गुरुवार, 23 नवंबर 2017

त्रिपुर सुंदरी षोडशी साधना

त्रिपुर सुंदरी षोडशी साधना
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देवी यौवन और आकर्षण की देवी है, जिनके पूजन द्वारा आकर्षण व सौंदर्यता प्राप्त होती है। दाम्पत्य जीवन में कलह, किसी प्रिय जन का रूठना, सम्मान व पद प्राप्त करना आदि
या सभी प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने वाली।
शारीरिक वर्ण : उगते हुए सूर्य के समान।

मुख्य नाम : महा त्रिपुरसुंदरी।
अन्य नाम : श्री विद्या, त्रिपुरा, श्री सुंदरी, राजराजेश्वरी, ललित, षोडशी, कामेश्वरी, मीनाक्षी।
भैरव : कामेश्वर।
त्रिपुर सुंदरी देवी:१. शाम्भवी २. श्यामा तथा ३. विद्या
तीन भैरव: परमशिव, सदाशिव तथा रुद्र
षोडसी माता का स्वरूप:माता के चार हाथ हैं। चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित है।
तिथि : मार्गशीर्ष पूर्णिमा।
कुल : श्री कुल ।
दिशा : नैऋत्य कोण।
स्वभाव : सौम्य।
यंत्र:  अलौकिक तथा दिव्य शक्ति दायक श्रीयंत्र
सम्बंधित तीर्थ स्थान या मंदिर : कामाख्या मंदिर, ५१ शक्ति पीठों में सर्वश्रेष्ठ, योनि पीठ गुवहाटी, आसाम।
कार्य : देवी यौवन और आकर्षण की देवी है, जिनके पूजन द्वारा आकर्षण व सौंदर्यता प्राप्त होती है। दाम्पत्य जीवन में कलह, किसी प्रिय जन का रूठना, सम्मान व पद प्राप्त करना आदि
या सभी प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने वाली।
शारीरिक वर्ण : उगते हुए सूर्य के समान।
संबंधित ग्रंथ:‘‘भैरवयामल तंत्र और शक्ति लहरी’’

।।गुरु पूजन विधि प्रारम्भ।।
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सतनमो आदेश गुरुजी को आदेश ॐ गुरुजी आदेश
श्री गुरुदेवेभ्यो नमः

।।आसन ।।
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‘सुखपूर्वक स्थिरता से बहुत काल तक बैठने का नाम आसन है।‘
आसन अनेको प्रकार के होते है। अनमे से आत्मसंयम चा‍हने वाले पुरूष के लिए सिद्धासन, पद्मासन, और स्वास्तिकासन – ये तीन उपयोगी माने गये है। इनमे से कोई सा भी आसन हो, परंतु मेरूदण्ड, मस्तक और ग्रीवा को सीधा अवश्ये रखना चाहिये और दृष्टि नासिकाग्र पर अथवा भृकुटी में रखनी चाहिये। आलस्य न सतावे तो आंखे मुंद कर भी बैठ सकते ‍है। जिस आसन से जो पुरूष सुखपूर्वक दीर्घकाल तक बैठ सके, वही उसके लिए उत्तम आसन है।
शरीर की स्वाभाविक चेष्टा के शिथिल करने पर अर्थात् इनसे उपराम होने पर अथवा अनन्त परमात्मा में मन के तन्मय होने पर आसन की सिद्धि होती है। कम से कम एक पहर यानी तीन घंटे तक एक आसन से सुखपूर्वक स्थिर और अचल भाव से बैठने को आसनासिद्धि कहते है।

।।आसन मंत्र।।
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सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी।
ऊँ गुरूजी मन मारू मैदा करू, करू चकनाचूर। पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बेठू आसन पूर।श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।

