत्री भी थी उनकी अशोक सुंदरी जिसका विवाह नहुषा से हुआ।दोनों ने विवाह किया और दो पुत्र  (यति और  ययाति ) और 100 पुत्रियों के वे माता पिता बने।
गुरु मच्चिन्द्र कौल शास्त्र के रचयिता रहे और कौल स्त्री(शक्ति)के बिना अधूरा ही होता है वैसे भी संसार की रचना स्त्री के बिना हो सके ये मुमकिन नहीं है यहां स्त्री सबद का उपयोग संसार की समस्त मादाओं के लिये किया गया है।यदि वृक्ष जन्म लेता है तो माता धरती होती है।इसी प्रकार समस्त चल अचल सभी की जननी माता ही कहलाती है।
गुरु मछिन्दर के बहुत से शिष्यो में गुरु गोरख भी रहे जिन्होंने भविष्य में नाथ संप्रदाय के प्रचार प्रसार के लिए पूर्ण रूप से समर्पण के साथ कार्य किया।श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ जी ने अपने कार्य काल में सिद्ध योग अर्थात हट योग मार्ग से शिव स्वरुप परमात्मा को सिद्ध किया।

किन्तु वे गृहस्ती नहीं रहे।स्त्री से परे रहे ।स्त्री से परे होने के कारण मुझे लगता है कि निश्चित रूप से स्त्री तत्व तो उनमें नहीं रहा होगा।स्त्री हर पुरुष में एवं पुरुष हर स्त्री में विद्यामान होता है यदि आप साधू है संत है ब्रह्मचारी है इसके बावजूद भी ,इनके भीतर स्त्री विद्यमान होती है।जो ब्रह्मचारी है उनके भीतर यह माता के रूप में और जो वैवाहिक है उनमे माता एवम् पत्नी के रूप में यह विद्यमान होती है।इसी प्रकार यह प्रक्रिया स्त्रियों में भी होती है पुरुष में स्त्री तत्व माता के गर्भ में रहने के कारण होता है इसके विपरीत देखा जाए तो गुरु गोरख का जन्म स्त्री गर्भ से नहीं बताया गया बल्कि एक ऐसे कुँए से बताया गया है जहां गोबर इकहट्टा किया जाता रहा था।इसी कारण गुरु गोरख में स्त्रितत्व के प्रति नकारात्मकता सही भी लगती है।
जितना भी ज्ञान मैंने पाया वहां मैंने दादा गुरु एवं गुरुदेव की बुद्धि में बहुत अंतर देखा।समयानुसार दो अलग अलग समूहों का निर्माण हुआ ।एक वो जो गृहस्त रहे और एक वो जो गृहस्त हिन् रहे।किन्तु थे सब शिव भक्त ही।किन्तु बुद्धि के फेर से कहे या माता की लीला से भेद तो हो ही गया था।समयानुसार जैसा की होता है दो दलों का निर्माण हुआ प्रथम शिव को मानने वाले और दूसरा गोरख को मानने वाले ।मतलब जो गोरख को मान रहे थे वे प्रथम शिव भक्त ही रहे होंगे।आप इतिहास देखिये,मोहन जोदड़ो के अवशेष देखिये,जिसे प्राचीन माना जाता है वहां भी शिव लिंग पाये गए है जो इस बात को प्रमाणित करते है कि आदिनाथ शिव को मानने वाले प्रारम्भ से रहे।मछिन्दर नाथ जी का गोरखनाथ जी को दीक्षा देना और 12 वर्ष तक तपस्या का आदेश देना ,ये 12 वर्ष ही परिवर्तन का समय रहा होगा ।इन 12 वर्षों में एक स्वर्ण तप रहा था और तप के कुंदन बन रहा था ।12 वर्षो के कठिन तपस्या के बाद जब उस चेले को गुरु के दर्शन नहीं हुए तब गुरु की उन्होंने खोज प्रारम्भ की।और जब उन्हें अपने गुरु के त्रिया राज में होने का समाचार प्राप्त हुआ तो उन्होंने अपने गुरु को अपनी शक्ति एवं युक्ति से मुक्त कराया,किन्तु तब तक मीननाथ का जन्म हो चुका था।यही है जाग मछेन्दर गोरख आया।
कालान्तर में गुरु गोरख के चमत्कारों से एवं उनकी कार्य प्रणालियों को देखते हुए बहुत से भक्त गुरु गोरख की शरण लेने लगे ,जिसने आगे जाके गोरख पंथियों का एक पूरा समुदाय बना दिया ।इस गोरख संप्रदाय में 12 पंथो का निर्माण हुआ ।
इस पुरे कार्यकाल के पहले से भगवान शिव के 18 पंथ धरती पे विराजमान थे मतलब ये की श्री नाथ पंथ शिव के समय से ही चमकते हुए सूर्य के समान प्रतिष्ठित हो समाज की सेवा में तत्पर रहा था। और कालान्तर में गुरु गोरख के भी 12 पंथो का निर्माण हो चुका था।ये एक ऐसा समय रहा होगा जहां शिव एवं गोरख के मिलाकर कुल 30 पंथ अस्तित्व में आये होगे।इसे ही नाथ संप्रदाय में 18/12 के नाम से जाना जाता है जिसमे शिव के 18 एवं गोरख के 12 पंथ होते है।जिसे 18 भार वनस्पति और 12 भार कहा जाता है।इन दोनों समूहों में समय समय पे एक विचार धारा नहीं होने के कारण ,आपसी मदभेद एवं विवाद होते रहते थे जो मदभेद से बढ़कर युद्ध का रूप ले लिया करते थे।
