सोमवार, 29 मई 2017

नवार्ण मंत्र साधना द्वारा नवग्रह शांति

नवार्ण मंत्र साधना द्वारा नवग्रह शांति
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ज्योतिष का मुख्य आधार नवग्रह के ऊपर निर्भर करता है ये नवग्रह हमारे भीतर नव अलग अलग विचारो का निर्माण करते है जिसके अनुसार जीवन संचालित होता है इन नवग्रहों को पूर्ण रूप से नितंत्रित करने की शक्ति नवार्ण मंत्र में समाहित है।नवार्ण मंत्र के नित्य जाप पूजन से देवी के आशीर्वाद से नवग्रह जातक पर अपना सकारात्मक प्रभाव बनाये रखते है।नवार्ण मंत्र के किस अक्षर से कौन से ग्रह का नियंत्रण होता है इसका विवरण नीचे आपको दिया जा रहा है।

ऐं - शैलपुत्री-सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
ह्रीं - ब्रह्मचारिणी-चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति क्लीं -चंद्रघंटा-मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
चा - कुष्मांडा-बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
मुं - स्कंदमाता-बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
डा-कात्यायनी-शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
यै-कालरात्रि -शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
वि -महागौरी-राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति
चै -सिद्धीदात्री-केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है l

मां दुर्गा के नवरुपों की उपासना के मंत्र
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1. शैलपुत्री
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥

2. ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

3. चन्द्रघण्टा
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥

4. कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

5. स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥

6. कात्यायनी
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

7. कालरात्रि एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥

8. महागौरी
श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥

9. सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥

नवार्ण मंत्र साधना विधी:-

विनियोग:

ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य
ब्रम्हाविष्णुरुद्राऋषय:गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर
स्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: ,क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ll

विलोम बीज न्यास:-

ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥

ब्रम्हारूप न्यास:-

ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां पातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥

माला पूजन
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“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे
करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।

ध्यान मंत्र
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खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥

नवार्ण मंत्र
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ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll
******श्री दुर्गा सप्तशती अनुसार******
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।। राहुलनाथ ©₂₀₁₇।।™,भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩

चेतावनी-
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।यहां वैदिक-साबर-तांत्रिक ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र संभंधित पोस्ट दी जाती है जो हामरे पूर्वज ऋषि-मुनियों की धरोहर है इसे ज्ञानार्थ ही ले ।लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से  साधना सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।
बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

शनिवार, 27 मई 2017

साबर रक्षा कवच-खुलजा सिम सिम -भाग३

साबर रक्षा कवच-खुलजा सिम सिम -भाग३
किसी भी प्रकार की साधना से पहले ,साधना स्थल को सुरक्षित कर लेने से ,साधना में व्यवधान उत्पन्न नही होते एवं एकाग्रता बनी रहती है।आसन में बैठते ही सर्व प्रथम गुरु को प्रणाम कर ,नीचे लिखे मंत्र का 21 बार जाप करके दसो दिशाओ में फूंक मारने से स्थान बंधन हो जाता है ।इस मंत्र का उपयोग करने से पहले गुरुपूर्णिमा,अमावस्या,दीपावली दशहरा आदि पर्वो पर इस मंत्र को 11111 बार जाप कर सिद्ध कर लेना चाहिए।एवं साधना सम्पन्न होने पे इस कवच को पुनः खोल कर वापस ,कवच के देवता के पास भेज देना चाहिए।पुनः आवश्यकता होने से आह्वाहन कर कार्य सम्पूर्ण होने पर वापस भेज देना चाहिए।कवच के आह्वाहन का मंत्र यहां दिया जा रहा है ।सभी कवचों को धारण करने एवं उतारने की एक विशेष विधि एवं मंत्र होता है।
आप कोई भी कवच धारण करे यदि उसको खोलना नही आता आपको तो आपका जीवन खतरे में पढ़ सकता है अतः कवच तभी धारण करे जब आपको इसका धारण एवं विसर्जन करने का शुद्ध मंत्र ज्ञात हो।इस अज्ञानता के कारण ही साधको को कष्ट का सामना करना पड़ता है।इस संबंध में इससे पूर्व "खुल जाए सिम सिम"नाम की पोस्ट में इसका विश्लेषण किया जा चुका है |"खुल जा सिम सिम" पढ़ने के लिए इस लिंक पे क्लिक करे
लिंक:-https://m.facebook.com/photo.php?fbid=488230004718792&id=100005953891679&set=t.100005953891679&source=42
किंतु आज इस पोस्ट में कुछ बाते गुप्त रखी गई है कारण मात्र ये है कि ,अभी कुछ दिनों पहले एक सज्जन आये थे उन्होंने मुझसे कहा कि क्या आपको कवच खोलने के विधि पता है मेरे हा कहने पे उन्होंने कहा-कितने पैसे लगेंगे?उन्होंने कहा कि उनके गुरुजी ने उनसे कहा है यदि कवच खोलना सीखना चाहते हो तो 10000 रु लगेंगे।उनके गुरु का नाम पूछने पे उन्होंने जो नाम बताया वो हमारी फेसबुक आई डी में हमारे मित्र है और हर पोस्ट पड़ते है लाइक कमेंट नही करते किन्तु हा मेरी पोस्ट से विधि पढ़ कर बेच सकते है।मित्रों आप कोई भी तंत्र की किताबें,लाल-काली किताब या किसी भी मंत्र शास्त्र में कवच खोलने का विधान नाही बताया गया है।ये मुझे स्वप्न के माध्यम से प्राप्त हुआ था।जगत कल्याण की भावना से ये विधि सभी को बताई गई थी,आज उसको मेरे मित्र ही बेच रहे है।इसी प्रकार एक मशहूर लेखक ने भी इस विधि को अपने नाम से प्रकाशित किया एवं बाद में क्षमा माँगी।
मित्रो नीचे दिया मंत्र मुझे बनारस से वापसी के दौरान एक श्री नाथ साधु महाराज ने मेरी सेवा से प्रसन्न हो कर मुझे प्रदान किया था और इसको सिद्ध करने की पूरी विधि बताई थी।यहां पोस्ट ज्ञानार्थ लिखी गई है जो भी व्यक्ति इस मंत्र को सिद्ध करना चाहता हो वो मुझसे निजी रूप से बात कर विधि प्राप्त कर सकता है।

