रविवार, 30 अप्रैल 2017

पैंसठिया शिव

पैंसठिया शिव
२२-३-९-१५-१६
१४-२०-२१-२-८
१-७-१३-१९-२५
१८-२४-५-६-१२
१०-११-१७-२७-४

पैंसठिया यंत्र सुखों का प्रदाता एवं इच्छाओ को पूर्ण करने में अत्यंत प्रभाव शाली यंत्र है।किसी भी शुभ तिथि मुख्य तः चतुर्दशी तिथि को सोमवार पड़ने से इस यंत्र का निर्माण अनार की कलम द्वारा गोरोचन,केसर,अष्टगंध की स्याही को मिलाकर बिना कटे-फटे भोजपत्र पे लिखना चाहिए।यंत्र प्रातः काल स्नानादि के उपरांत लिखे।इस काल मे गुलाब की खुशबू वाली धूपबत्ती का उपयोग करे।
आसन में बैठने के बाद सर्वप्रथम गुरु का स्मरण कर गुरु का ध्यान कर उन्हें प्रणाम कर ,आदिगुरु भगवान शिव की मन ही मन स्तुति करे-

।।स्तुति।।
यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके।
भाले बाल विधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट ।।
सोsयं भूति विभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा।
सर्वः शर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशंकरः पातु माम्।।

इस स्तुति के बाद भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का दस हजार रुद्राक्ष की सिद्ध माला से जाप करे।यंत्र की पंचोपचार द्वारा पूजन कर इस यंत्र को स्वर्ण या ताँबे के तावीज में रख कर दाहिनी भुजा पर काले धागे से बांध लें।
ऐसा करने से भगवान शिव के आशीर्वाद से सभी व्याधियो का हनन होता है और सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है।

।। राहुलनाथ ©₂₀₁₇।।™
" महाकालाश्रम "
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे। अन्यथा मानसिक हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
विशेष:-इस पोस्ट से सम्बंधित पूजा विधि एवं अन्य जानकारी के लिए ऊपर दीये गए नंबर व्हाट्सऐप पे संपर्क करे।।

