रविवार, 24 जुलाई 2016

जप का महत्व

जप का महत्व(ध्यान और अध्यात्मिक जिवन) भाग -एक,दो एवं तिन
“अपने प्रभु भगवान का नाम व्यर्थ मे न लो” बाईबल के इस निर्देश और ईसा द्वार व्यर्थ जप की निंदा की अनेक की अनेक व्याख्याँए हो सकति है! कैथिलिक ईसाई लोग “मेरि की स्तुति” का जप करने के लिए जप-माला का उपयोग करते है,परन्तु सामान्यत: ईसाई धर्म मे भगवान के जप के बदले अनुनयपूर्ण प्रार्थना पर अधिक जोर दिया गया हैं! लेकिन ग्रीक रुढिवादी ईसाई  सम्प्रदाय का अवलोकन करने पर पता चलता हैं की वहाँ हिन्दू धर्म के जप से मिलती-जुलती एक प्रकार की बार-बार कि गई प्रार्थना को बहुत महत्व दिया जाता है! मध्य युग के ग्रीक सन्त “ईसामसीह की प्रार्थना “ नामक एक  सरल सूत्र के जप की विधि विशेष में पारंगत थे “द वे आफ पिलिग्रिम” नामक लोकप्रिय पुस्तक में इस विधि का वर्णन किया  गया है:
ईसा मसिह की आन्तरिक निरवच्छिन्न प्रार्थना का अर्थ निरन्त्र व्यवधान रहित ईसा के पवित्र नाम का होठों से,आत्मा में,हृ्दय में उच्चारण करना है!यह कार्य सदा-सर्वदा सभी स्थानों पर सभी कार्यों में रत रहते हुये ,यहाँ तक की निद्रा मे भी अनके निरन्तर  सानिध्य का मानसिक कल्पना चित्र अंकित करते  हुए तथा उनकी कृ्पा की याचना करते हुए! किया जाना चाहिये यह प्रार्थना इन शब्दों में की जानी चाहिये:”प्रभु ईसा मसीह मुझ पर दया करो!!!!!!! जै श्री महाकाल !!!

जप का महत्व(ध्यान और अध्यात्मिक जिवन) भाग -दो
इस्लाम में सूफी सन्त अल्लाह अथवा  अलि के नाम के जप का प्रयोग आध्यात्मिक जागरण के लिए सदियों से कर्ते रहे है! बारहवी सदी के महान मुसलमान धर्माचार्य अलगजालि के धर्म संप्रदाय में अनुयाईयो को निम्न निर्देष दिये जाते थे ! साधक एकांत मे अकेले बैठे और ध्यान रखे की प्रमात्मा के अतिरिक्त और कोई विचार उसके मन मे ना आने पावे इस तरह एकात मे अकेले बैठ कर जिव्हा से वह अल्लाह-अल्लाह निरंतर उच्चारण करना बंद ना करे,और मन को उसी में लगाये रखे अंत मेंएक ऎसी अवस्था आयेगी! जब जिव्हा का चलना बंद हो जायेगा और ऎसा प्रतित होगा, मानो शब्द उससे अपने आप प्रवाहित हो रहा है! वह इसमे उस समय तक लगा रहे जब तका जिव्हा का हिलना पुरी तरह  बंद ना हो जाए,और वह पाये की उसका मन उसी चिंतन मे लगा हुआ है! वह इस प्रक्रिया में तब तक और लगा रहे! जब तक शब्द का रुप और उसके अक्षर मन से दुर ना हो जाये,और मन से मानो चिपका हुआ उस्से अभिन्न रुप मे केवल भाव रह जाये! इसके बाद केवल भगवान उसके समक्ष जो प्रकट करेगे,उसके लिये प्रतिक्षा करने के सिवाय और कुछ करणिय नही रहता ! इस पद्धिति का अनुसरण करने पर परं सत्य की ज्योति निश्चित रुप से उसके हृ्दय में प्रकाशीत होगी!
!! जै श्री महाकाल !!!

जप का महत्व(ध्यान और अध्यात्मिक जिवन) भाग -तिन
बौद्ध धर्म  में नैतिक जिवन और धयान को अधिक महत्व दिया गया है! लेकिन माहायान बौद्ध शाखा के कुछ संप्रदायों के विग्यान के उपाय के रुप में भगवन्ननाम के जप काविधान किया गया  है! जापान के “सिन” नामक सर्वाधिक लिक प्रिय बौद्ध संप्रदाय मे साधक नमो अमिताभ बुद्धाय {जो जापानी भाषा में नमो –अमिडा-बुतसु होता है } मन्त्र का निरंतर जप करता है! सुखावती व्युह सुत्र की टिका में निम्न अंश है:
अमिडा के नाम पर पुरे  मन से चलते फिरते ,उठते-बैठते,सोते केवल जपकरते रहो,और एकक्षण के लिये भी उसे बंद ना करो! यह कार्य निश्चित रुप से मोक्ष तक ले जाता है! क्योकी यह अमिडा बुद्ध की मूल प्रतिग्या के अनुरुप है! सुरंगम-सुत्र नामक एक अन्य शास्त्र में कहा गया है {अमिताभ बुद्ध के नाम के जप की } साधना का यह लाभ है! की जो भी अमिताभ बुद्ध का वर्तमान अथवा भविष्य में जप करेगा! वह अमिताभ बुद्ध का अवश्य दर्षन करेगा और उससे कभी पृ्थक नही होगा! जिस प्रकार ईत्र के निर्माता का सहवास करने वाला उसी सुगंध से ओत-प्रोत हो जाता है! उसी प्रकार अमिताभ के इस संग से वह अमिताभ की करुणा से सुवाषित हो जायेगा और बिना किसि अन्य उपाय के प्रबुद्ध हो जायेगा ! !! जै श्री महाकाल !!!
।।संकलित ।।
भिलाई संपर्क सुत्र-
+917489716795

1 टिप्पणी: