राहु क्या है
राहु एक छाया ग्रह है,जिसे चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है,इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती है,और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती हैं,उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते है,यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है।
राहु के कुप्रभाव से बचने के लिये रत्न धारण करना
राहु के कुप्रभाव से कालान्तर तक बचने के लिये रत्नों को धारण किया जाता है,अलग अलग भावों के राहु के प्रभाव के लिये अलग अलग तरह के रंग के और प्रकृति के रत्न धारण करवाये जाते है,अधिकतर लोग गोमेद को राहु के लिये प्रयोग करवाते है,लेकिन गोमेद एक ही रंग और प्रकृति का हो,यह जरूरी नही होता है,जैसे धन के भाव को राहु खराब कर रहा है,और अक्समात कारण बनने के बाद धन समाप्त हो जाता है,तो खूनी लाल रंग का गोमेद ही काम करेगा,अगर उस जगह पीला या गोमूत्र के रंग का गोमेद पहिन लिया जाता है,तो वह धार्मिक कारणों को करने के लिये और सलाह लेने का मानस ही बनाता रहेगा.
इसके अलावा भी राहु के लिये कई उपाय जीवन में बहुत जरूरी है,इन उपायों के करने से भी राहु अपनी सिफ़्त को कन्ट्रोल में रखता है।
राहु का पहला कार्य होता है झूठ बोलना और झूठ बोलकर अपनी ही औकात को बनाये रखना,वह किसी भी गति से अपने वर्चस्व को दूसरों के सामने नीचा नही होना चाहता है। अधिकतर जादूगरों की सिफ़्त में राहु का असर बहुत अधिक होता है,वे पहले अपने शब्दों के जाल में अपनी जादूगरी को देखने वाली जनता को लेते है फ़िर उन्ही शब्दों के जाल के द्वारा जैसे कह कुछ रहे होते है जनता का ध्यान कहीं रखा जाता है और अपनी करतूत को कहीं अंजाम दे रहे होते है,इस प्रकार से वे अपने फ़ैलाये जाल में जनता को फ़ंसा लेते है.
राहु का कार्य अपने प्रभाव में लेकर अपना काम करना होता है,सम्मोहन का नाम भी दिया जाता है,जो लोग अपने प्रभाव को फ़ैलाना चाहते है वे अपने सम्मोहन को कई कारणों से फ़ैलाना भी जानते है,जैसे ही सम्मोहन फ़ैल जाता है लोगों का काम अपने अपने अनुसार चलने लगता है। जैसे पुलिस के द्वारा अक्सर शक्ति प्रदर्शन किया जाता है,उस शक्ति प्रदर्शन की भावना में लोगों के अन्दर पुलिस का खौफ़ भरना होता है,यही खौफ़ अपराधी को अपराध करने से रोकता है,यह खौफ़ नाम का सम्मोहन फ़ायदा देने वाला होता है। इसी प्रकार से अपने कार्यालय आफ़िस गाडी घर शरीर को सजाने संवारने के पीछे जो सम्मोहन होता है वह अपने को समाज में बडा प्रदर्शित करने का सम्मोहन होता है,अपने को बडा प्रदर्शित करना भी शो नामका सम्मोहन राहु की श्रेणी में आता है.
राहु की जादूगरी से अक्सर लोग अपने को दुर्घटना में भी ले जाते है,जैसे उनके अन्दर किसी अच्छे या बुरे काम को करने का विचार लगातार दिमाग में चल रहा है,अथवा घर या कोई विशेष टेंसन उनके दिमाग में लगातार चल रही है,उस टेंशन के वशीभूत होकर जहां उनको जाना है उस स्थान पर जाने की वजाय अन्य किसी स्थान पर पहुंच जाते है,अक्सर गाडी चलाते वक्त जब इस प्रकार का कारण दिमाग में चलता है तो अक्समात ही अपनी गाडी या वाहन को मोडना या साइड में ले जाना या वचारों की तंद्रा में खो कर चलना दुर्घटना को जन्म देता है,राहु की यह कार्यप्रणाली बहुत ही खतरनाक होती है.राहु अगर कमजोर है तो किसी ग्रह की सहायता से केतु राहु से बचाने का काम करता है,वह वक्त पर या तो ध्यान देता है और या फ़िर किसी के द्वारा इशारा करवा कर आने वाली दुर्घटना को दूर कर देता है.