सिंहासन बत्तीसी का मूल रहस्य

सिंहासन बत्तीसी का मूल रहस्य
एक बार अवश्य पढ़ें ये रहस्य आपके होश उड़ा देगा।
मित्रों सिंहासन बत्तीसी का नाम तो आपने सुना ही होगा किन्तु बहुत ही कम लोग है जो इस सिंहासन सत्यता को समझने का प्रयास करते है सामान्य जन के लिए ये मात्र उपदेश देने वाली कहानियों का संग्रह है ।आज इसे हम समझने का प्रयास करते है कि ये सिंहासन कहा है?क्या इसका अस्तित्व आज भी है?क्या कभी ऐसे कोई सिंहासन अस्तित्व रहा होगा?बहुत ही विचारणीय विषय है ये।
यह सिंहासन काल्पनिक नही है इस कि मूल कहानी जिन्होंने लिखी है वो पढ़ने में अच्छी लगती है किंतु इस कहानी का गूढ़ रहस्य को सार्वजनिक नाही किया गया ,इस रहस्य को समझना आसान कार्य नही है।
इस कहानी का मुख्य पात्र एक साधारण-सा चरवाहा जो अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है और वो जब भी इस सिंहासन पे बैठता है वह ज्ञान एवं न्याय की बाते करता है।
मित्रो इसका मूल एवं गूढ़ रहस्य ये है कि ये कोई पत्थर का ,या सोने का बना सिहासन नही है।यह सिंहासन बत्तीस पुतलियों से बना हुआ है मतलब आपके 32 दांतों से बना हुआ है और जब ये बत्तीस पुतलिया आपस मे जुड़ती है तो ज्ञान की प्राप्ति होती है बत्तीस पुतलियों पे बैठने से आशय ऊपर और नीचे के 16-16 दांतों को आपस मे मिलाना और मौन रहना।जैसे ही आप बात करते है ये सिंहासन की पुतलियां बोलने लगती है ।इस सिंहासन पे बैठने वाले को ज्ञान की एवं निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त होती है।ऊपर के धनात्मक दांतो का नीचे के ऋणात्मक दांतो से मिलते ही ये एक ऊर्जा के परिपथ से जुड़ जाता है।इन सभी दांतो की नसों का सीधा संबंध ज्ञान एवं सहस्त्रार से है और इन नसों का दूसरा सिरा दिमाग के मूल से जुड़ा होता है।इन दांतो पे विरुद्ध क्रम(विक्रम) से ध्यान लगाने से सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त होती है।यह सिंहासन राजा भोज को मिट्टी के टीले के नीचे से प्राप्त हुआ था यहा मिट्टी अज्ञान को कहा गया है।यदि गुरु ज्ञान द्वारा अज्ञान की मिट्टी हटा दी जाए तो यह सिंहासन प्राप्त हो जाता है।इन पुतलियों को 8-8 के चार हिस्सो में बांटा गया है।जो सिहासन के चार स्तम्भ है,जिसपे ये आसन टिका हुआ है।इस सिंहासन की बेजोड़ कारीगरी से आप सब वाकिफ है इनकी आकृति,इनकी पकड़,इनकी मजबूती जो पत्थर को भी तोड़ दे।ये पुतलियों(दांतो) में लचक होती है स्पंज के समान जो आपको लगातार संदेश भेजते रहते है।इन दांतो को सामान्य रूप से आपस मे मिलाके रखना चाहिए जोर से दबाना नही चाहिए।धीरे-धीरे कुछ दिन प्रयास करने से ये दिव्य ज्ञान की अवस्था प्राप्त होने लगती है।
मित्रों 2007 के आस-पास मैं गुरु द्वारा प्राप्त मंत्रो का नित्य जाप किया करता था और आज भी यह क्रम चल रहा है।उस जाप काल मे मैंने अपने स्वप्न में एक महात्मा को देखा ,जिनका रूप दिव्य था एवं बाल सफेद थे ।उन्होंने मुझे कहा कि सिंहासन बत्तीसी पे आसन लगा के जाप कर,सफलता मिलेगी।अब ये स्वप्न मेरे लिए एक पहेली बन कर रह गया था की अब ये सिंहासन बत्तीसी कहा मिलेगा।बचपन मे "सिंहासन बत्तीसी" की कहानी सुनी थी उज्जैन की,मै उज्जैन पहुचा किन्तु कुछ विशेष प्राप्त नही हुआ,दर्शन हुए सिंहासन के जो वहां है।खैर तलाश चलती रही 3 वर्ष।3वर्ष बाद स्वप्न में फिर उन्ही महात्मा के दर्शन हुए इस बार उन्होंने बताया कि मंत्र जाप मुह बंद कर करना है और दाँतो को आपस मे मिला कर जिव्हा  को तालु से सटाकर जाप करना है यही आसान सिंहासन बत्तीसी है इसपे जाप कर।
अब उस स्वपन का उत्तर प्राप्त हो चुका था इसके बाद इस विषय मे मैंने बहुत शोध किया और जो कुछ पाया उसके कुछ अंशो को आपकी सेवा में प्रस्तुत किया है।

इस पोस्ट को लिखकर किसी भक्त की भावना एवं विश्वास आहत हुआ हो तो कृपया क्षमा करें।

।।कथा।।
यह सिंहासन राजा भोज को विचित्र परिस्थिति में प्राप्त होता है। एक दिन राजा भोज को मालूम होता है कि एक साधारण-सा चरवाहा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है तथा पुश्तैनी रुप से उनके ही राज्य के कुम्हारों की गायें, भैंसे तथा बकरियाँ चराता है। जब राजा भोज ने तहक़ीक़ात कराई तो पता चला कि वह चरवाहा सारे फ़ैसले एक टीले पर चढ़कर करता है। राजा भोज की जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने खुद भेष बदलकर उस चरवाहे को एक जटिल मामले में फैसला करते देखा। उसके फैसले और आत्मविश्वास से भोज इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उससे उसकी इस अद्वितीय क्षमता के बारे में जानना चाहा। जब चरवाहे ने जिसका नाम चन्द्रभान था बताया कि उसमें यह शक्ति टीले पर बैठने के बाद स्वत: चली आती है, भोज ने सोचविचार कर टीले को खुदवाकर देखने का फैसला किया। जब खुदाई सम्पन्न हुई तो एक राजसिंहासन मिट्टी में दबा दिखा। यह सिंहासन कारीगरी का अभूतपूर्व रुप प्रस्तुत करता था। इसमें बत्तीस पुतलियाँ लगी थीं तथा कीमती रत्न जड़े हुए थे। जब धूल-मिट्टी की सफ़ाई हुई तो सिंहासन की सुन्दरता देखते बनती थी। उसे उठाकर महल लाया गया तथा शुभ मुहूर्त में राजा का बैठना निश्चित किया गया। ज्योंहि राजा ने बैठने का प्रयास किया सारी पुतलियाँ राजा का उपहास करने लगीं। खिलखिलाने का कारण पूछने पर सारी पुतलियाँ एक-एक कर विक्रमादित्य की कहानी सुनाने लगीं तथा बोली कि इस सिंहासन जो कि राजा विक्रमादित्य का है, पर बैठने वाला उसकी तरह योग्य, पराक्रमी, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए।