।।श्री गुरु ध्यान ।।
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ओम गुरुजी।ओमकार आदिनाथ ज्योति स्वरूप बोलियेे। उदयनाथ पार्वती धरती स्वरूप बोलियेे। सत्यनाथ ब्रहमाजी जल स्वरूप बोलियेे। सन्तोषनाथ विष्णुजी खडगखाण्डा तेज स्वरूप बोलियेे। अचल अचम्भेनाथ शेष वायु स्वरूप बोलियेे। गजबलि गजकंथडानाथ गणेषजी गज हसित स्वरूप बोलियेे। ज्ञानपारखी सिद्ध चौरंगीनाथ चन्द्रमा अठारह हजार वनस्पति स्वरूप बोलियेे। मायास्वरूपी रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ   माया मत्स्यस्वरूपी बोलियेे। घटे पिण्डे नवनिरन्तरे रक्षा करन्ते श्री शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ बाल स्वरूप बोलियेे। इतना नवनाथ स्वरूप मंत्र सम्पूर्ण भया, अनन्त कोटि सिद्धों मेंं नाथजी ने कथ पढ़ सुनाया। नाथजी गुरुजी को आदेष! आदेष!!

।।धूप लगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी। धूप कीजे, धूपीया कीजे वासना कीजे।जहां धूप तहां वास जहां वास तहां देव जहां देव तहां गुरूदेव जहां गुरूदेव तहां पूजा।
अलख निरंजन ओर नही दूजा निरंजन धूप भया प्रकाशा। प्रात: धूप-संध्या धूप त्रिकाल धूप भया संजोग।
गौ घृत गुग्गल वास, तृप्त हो श्री शम्भुजती गुरू गोरक्षनाथ।
इतना धूप मन्त्र सम्पूर्ण भया नाथजी गुरू जी को आदेश।

।।ज्योति जगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश।
ऊँ गुरूजी। जोत जोत महाजोत, सकल जोत जगाय, तूमको पूजे सकल संसार ज्योत माता ईश्वरी।
तू मेरी धर्म की माता मैं तेरा धर्म का पूत ऊँ ज्योति पुरूषाय विद्येह महाज्योति पुरूषाय धीमहि तन्नो ज्योति निरंजन प्रचोदयात्॥
अत: धूप प्रज्वलित करें।

।।रक्षा मन्त्र।।
ॐ सीस राखे साइंया श्रवण सिरजन हार ।
नैन राखे नरहरी नासा अपरग पार ।
मुख रक्षा माधवे कंठ रखा करतार।
हृदये हरी रक्षा करे नाभी त्रिभुवन सार ।
जंघा रक्षा जगदीश करे पिंडी पालनहार।
सीर रक्षा गोविन्द की पगतली परम उदार
आगे रखे राम जी पीछे रावण हार।
वाम दाहिणे राखिले कर गृही करतार ।
जम डंक लागे नाही विघन काल ते दूर।
राम रक्षा जन की करे बजे अनहद तुर ।
कलेजो रखे केसवा जिभ्या कू जगदीश ।
आतम कं अलख रखे जीव को जोतिश ।
राख रख सरनागति जीव को एके बार ।।
संतो की रक्षा करे शिव गुरु गोरख़ सत गुरु सृजनहार ।।
(इस मंत्र को 7 पढ़कर शरीर पे फूँक लगाए)

।।त्रिपुर सुंदरी षोडशी पूजन प्रारम्भ।।
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।।त्रिपुर सुंदरी ध्यान मंत्र।।

बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों।

नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।।

हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती।

श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।

।।त्रिपुर सुंदरी आसन मंत्र।।
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ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमंगले
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै आसनं समर्पयामि

।।त्रिपुर सुंदरीआवाहन मंत्र।।
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ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।

।।त्रिपुर सुंदरी धूप मंत्रं।।
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ॐ गुग्गुलम घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम ।
दशांग ग्रसताम धूपम् त्रिपुरसुन्दर्यै देवि नमोस्तुते ।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै धूपं समर्पयामि

।।त्रिपुर सुंदरी दिप मंत्रं।।
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ॐ मार्तण्ड मंडळांतस्थ चन्द्र बिंबाग्नि तेजसाम्
निधानं देवि त्रिपुरसुन्दर्यै दीपोअयं निर्मितस्तव भक्तितः
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुन्दर्यै दीपं दर्शयामि )

।।पुष्प समर्पण ।।
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ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते
यावत्तवां पूजयिष्यामि तावद्देवी स्थिरा भव

