बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

मन_की_शक्ति_से_अपना_उद्धार_स्वयं_करे

#मन_की_शक्ति_से_अपना_उद्धार_स्वयं_करे।
【आध्यात्मिक एवं तांत्रिक विश्लेषण】
#मन_एव_मनुष्याणां_कारणं_बंधमोक्षयोः_।।
हमारे शास्त्रों के अनुसार हमारा मन ही समस्त बंधनों एवं मोक्ष का मूल कारण है।हमारे अमन होते ही ये दुःख दाई बंधनो से हमे मुक्ति प्राप्त हो जाती है।यहां समझने वाली बात है कि जहाँ मन को इन्द्रियों का राजा कहा गया है जहां बिना मन के सहयोग के हमारी कोई भी इंद्रिया कार्य नही कर सकती।वही इस मन को बंधन कहा गया है कारण यह है मोक्ष या अध्यात जो विषय है वो इन्द्रियों के परे है और इन पाँच इन्द्रियों का संबंध शरीर से है इन इंद्रियों से बुद्धि का विकास होता है और ये बुद्धि भी बंधन ही है क्योंकि इसका विकास भी इंद्रियों द्वारा ही होता है यदि ये इंद्रिया दिमाग को गलत संकेत देने लगे तो बुद्धि की दिशा और व्यवहार भी बदल जाता है।मन एवं बुद्धि प्रश्न वाचक है वही अध्यात्म या मोक्ष सहजता का विषय है ।अध्यात्म या भक्ति का मूल मंत्र है जो जैसा है उसे उसी अवस्था मे ग्रहण कर लो,सहजता के साथ,फिर उसमें प्रश्न ना करो।
इस मन को वश में करना मुश्किल है किंतु नामुमकिन नही।

श्रीगीताजी में अर्जुन ने कृष्ण से इस विषय मे कठिनाई बताते हुए कहा।
#चञ्चल_हि_मनः_कृष्ण_प्रमाथि_बलवद_दृढम।
हे कृष्ण,ये मन बड़ा चञ्चल, क्षोभकारक,बलावान एवं दृढ़ है अतः उसे वश में करना मैं वायु को रोकने जैसा दुष्कर समझता हूँ।

अर्जुन की इस बात को मानते हुए श्रीकृष्ण कहते है कि,
#असंशय_महाबाहो_मनो_दुर्निग्रहं_चलं||

इसमे संशय नही की मन चञ्चल एवं कठिनाई से वश में आने वाला है किंतु उसे वश में करने का उपाय बताते हुए श्रीकृष्ण कहते है।

#अभ्यासेन_तु_कौन्तेय_वैराग्येण_च_गृह्यते||
अर्थात हे कुंतीपुत्र,अभ्यास एवं वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है।

इस प्रकार से मन को वश में करके उसे इन्द्रियों के विषयों में आसक्त होने से रोकना उसका निषेधात्मक पक्ष है एवं देखा जाए तो भगवान के कार्य मे दखल देने जैसा है जैसा कि हठ योग।
जो जैसा है उसके स्वरूप को बदलने का प्रयास करना । फिर यदि समझा जाये तो इसका दूसरा महत्वपूर्ण एवं सृजनात्मक पक्ष भी है जिससे हम इस बलवान मन की दिशा बदलकर,अपने इसी बलवान मन की शक्ति का स्वयं अपना उत्थान करने से भी सदुपयोग कर सकते है।

मन का मूल विचार होते है और ये विचार सकारात्मक एवं नाकारात्मक दोनो है देखा जाए तो ये दोनों मात्र एक भ्रम ही है सकारात्मक-नाकारात्मक,सुख-दुःख, पाप-पुण्य ये सब मात्र मन की अवस्था ही है आप के लिए जो दुःख होगा हो सकता है वो किसी अन्य के लिए सुखकारक हो,जो आपके लिए पाप हो वो दूसरे के लिए पुण्य भी हो सकता है।
अतः यह वैज्ञानिक सिद्धांत भी है कि मन के सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार का हमारे शरीर एवं मस्तिष्क पर सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो यदि इन विचारों को अच्छे/सकारात्म दिशा में ले जाया जाए निसंदेह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा।
जहाँ भक्ति सकारात्मक एवं स्वस्थ विचारो के द्वारा प्राप्त की जाती है वही यदि सकारात्मक विचारों को किसी प्रकार बदल दिया जाए तो ये भक्ति के विरुद्ध शक्ति का रूप ले लेती है जिससे कि अनेक विद्याओ का जन्म होता है जैसे कालाजादु,नकारात्मक तांत्रिक कर्म,नकारात्मक अघोर कर्म,ना ना प्रकार की अमोक्ष कारक सिद्धिया जो कि मात्र एक मृगतृष्णा  है,जब तक इनसे दूर नही हुआ जाता तब तक मुक्ति प्राप्त नही होती यही शिव-शक्ति का मूल भेद है जहाँ शिव शाँत अवस्था मे दिखाई देते है वही शक्ति उग्र अवस्था मे।जहाँ शिव के वाहन को बैल के वाहन में देखा जाता है वही शक्ति को सिंह के वाहन में,यहां आप ही सोचे कि बैल के नाक में रस्सी तो डाली जा सकती किन्तु सिंह के???
अतः सकारात्मक विचारों के साथ अपना उद्धार स्वयं करे।क्योकि मात्र मनुष्य में ही विचारो की एक ऐसी शक्ति है जिसका सही उपयोग कर वह अपना एवं समाज का उद्धार कर सकता है।