व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©₂₀₁₇
।। राहुलनाथ।।™
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इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है अतः हमारी मौलिक संपत्ति है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये इस रूप में उपलब्ध नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझ कार्यवाही की जायेगी।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

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शनिवार, 29 अप्रैल 2017

सभी समस्याओं का समाधान"निःशुल्क

सभी समस्याओं का समाधान"निःशुल्क
मित्रों यदि आप किसी समस्या से परेशान है और आपको समाधान नही मिल पा रहा है तो कृपया अपनी समस्याओं को कमेंट में,इनबॉक्स एवं व्हाट्सएप के माध्यम से लिखे ,हो सके तो फेस बुक कमेंट में लिखे ,जिससे अन्य मित्र जो अपनी समस्याओं को लिखने में झिझक महसूस करते है उन्हें भी समाधान मिले।
जिससे आपकी समस्या का समाधान आपको प्रदान किया जा सके।इन समस्याओं का समाधान ज्योतिष ,वास्तु एवं शाबर,वैदिक ,मुस्लिम मंत्र-यंत्र-तंत्र ,गंडा या अन्य विधियों द्वारा आपको प्रदान किया जाएगा।जिस किसी भी सज्जन को यदि विश्वास है कि आध्यात्मिक विधियों द्वारा उपचार संभव है वे अवश्य एक बार सलाह ले।बाल की खाल निकालने वाले भाई-बहन संपर्क ना करे।
उपचार:-मुकदमें में विजय,भूत बाधा, सिरदर्द,नजर दोष,मिर्गी,असमान्य धड़कन,त्वचीय रोग,दंत कष्ट, भय नाश,याददाश्त,स्तंभन,शीतला शांति,प्रतिष्ठा कारक,मृत्यु नाशक, पुत्र प्राप्ति,गर्भ सुरक्षा,संतान प्राप्ति,मसान रोग,दर्द नाश,सुरक्षा,सुखी निंद्रा,अदृश्य बला से मुक्ति,हवा-लाग-नजर,कामवर्धन,बच्चे की अनिन्द्रा, आमदनी में बढ़ोतरी, चोरी गई सामग्री की वापसी, शत्रु स्तंभन,मानसिक दुर्बलता,लकवा,इत्यादि अन्य समस्याओं का समाधान भगवान महाकाल की कृपा से ।
विशेष:-इन सभि समाधानो का कोई भी मुल्य स्वीकार नही किया जाएगा।कार्य  या उपचार सफल होने पर भगवान शिव महाकाल के मंदिर में इच्छानुसार दान करे।

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"तेरा तुझ को अर्पण,क्या लागे मोर"

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

आशीर्वाद

यदि आप किसी को ठीक करते है तो उसके दुख आपको काटने पड़ते है।यही समानता का नियम है।यहां दुखो की किसको कमी है सभी अपने कर्मो से दुःख पा रहे है वे स्वयं में परिवर्तन नहि करते  और कस्ट बढ़ने पे पुनः उपाय करके ,ज्योतिर्विद,साधु-संतों या साधक की साधना द्वारा प्राप्त शक्ति से आशीर्वाद पा कर स्वास्थ लाभ प्राप्त करते है।और कुछ दिन बाद फिर किसी नए की तलाश करते है ।यही कारण है कि साधको की शक्ति खत्म होते जाती है।इसीलिए दक्षिणा,दीक्षा  एवं गुप्तता का विधान है।

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गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

श्रीनाथ सिद्ध योगियो की नादि जनेऊ।।।

श्रीनाथ सिद्ध योगियो की नादि जनेऊ।।।
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इसमें मुख्य रूप से पांच घटक है।

प्रथम-ऊँन का जनेऊ,

द्वितीय:-गोल रिंग,जो पवित्री/पवित्रता शक्ति कहलाती है जो ॐ कार के ऊपर स्थित अर्धमात्रा चिदानंदा पराशक्ति का स्वरूप है।

तृतीय:-मूंगा-ये प्रतिक है ॐ कार में स्थित "अ"कार ,रजोगुणी(राजस्)संसार उत्पत्ति एवं ब्रह्मग्रंथि ब्रह्मानंद ,ब्रह्मा जी का ,जो इस संसार की उत्पत्ति का कार्य कर रहे है।

चतुर्थ:-स्फटिक,ये प्रतिक है ॐ कार में स्थित "उ"कार,सत्वगुणी(सात्विक),जो संसार स्थिति पालन एवं विष्णु ग्रंथि महानंद भगवान विष्णु जी का ,जो संसार के पालन हार है।

पंचम:-रुद्राक्ष,ये प्रतिक है ॐ कार में स्थित "म"कार तमोगुणी(तामस),जो संसार के संहार एवं रूद्र ग्रंथि कैवल्यआनंद भगवान् शिव जी का,जो अंत में संसार का संहार करते है।

षष्टम:-नादि-नाद-बिंद-बिंदी,श्री नाथ सिद्धो की (नाद)बिंद, जो प्रतिक है ॐ कार में स्थित बिंदु का ,जो चंद्र के ऊपर रहता है।यह प्रतिक है समाधि में ॐ कार के दर्शन,ज्ञान प्राप्ति एवं समाधि में शुन्य अवस्था का।

विशेष इस प्रकार ये सम्पूर्ण नादि ॐ कार स्वरूप है।
उपरोक्त दी गई सम्पूर्ण जानकारी गुरुदेव द्वारा प्रदान की गई है।

©श्रीनाथ सिद्धो की शंखढाल,श्री गुरुदेव योगि विलासनाथजी कृत।।ॐ गुरूजी शिवगौरस आदेश
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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

अप्सरा साधन विधि क्रोध भैरवानुसार

अप्सरा साधन विधि क्रोध भैरवानुसार
उन्मत्त भैरव भूत डामर तंत्र में अप्सरा साधन नामक दशम पटल में उन्मत्त भैरव इसे कहते हैं कि, आज मैं आपको अप्सरा साधन की विधि बताने जा रहा हूं जिसे आप गुप्त रुप से कर सकते हैं
ॐ श्रीं तिलोत्तमा,श्रीं ह्रीं कांचनमाला,ॐ श्रीं हूँ कुलहारिणी,ॐ हूँ रत्नमाला,ॐ हूँ रंभा,ॐ श्रीं उर्वशी,ॐ रमाभूषिणि।
क्रोध भैरव को नमस्कार करके यह सब  साधन मंत्र मैं कह रहा हूं।।3।।

पर्वत शिखर पर चढ़कर एक लाख मंत्र का जाप करें उसके बाद पूर्णिमा तिथि में अर्चना करके घी का प्रदीप निवेदन करें,सारी रात जप करने पर रात के अंत में देवी आगमन करती है उसके बाद साधक के चंदन द्वारा अर्घ्य प्रदान करने पर शशिदेवी संतुष्ट होकर साधक को वर प्रार्थना करने  को कहती है शशिदेवी भार्या होकर इच्छानुसार रसायन द्रव प्रदान करती है एवं दीर्घायु तक पालन करटी है ।।4।।

साधक दूध पीकर 7 दिन तक दशसहस्त्र मंत्र का जाप करें उसके बाद सातवें दिन चंदन के द्वारा मंडल निर्माण कर के शक्ति के अनुसार पूजा करे।शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को पर्वत शिखर पर आरोहर करके जप करें,सारी रात जप करने पर रात्रि के अंत में देवी आगमन करके साधक को समक्ष उपस्थित होती है एवं साधक की भार्या होकर चुंबन तथा आलिंगन करके राज्य प्रदान करती है उसके बाद साधक को स्वर्गपूर में प्रदर्शन कर आती है साधक इस प्रकार से आजीवन विधित भोग कर के मरने के बाद राज कुल में जन्म ग्रहण करते हैं।।5।।

