सोमवार, 19 सितंबर 2022

तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)

#तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)
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#शक्ति_के_विविध_रूप-
माया, महामाया, मूल-प्रकृति, अविद्या, विद्या, अव्यक्त, अव्याकृत, कुण्डलिनी, महेश्वरी, आदिशक्ति, आदिमाया, पराशक्ति, परमेश्वरी, जगदीश्वरी, तमस, अज्ञान ये सभी ‘शक्ति’ के पर्यायवाची हैं।

नवदुर्गा, काली, अष्टलक्ष्मी, नवशक्ति, देवी आदि एक ‘पराशक्ति’ की ही अभिव्यक्तियाँ हैं।

महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली शक्ति के तीन प्रधान व्यक्त स्वरूप हैं। राधा और रुकिमणि लक्ष्मी के ही दूसरे रूप हैं और तारा तथा चण्डी देवी के रूप हैं।

प्रकृति व्यक्त और अव्यक्त है। मूल-प्रकृति अव्यक्त है, और इस भेद जगत का बीज है। इसमें जड़ तथा चेतन अभिन्न रूप में रहते हैं। जब ये शरीर में स्थित मूलाधारचक्र की अधिष्ठात्री देवी बनती है, तब ये ‘डाकिनी’ का रूप धारण कर लेती है; स्वाधिष्ठान चक्र में ये ‘राकिनी’ बन जाती है, मणिपुर चक्र में ये ‘लाकिनी’ के रूप में रहती है, अनाहत में ये ‘काकिनी’ के रूप में रहती है तथा विशुद्ध चक्र में ये ‘शाकिनी’ के रूप में रहती हैं।

परा और अपरा प्रकृति
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शक्ति सत्व, रज और तम के द्वारा अपना कार्य करती है। इस स्थूल जगत की सृष्टि के लिये आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी, ये पाँच तत्व अर्थात पंचमहाभूत उनके साधन हैं।  ये पंचतत्व और मन, बुद्धि और अहंकार मिलकर जड अथवा अपरा प्रकृति कहलाते हैं। यह स्वयं संसार के लिये बंधनरूप हैं। 

परा प्रकृति विशुद्ध हैं। ये स्वयं आत्मरूप है, क्षेत्रज्ञ है। ये ही जीवन को धारण करती है। यह समस्त जगत के अन्दर प्रवेश कर उसे धारण किये हुए है। इसे चैतन्य प्रकृति भी कहते हैं।

शक्ति की अवस्थाएँ –
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शक्ति की दो अवस्थाएँ होती हैं – गुण-साम्यावस्था और वैषम्यावस्था। गुण-साम्यावस्था वह अवस्था है जिसमें तीनों गुण – सत्व, रज और तम साम्यावस्था में स्थित रहते हैं, जो प्रलयकाल में होती है। उस समय असंख्य जीव अपने संस्कारों तथा अधिष्ठाता (अधिष्ठाता का अर्थ – कर्म की अदृश्य शक्ति अथवा फलदायिनी शक्ति जो कर्म के अन्दर छिपी रहती है) के साथ अव्यक्त अवस्था में रहते हैं।

वैषम्यावस्था वह अवस्था है जब प्रलय के पश्चात साम्यावस्थित शक्ति में स्पंद अर्थात स्फूर्ति होती है, ताकि तिरोहित जीवों को अपने-अपने कर्मों का फल भोगने की इच्छा होती हैं। इससे बह्म सृष्टि के हेतु बाध्य हो जाते हैं और उनके संकल्प मात्र से सृष्टि उत्पन्न हो जाती हैं। 

सृष्टि के समय जब आदिशक्ति के अन्दर क्षोभ होता है तो तीनों गुण- सत्व, रज और तम व्यक्त हो जाते हैं।

दस महाविद्याओं का नाम
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दस महाविद्याओं का सम्बन्ध सती, शिवा और पार्वती से हैं। ये ही विभिन्न रूपों में नवदुर्गा, शक्ति, चामुण्डा, विष्णुप्रिया आदि नामों से पूजित और अर्चित की जाती हैं। देवीपुराण में एक कथा आती है कि जब माता सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में जाना चाही तब भगवान् शिव ने निषेध किया। इससे क्रोधित हो भगवती ने अपनी अङ्गभूता दस देवियों को प्रकट की। माता आदिशक्ति की ये स्वरूपा शक्तियाँ ही दस महाविद्याएँ, जिनके नाम हैं-

काली, तारा, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, मातङ्गी और कमला।
(शक्तियां एक ही है किंतु अलग-अलग नामो से इनको पुकारा जाता है)

शम्भो ! मैं भयंकर रूपवाली भैरवी हूँ। आप भय न करें। ये सभी मूर्तियाँ बहुत सी मूर्तियों में प्रकृष्ट अर्थात मुख्य हैं।

चामुण्डा तन्त्र के अनुसार ये दस महाविद्याएँ हैं- 

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी ।

भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमवती तथा ।।

बगला सिद्धविद्या च मातङ्गी कमलात्मिका ।

एता दस महाविद्या: सिद्धि विद्या: प्रकीर्तिता ।।

दस महाविद्याएँ का स्वरूप –
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वास्तव में काली, तारा, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, और धूमावती – ये महाविद्याएँ रूप और विग्रह में प्रकट रूप में कठोर किन्तु अप्रकट करुण-रूप हैं। भुवनेश्वरी, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, मातङ्गी और कमला ये विद्याओं के सौम्यरूप हैं। एक ही महाशक्ति कभी रौद्र तो कभी सौम्य रूपों में विराजती हैं। रौद्र के सम्यक साक्षात्कार के बिना माधुर्य को नहीं जाना जा सकता और माधुर्य के अभाव में रौद्र की सम्यक परिकल्पना नहीं की जा सकती। इन महाविद्याओं का स्वरूप अचिन्त्य और शब्दातीत है, पर भक्तों और साधकों के लिये इनकी करुणामयी कृपा का कोष नित्य-निरन्तर खुला रहता है। दस महाविद्याओं का स्वरूप इसी रहस्य का परिणाम है, जो अत्यंत गोपनीय है। जिसमें महान दार्शनिक तथा धार्मि क तत्व निहित है। जो काली से कमला तक की ये यात्रा दस स्तरों में पूर्ण होती हैं। (संकलितं पोस्ट एवं छाया चित्र साभार गूगल)

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
हे मां ! आप बुद्धि के रूप में सबों के हृदय में स्थित हो !
क्रमशः:-

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#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
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