शनिवार, 23 जुलाई 2016

||ऊर्जा शास्त्र|| ईश्वर का वरदान

||ऊर्जा शास्त्र|| ईश्वर का वरदान
"पानी पियो छान कर,गुरु बनाओ जान कर"
जै श्री महाकाल
आप जिसको याद करते है उसे आप अपनी शक्ति दे देते है इस शक्ति के कारण ही कभी कभी अचानक हिचकी शुरू हो जाती है जिसके विषय में बचपन से सूना है की कोई तुम्हे याद करता है तो हिचकी लगती है।
जिसको आप अपनी शक्ति देते है इस दौरान आपमें भी उस व्यक्ति की शक्तियाँ,और गुन वापस आपमें भी लौट कर आते हैं क्योकि यह प्रकृति का सामान्य नियम है की हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है।इस शक्ति के लेने देंन के साथ साथ आपस में एक दूसरे के गुणों काभी आदान प्रदान होता है।ऐसीआवस्था में आपने जिसको शक्ति दी होती है यदि उसके गुण खराब है तो  आपमें भी वही गुण पैदा हो जायेगे जो  उसमे विद्यमान होते है।
यही होता है "गुरु-शिष्य"परम्परा में।आप जिसे गुरु कहते है और लगातार उसे याद करते है और आपके जीवन में सकारात्मकता आती तो मतलब साफ़ है की जिसको आपने गुरु बनाया है वह आपके योग्य है साधू संतो में साधना ध्यान करने के कारण दिव्य ऊर्जाओं का निर्माण लगातार होते रहता है इसी कारण वष हर व्यक्ति को शिष्यता गुरु प्रदान नहीं करते।
किन्तु इसके विपरीत भी प्रक्रिया हो सकती है
शिष्यो की उच्च एवम् सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर गुरु का तो कल्याण हो जाता है और शिष्य का लगातार क्षरण होता रहता है।
अब आप सोचे की वे बड़े बड़े गुरुदेव कहलाने वाले ,जिन्हें कल तक कोई नहीं जानता था आज वे आपके ही  ऊर्जा से,आपके ही धन से फल फूल रहे है।
आप जब जीवित व्यक्ति को याद करते है तो ऊर्जा का लेन देन एक स्वाभाविक घटना है किन्तु जब आप किसी पत्थर की मूर्ति को याद करते है तब भी यही प्रतिक्रया होती है किन्तु ,आपको पत्थर से  स्थिरता एवम् संयम की प्राप्ति होती है  और संयम से एकाग्रता की ।लेकिन आप किसी कब्र को याद करते तो भी आपमें कब्र में उपस्थित आत्मा के गुण पैदा हो जाते है।और ये गुण धर्म भी सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते है ।इसी प्रकार आप यह सम्बन्ध हर वो जीवित वस्तू जैसे :-पेड़-पौधे,जिव-जंतु या तारा मंडल के साथ भी जोड़ सकते है।साधू संत महात्मा इसी प्रकार हिमालय को याद कर भीतर शांति एवम् मन की शीतलता प्राप्त करते है।
इसी क्रिया का असर उलटा भी पड़ता है जब आप किसी के बारे में गलत सोचे ,और आप जिस के बारे में गलत सोचते है वो भी आपकी क्रिया के कारण आपके लिए अच्छा नहीं सोचेगा।।

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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