राहु शराब के रूप में शरीर के खून में उत्तेजना देता है,मानसिक गति को भुलाने का काम करता है लेकिन शरीर पर अधिक दबाब आने के कारण शरीर के अन्दरूनी अंग अपना अपना बल समाप्त करने के बाद बेकार हो जाते है,यह राहु अपने कारणों से व्यक्ति की जिन्दगी को समाप्त कर देता है.
लाटरी जुआ सट्टा के समय राहु केवल अपने ख्यालों में रखता है और जो अंक या कार्य दिमाग में छाया हुआ है उस विचार को दिमाग से नही निकलने देता है,सौ मे से दस को वह कुछ देता है और नब्बे का नुकसान करता है.
ज्योतिष के मामले में राहु अपनी चलाने के चक्कर में ग्रह और भावों को गलत बताकर भय देने के बाद पूंछने वाले से धन या औकात को छीनने का कार्य करता है.
वैसे राहु की देवी सरस्वती है और अपने समय पर व्यक्ति को सत्यता भी देती है लेकिन सरस्वती और लक्ष्मी में बैर है,जहां सरस्वती होती है वहां लक्ष्मी नही और जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नही.जो लोग दोनो को इकट्ठा करने के चक्कर में होते है वे या तो कुछ समय तक अपने झूठ को चलाकर चुप हो जाते है या फ़िर सरस्वती खुद उन्हे शरीर धन और समाज से दूर कर देती है,अथवा किसी लक्ष्मी के कारण से उन्हे खुद राहु के साये में जैसे जेल या बन्दी गृह में अपना जीवन निकालना पडता है
||राहु क्यों प्रताडित करता है||
यह अकाट्य सत्य है कि जीव को अपने किये कर्म निश्चित भोगने पडेंगे,जब जीव धोखेबाज दगाबाज या कर्ज लेकर वापस नही करता,या सहायता के लिये लिया पैसा वापस नही करता,निकृष्ट दलित गलित निन्दनीय कार्य करता है,समाज की कुल की तथा शास्त्र की आज्ञा का उलंघन करता है,तो राहु उसके साथ क्रूरता करता है,राहु राक्षस होने के कारण बुरी तरह से प्रताडित करता है। कठोरता से कर्म का भोग करवाता है,पागलपन अनिद्रा मस्तिष्क की चेतना समाप्त कर देता है,जिसके कारण जातक की निर्णय शक्ति समाप्त हो जाती है,वह अपने हाथों से अपने पैरों को काटना शुरु कर देता है,यदि जातक बहुत अधिक निन्दनीय कर्मी है,तो दूसरे जन्म में पैदा होने के बाद बचपन से ही उसकी चेतना को बन्द कर देता है,और उसे अपने घर से भगा देता है,और याद भी नही रहने देता कि वह कहां से आया है,उसका कौन बाप है और कौन मां है,वह रोटी पानी के लिये जानवरों की भांति दर दर का फ़िरता रहता है,कोई टुकडा डाल भी दे तो खाता है,और आसपास के जानवर उसे खाने भी नही देते,कमजोर होने पर वह या तो किसी रेलवे स्टेशन पर मरा मिलता है,अथवा कुत्तों के द्वारा उसे खा लिया जाता है,कभी कभी अधिक ठंड या बरसात या गर्मी के कारण रास्ते पर मर जाता है,यह सब उसके कर्मो का फ़ल ही उसे मिलता है,बाप के किये गये कर्मो का फ़ल पुत्र भोगता है,पुत्र के किये गये कर्म पौत्र भोगता है,इसी प्रकार से सीढी दर सीढी राहु भुगतान करता रहता है
||वैवाहिक जीवन को कैसे बचाया जा सकता है राहु के
