रविवार, 26 मार्च 2017

नाकारात्मक दृष्टिकोण का हनन करे

नाकारात्मक दृष्टिकोण का हनन करे
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सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाये।यदि यकीं ना होतो
याद करे उस अँधेरे को,उस काल कोठरी को ,जो अपनी माता के गर्भ में आपने काटा।किसी ने 8 महीने किसीने 9 महीने और किसी ने नौ महीने दस दिन तक साधना की है सत्य की ।।।किसी भी बाहर की शक्ति में अपनेआप की तलाश करने से अच्छा भीतर तलाश करे?अपनी तलाश करे ।अपने भीतर तलाश करे।उस अँधेरे तक जाए ।जहाँ से आपका जन्म हुआ है।
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जयश्री महाँकाल
।।राहुलनाथ ।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
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शनिवार, 25 मार्च 2017

अकेली यात्रा

अकेली यात्रा
आप जो भी है जैसे भी है जहां कही भी है आप अपनी साधना के मार्ग में तत्पर है और अपने आपको हमेशा तैयार रखते है तो समय आने पर मैं आपको साधना के अगले स्तर पर ले जाऊंगा।बस किसी के समान ना बने ,किसी की कॉपी ना करे ,ना राम बने ना रहीम बने ,ना गुरु बने ,ना शिष्य,मात्र जीव बने ।एक निर्मल एक कोमल जीव,जो सबसे प्रेम करता हो किसी में भेद ना करता हो,मानव तो दूर जो जीवो में भी भेद ना करे।ना काले को अपनी पसंद बनाये ,ना भगवे ,नीले,पिले,हरे को ।सब को समान रुप से देखे।जो लाल है काला,पिला,नीला,हरा,भगवा है सब एक मात्र तुममे है जो ये ना समझा वो अवश्य हिस्सो हिस्सो में बटेगा,क्योकि वो स्वयं बटने को तैयार है।प्रवेश द्वार खुला हो तो,पशु अवश्य घर में प्रवेश करेंगे,इसमें पशुओं का दोष नहीं,सभी मार्ग बंद कर दो कोई प्रवेश ना कर पाए,कोई भटका ना पाये।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
जिसे मानने के लिए आप बाध्य नहीं।
  "नाथ भक्त"
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36 गढ़

