रविवार, 30 अप्रैल 2017

सिंहासन बत्तीसी का मूल रहस्य

सिंहासन बत्तीसी का मूल रहस्य
एक बार अवश्य पढ़ें ये रहस्य आपके होश उड़ा देगा।
मित्रों सिंहासन बत्तीसी का नाम तो आपने सुना ही होगा किन्तु बहुत ही कम लोग है जो इस सिंहासन सत्यता को समझने का प्रयास करते है सामान्य जन के लिए ये मात्र उपदेश देने वाली कहानियों का संग्रह है ।आज इसे हम समझने का प्रयास करते है कि ये सिंहासन कहा है?क्या इसका अस्तित्व आज भी है?क्या कभी ऐसे कोई सिंहासन अस्तित्व रहा होगा?बहुत ही विचारणीय विषय है ये।
यह सिंहासन काल्पनिक नही है इस कि मूल कहानी जिन्होंने लिखी है वो पढ़ने में अच्छी लगती है किंतु इस कहानी का गूढ़ रहस्य को सार्वजनिक नाही किया गया ,इस रहस्य को समझना आसान कार्य नही है।
इस कहानी का मुख्य पात्र एक साधारण-सा चरवाहा जो अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है और वो जब भी इस सिंहासन पे बैठता है वह ज्ञान एवं न्याय की बाते करता है।
मित्रो इसका मूल एवं गूढ़ रहस्य ये है कि ये कोई पत्थर का ,या सोने का बना सिहासन नही है।यह सिंहासन बत्तीस पुतलियों से बना हुआ है मतलब आपके 32 दांतों से बना हुआ है और जब ये बत्तीस पुतलिया आपस मे जुड़ती है तो ज्ञान की प्राप्ति होती है बत्तीस पुतलियों पे बैठने से आशय ऊपर और नीचे के 16-16 दांतों को आपस मे मिलाना और मौन रहना।जैसे ही आप बात करते है ये सिंहासन की पुतलियां बोलने लगती है ।इस सिंहासन पे बैठने वाले को ज्ञान की एवं निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त होती है।ऊपर के धनात्मक दांतो का नीचे के ऋणात्मक दांतो से मिलते ही ये एक ऊर्जा के परिपथ से जुड़ जाता है।इन सभी दांतो की नसों का सीधा संबंध ज्ञान एवं सहस्त्रार से है और इन नसों का दूसरा सिरा दिमाग के मूल से जुड़ा होता है।इन दांतो पे विरुद्ध क्रम(विक्रम) से ध्यान लगाने से सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त होती है।यह सिंहासन राजा भोज को मिट्टी के टीले के नीचे से प्राप्त हुआ था यहा मिट्टी अज्ञान को कहा गया है।यदि गुरु ज्ञान द्वारा अज्ञान की मिट्टी हटा दी जाए तो यह सिंहासन प्राप्त हो जाता है।इन पुतलियों को 8-8 के चार हिस्सो में बांटा गया है।जो सिहासन के चार स्तम्भ है,जिसपे ये आसन टिका हुआ है।इस सिंहासन की बेजोड़ कारीगरी से आप सब वाकिफ है इनकी आकृति,इनकी पकड़,इनकी मजबूती जो पत्थर को भी तोड़ दे।ये पुतलियों(दांतो) में लचक होती है स्पंज के समान जो आपको लगातार संदेश भेजते रहते है।इन दांतो को सामान्य रूप से आपस मे मिलाके रखना चाहिए जोर से दबाना नही चाहिए।धीरे-धीरे कुछ दिन प्रयास करने से ये दिव्य ज्ञान की अवस्था प्राप्त होने लगती है।
मित्रों 2007 के आस-पास मैं गुरु द्वारा प्राप्त मंत्रो का नित्य जाप किया करता था और आज भी यह क्रम चल रहा है।उस जाप काल मे मैंने अपने स्वप्न में एक महात्मा को देखा ,जिनका रूप दिव्य था एवं बाल सफेद थे ।उन्होंने मुझे कहा कि सिंहासन बत्तीसी पे आसन लगा के जाप कर,सफलता मिलेगी।अब ये स्वप्न मेरे लिए एक पहेली बन कर रह गया था की अब ये सिंहासन बत्तीसी कहा मिलेगा।बचपन मे "सिंहासन बत्तीसी" की कहानी सुनी थी उज्जैन की,मै उज्जैन पहुचा किन्तु कुछ विशेष प्राप्त नही हुआ,दर्शन हुए सिंहासन के जो वहां है।खैर तलाश चलती रही 3 वर्ष।3वर्ष बाद स्वप्न में फिर उन्ही महात्मा के दर्शन हुए इस बार उन्होंने बताया कि मंत्र जाप मुह बंद कर करना है और दाँतो को आपस मे मिला कर जिव्हा  को तालु से सटाकर जाप करना है यही आसान सिंहासन बत्तीसी है इसपे जाप कर।
अब उस स्वपन का उत्तर प्राप्त हो चुका था इसके बाद इस विषय मे मैंने बहुत शोध किया और जो कुछ पाया उसके कुछ अंशो को आपकी सेवा में प्रस्तुत किया है।

इस पोस्ट को लिखकर किसी भक्त की भावना एवं विश्वास आहत हुआ हो तो कृपया क्षमा करें।

।।कथा।।
यह सिंहासन राजा भोज को विचित्र परिस्थिति में प्राप्त होता है। एक दिन राजा भोज को मालूम होता है कि एक साधारण-सा चरवाहा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात है, जबकि वह बिल्कुल अनपढ़ है तथा पुश्तैनी रुप से उनके ही राज्य के कुम्हारों की गायें, भैंसे तथा बकरियाँ चराता है। जब राजा भोज ने तहक़ीक़ात कराई तो पता चला कि वह चरवाहा सारे फ़ैसले एक टीले पर चढ़कर करता है। राजा भोज की जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने खुद भेष बदलकर उस चरवाहे को एक जटिल मामले में फैसला करते देखा। उसके फैसले और आत्मविश्वास से भोज इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने उससे उसकी इस अद्वितीय क्षमता के बारे में जानना चाहा। जब चरवाहे ने जिसका नाम चन्द्रभान था बताया कि उसमें यह शक्ति टीले पर बैठने के बाद स्वत: चली आती है, भोज ने सोचविचार कर टीले को खुदवाकर देखने का फैसला किया। जब खुदाई सम्पन्न हुई तो एक राजसिंहासन मिट्टी में दबा दिखा। यह सिंहासन कारीगरी का अभूतपूर्व रुप प्रस्तुत करता था। इसमें बत्तीस पुतलियाँ लगी थीं तथा कीमती रत्न जड़े हुए थे। जब धूल-मिट्टी की सफ़ाई हुई तो सिंहासन की सुन्दरता देखते बनती थी। उसे उठाकर महल लाया गया तथा शुभ मुहूर्त में राजा का बैठना निश्चित किया गया। ज्योंहि राजा ने बैठने का प्रयास किया सारी पुतलियाँ राजा का उपहास करने लगीं। खिलखिलाने का कारण पूछने पर सारी पुतलियाँ एक-एक कर विक्रमादित्य की कहानी सुनाने लगीं तथा बोली कि इस सिंहासन जो कि राजा विक्रमादित्य का है, पर बैठने वाला उसकी तरह योग्य, पराक्रमी, दानवीर तथा विवेकशील होना चाहिए।

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।। राहुलनाथ।।™
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चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु निर्देशन के साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

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