और ये युद्ध अपना विनाशकारी रूप ले लेते थे कारण अमृतमय काल (कुम्भ मेला)में स्नान कौन पहले करेगा इस विषय को लेके युद्ध प्रारम्भ हो जाता था इस काल को आप सभी सिंहस्थ कुंभ के नाम से जानते है।इसे नाथ पंथ में त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला कहा जाता है।
इन बार बार के युद्ध को समाप्त करने एवं सबमे एकता बनाये रखने हेतु एक सभा का आयोजन किया गया जो बाद में योगी महासभा अवधूत भेष बारह पंथ के नाम से जाना गया।इस त्र्यम्बक अनुपान शिला में आदिनाथजी शिव जी ,गुरु गोरखनाथ जी,9नाथजी एवं 84 सिद्धो सहित अन्त कोटि सिद्धो ने एकत्रित हो कर ,इस महासभा में भगवान शिव के 6 पंथो को एवं गुरु गोरख के 6 पंथो को बराबर स्थान दिया गया ।इस प्रकार भेष 12 का जन्म हुआ इसमें समझने की एक बात और है इन 12 पंथो के अलावा भी गृहस्त जोगियों का मान आधा माना गया ।कुल मिला कर 6 शिव के पंथ 6 गोरख के एवं 1/2 गृहस्तो को ।सभी मिलाकर साढ़े 12 पंथ ही सम्पूर्ण हुए।
आज जो भी देश के एवं समाज के हित में धार्मिक रूप से ,सकारात्मक परिवर्तन होते है इसमें मुख्य स्थान योगी महासभा का ही होता है।
इस पोस्ट में किसी जानकारी में अशुद्धता होने से कृपया सही जानकारी प्रदान करे एवं किसी तृटी या अपशब्द हेतु क्षमा करे
*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।किसी भी सिद्धि साधना को गंभीरता पूर्वक व सोच समझकर अथवा इस विषय के किसी प्रकांड विद्वान से परामर्श करके ही आरंभ करें। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

कुण्डलिनी शक्ति एवं नवदुर्गा,वैदिक मंत्रो द्वारा कुण्डलिनी जागरण

कुण्डलिनी शक्ति एवं नवदुर्गा,वैदिक मंत्रो द्वारा कुण्डलिनी जागरण

1.शैलपुत्री (मूलाधार चक्र)

ध्यान:-
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा। पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्। कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र:-
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्। सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

कवच:-
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी। हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। ब्रह्मचारिणी

2.ब्रह्मचारिणी (स्वाधिष्ठान चक्र)
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।
देवी प्रसीदतुमयिब्रह्मचारिणयनुत्तमा॥
ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्। कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।

स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्। ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।

कवच:-
त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

3.चन्द्रघण्टा (मणिपुर चक्र)
पिण्डजप्रवरारूढा चन्दकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्मं चन्द्रघण्देति विश्रुता ॥
ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। सिंहारूढादशभुजांचन्द्रघण्टायशस्वनीम्॥
कंचनाभांमणिपुर स्थितांतृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग गदा त्रिशूल चापहरंपदमकमण्डलु माला वराभीतकराम्।
पटाम्बरपरिधांनामृदुहास्यांनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणिरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधाराकातंकपोलांतुंग कुचाम्। कमनीयांलावण्यांक्षीणकंटिनितम्बनीम्॥