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

मैं वही तुझे मिलूंगा जहां,अभी तक तूने मुझे तलाशा नहीं।।

मैं वही तुझे मिलूंगा जहां,अभी तक तूने मुझे तलाशा नहीं।।

ज्ञान की प्राप्ति होगी आत्म मंथन से और आत्म मंथन होगा एकांकी पन मे,और एकान्त घटता है भीतर की,बाहर कुछ भी नहीं होता,यदि मैं सोचता हूं कि मैं घर छोड़ दू,रिश्ते-नाते छोड़ दू,एकांत की तलाश में किसी आश्रम में चले जाऊ किसी जंगल में चले जाऊ तो ,शायद एकांत मिलेगा।किन्तु हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता,हर तरफ सिर्फ कोलाहल है आश्रम में गुरु भाइयो का,गुरुओ का ,नियमो का,तो जंगल में पशु-पक्षियों का,पेड़ पौधों का।
नहीं मिलेगा कुछ बाहर ,बाहर कुछ हो तो मिले?
एकांत में मिलेगा अवश्य मिलेगा जहां आप है वही सब का त्याग करने से ।सबके बीच रहके अलग होने से।और मैं तो कहता हूं सब कार्य करके जो समय बचे उसमे एकांत प्राप्त होगा।रात्रि में निद्रा मैया की गोद में पनाह लेने के पहले एकांत प्राप्त होगा।दिन भर माता-पिता,भाई-बहन और पति-पत्नी जैसे सभी रिश्तो में बंधे रहो,भेष बदलते रहो और जब इन सब का मन बहला लो ,अपने कर्त्तव्य निभा लो तब एक क्षण के लिए स्वयं के लिए जी लो ,ये एक क्षण का स्वयं के लिए जीना ही एकान्त है।
बहुत साधू बन गए संत बन गए इस एकान्त की आकांक्षा में ,और वे स्वयं ,स्वयं भी ना रहे ,मात्र एक दिखावटी अभिनय को ही गुरु मान साधने लगे।बहुत एकान्त की खोज में घर से चले गए ,मित्र-बंधुओ का त्याग कर चले गए और जब वे एकान्त में पहुचे तो उन्हें माता-पिता,भाई-बंधू को तो छोड़ो वो अपने पाले पशुओं को भी ना भूल पाये।वापस भी ना आ पाए आते भी कैसे अहंकार से सब कुछ छोड़ने का संकल्प ले के जो वो निकले थे।घर छोड़ साधू बनना आसान किन्तु साधू से साधुत्व छोड़ गृहस्त बनना बहुत मुश्किल जो है।
नहीं मिलेगा,नहीं मिलेगा,कभी नहीं मिलेगा ये एकान्त कभी नहीं मिलेगा।जब तक स्वयं में एकान्त ना पैदा हो ये कभी नहीं मिलेगा और जब तक एकान्त नहीं मिलेगा तब तक आत्म मंथन नहीं होगा और जब तक आत्म मंथन नहीं होगा तब तक ज्ञान नहीं मिलेगा।
टी.वी.देखो,मोबाइल चलाओ,फेसटीबुक चलाओ,लोगो से बहुत सारी बाते करे ,लड़ाई करे-झगड़ा करे,जो भी करे एकान्त को पास भटकने भी ना दे।किन्तु उसे घटना होगा ना,तो वो घट जाएगा।कही भीतर के अँधेरे में,कही भीतर की तन्हाइयो में और कही भीतर के प्रश्न करने वाले मन में।कभी सुना है फूलो को भीड़ में दिन में खिलते हुए,कभी देखा है फलो को दिन की रौशनी या भीड़ में पनपते हुए ,नहीं कभी ।प्रकृति जीती है तन्हाई में एकान्त में ,बहुत शर्म है छुई-मुई जैसी इसमें ,भीड़ से ये शर्माती और अँधेरे में एकान्त में ये अपनी छठा बिखेरती है।
इस एकांकी से सब डरते है आज के युग में इसे बोर होना कहते है और सिद्धो और सच्चे भक्तो को इस बोर और पकाऊ मार्ग में चल कर ही शिव मिलते है।
जयश्री महाकाल
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़,भारत