।।नमस्कार मंत्रं ।।
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शत्रुनाशकरे देवि ! सर्व सम्पत्करे शुभे
सर्व देवस्तुते ! त्रिपुरसुन्दर्यै ! त्वां नमाम्यहम

इसके बाद देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित कर दें। इसे तिलक करें और धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजन पूर्ण करें अब कमल गट्टे की माला लेकर करीब 108 बार या संकल्पानुसार नीचे लिखे मंत्र का जप करें

षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी मूल मंत्रं।।
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ऊं ह्रीं क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।

।।क्षमाप्रार्थना ।।
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ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः

जाप के अंत मे अपने हाथ मे पुष्प,अक्षत,जल ले कर अपने किये गए जाप पूजन को देवी के बाये हाथ मे संकल्प द्वारा प्रदान कर दंडवत प्रणाम करना चाहिए।

।।विसर्जन मंत्रं।।
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पूजकन के अंत में अपने हाथ में चावल,फूल लेकर देवी भगवतीत्रिपुर सुंदरी  का इस मंत्र को पढ़ कर  विसर्जन करना चाहिए-

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि त्रिपुर सुंदरी।पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी साबर मंत्रं
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ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला |योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता |

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं

।।श्री त्रिपुरसुन्दरी स्तोत्रम्।।
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कदंबवनचारिणीं मुनिकदम्बकादंविनीं,
नितंबजितभूधरां सुरनितंबिनीसेविताम् |
नवंबुरुहलोचनामभिनवांबुदश्यामलां,
त्रिलोचनकुटुम्बिनीं त्रिपुरसुंदरीमाश्रये ॥|1|

कदंबवनवासिनीं कनकवल्लकीधारिणीं,
महार्हमणिहारिणीं मुखसमुल्लसद्वारुणींम् |
दया विभव कारिणी विशद लोचनी चारिणी,
त्रिलोचन कुटुम्बिनी त्रिपुर सुंदरी माश्रये ॥|2|

कदंबवनशालया कुचभरोल्लसन्मालया,
कुचोपमितशैलया गुरुकृपालसद्वेलया |
मदारुणकपोलया मधुरगीतवाचालया ,
कयापि घननीलया कवचिता वयं लीलया ॥|3|

कदंबवनमध्यगां कनकमंडलोपस्थितां,
षडंबरुहवासिनीं सततसिद्धसौदामिनीम् |
विडंवितजपारुचिं विकचचंद्रचूडामणिं ,
त्रिलोचनकुटुंबिनीं त्रिपुरसुंदरीमाश्रये ॥|4|

कुचांचितविपंचिकां कुटिलकुंतलालंकृतां ,
कुशेशयनिवासिनीं कुटिलचित्तविद्वेषिणीम् |
मदारुणविलोचनां मनसिजारिसंमोहिनीं ,
मतंगमुनिकन्यकां मधुरभाषिणीमाश्रये ॥|5|

स्मरेत्प्रथमपुष्प्णीं रुधिरबिन्दुनीलांबरां,
गृहीतमधुपत्रिकां मधुविघूर्णनेत्रांचलाम्‌ |
घनस्तनभरोन्नतां गलितचूलिकां श्यामलां,
त्रिलोचनकुटंबिनीं त्रिपुरसुंदरीमाश्रये ॥|6|

सकुंकुमविलेपनामलकचुंबिकस्तूरिकां ,
समंदहसितेक्षणां सशरचापपाशांकुशाम् |
असेष जनमोहिनी मरूण माल्य भुषाम्बरा,
जपाकुशुम भाशुरां जपविधौ स्मराम्यम्बिकाम ॥|7|

पुरम्दरपुरंध्रिकां चिकुरबंधसैरंध्रिकां ,
पितामहपतिव्रतां पटुपटीरचर्चारताम्‌ |
मुकुंदरमणीं मणिलसदलंक्रियाकारिणीं,
भजामि भुवनांबिकां सुरवधूटिकाचेटिकाम् ॥|8|

