मंगलवार, 26 जुलाई 2016

||ये शरीर नव छिद्रो की बाम्बी||

||ये शरीर नव छिद्रो की बाम्बी||
जै श्री महाकाल
यह शरीर एक बहुत बड़ा शहर है प्रज्ञा ही इसकी चार दिवारी है
हड्डियाँ ही इसमें खम्बे का काम देती है।चमड़ा ही इस नगर की दीवार है,जो समूचे नगर को रोके हुए है।माँस और रक्त का इसपे लेप चड़ा हुआ है।इस नगर में नव दरवाजे है।
इसकी रक्षा में बहुत बड़ा प्रयास करना होता है।नस -नाड़ियां इसे सब और से घेरे हुए है।
चेतन पुरुष ही इस नगर के भीतर राजा के रूप में विराजमान है।उसके दो मंत्री है-बुद्धि और मन ।
वे दोनों परस्पर विरोधी है और आपस में बैर निकालने के लिए दोनों ही यत्न करते रहते है।
चार ऐसे शत्रु है,जो उस राजा का नाश चाहते है ।उनके नाम है -काम,क्रोध,लोभ तथा मोह।
जब राजा उन नवो द्वारो को बंद किये रहता है,तब उसकी शक्ति सुरक्षित रहती है और वह सदा निरभय बना रहता है।वह सबके प्रति अनुराग रखता है,अतः शत्रु उसका पराभव नहीं कर पाते।
परंतु जब वह नगर के सभी दरवाजो को खुला छोड़ देता है,उस समय राग नामक शत्रु नेत्र आदि द्वारो पर आक्रमण करता है।वह सर्वत्र व्याप्त रहने वाला ,बहुत विशाल और पांच दरवाजो से नगर में प्रवेश करने वाला है।उसके पीछे पीछे तिन और भयंकर शत्रु इस नगर में घुस जाते है।
पांच इन्द्रिय नामक द्वारो से शारीर के भीतर प्रवेश करके राग मन  तथा अन्यान्य इन्द्रियों के साथ सम्बन्ध जोड़ लेता है।इस प्रकार इन्द्रिय और मन को वष में करके दुर्धष हो जाता है समस्त दरवाजो को काबू में करके चार दीवारो को नष्ट कर देता है।मन को राग के अधीन हुआ देख बुद्धि तत्काल नष्ट हो जाती (पलायन कर जाती)है।जब मंत्री साथ नहीं रहते ,तब अन्य पुरवाशी भी उसे छोड़ देते है ।
फिर शत्रुओ को उसके छिद्र का ज्ञान हो जाने से राजा उनके द्वारा नाश को प्राप्त होता है।इस प्रकार राग ,मोह,लोभ तथा क्रोध -ये दुरात्मा शत्रु मनुष्य की स्मरण शक्ति का नाश करने वाले है।राग से काम होता है,काम से लोभ का जन्म होता है,लोभ से सम्मोह -अविवेक होता है और सम्मोह से स्मरण शक्ति भ्रांत हो जाती है।स्मृति की भ्रान्ति से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य स्वयं भी नष्ट-कर्त्तव्य भ्रष्ट हो जाता है।
इस प्रकार जिनकी बुद्धि नष्ट हो चुकी है,जो राग और लोभ के पीछे चलने वाले है तथा जिन्हें जीवन का बहुत लोभ है,ऐसे हम लोगो पर आप प्रसन्न हो जाइए -हे महादेव महाकाल

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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7 jun 2014

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