रविवार, 16 अप्रैल 2017

गुरु शरण

जैसे स्वर्ण जलकर,तपकर ही कुंदन बनता है उसी प्रकार बार बार जन्म की पीड़ा सहके,बार-बार मरके,अंत में एक बार जीव,
गुरु शरण में हमेशा के लिए मर जाता है।
फिर ना पैदा होने के लिए।।।
जयश्री महाँकाल
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
||राहुलनाथ ||

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