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीमच्छंकराचार्य विरचितं त्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं संपूर्णम् ।

।। राहुलनाथ।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩

चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है यहां गुरु द्वारा प्रदत्त, तांत्रिक-साबर ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र संभंधित पोस्ट दी जाती है इसे ज्ञानार्थ ही ले ।लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से  साधना सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग,छत्तीसगढ़ मान्य होगा।

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

बिना गुरु "मंत्र साधना" कैसे करे।

बिना गुरु "मंत्र साधना" कैसे करे।
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मंत्र साधना में गुरु का होना अवश्य है मंत्र साधना में अपने गुरुदेव के चित्र को अपने सामने सफेद वस्त्र के आसन पे विराजमान कर मंत्र साधना करनी चाहिए।यदि साधक के गुरु ना हो तो स्वयं को अपना गुरु मानकर अपनी फोटो या फिर भगवान शिव को ही अपना गुरु मानकर,भगवान शिव का चित्र सामने आसान में बैठा कर साधना करने से साधना में सफलता अवश्य मिलती है।किन्तु उचित यही होगा कि गुरु धारण कर लिया जाए।साधना काल मे यदि आपने गुरु धारण किया है तो स्वप्न के माध्यम से आपके गुरु आपसे संपर्क कर साधक का मार्ग प्रशस्त करते है और स्वयं की फ़ोटो सामने रखने से आपको सपने में अपने ही दर्शन होते है और आपकी आत्माराम गुरु बनकर आपका मार्ग प्रशस्त करती है।
स्वयं को गुरु मानकर साधना करते समय अपने अस्तित्व का भान नही रहना चाहिए एवं अपने मन वचन कर्म अस्तित्व में गुरु का ही अस्तित्व स्वीकार कर,उस समय आपके भीतर जो भी विचार,आज्ञा या इनकार प्रकट हो या अचानक कोई वाणी-सबद मुख से प्रगट हो उसे गुरु की आज्ञा समझ कर निसन्देह स्वीकार कर लेना चाहिए।उन आदेशो की अवहेलना नही करनी चाहिए फिर वो विचार रसगुल्ला खाने का हो,वस्त्र उतारने का हो,मदिरा या खीर के सेवन का हो,जो भी हो उसे पूरा करना चाहिए,इसकी अवहेलना नही करनी चाहिए।साधना काल में अपने ज्ञान,अनुभवों एवं स्मृतियों को अपने से अलग कर देना चाहिए।सिर्फ और सिर्फ गुरु के आदेश का पालन करना चाहिए किन्तु इन आदेशों को अपने भौतिक गुरु के अलावा किसी अन्य को नही बताना चाहिए अन्यथा संकट का सामना करना पड़ सकता है हो सकता ये आदेश माँस-मदिरा के सेवन ना करने वालो को ,सेवन का आदेश हो या फिर माँस-मदिरा के सेवन करने वालो को इनका सेवन करने की मनाई हो।जो भी हो गुरु वचन समझ कर पूरा करना चाहिए।किसी भी प्रकार से गुरु का निरादर या बुराई करने से भयंकर दंड की संभावना होती है अतः मन की इस आदत का बहिष्कार करे।

साधना काल मे गुरु की फोटो के अलावा अपने इष्ट या आप जिसकी साधना कर रहे है उनकी फोटो भी आसन पे रखना चाहिए।स्मरण रखे एक बार संकल्प ले कर जाप एक निश्चित संख्या में ही किया जाए एवम संकल्पित दिनों तक जाप अवश्य करना चाहिए।
मंत्र साधना का प्रारम्भ किसी भी शुभ मुहूर्त,नक्षत्र शुभ दिन,शुभ तिथि,ग्रहणकाल या नवरात्रि में करना चाहिए एवं रोज जितनी माला जाप की जाए उसका नित्य एक छोटा सा हवन करना चाहिए।
आप जिस देवता की साधना करते है उनके वर्ण रंग के अनुसार ही वस्त्र,आसन, फल-फूल एवं मिष्ठान का चयन कर गौमुखी में रखकर रुद्राक्ष की माला से जाप करना चाहिए।
साधना काल मे मंत्र के जाप की ध्वनि ऐसी रखे कि आपके ओष्ठ तो हिलते रहे किन्तु शब्द् आपके कानो तक नही पहुचना चाहिए।
हवन सामग्री देवताओ के अनुसार धूप,गुगुल,लुभान,सुगन्धबाला,जौ,हवन बुरा,घी,शहद इत्यादि से कर देवताओ के पसंद के फल की नित्य हवन में बलि देनी चाहिए।
क्रमशः

