सोमवार, 18 जुलाई 2016

।।श्रीनाथ पंथ माउली।।

।।श्रीनाथ पंथ माउली।।
भारत वर्ष की महान जन्म भूमि में ऐसे तो बहुत से धर्म-सम्प्रदायो का उदय हुआ ,इनमे से एक "श्रीनाथ सम्प्रदाय" अपने आप दिव्य एवं उच्च स्थान रखता है प्राचीन "श्री नाथ सम्प्रदाय" के विषय में स्तुति करना या लिखना ,सूरज को दीपक दिखाने जैसा ही होगा ।"श्रीनाथ सम्प्रदाय" को सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि अन्य साम्प्रदायिक समाज में भी बड़े पैमाने में स्वीकार किया है।श्रीनाथ पंथ का उदय छठी-सातवी शताब्दी के आस पास माना जाता है।"नाथ पंथ" के नाम का अर्थ समझने के लिए ऐसे समझे की नाथ मतलब स्वामी,महापुरुषत्व, श्रेष्ठ समर्थ एवं पंथ से आशय है पथ एवं मार्ग।
नाथ पंथ एक आदर्श संस्कृति,सिद्धांत,कर्त्तव्य,एवं कारुणिक भावना का नाम है।वैसे तो श्रीनाथ पंथ का प्रभाव,प्रतिष्ठा एवं वर्चस्व सारे विश्व में फैला हुआ है भारत के कुछ विशेष स्थान जैसे मध्यप्रदेश,आंध्रा,गुजरात,महाराष्ट्र,पश्चिम बंगाल एवं।कर्नाटक इत्यादि स्थान में श्री नाथ पंथ की गौरव गाथा मुख्य रूप से गाई जाती है।
काल भेद एवं भाषा भेद के कारण सभी प्रान्तों में प्रारंभिक नौनाथो के नाम में थोड़ा परिवर्तन दिखता है किन्तु मूल रूप से प्रारंभिक नाथो की संख्या 9 होने में कही भेद नहीं दिखता है।जैसे की महाराष्ट्र में इन नौनाथो का नाम कुछ इस प्रकार ज्ञात होते है।
1.श्री कविनारायन-श्री मचिंद्रनाथजी
2.श्री हरिनारायण- श्री गोरक्षनाथ जी
3.श्री अन्तरिक्षणारायन-श्री जालंधर नाथ जी
4.श्री प्रबुद्धनारायनजी-श्री कानिफनाथजी
5.श्री पीप्पलनारायणजी-श्री चर्पटी नाथजी
6.श्री अग्निहोयनारायनजी-श्रीनाथा नाथजी
7.श्री दुर्मिळ नारायण जी- श्री भृतहरिनाथजी
8.श्री चमसनारायन जी-श्री रेवननाथ जी
9.श्री करभंजन नारायण जी-श्री गहनी नाथ जी
माहाराष्ट्र की नवनाथ परम्परानुसार ये सारे नाथजी महाराज भगवान शिव एवं भगवान विष्णु जी के सिद्ध शिष्य माने जाते है।इनमे श्री कविनारायन-श्री मछिंद्रनाथजी भगवान शिव के मुख्य शिष्य माने जाते है।इन्ही नवनाथो द्वारा श्री नाथ पंथ की स्थापना एवं विस्तार माना जाता है।
महाराष्ट्र में नाथपंथियों का माना जाने वाला ग्रन्थ"ज्ञानेश्वरी"है जिसको संतज्ञाननाथजी द्वारा लिखा गया है।महाराष्ट्र में संतज्ञानेश्वर को "माउली" याने माता के नाम से माना और पुकारा जाता है।महाराष्ट्र में नाथसम्प्रदाय को गाँव गाँव पहुचाने का कार्य निवृत्तिनाथ,ज्ञानेश्वर माउली ने ही किया।महाराष्ट्र में वारकरी सम्प्रदाय की स्थापना भी ज्ञानाथ माउली ने ही की।जिसका मूल तत्व नाथ सम्प्रदाय ही है।