किसी नदी संगम स्थल पर जाकर चंदन के द्वारा मंडल निर्माण करके अगूरु के द्वारा धूप देकर बलि प्रदान करें, उसके बाद 7 दिन तक प्रतिदिन 8000 मंत्र जप करें तदनंतर सातवें दिन पूजा करके धुप प्रदान करके रात में पुनर्वार मंत्र का जप आरंभ करना होगा, रात के अंत में देवी के उपस्थित होने पर चंदन के द्वारा अर्घ्य दें इससे देवी संतुष्ट होकर साधक को वर ग्रहण करने को कहेगी तब साधक कहे हे देवी मुझे मातृवत् पालन करो उसके बाद देवी साधकों को वस्त्र अलंकार तथा भोज्य वस्तु प्रदान करती है ।।6।।

कोई तिथि नक्षत्र का विवेचन न करके नदी तट में जाकर 10 हजार बार मंत्र जप करें इस साधना में उपवास नहीं करना होता इस प्रकार 1 मास तक जप करके धुप प्रदान करके,रात को पुनः जप करे इस प्रकार आधी रात तक जप करने पर देवी आगमन करती है तत्क्षणात् साधक उन्हें अर्घ्य प्रदान करें इससे देवी संतुष्ट होकर साधक की भार्य होकर प्रतिदिन लक्ष्य स्वर्ण मुद्रा तथा नाना विद रसायन द्रव्य प्रधान करती है।।7।।

किसी देवालय में जाकर 8000 बार जप करें इस प्रकार 1 मास तक जब करें मासांत में पूर्णिमा तिथि को पुनर्वार जब प्रारंभ करें इसके बाद विविध उपचार से अर्चना करने पर आधी रात को नुपुर ध्वनि सुनाई देगी थोड़ी देर बाद देवी के समीप में उपस्थित होने पर साधक पुष्पासन प्रदान करें इससे देवी संतुष्ट होकर साधक से कहेगी तुम क्या चाहते हो तब साधक कहे तुम मेरी भार्या हो जाओ ।इस प्रकार सिद्धि होने पर देवी भार्या कर्म करती रहती है एवं अभिलाषित भोजन द्रव्य प्रदान करती रहती है तथा रत्नमाला देवी आजीवन साधक का प्रतिपालन करती रहती है ।।8।।

प्रतिपदा तिथि में चंदन द्वारा मंडल निर्माण करके गूगूल द्वारा धूप प्रदान कर के 8000 पूवोक्त रंभा मंत्र का जप कर के प्रतिपद से चतुर्दशी तक इस प्रकार जप करके पूर्णिमा को विविध उपाय उपचार से त्रिसंध्या तीन बार पूजा करके सारी रात मंत्र जप करें रात के अंत में देवी आगमन करके साधक की भार्या होती है एवं साधक को अभिलाषित तथा विविध रसपूर्ण भोजनिय वस्तु प्रदान करती है इस प्रकार सिद्धि होने पर साधक दीर्घायु तक जीवित रह कर रंभा देवी के प्रसाद से मरने के बाद में राज कुल में जन्म ग्रहण करता है।।9।।

रात को किसी देवालय में जाकर चंदन के द्वारा मंडल मना कर धुप प्रदान करके उर्वशी का 10000 मंत्र जाप करें इस प्रकार 1 मास तक जप करके मासांत में महति पूजा करके रात को जप करें सारी रात इस प्रकार से जब करने पर रात के अंत में देवी आगमन करती है तब साधक पुष्पासन प्रदान करें,इससे देवी संतुष्ट होकर साधक का मंगल पूछकर कहेगी तुम क्या अभिलाषा करते हो तब साधक कहे हे देवी तुम मेरी भार्या ही हो जाओ एवं विविध रस विशिष्ट भोजन मुझे अर्पण करो इस प्रकार मंत्र सिद्धि होने पर उर्वशी अप्सरा साधक का  आजीवन तक पालन करती है यह देवता सिद्धि होने पर साधक को  अन्य स्त्री का परित्याग करना होगा,अन्यथा साधक की मृत्यु हो सकती है ।10।।

रात को सूची होकर अकेले बिस्तर पर बैठ कर भोजपत्र में कुमकुम के द्वारा भूषणी की प्रतिमूर्ति अंकित करके चंदन के द्वारा धुप प्रदान करके भूषणी देवी का 8000 मंत्र जप करें 1 मास तक प्रतिदिन इस प्रकार जप करके मासांत में देवी की अर्चना करके पूनः मंत्र 8000 बार जप करे इससे आधी  के समय में देवी आगमन करके साधक की भार्या होती है एवं साधक के प्रति संतुष्ट होकर नानाविध अभिलाशीत द्रव्य तथा स्वर्ण प्रदान करती है।11।।

