सोमवार, 25 जुलाई 2016

।। श्री विश्वनाथाष्टकम् ।।

।। श्री विश्वनाथाष्टकम् ।।

गंगातरंगरमणीय   जटाकलापं   
गौरीनिरन्तर    विभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रिय  मनंगमदापहारं 
वाराणसीपुरपतिं   भज   विश्वनाथम् ।।

वाचामगोचर  मनेकगुणस्वरूपं 
वागीशविष्णु  सुरसेवित   पादपीठम् ।
वामेन विग्रहवरेण  कलत्रवन्तम् 
वाराणसीपुरपतिं  भज  विश्वनाथम् ।।

भूताधिपं   भुजंगभूषणभूषितांगं  
व्याघ्रजिनाम्बरधरं  जटिल   त्रिनेत्रम् ।
पाशांकुशभयवर  प्रदशूलपाणिम् 
वाराणसीपुरपतिं  भज विश्वनाथम् ।।

शीतांशु शोभितकिरीट विराजमानं
भालेक्षणानल विशोषित पन्चवाणम् ।
नागाधिपा  रचितभासुर  कर्णपूरम् 
वाराणसीपुरपतिं  भज विश्वनाथम् ।।

पन्चाननं    दुरितमत्तमतंगजानां   
नागान्तकं    दनुजपुंगव    पन्नगानाम् ।
दावानलं  मरणशोक  जराटवीनाम् 
वाराणसीपुरपतिं  भज विश्वनाथम् ।।

तेजोमयं     सगुणनिर्गुणमद्वितीय     
मानन्दकन्द       पराजितमप्रमेयम् ।
नागात्मकं  सकलनिष्कलमात्मरूपम् 
वाराणसीपुरपतिं  भज विश्वनाथम् ।।

रागादिदोषरहितं   स्वजनानुरागं  
वैराग्यशान्तिनिलयं    गिरिजासहायम् ।
माधुर्यधैर्यसुभगं   गरलाभिरामम्  
वाराणसीपुरपतिं    भज   विश्वनाथम् ।।

आशा  विहाय  परिहृत्य  परस्य  निन्दां
पापेरतिं च सुनिवार्य मन: समाधौ ।
आदायहृत्कमलमध्यगतं   परेशम्  
वाराणसीपुरपतिं   भज   विश्वनाथम् ।।

वाराणसी   पुरपते:  स्तवनं   शिवस्य 
व्याख्यातमष्टकमिदं  पठते मनुष्य: ।
विद्या श्रियं  विपुल  सौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्यदेहविलये लभते च मोक्षम् ।।

विश्वनाथाषटकमिदमं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति   शिवेन     वसहमोदते ।।

                      - जिनकी जटाँए गंगा जी की लहरों से भी सुन्दर प्रतीत हो रही हैं । जिनका वाम भाग सदा ही माता पार्वती के लिये सुशोभित रहता है , जो नारायण के प्रिय और कामदेव के मद का नाश करने वाले हैं उन काशी विश्वनाथ को भज । वाणी के द्वारा जिनका वर्णन नही हो सकता , जिनके अनेकों गुण एवं स्वरूप हैं । ब्रह्मा , विष्णु और अन्य देवता जिनकी चरण पादुका का सेवन करते हैं , जो अपने सुन्दर वामांग के द्वारा ( अर्धनारीश्वर ) ही सपत्नीक हैं उन काशी विश्वनाथ को भज ।

                        जो भूतों के अधिपति हैं , जिनका शरीर सर्प रूपी गहनों से विभूषित है , जो बाघ की खाल का वस्त्र पहनते हैं तथा हाथो मे पाश , अंकुश , अभयवर , और शूल है , उन जटाधारी त्रिनेत्र काशी विश्वनाथ को भज । जो चन्द्रमा द्वारा प्रकाशित किरीट से शोभित हैं , जिन्होंने अपने भालस्थ नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया है , जिनके कानों मे बड़े बड़े साँपों के कुण्डल चमक रहे हैं उन्ही काशीपति विश्वनाथ को भज ।

                           जो पापरूपी मतवाले हाथियों को मारने वाले सिंह हैं , दैत्य समूहरूपी साँपों को मारने वाले गरुड़ हैं , जो मरण , शोक , और बुढ़ापा रूपी भीषण वन को जलाने वाले दावानल हैं , एैसे काशीपति विश्वनाथ को भज । जो तेजपूर्ण , सगुण , निर्गुण , अद्वितीय , आनन्दकन्द , अपराजित , और अतुलनीय हैं , जो अपने शरीर पर साँपों को धारण करते हैं , जिनका रूप ह्रास-वृद्धि रहित है ( चिर युवा ) एैसे आत्मस्वरूप काशीपति विश्वनाथ को भज ।

                          जो रागादि दोषों से रहित हैं , अौर अपने भक्तों पर सदा कृपा रखते हैं , वैराग्य और शान्ति के स्थान है , माता पार्वती जिनके सदा साथ रहती हैं , जो धीरता और सुन्दर स्वभाव से सुन्दर जान पड़ते हैं तथा जिनका कण्ठ गरल के पान के चिन्ह ( नीलकण्ठ ) से सुशोभित है उन काशीपति विश्वनाथ को भज । सब आशाओं को छोड़कर , दूसरों की निन्दा त्यागकर , पॉपकर्म से अनुराग हटाकर , चित्त को समाधि मे लगा कर हृदयकमल मे प्रकाशमान परमेश्वर काशीपति विश्वनाथ को भज ।

                        जो मनुष्य महादेव शिव के इन आठ श्लोकों का स्तवन का पाठ करता है वह विद्या , धन , प्रचुर सौख्य और अनन्तकीर्ति प्राप्त कर देहावसान होने पर मोक्ष प्राप्त करता है । जो महादेव शिव के समीप इस विश्वनाथाष्टकम् का पाठ करता है वह शिवलोक को प्राप्त करता है और महादेव शिव के साथ आनन्दित होता है ।

               । जय बाबा काशी विश्वनाथ ।

                          ।। महादेव ।।

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