।।मंत्र।।

ॐ आई काली पूरु सिद्धेश्वरी अवतर-अवतर स्वाहा .........ॐ दशांगुली भीन्दलि ।वीरूड हारी मैंरुण्ड-भैरवी विधाराणी । रोला बंद।मुष्टि बंद। बाण बंद ।कृत्य बंद। रूद्र बंद। नेख बंद ।ग्रह बंद। प्रेत बंद ।भूत बंद ।यक्ष बंद ।कंकाल बंद। बेताल बंद। आकाश बंद। पाताल बंध।पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण सर्व दिशा बंद।ये और ये आछि कह। हस हस अवतर-अवतर। दशा विप्रा-रानी दशांगुलि शातास्त्र बंदिनी।वैदसि हूँ फट् स्वाहा।।

व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©₂₀₁₇
।। राहुलनाथ।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु निर्देशन के साधनाए ना करे। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

गुरुवार, 25 मई 2017

जन्म पत्रिका द्वारा साधना का चयन !!

जन्म पत्रिका द्वारा साधना का चयन !!
प्राचिन धर्म ग्रंथानुसार देवताओं की संख्या 33 करोड बताई गई है! ऎसी अवस्था मे यह निर्णयक करना कठीन हो जाता है !!की  हम किसकी उपासना करे किस्की साधना करने से सफलता प्राप्त होगी !!मेरा ऎसे साधको से संपर्क भी हुआ है जिनका मानना है की वो लगातार साधना कर रहे है कुछ तो 20 वर्षो से इस मार्ग पे प्रशस्त है किन्तु सफलता नही प्राप्त हो रही ! क्या कारण है??
इसका मुख्य कारण है  देवि देवता का सही चयन नही करना !! इसी कारण इष्ट का चयन महत्वपुर्ण होता है !! अब समस्या है की आप इष्ट का चयन कैसे करेंगे? वो कौन सा देवता है जिसकी प्रार्थना पुजा से सफलता प्राप्त हो?
इसका निर्णय गुरु मुख द्वारा या ज्योतिष विज्ञान के गुप्त एवं सुत्रों द्वारा जानना ही ठीक रहता है !जन्म पत्रिका के पंचम भाव से बुद्धि एवं प्रवृ्ति  का और नवम भाव से धर्म एवं अनुकुल देवि देवता  का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है! यदि
पंचम भाव- में शुभ ग्रह और बुद्ध,चंद्र,गुरु,शुक्र,पंचमेश शुभ ग्रह हो,यो जातक सात्विक भाव का साधक होता है ! यदी पंचम भाव में राहु-केतु हो,तो साधक भुत-प्रेत,जादु-टोना आदि आसुरिक साधनाओ को करने वाला होता हे!यदि पंचम भाव का स्वामी पाप ग्रह सुर्य,मंगल,शनि हो अथवा पंचम में पाप ग्रह उपस्थित हो,तो साधक राजसिक एवं तामसिक साधनाये करता है !
नवम भाव-नवम भाव मेंपुरुष ग्रह जैसे सुर्य,मंगल, हो अथवा नवम भवन का स्वामी पुरुष ग्रह हो,तो पुरुष देवता की साधना करना उत्तम होता है !गुरु होने से सात्विक एवं वैष्णव साधना करना उत्तम होता है !सौम्य चंद्र तथा शुक्र होने से तथा इनका संबंध होने से देवी की साधना मे सफलता प्राप्त होती है ! बुद्ध एवं शनि का नवम स्थान मे होना या  नवमेश शनि का होने  से श्री शिव साधना मे सफलता प्राप्त होति है!नवम में बुद्ध होने अथवा नवमेष बुद्ध होने से देवि की साधना मे सफलता मिलति है!नवम मे एक ग्रह होने से या एक भी ग्राह नही होने से नवमेश से  देवि देवता का चयन करना चाहिये !नवम  से राहु-केतु  का संबंध होने से उग्र देवताऔ की साधना  मे सफलता प्राप्त होती है !
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।।राहुलनाथ।।
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रहस्यमयी विद्या