क्रोधराज कहने लगे यदि उपरोक्त साधना में भी देवीगण आगमन नहीं करती है "ॐ कटु कटु अमुकी हुँ फट्।।
इस मंत्र का 8 हजार जप करें इससे भी पूर्वोक्त देवीगढण आगमन न करें तब तत् क्षणात उन सब का मस्तक फट कर उनकी मृत्यु होती है उसके बाद
ॐ वंध वंध हन हन अमुकी हुँ
इस मंत्र से अप्सरा गणों को वंध करें ।।12।।
इस समय अप्सराओं के वशीकरण मंत्र कह रहा हूं

"ॐ चल चल अमुकी वशमानय हूँ फट्"
यह मंत्र जप करने पर अप्सरा गण वशीभूत होती है तदनंतर क्रोध भूपति ने मनुष्य के उपकारार्थ में जो आठ अप्सरा साधना कहा हैं वह कहा जा रहा है
।इस विधान क्रम से मुद्रा बंधन आदि करके साधना करने पर अप्सरागण जननी,भगनी,भार्या तथा दासी होकर मनुष्य के वशीभूत होती है।। 14।

मुद्रा बंध प्रणाली इस प्रकार है दोनों हाथों की मुठ्ठी बांधकर पद्मावृत्त करें एवं मध्यम अंगुली सूची के आकार से रखे यह मुद्रा दुख विनाश करती है 15।। दोनों हाथों को खड़गाकार खंड की तरह करके रखें इस मुद्रा का नाम सात्रिद्यकारिणी है यह मुद्रा बंधन मात्र से सभी अप्सरा तत्क्षणात् वशीभूत होती है दोनों हाथ पद्मावृत करके रखने पर भी अप्सरा साधना मुद्रा होती है ।।16 ।।

तदनंतर क्रोधराजोक्त आह्वाहन मंत्र कहां जा रहा है "ॐ सर्वाप्सर आगच्छ आगच्छ हूँ हूँ ॐ फट्"
इस मंत्र से आह्वाहन करने से तत्क्षणात् अप्सरा गणो का साक्षात्कार होता है ।।17 ।।
ॐ सर्व सिद्धि योगेश्वरी हूँ फट्"
यह मंत्र अप्सराओं का संनिधिकारक  है
"ॐ क्लीं स्वाहा"
इस मंत्र से अप्सराओं को अभिमुख किया जा सकता है
"ॐ वां प्रां हूँ हूँ यं हौं"
यह मंत्र अप्सराओं का मोहन कारक है ।।18।।

।।इति भूत डामरे तन्त्रे अपसरः साधनं नाम दशमः पटेलः।।

अप्सरा साधन के कुछ मंत्र।।

१-ॐ उर्वशी प्रियः वश करी हुं

२-ॐ ह्रीं उर्वशी अप्सरायः आगच्छागच्छ स्वाहः

३-ॐ ह्रीं उर्वशी ममः प्रियः ममः चित्तानुरंजनः करि करि फट।

४-ॐ नमोहः भगवती उर्वशी दैवीं देही सुंदरः भार्या कुलः केतू पद्य्मनी।

५-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्तमः अप्सरः आगच्छ आगच्छ स्वाहः ।।

६-ॐ अपूर्व सौंर्दयायः अप्सरायः सिद्धियेह नमः।

विशेष: इस खंड में बहुत से गुप्त प्रयोग विधि का वर्णन किया गया है बस आवश्यकता है उन्हें सही क्रम से समझने मात्र की।इस विधान को करने से पहले क्रोधराज भैरव एवं भैरवी का तंत्रोक्त पूजन ,भोगादी प्रदान कर नमस्कार कर विधि प्रारम्भ करनी चाहिए ।यह बहुत दुष्कर एवं जटिल साधना है इसे गुरु के सानिध्य में करना चाहिए एवं साधना से पूर्व सभी अप्सराओ के आह्वाहन एवं स्थापन की मुद्राओ को एवं मूल मंत्रो को सिद्ध करना चाहिए।यह दी गई जानकारी भूतड़ामर तंत्र द्वारा साधको के ज्ञानार्थ ली गई है एवं इसके मूल रूप में कोई परिवर्तन नहीं किया है

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