||कल्प वृक्ष ||Raahulnaath.Bhilai
हिन्दू धर्म में देवताओ की संख्या 33 कोटि कही गई है ये कैसे ?ये देवता है कौन ? ये बनते कैसे है?इन देवताओ का जन्म कैसे होता है?ये कहा रहते है ?क्या इनके रहने का कोई निश्चित स्थान है या ये किसी अन्य लोक से आते है?
इस प्रशन का उत्तर जानने के लिए आपको इस विषय पे गहन शोध की आवश्यकता होगी ,इन देवताओ की मूल संख्या 54 के आस-पास है|ये कोई सशरीर देवता नहीं है ये मात्र ध्वनि रूप है ।इनका स्थान आपके और हमारे शरीर के भीतर ही होता है,और हर व्यक्ति के अंदर सब के अपने 33 कोटि देवता विराजमान होते है।ये मूल ध्वनियां 54 प्रकार की होती है अ से लेकर ज्ञ तक ,कुल 54 ध्वनियाँ।हर ध्वनि का एक अपना रूप होता है जैसे "अ" नाम की ध्वनि इनमे मूल है "उ"नाम की एवम् "म" नाम की ध्वनि मूल है।इन तीनो को जोड़ने से ॐ का निर्माण होता है।इसी प्रकार र+अ+अ+म को जोड़ने से राम नाम की ध्वनि का निर्माण होता है।
यह ही इन देवताओ का जन्म है।आप जिस भी देवता का नाम लगे उन के नाम अक्षर इन 54 वर्णों में से ही होता है।कुनडलीनी साधना का मूल यही है। मूलाधार से सहस्त्रार तक इन 54 अक्षरो को एक निश्चित क्रम में पिरोया गया है जो की गुरु गम्य है।बहुत कम व्यक्ति है जिनको इन अक्षरो के सही क्रमो का ज्ञान है।सामान्यतः 51 शब्दों की ही जानकारी बताई जाती है।इन अक्षरो को आपस में जोड़ कर आप जितने देवताओ का निर्माण कर सकते है ।ये एक गुप्त पासवर्ड के समान है।हमारे ऋषि-मुनि एवं आचार्य इस विद्या को जानते थे एवं उन्होंने पहले से देवताओ का नाम बना कर रखा है।ये सब रूपको,उपमा अलंकारो के रूप में व्यक्त किये जाते है।यही नाम जाप की मूल कुंजी है।यही कल्पवृक्ष विद्या है जहाँ लगातार देवता का जन्म एवं संहार होता रहता है।जैसे "रा" नाम का शब्द,जो की रावण को दर्शाता हैजो हकीकत में रा नाम का वर्ण है रा+वर्ण=रावण।।
वही मात्र एक "अं"की मात्रा को जोड़ देने मात्र से रावण का अंत हो कर एक नया शब्द "रां" बन जाता है।।
||क्रमशः||
****मित्रो से निवेदन******
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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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