व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©₂₀₁₇
।। राहुलवाणी।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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********मेरी भक्ति गुरु की शक्ति********
चेतावनी:-इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र,व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है जिसे मानने के लिए आप बाध्य नहीं है।अतः हमारी मौलिक संपत्ति है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये इस रूप में उपलब्ध नहीं है|लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से  साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कही भी कॉपी-पेस्ट कर प्रकाषित करना वर्जित है।लेख पसंद आने पे कृपया शेयर करे।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत
🚩JAISHRRE MAHAKAL OSGY🚩

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

शनिदेव की साढ़ेसाती एवं पनौती वर्ष 2017

शनिदेव की साढ़ेसाती एवं पनौती वर्ष 2017
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शनि महाराज  धनु राशि में 26 अक्टूबर 2017 गुरुवार को सायं 6 बजकर 11 मिनट पर लौट आएंगे।
शनिदेव के गोचर, साढ़ेसाती और महादशा का हमारे जीवन में बहुत गहरा असर होता है। इसके प्रभाव से न सिर्फ मनुष्य बल्कि प्रकृति में भी बड़े बदलाव होते हैं। ये बदलाव शुभ और अशुभ दोनों हो सकते हैं। इसका फल राशि और कुंडली में शनि की चाल और स्थिति से तय होता है।

शनि के धनु में प्रवेश करते ही तुला राशि के जातकों को साढ़े साती से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी , इसके अलावा वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि साढ़े साती का अंतिम दौर प्रारंभ हो जायेगा तथा धनु वालों के लिए इसका मध्य भाग प्रारम्भ हो जायेगा और मकर राशि के जातकों के लिए “शनि साढ़े साती” प्रारम्भ हो जाएगी .

पनौती
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जब जन्म राशी से चौथे और आठवें भाव से शनि देव का गमन होता है तब इस गमन काल को शनिदेव की "अढैया या पनौती" कहा जाता है।शनिदेव का यह गमन काल "अढाई" वर्षो का होता है
सामान्य रूप से हर एक आदमी साढ़ेसाती को लेकर डरा व सहमा-सा रहता है। लेकिन, जो जातक सभी की मदद करते हैं, कपट नहीं करते, सदा पुण्य कर्म करते है, ईमानदार रहते हैं, अभिमान नहीं करते हैं उन सभी के लिए शनिदेव कभी भी बाधा नहीं बनते हैं। एेसे सच्चरित्र जातकों के ऊपर हमेशा शनिदेव की कृपा बनी रहती है।
"कन्या राशि" के जातकों के लिए शनि जन्मकालीन चंद्र से चौथे स्थान पर गोचर करता है। इसलिए, कन्या राशि के लिए शनि की छोटी पनौती (ढैय्या) कही जाएगी।
" वृषभ राशि"की बात करें तो शनि जन्मकालीन चंद्र से आठवें स्थान पर से गतिमात होता है। शनि के इस चाल की वजह से वृषभ राशि के जातक इस समय शनि की छोटी पनौती की अवस्था से होकर गुजरेंगे।

विशेष उपाय
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शनि की पनौती चल रही हो तो काले तिल पानी में डाल के ( थोड़े से मुठी भर के नही)  स्नान करें या सप्त धान उबटन वो शरीर पे लगा के स्नान करें | ग्रहों की शांति हो जाती है.... सबकी नौ ग्रहों की शांति और घर में सुख समृधि की वृद्धि हो सकती है | सबसे बड़ी बात डराने वाले लोगों की बातों में न आओ |