रहस्यमयी विद्याओ का जो थोड़ा बहुत ज्ञान मुझे मिला वो अधिकांश ज्ञान मुझे उन पवित्र आत्माओ से मिला जो अब धरती में नही बस्ती।और जब वे धरती पे बस्ते भी थे तब भी उन्हें ये ज्ञान मृत आत्माओ से ही प्राप्त हुआ था।पंचेन्द्रियों में जन्मा व्यक्ति मात्र इन्द्रियों की अनुभूति के अनुसार ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है जो कि मिथ्या मात्र है।चार इन्द्रियों में अंकुश लगाया जा सकता है किंतु पांचवी इन्द्रिय से बना ये शरीर अंत मे बाधक हो जाता है,इससे पार पाना नामुमकिन तो नही किन्तु मुश्किल जरूर है।शरीर से बाहर निकल कर इस ज्ञान को अनुभूत किया जा सकता है लेकिन ये सब के बस की बात नही किन्तु हा ये अनुभूति सामान्यतः सभी 24 घंटे में एक बार अवश्य कर सकते है यदि आप सजग है तो क्योकि आत्मा को 24 घंटे में एक बार इस शरीर का त्याग करना ही होता है फिर वो क्षण मात्र के लिए ही क्यो ना हो।बहुत बार हम स्वप्न में देखते है की हम शरीर से बाहर है और आसमान में उड़ रहे है इसे हम स्वपन समझ कर भूल जाते है लेकिन ये अनुभूत स्वप्न में ही होता है या फिर ऐसा कहे की जब ये अनुभूत होता है तो स्वपन के समान लगता है।
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।।राहुलनाथ।।

रविवार, 21 मई 2017

प्रेम,स्त्री-पुरुष एवं आत्मरति

प्रेम,स्त्री-पुरुष एवं आत्मरति
यदि कोई स्त्री या पुरुष ,किसी साधारण से साथी के भी प्रेम के  प्रति पूर्ण रुप से समर्पित हो जाये तो समझो कि उसके कुंडलिनी के चारो चक्र खुल चुके है और अब वो पांचवे के द्वार पे है।अब ये प्रेम पति/पत्नी के प्रति भी हो सकता है या किसी अन्य के प्रति भी।किन्तु पति/पत्नी में ये हुआ तो ये देश ,धर्म और संस्कार के अनुसार होगा एवं अस्वाद का सामना कर पतन का ग्रास नही होना पड़ेगा क्योंकि काम,क्रोध,मोह एवं अस्वाद आपका पतन कर धरातल में पहुचा देता है वही ,पति/पत्नी का प्रेम संबंध योग की उस शिखर तक ले जाता है जहां सामान्य साधको को पहुचने में वर्षो लग जाते है।इसी लिए भारतीय शास्त्रो में स्त्री को देवी का स्थान प्राप्त है क्योंकि वो पुरुष को अपने प्रेम से सीधे परमात्मा मान कर  के स्वयं को उस महान परामात्मा के समक्ष प्रस्तुत कर देती है।यही कारण है कि हिन्दू शास्त्रो के अनुसार पति को परमेश्वर या परमात्मा का स्थान प्राप्त होता है।तंत्र में इसका विस्तृत विधान है किंतु वे समझदार लोग जो इस विद्या को समझ नही पाए उन्होंने इसका कुछ और ही मतलब निकाला।ये पूर्ण रूप से भीतर की आध्यात्मिक रति है।बाहर का शरीर मील-मील के एक दिन तक जाता है और उस दिन शुरू होती है प्रेम में आध्यात्मिक रति जहां ,पुरुष को भीतर की स्त्री एवं स्त्री को उसके भीतर का पुरुष मिल जाता है यही है भगवान शिव की अर्द्ध नारीश्वर की दिव्य अवस्था।।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
।।राहुलनाथ।।