बुधवार, 22 मार्च 2017

दशंद्वार

दशंद्वार। 
गुरुदेव उवाच सभी जीवों सिर (खोपड़ी) के मध्य में लगभग 1 सेमी नीचे दसवाँ द्वार उपस्थित होता है । यहाँ अखण्ड अनहद ध्वनि निरन्तर होती रही है । एक प्रकार का गुंजन होता रहता है यह गुंजन झींगुर जैसी आवाज के समान होता है इस आवाज की प्रत्यक्ष अनुभूति के लिए गहन रात्रि के समय हमें खेत-खलियान,जंगल में जहां झाड़ियां अधिक हो वहां अकेले जा कर सुनना चाहिए।योगियो-सिद्धो,संत-महात्माओं ने इसे ही दशम द्वार कहा है।यह स्थान मोक्ष का द्वार है ।यदि कोई व्यक्ति इस द्वार तक किसी विधि द्वारा पहुँच जाये तो  वो इस ध्वनि को सुनने लगता है गहन ध्यान एवं योग की अवस्था में इस स्थान तक पहुचा जा सकता है।इस स्थान में पहुचाने के बाद इस दशम द्वार से योगी को पार होना होता है यहां से पार होना ही मोक्ष की तरफ बढ़ना है जो की सामान्य अवस्था में मनुष्य यहाँ नहीं पहुच पाता,तो उसका पुनर्जन्म निश्चित रूप से होता है।
कुन्डलीनी साधक हो या अद्वैत,दर्शन सभी का उद्देश्य इस द्वार को पार करना ही होता है किन्तु इस द्वार से पहले पड़ने वाले 9 द्वारो के साधना में साधको को ,हर द्वार पर सिद्धियों की प्राप्ति होती है और वो उन सिद्धियों के आकर्षण में फस कर वही रुक जाता है उसी स्थान में सार जीवन यापन कर देता है।किसी भी एक स्थान में स्थित हो कर साधक यदि मृत्यु को प्राप्त करता है तो आगे के द्वारो का सफर पुनः प्रारब्ध के द्वार की अनुभूतियों के अनुसार वो प्राप्त कर वो आगे के द्वार की खोज में लग जाता है।और यह यात्रा चलती रहती है जब तक वह दशम द्वार नहीं पहुच पाता,यहां अवश्य नहीं कोई बुद्धि के आने के बाद वो दस वर्षों में इस द्वार तक पहुचे ,हो सकता है महामाया के जाल में फस कर वह एक ही स्थान में कई जन्मों तक रुका रहे।किन्तु हाँ गुरु के प्राप्ति मात्र से ,गुरु के संकेत मात्र से ,गुरु के स्पन्दन के मात्र से वो एक ही जन्म में इस द्वार को भेद सकता है।ये जितने भी देवी-देवता फिर वो किसी भी धर्म के हो ,वे 9 द्वार तक ही सिमित है।इसके आगे गुरुधाम है।
मृत्यु के समय आपकी गति किस लोक में होगी ये निर्भर करता है कि आपके प्राण कहा से निकलते है जैसे बाकी 9 द्वारो में ,2कान से प्राण निकलने से प्रेतयोनि,2 आँख से किट-पतंगों की योनि,2 नाक से पक्षियोनि,1मुख से पशुयोनि,1लिंग या योनि से जल जीवो की योनि एवं 1 गुदा से प्राण निकलने पर नरक की प्राप्ति होती है।
आपके समक्ष जो भी तंत्र मंत्र यंत्र ,साधनाये-सिद्धियाँ, चमत्कार उपस्थित है ये सब 9 द्वारो की फांस है ।ये सभी फाँसो से निकलकर ही हम उस परम परमात्मा की शरण प्राप्त कर सकते है।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार जिसमे कुछ अंशो में स्मृतियों का सहयोग लिया गया है
।।जयश्री महाकाल महादेव।।
************राहुलनाथ*************

रविवार, 5 मार्च 2017

स्त्रीगमन और इच्छानुसार संतान की प्राप्ति

स्त्रीगमन और इच्छानुसार संतान की प्राप्ति
स्त्रीगमन आज के युग में लालसा पूर्ण करने के लिए ही सामान्य रूप से किया जाता है और संतान की इच्छा से भी किया जाए तो बालक की कामना अवचेतन में रहती है।प्राचीन काल में स्थिति ऐसी नहीं थी प्राचीन काल में स्त्री गमन का मुख्य उद्देश्य संतान की प्राप्ति हुआ करती थी जिसके लिए वे गमन के नियमो का पालन सुंदर व स्वस्थ सन्तान की प्राप्ति के लिए किया करते थे।प्राचीन काल में वे संतान उत्पन्न करने को अपना धर्म एवं कर्तव्य समझा करते थे।आज स्थिति ठीक इसके विपरीत है।आयुर्वेद के अनुसार 21 दिनों में वीर्य परिपक्व हो जाता है और एक सफल एवम सुन्दर संतान को उतपन्न करने की क्षमता रखता है ।
शास्त्रो के अनुसार ऋतुकाल के समय की रात्रियों में स्त्री प्रसंग करने से गर्भ ठहरने की संभावना बनी रहती है एवं वीर्य नष्ट नहीं होता।वीर्य समस्त शरीरस्थ धातुओं का सार है वीर्य का नष्ट होना पुरुषार्थ के नष्ट होने के समान है।
मनु संहिता के अनुसार अमावस,चौदस की रात्रि को प्रसंग नहीं करना चाहिए।स्त्रियों का ऋतुकाल सामान्यतः 16 रात्रियों का होता है जिसमे से प्रथम चार रात्रियों एवं ग्यारहवीं,तेरहवीं रात्रि को प्रसंग करना ,पुरुष के लिए हानिकारक होता है और पुरुष भयंकर रोगों से ग्रस्त हो सकत है।रजस्वला स्त्री के साथ प्रसंग करने दृष्टि आयु,तेज एवं पराक्रम की हानि होती है रजस्वला काल में प्रथम चार दिनों में रज की मात्रा,गति एवं उष्णता तीव्र होती है जिससे वीर्य स्थिर नहीं हो पाता ,इस समय रज की उष्णता अत्यधिक होने से,ये उष्णता पुरुष के रक्त में मिल कर,रक्त को गर्म कर देती है इसके बाद ये गर्मी मस्तिष्क तक पहुच कर बुद्धि को नष्ट कर देती है।शेष दस रात्रि में आवश्यकतानुसार प्रसंग किया जा सकता है।
शास्त्रो के अनुसार ऋतुकाल के उपरान्त चौथी,छठी,आठवी,दसवीं और बारहवीं रात्रि में संयम से रति करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना होती है।
यहाँ समझने की बात ये है कि ये रात्रियाँ क्रमशः एक के बाद एक सर्वश्रेष्ठ है जैसे चौथे से छठी,छठी से आठवीं ,आठवी से ,दसवीं, और दसवीं से बारहवीं सर्वश्रेष्ठ होती है।पाँचवी,सातवी,नवी और ग्यारवी रात्रि कन्या के जन्म के लिए क्रमशः सर्वोत्तम होते जाती है।इसके विपरीत तेरहवीं,चौदहवी,सोलहवीं रात्रि गर्भधान के लिए उचित नहीं होती।
।।क्रमशः।।
मित्रों यदि आपको यह विषय पसंद आता है तो कृपया कमेन्ट बॉक्स में या इनबॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य करे जिससे भविष्य में इस विषय को विस्तृत रूप से लिखने का निर्णय लिया जा सके ।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़
+919827374074