स्त्रोत:-
आपदुद्वारिणी स्वंहिआघाशक्ति: शुभा पराम्। मणिमादिसिदिधदात्रीचन्द्रघण्टेप्रणभाम्यहम्॥
चन्द्रमुखीइष्टदात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्। धनदात्रीआनंददात्रीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणीइच्छामयीऐश्वर्यदायनीम्। सौभाग्यारोग्यदायनीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥
कवच:-रहस्यं श्रुणुवक्ष्यामिशैवेशीकमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्यकवचंसर्वसिद्धि दायकम्॥
बिना न्यासंबिना विनियोगंबिना शापोद्धारबिना होमं। स्नानंशौचादिकंनास्तिश्रद्धामात्रेणसिद्धिदम्॥
कुशिष्यामकुटिलायवंचकायनिन्दाकायच। न दातव्यंन दातव्यंपदातव्यंकदाचितम्॥

4.कूष्माण्डा (अनाहत चक्र)
सुरासम्पूर्णकलशंरुधिप्लूतमेवच। दधानाहस्तपदमाभयांकूष्माण्डाशुभदास्तुमे॥

ध्यान:-
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभांअनाहत स्थितांचतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलशचक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बरपरिधानांकमनीयाकृदुहगस्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनांनारू चिकुकांकांत कपोलांतुंग कूचाम्। कोलांगीस्मेरमुखींक्षीणकटिनिम्ननाभिनितम्बनीम्॥

स्त्रोत:-
दुर्गतिनाशिनी त्वंहिदारिद्रादिविनाशिनीम्। जयंदाधनदांकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्रीजगदाधाररूपणीम्। चराचरेश्वरीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरीत्वंहिदु:ख शोक निवारिणाम्। परमानंदमयीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-
हसरै मेशिर: पातुकूष्माण्डेभवनाशिनीम्। हसलकरींनेत्रथ,हसरौश्चललाटकम्॥
कौमारी पातुसर्वगात्रेवाराहीउत्तरेतथा।
पूर्वे पातुवैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणेमम।
दिग्दिधसर्वत्रैवकूंबीजंसर्वदावतु॥

5.स्कन्दमाता (विशुद्ध चक्र)
सिंहासनगतानित्यंपद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तुसदा देवी स्कन्दमातायशस्विनीम्॥

ध्यान:-
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्। सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्। कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्। ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्। सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्। नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्। सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्। तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्। स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्। पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥

कवच:-
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥

6.कात्यायनी (आज्ञाचक्र)
चन्द्रहासोज्वलकराशार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभ दधादेवी दानवघातिनी॥

ध्यान:-
वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम। वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्। कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

स्तोत्र:-
कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां। स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां। सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा। परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता। विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

कवच:-
कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
लाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

7.कालरात्रि (भानु चक्र)
एकवेणीजपाकर्णपुरानाना खरास्थिता। लम्बोष्ठीकíणकाकर्णीतैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।वर्धनर्मूध्वजाकृष्णांकालरात्रिभर्यगरी॥

ध्यान:-
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्। कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्। अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां। घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्। एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

स्तोत्र:-
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती। कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी। कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

कवच:-
ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥

8.महागौरी (सोमचक्र)
श्र्वेते वृषे समारूढा श्र्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥
ॐ नमो: भगवती महागौरीवृषारूढेश्रींहीं क्लींहूं फट् स्वाहा।
भगवती महागौरीवृषभ के पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है।
मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं,
जिनके कानों में रत्नजडितकुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती महागौरीहैं।

ध्यान:-
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥

स्तोत्र:-
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-
ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोहूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
सिद्धिदात्री (निर्वाण चक्र)
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धीदा सिद्धीदायिनी ॥

ध्यान:-
वन्दे वांछित मनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-
कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

कवच:-
ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥

*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।किसी भी सिद्धि साधना को गंभीरता पूर्वक व सोच समझकर अथवा इस विषय के किसी प्रकांड विद्वान से परामर्श करके ही आरंभ करें। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)