नीचे दी गई राशि के जातकों को
ये उपाय अवश्य ही करना चाहिए
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वृश्चिक राशि (न, च) –
शनि की पनौती का अंतिम चरण (चंद्र से दूसरे स्थान पर शनि)

धनु राशि (भ, ध, फ, थ)–
शनि की पनौती के मध्य का चरण (चंद्र के ऊपर से शनि)

मकर राशि (ख, ज) –
शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण (चंद्र से बारहवें में शनि)

कन्या राशि (प, ठ, ण) –
शनि की छोटी पनौती (चंद्र से चौथे स्थान पर शनि)

वृषभ राशि (ब,व,उ) –
शनि की छोटी पनौती (चंद्र से आठवें में शनि की उपस्थिति)

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****।।राहुलनाथ।।****
शिवशक्ति ज्योतिष एवं वास्तु
भिलाई,36 गढ़,भारत
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शनि देव के अशुभ होने की निशानी
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* शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है।
* कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है।
* अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं।
* अचानक घर या दुकान में आग लग सकती है।
* धन, संपत्ति का किसी भी तरह से नाश होता है।
* समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।

शनि बहुत ज्यादा खराब है तो...
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* व्यक्ति पराई स्त्री से संबंध रखकर बर्बाद हो जाता है।
* व्यक्ति जुआ, सट्टा आदि खेलकर बर्बाद हो जाता है।
* व्यक्ति किसी भी मुकदमे में जेल जा सकता है।
* व्यक्ति की मानसिक स्थिति बिगड़ सकती है। वह पागल भी हो सकता है।
* व्यक्ति अत्यधिक शराब पीने का आदी होकर मौत के करीब पहुंच जाता है।
* व्यक्ति किसी भी गंभीर रोग का शिकार होकर अस्पताल में भर्ती हो सकता है।
* भयानक दुर्घटना में व्यक्ति अपंग हो सकता है या मर भी सकता है।

नोट :उपरो‍क्त स्थिति निर्भर करती है शनि ग्रह की कुंडली में स्थिति और व्यक्ति के कर्मों अनुसार।

उपाय वैदिक
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सरल शनि मंत्र व स्तोत्र

(1)सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः
   मंदचार प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु में शनिः
(2)नीलांजन समाभासं रवि पुत्रां यमाग्रजं।
    छाया मार्तण्डसंभूतं तं नामामि शनैश्चरम्।।
(3)प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
(4)ओम शं शनैश्चराय नमः।
         ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
        कण्टकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा।।
         शं शनैश्चराय नमः।
(5)ओम शं शनैश्चराय नमः।
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु कृष्णौ रौद्रान्तको यमः।
सौरि शनैश्चरा मंद पिप्पलादेन संस्थितः।।
ओम शं शनैश्चराय नमः।

नोट:-इन मंत्रो का नित्य 108 बार जाप करे।

दशरथकृत शनि स्तोत्र
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नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।1
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। 2
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।। 3
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।। 4
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।। 5
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।। 6
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।। 7
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।। 8
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।। 9
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।।10

शनि के अन्य उपाय
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* सर्वप्रथम शनि ग्रह के स्वामी भगवान भैरव से माफी मांगते हुए उनकी उपासना करें।
* हनुमान ही शनि के दंश से बचा सकते हैं तो प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ें।
* शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
* तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ और जूता दान देना चाहिए।
* कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं।
* छायादान करें अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापों की क्षमा मांगते हुए रख आएं।
* दांत, नाक और कान सदा साफ रखें।
* अंधे, अपंगों, सेवकों और सफाइकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें।
* कभी भी अहंकार, घमंड न करें, विनम्र बने रहें।
* किसी भी देवी, देवता, गुरु आदि का अपमान न करें।
* शराब पीना, जुआ खेलना, ब्याज का धंधा तुरंत बंद कर दें।
* पराई स्त्री से कभी संबंध न रखें।

शनि की सावधानी
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* यदि शनि कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा।
* यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं।
* अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें।
* उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।

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****।।राहुलनाथ।।****
शिवशक्ति ज्योतिष एवं वास्तु
    भिलाई,36 गढ़,भारत
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