दोष से जानिए राहुु और लव मैरिज और शादी से जुड़ी बातें||
राहु का स्वभाव है लीक से हटकर चलना। यही वजह है कि जब विवाह भाव का संबंध राहु से बनता है तो वह लीक से हटकर विवाह करवाता है।यानी कि व्यक्ति अपनी परंपरा व रीति-रिवाजों सेअलग हटकर विवाह कर सकता है।ज्योतिष शास्त्र में प्रेम विवाह और तलाक के कई योग
दिए गए हैं। उनमें से एक योग राहु के पहले भाव में अकेले स्थित होने पर बनता है। यदि कुंडली के पहले या सातवें घर में राहु की मौजूदगी हो तो व्यक्ति का विवाह घरवालों की सोच से अलग होता है। ये ऐसे इंसान के साथ शादी करने की इच्छा रखते है, जहां शुरुआती तौर पर घरवालों द्वारा इंकार ही किया जा सकता है।ऐसे राहु को यदि गुरु ग्रह का साथ मिल जाए तो यह विवाह घरवालों द्वारा जल्दी ही स्वीकार कर लिया जाता है लेकिन किसी शुभ ग्रह का प्रभाव नहीं होने पर पति-पत्नी को अपना विवाह बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ सकता है।राहु-केतु के अकेले पहले भाव में होने से ऐसी शादी के निभने में घरवालों द्वारा ही परेशानी खड़ी की जा सकती है।
यह संभावना हो सकती हैं कि लंबे समय तक जीवनसाथी से दूर रहना पड़े।शादी ही नहीं, राहु तलाक के योग भी बनाता है...
राहु जहां व्यक्ति को इंटरकास्ट (गैर जाति में) मैरिज के लिए उकसाता है वहीं यह राहु तलाक
भी करवा सकता है। राहु का स्वभाव अलग करना व दूरियां लाना भी है। कुंडली में जहां पहिले या सातवे घर में बैठा राहु जीवनसाथी से आकर्षण में बांधे रखता है। वहीं यह राहु वैचारिक मतभेद
की स्थिति भी निर्मित करता है। जिसके फलस्वरुप पति-पत्नी के मध्य तनाव की स्थिति आ जाती है।यदि दोनों ही की पत्रिका में राहु पहले या सातवे घर में मौजूद हो तो यह तनाव अधिक बढ़ जाता है। लव मैरिज होने के बाद भी रिश्ते से लव कब गायब होने लगता है, इस बात का अंदाजा पति-
पत्नी दोनों नहीं कर पाते हैं। ऐसा रिश्ता आगे चलकर तलाक में बदल जाता है।
*राहु के कारण वैवाहिक संबंध बिगड़ने की स्थिति में
पति-पत्नी दोनों को हर शनिवार को पानी में
जटा वाला एक नारियल बहाना चाहिए।
*लक्ष्मी-नारायण की ऐसी मूर्ति जिसमें
माता लक्ष्मी विष्णु जी के पैर दबा रहीं हों, पूजा घर
में रखना चाहिए। हर शुक्रवार को इस मूर्ति का पूजन
करें।
ऊँ लक्ष्मी नारायणाय नमः
मंत्र का 108 बार जप करें। माता लक्ष्मी व नारायण
को चावल की खीर का भोग लगाएं। इस खीर के
प्रसाद को पति-पत्नी जरुर खाएं।
*भगवान गणेश हर प्रकार के संकटों को दूर करने वाले
देव हैं। गणेश मंदिर में घी का पांच
बत्तियों वाला दीपक जलाएं। भगवान गणेश के 12
नामों का जप करें। भगवान गणेश को 21 दूर्वा अर्पित
करें। इस उपाय को लगातार 21 बुधवार तक करें। साथ
ही वैवाहिक जीवन में खुशियां बनाए रखने
की प्रार्थना भगवान गणेश से करें।
भगवान गणेश के बारह नाम..