#उद्धरेदात्मनात्मानं_नात्मानमवसादयेत_||
#आत्मैव_ह्यात्मनो_बंधुरात्मैव_रिपुरात्मनः_||
मनुष्य को चाहिए कि वह अपना उद्धार स्वयं करे।
अपना पतन न करे,क्योकि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु भी।
#_क्रमशः

व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©2018
।। राहुलनाथ।।™

***🚩JAISHRRE MAHAKAL OSGY🚩***
**** #मेरी_भक्ति_अघोर_महाकाल_की_शक्ति ****

पूजा-साधना और साधक की सुरक्षा।।

पूजा-साधना और साधक की सुरक्षा।।
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किसी भी प्रकार की साधना चाहे वो बड़ी हो या छोटी ,साधक को चाहिए कि वो अपनी सुरक्षा पे सर्व प्रथम ध्यान दे और साधना से पहले सुरक्षा मन्त्रों से या कवचों से अपनी सुरक्षा निश्चित कर ले अन्यथा ,लाभ के स्थान में अनन्य शक्तियों का प्रकोप और दुष्ट शक्तियां साधना में बाधा अवश्य डालती है जिससे भारी हानि होने की संभावना होती है।साधना के समय साधक को चाहिए बडे ही धैर्य, शांत एवं स्थिर मन से अपने गुरु या इष्ट,देवी-देवता पे पूर्ण विश्वास के साथ मन लगाए रखे।
साधना काल मे बहुत से अच्छी बुरी अनुभूतियां होते रहती है जैसे अचानक तेज प्रकाश का दिखाई देना,अचानक तेज या सूक्ष्म ध्वनि का सुनाई देना,अंजान खुशबू का अहसास होना,शरीर मे सिरहन होना,शरीर मे कपकपी होना,स्वयं की वाणी से जोर आवाज निकलना,ऐसा महसूस होना की कोई स्पर्श कर रहा हो,अचानक हँसी या रोना आना,गले के पास अकड़न महसूस होना,कुछ पल के लिए आंखों के सामने अंधेरा छा जाना।किसी प्रकार का संदेश सुनाई देना।इस प्रकार की अनुभूतियों से साधक को विचलित नही होना चाहिए।इसके साथ साथ अपनी साधना को गुप्त रखते हुए साधना का वर्णन किसी के समक्ष नही करना चाहिए।साधक को चाहिए कि वो साधना के पहले साध्य मंत्र को कंठस्त कर ले एवं साधना के समय दीपक चेतन करके अपने समक्ष अपने इष्ट या देवी-देवता का चित्र स्थिर कर पहले अपनी आंखें बंद कर ले फिर आंखों को बस उतना ही खोले की उसे मात्र चित्र या दीपक ही दिखाई दे इनके बाद हल्के स्वर में मंत्र जाप करे।जाप करते करते यदि आंखे बंद हो जाये तो कोई बात नही जाप करते रहे और ऋण की हड्डी को सीधा रखें,आवश्यकता अनुसार आप आधारी का उपयोग भी कर सकते है।
साधक को चाहिए कि अपने गुरु से रक्षा मंत्र धारण कर, साधना के पहले गुरु मंत्र का जाप करते हुए किसी चाकू से अपने चारों तरफ एक घेरा बना ले,जिससे कि दृष्ट एवं आसुरी शक्तियों से आपकी रक्षा हो सके।पोस्ट पसंद आने पे इस विषय पे आगे भी लिखने का प्रयास रहेगा।।
।।क्रमशः।।

🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🔱


*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*

👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©2016

#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️

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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,

मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।