शनिवार, 4 मार्च 2017

काला जादू से पीड़ित एक स्त्री की सत्य घटना।।

काला जादू से पीड़ित एक स्त्री की सत्य घटना।।
बात दो वर्ष पुरानी है एक स्त्री को मेरे पास लाया गया था उस स्त्री को किसी प्रकार की बाधा हो गई थी उसने सब से बात करना बंद कर दिया था उसका शरीर हर समय तपता रहता था मासिक धर्म विकृत हो चुका था और हर समय वो गुमसुम रहा करती थी एकटक दीवारों को और छत को देखते रहते थी भोजन पानी बंद हो चुका था,स्नान ध्यान भी बंद था और शरीर से दुर्गन्ध आने लगी थी।इस स्त्री के घर वालो ने उसे बहुत से बाबा,तांत्रिको और भूत-प्रेत उतारने वाले मौलवियों को दिखाया था किंतु कोई लाभ नहीं हो रहा था।
उस परिवार को किसी ने मेरा पता उन्हें बताया था वे आये और मुझको उसे ठीक करने का आग्रह करने लगे।मैंने कहा कि मैं कोई बाबा तांत्रिक नही हूं ,हाँ इस विषय में थोड़ा बहुत अध्यन किया है बाकी सब गुरुदेव का आशीर्वाद है। आप मुझे क्षमा करे किन्तु वे नहीं माने ,रोज प्रातः घर वे पहुच जाते थे।
हार कर एक दिन मैंने उस कन्या के माता-पिता से बात करी।मैने उनसे पूछा की क्या? इस स्त्री की परेशानी जब से शुरू हुई है तब से कोई नया व्यक्ति जीवन में आया है?माता ने बताया कि कुछ दिन पहले घर में एक काम करने वाली स्त्री को रखा गया है और उसके आने के बाद ही शायद ये सब हो रहा हो।वो काम करने वाली स्त्री इस परिवार के साथ ही घर के पीछे बने एक कमरे में रहा करती थी।मैंने उस परिवार को निर्देश दिए की इस स्त्री के ऊपर नजर रखे और कुछ भी संदिग्ध लगे तो मुझसे आ के कहे।परिवार ने उस स्त्री पे नजर रखनी शुरू कर दी।इस नजर रखने के समय में बाधित स्त्री को भगवान महाकाल के लिङ्ग पे काला धागा 27 बार लपेट कर ,27 महाकाल के नाम से गाँठ बाँध कर ,इस धागे को सुरक्षा हेतु बाधित स्त्री के कमर में सुरक्षा हेतु बाँध दिया गया था।जिससे उसे लाभ हो रहा था किंतु वो पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो पाई थी।
करीब 15 दिनों बाद ये परिवार मुझसे मिलने आया और उन्होंने बताया कि उनकी काम करने वाली नौकरानी तो सामान्य ही है किंतु वो रात्रि में मूत्र विसर्जन हेतु घर से थोड़ी दूर बबूल के वृक्ष के नीचे ही जाती थी जबकि उसके कमरे में बाथरुम उपलब्ध है।बात तो सोचने वाली थी।
मैंने उस परिवार से कहा कि रविवार के दोपहर उसे किसी काम से घर से बाहर 2 घंटे के लिए भेज दे रविवार को मैं आता हूं फिर समझते है।
परिवार ने वैसा ही किया ,रविवार को उस परिवार के लोगो के साथ मैं उस बबूल के पेड़ के नीचे पंहुचा और उस फिर उस स्थान को खोदा गया।वहां खुदाई के बाद हमें उस बाधित स्त्री के अधोवस्त्र,मासिकधर्म के कपडे और बालों के गुच्छे प्राप्त हुए ,जिन्हें विधि पूर्वक निकाल कर जला दिया गया।जिससे उस स्त्री की बाधा शांत हो गई।काम वाली जब वापस आई तो उसे डरा धमकाकर पूछा गया कि ,उसने ऐसा क्यों किया तो उसका उत्तर था कि वो कालजादू सिख रही है,बस और कोई कारण नहीं है।उसे नौकरी से निकाल दिया गया।
मित्रो इस पूरे वृत्तांत में आपको समझ आया होगा की मैंने कोई जादू टोना नहीं किया मात्र सावधानी से निरक्षण ही किया और समस्या का समाधान हो गया।इसी प्रकार हर समस्या का समाधान उसमे ही छुपा होता है।