श्रीनाथ पंथी सिद्धो को "साबरी विद्या"का जनक माना जाता है साबरी विद्या के अलावा भी अस्त्रविद्या,पवन विद्या,पुनर्जन्म विद्या आदि के विषय में भी जानकारियां साधू संतो द्वारा प्राप्त होती है।श्री नाथ सिद्धो को एवं इनकी कार्य प्रणाली को समझने के पहले हमको थोडा-बहुत "साबरी-विद्या"के बारे में समझ लेना चाहिए,"साबरी-विद्या" की उत्पति श्री नाथ सिद्ध श्री कविनारायण जी अर्थात श्री मचिंद्रनाथ जी द्वारा मानी जाती है "साबरी-विद्या" अपने आप में एक विशेष मांत्रिक पद्दति है जिनमे मंत्रो के द्वारा समाज को पीड़ा मुक्त,दुःख मुक्त सेवा करने की विधि होती है जिसमे साबर मंत्र द्वारा जीवो के कष्टो को मुक्त किया जाता है।साबर मंत्र और वैदक मंत्रो में बहुत भिन्ता होती है वैदिक मंत्र संस्कृत में होते ,श्लोको के रूप में होते स्तुति-स्तोत्र आदि के रूपों में होते है जो जन साधारण की बुद्धि से सामान्यतः परे ही होते है क्योकि सामान्यजन को संस्कृत का आज पूर्ण ज्ञान नहीं होता,इसके विपरीत साबर मंत्र सामान्य जनसुलभ भाषा में लिखे होते है जिसको सामान्य व्यक्ति भी पढ़ सकता है एवं आवश्यकता के अनुसार इन मंत्रो का उपयोग अपने लिए एवं समाज के कल्याण के लिए उपयोग करता है।साबर मंत्र पढ़ने में वैदिक ध्यान,न्यास एवं विनियोग जैसी विधियों को नहीं करना पढता है साबर मंत्रो को आप गुरुकृपा द्वारा प्राप्त कर जगकल्याण की भावना से उपयोग कर सकते है।साबर मंत्र अपने आप में गुरु आशीर्वाद के कारण सपूर्ण शक्ति होते है।साबर मंत्रो द्वारा आप मानव के कष्टो के साथ साथ अन्य जीवो के कष्टो को भी सामाप्त कर सकते है इन मंत्रो द्वरा नजर दोष,पीड़ा दोष,ग्रह दोष,शारीरिक व्याधि,पशु पक्षी के रोगों के उपचार,शत्रु व्याधि,भुत बाधा,मानसिक विकार जैसी अन्य सैकड़ो व्याधियो का आप उपचार संभव होता है।
नाथपंथी समाज के साधू-सिद्ध योगी एवं गृहस्त जोगी (बहुरूप)दोनों ही रूपों जीवन यापन कर रहे होते है महाराष्ट्र में भराड़ी,नाथजोगी,जोगी बंजारा,मेंढ़गी जोशी,किंगरिवाले,नाथबुवा,डवरि, नाथपंथी डवरी गोसावी,गोंधली,बहुरूपी,आदि नामो से जानी जाती है।ये सभी जातिया व्यवसाय के आधार पर अलग अलग जानी जाती है किन्तु ये मूल रूप से कट्टर नाथ पंथी ही होते है।इस पोस्ट में हम मात्र गृहस्त साधु(बहुरूप)के विषय में चर्चा करेगे।
नाथ पंथी (बहुरूप)के मूलरूप से इष्ट भगवान शिव ही होते है एवं ये भगवान की शिवोपासना कर अपने इष्ट की भाँती शरिर पे "भस्म" का लेपन करते है गले,बाहु एवं कलाइयों में ये मोटे-मोटे "रुद्राक्ष "की माला धारण करते है "त्रिपुण्ड" लगाते है हाथ में "त्रिशूल,डमरू "एवं "शिंगी"(हिरन के सिंग से बना एक वाद्य) धारण करते है।अपने इष्टदेव के समान ये लंबे लंबे बालो को धारण करते है कोई कोई साधू अपने बालो को लगातार ना धोने के कारण उनके बाल "जटा"का रूप धारण कर लेते है।ये साधु हाथ में "खप्पर"भी धारण करते है इसके अलावा वो साधु जिसने "अग्निदीक्षा"ले रखी हो वे हाथो में "चिमटा" भी धारण करते है।
