मंगलवार, 26 जुलाई 2016

||हमशकल ||

||हमशकल ||
जैसे ही आप किसी को गुरु कहते है वैसे ही अगला समझ जाता है की इसे सत्य का ज्ञान नहीं।जगत गुरु (भोलेनाथ )की पनाह को छोड़ कृत्रिम गुरु की पनाह में जाना उसी प्रकार है जिस प्रकार अपनी माता के होते हुए अन्य माता की गोद की शरण लेना ।अपनी माता के प्रेम से भरे एवम् क्षुधा मिटाने वाले स्तनो को छोड़ भिक्षा की याचना करना किसी अन्य की माता से करना।।प्रथम गुरु माता एवम् द्वितीय गुरु पिता होते है जो इनका नहीं हुआ वो किसी अन्य का शिष्य कैसे हो सकता है?
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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