सावधानी:-मित्रो अपनी सावधानी आप स्वयं करे ,अपने अधोवस्त्र,उतारे गए कपडे जिनमे आपका पसीना लगा हुआ हो,आपके कंघी किये बाल,नाख़ून और मासिक धर्म के कपडे ,इन्हें अपने हाथों से निष्क्रिय करे।किसी के हाथ ना पड़ने दे।ये सभी वस्तुओं में आपकी ऊर्जा संग्रहित होती है और ये वस्तुएं अलग होने के बाद भी आपके ऊर्जा शरीर से कुछ दिनों तक जुडी रहती है।आपकी थोड़ी सी असावधानी आपको एवं आपके परिवार को परेशानी में डाल सकती है।सतर्क रहें सावधान रहें।
जहाँ भक्त की भक्ति हो सकती है वहां शैतान की शक्ति भी हो सकती है।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36 गढ़

वास्तु अनुसार सीढ़ी

वास्तु अनुसार सीढ़ी:-घर की सीढ़ी सामने की ओर से नहीं होनी चाहिए, और सीढ़ी ऐसी जगह पर होनी चाहिए कि घर में घूसने वाले व्यक्ति को यह सामने नजर नहीं आनी चाहिए.
SHIVSHAKTI ONLINE CONSULTATION
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बुधवार, 1 मार्च 2017

देवी मांस का भक्षण करती है

ये सत्य है कि देवी मांस का भक्षण करती है किंतु ये मांस किसी पशु-पक्षी,जिव-जंतु का नहीं बल्कि साधक का होता है,जैसे ही वो शक्ति श्रीराम के धनुष से निकले बाण की तरह जागती है तो सर्वप्रथम वो साधक के शरीर के मांस का भक्षण करती है और साधक मांस रहित होने लगता है।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़

अघोर मंत्र

महाकाली के अघोर मंत्रो को जपते जपते एक साधक मृत्यु शैया तक पहुच गया था ,शायद कोई गलती करी होगी ।अब जब वो पिछले 3 महीने से महामृत्युंजय मंत्र धारण कर जाप कर रहा है अब पहले से बेहतर है और वापस आज उन्होंने नौकरी प्रारम्भ कर दी है।
विशेष:-तंत्रोक्त,अघोर मंत्रो को बिना सोचे समझे ना जाप करे ,प्राण हानि भी संभव है सावधान रहे ,मंत्र साधना जीवन से खिलवाड़ के लिए नहीं है।
।व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़