नाथपंथी गोसावी डबरी "मेखला" भी धारण करते है "मेखला"एक प्रकार का ऊँन की 22 से 27 हाथ लंबी डोरी होती है जिसे कमर से छाती तक भगवे वस्त्र के ऊपर पहना जाता है।इस भगवे वस्त्र को नाथ पंथ में "कंथा"कहा जाता है।
कुछ नाथ पंथी गृहस्त साधु ये अपनी विशेष वेश-भूषा के साथ गाँव-गाँव आज भी गले में एक छोटी बाजापेटी गले में लटकाकर,एक हाथ में एकतारा धारण हर मौसम में रमते रहते हुए गोरखगाथा का सुरीला गायन करते रहते है।
नाथपंथी गृहस्त साधुओ की कुछ जातिया जैसे गोंधळी, नाथजोगी,मेंढ़गी जोशी,जोशी इत्यादि जातिया आज कल गाँव-गाँव, शहर-शहर में स्थिर हो कर शिक्षा एवं व्यवसाय द्वारा जीवन यापन कर रही है।
कालान्तर के प्रभाव एवं आधुनिकीकरण का आज इस जाती (बहुरूप)के जीवन निर्वाह पे बहुत गहरा असर पड़ा है।आज ये जाती अपनी मूल एवं परंपरागत पहचान का स्थायित्व बनाने के लिए बहुत अधिक श्रम कर रही है।आज भी सुगी (फसल काटने के दौरान)एवं गाँव में विवाह समारोह के समय गाँव के परंपरागत रूप से तय सेवक जैसे गुरव,नाई, लुहार,सुतार इत्यादि से दान की इच्छा से इनका गाँव गाँव आना होता रहता है।इन साधुओ को बलिराजा(कृषक)दान देना अपना कर्त्तव्य समझता है।
आज के आधुनिकीकरण में बहुत से परंपरागत जाती ,कर्म का धीरे धीरे विलय होता जा रहा है और ये अपने स्वरूप एवं परंपरागत कार्य को छोड़ कर अन्य कार्यो की और अग्रसर हो रहे है जहा इन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है।सफलता नहीं मिलने का मूल कारण है इस जाती(बहुरूप)एवं इस जैसी अन्य जातियो की आज खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है।आज ये जाती इनकी भविष्य की पीढ़ी को अपना पाराम्परिक ज्ञान एवं संस्कार नहीं देना चाहती है इस जाती का मानना है की इनके लिए समाज से कोई व्यक्ति आगे आये जिससे की इनकी पुकार एवं कस्ट की जानकारी उच्च स्तर तक पहुचाई जा सके।जिससे की इनकी आने वाली पीढ़ी आधुनिकीकरण करन के बाद भी भविष्य में अपना जीवन यापन कर सके।
कल एक गृहस्त साधु से भेट के दौरान उन्होंने इस विषय पे अपनी राय बताई है जिस पर ये पोस्ट लिखी गई है।हमारी सरकार की तरफ से इन्हें किसी भी प्रकार का सहयोग तो दूर की बात आश्वासन भी नहीं मिल रहा है।इसी प्रकार गति रहने से वो दिन दूर नहीं है जब ये जातिया एवं परम्पराये हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगी या किसी अन्य धर्म एवं सम्प्रदाय में विलीन हो जायेगी।
इस पोस्ट को लिखने का मुख्य उद्देश् श्री नाथ पंथ की विशालता को दर्शाते हुए बहुरूप के कष्टो को आम जनता तक पहुचाना मात्र है।
"संकलन"
| Rahulnath ..

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