गुरुवार, 18 मई 2017

तंत्र और गुप्तता का नियम

तंत्र और गुप्तता का नियम
एक बीज को धरती में दबाने के बाद ,यदि उसे बार-बार  खोल कर देखा गया तो फिर कैसे वृक्ष बन पाएगा ।इसी प्रकार यदि किसी भी मनोकामना, पूजा विधि,मंत्र जाप,अनुष्ठान ,मन्नत,उपवास,प्रतिज्ञा,संकल्प, साधना आदि को गुप्त नहीं रखा गया और उसे अवचेतन की धरती में दबाके ,सबको बार-बार बताके उसे लगातार दबाने के बाद खोदने से ,उसकी गुप्ता टूट जाती है और वो विधि-विचार वृक्ष के समान पनप नही पाता।वो पैदा होते ही मर जाता है।
सकारात्मक प्रार्थना विधि हो या नकारात्मक दोनों इच्छाएं ये अवचेतन की धरती पूरा करती है।
अब सही गलत प्रार्थना विधि पूजा का चयन तो आपके अनुभव पे निर्भर करता है।यदि आप चाहे तो अपने आप के लिए अपने भाई-बंधु,माता-पिता,मित्र,समाज ,ग्राम या देश के लिए सकारात्मक प्रार्थना भी कर सकते है वही,इन सबके लिए नकारात्मक प्रार्थना भी कह सकते है।इसी प्रकार तंत्र में नकारात्मक से सकारात्मक तक के दस अवस्थाओ को ,दश महाविद्या में,दस देवियो का नाम दिया है।यहां दसवीं अवस्था सहस्त्रार के ऊपर की अवस्था है।यही अवस्था सिक्खों का दशम।द्वार है।यही अवस्था क्रिश्चन में अंतिम अवस्था "क्रास" है,इस्लाम मे यही अवस्था "जन्नत का दरवाजा" है।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार)
।। राहुलनाथ ©₂₀₁₇।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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बुधवार, 17 मई 2017

शनि देव-शनि पुजा विधि

पत्नी की पूजा से बहुत प्रसन्न होते हैं शनि देव-शनि पुजा विधि
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शनि पत्नी मंत्र 
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ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा।। 
शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन‍् पुमान्।
दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम।। 

नियमित इस मंत्र का 21 बार जप करने से शनि देव की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

सूर्य और शनि की कृपा एक साथ पाने के लिए
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प्रातः काल सूर्य को देखते हुए
'सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः
मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां दहतु मे शनिः'

नियमित इस मंत्र का 21 बार जप करने से शनि देव की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

दान द्वारा शनि कृपा की प्राप्ति
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मजदूर, भिखारी, आदि कमजोर वर्गों को भोजन करवाने एवम तिल-तेल का दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते है। हैं।

श्री शनि चालीसा
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दोहा
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।

चौपाई

जयति-जयति शनिदेव दयाला।करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।कहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।तृण को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

।।दोहा ।।
प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।
नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।

II शनि कवचं ।।
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अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II 
अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II 
शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II 
निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् II 
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः II १ II 

ब्रह्मोवाच II 

 श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् I 
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् II २ II 

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् I 
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् II ३ II 

ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः I 
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः II ४ II 

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा I 
स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः II ५ II 

स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः I 
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा II ६ II 

नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा I 
ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा II ७ II 

पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः I 
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः II ८ II 

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः I 
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः II ९ II 

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा I 
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः II १० II 

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे I 
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् II ११ II 

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा I 
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा I 
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः II १२ II 

 II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं II 

शनि वज्र पञ्जर कवच
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विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनैश्चर-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्द, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चर-प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।१

ब्रह्मोवाच-
श्रृणुषवमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहरं महप्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।२
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।३
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।
नेत्रे छायात्मजः पातु, पातु कर्णौ यमानुजः।।४
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।
स्निग्ध-कंठस्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः।।५
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा।।६
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटि तथा।
ऊरु ममांतकः पातु यमो जानुयुग्म तथा।।७
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दनः।।८

फलश्रुति

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रोतो भवति सूर्यजः।।९
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा।
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।१०
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।११
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।१२
।।श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारद-संवादे शनि-वज्र-पंजर-कवचं।।

।। राहुलनाथ ©₂₀₁₇।।™,भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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