ऊँ सुमुखाय नमः ऊँ एकदंताय नमः ऊँ कपिलाय नमः ऊँ
गजकर्णकाय नमः
ऊँ लंबोदराय नमः ऊँ विकटाय नमः ऊँ
विघ्ननाशानाय नमः ऊँ विनायकाय नमः
ऊँ धूम्रकेतवे नमः ऊँ गणाध्यक्षाय नमः ऊँ भालचंद्राय
नमः ऊँ गजाननाय नमः
||राहु द्वारा होने वाले कुछ रोगो का छोटा सा ब्यौरा ||
१---राहु मेष राशि में हो तो अचानक बेहोश होने
जैसी घटना हो सकती है।
२---वृष में हो तो गले में संक्रमण।
३---मिथुन में हो तो हाथो की हड्डी टूटना।
४---कर्क में हो तो फेफड़ो में समस्या-ह्रदय-गति रुकने
का डर।
५---सिंह राशि में हो तो मन में घबराहट। हड्डी में
समस्या। वात का रोग।
६---कन्या में राहु हो तो शादीशुदा जीवन में
समस्या।
७---तुला में हो तो यौन रोग होने की सम्भावना।
८---वृश्चिक में राहु हो तो जातक कलह-प्रिय -
झगड़ा करने वाला।
९---धनु में राहु हो तो मानसिक रोग-भुत-प्रेत बाधा।
१०---मकर में हो तो शरीर के निचले हिस्से में दर्द
शिकायत।
११---कुम्भ में राहु हो तो जातक शंका बहुत करता है -
सब पर शक करता है।
१२---मीन में राहु को सांप के काटने का डर ,विष
दिए जाने का खतरा ,विषैले जीवो से डंक
का का खतरा।
।।राहुकाल ।।
राहुकाल स्थान और तिथि के अनुसार अलग-अलग होता है अर्थात प्रत्येक वार को अलग समय में शुरू होता है। यह काल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है।राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार इस समय अवधि में शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए।
कब होता है राहुकाल-
रविवार : शाम 04:30 से 06 बजे तक,
सोमवार : 07:30 से 09 बजे तक,
मंगलवार : 03:00 से 04:30 बजे तक,
बुधवार : 12:00 से 01:30 बजे तक,
गुरुवार : 01:30 से 03:00 बजे तक,
शुक्रवार : 10:30 बज से12 बजे तक
शनिवार : सुबह 09 बजे से 10:30 बजे तक।
।।राहु को शांत करने के लिए अपनाएं लाल किताब के उपाय।।
*यदि राहु प्रथम भाव में बैठा हो तो जातक को को 400 ग्राम सूरमा, नारियल, सत्तू व दूध के मिश्रण को बहते जल में प्रवाह करना चाहिए।
*दूसरे भाव में राहु का शुभ फल पाने हेतु जेब में चांदी रखें, ससुराल पक्ष से कोई भी विद्युत उपकरण ना लें एवं अपनी माता से उचित व्यवहार करें।
*राहु तीसरे भाव में बैठा है तो उसे शांत करने हेतु ध्यान रखें कि घर में किसी भी जानवर की चमड़ी न रखें।
*चौथे भाव में राहु की पीड़ा शांत करनी हो तो जातक चांदी के आभूषण धारण करे एवं 400 ग्राम धनिया या बादाम बहते जल में प्रवाहित करें।
*यदि पांचवें भाव में राहु अशुभ फल दे रहा है तो अपने पास हाथी की मूर्ति रखें और मास-मदिरा का त्याग करें।
*छठे भाव में राहु की पीड़ा शांत करने के लिए घर में काला कुत्ता रखें एवं भाई-बहन से झगड़ा न करें।
*सातवें भाव में राहु से पीडित जातकों को 21 वर्ष से पूर्व विवाह न करने की सलाह दी जाती है।*आठवें भाव में राहु के शुभ फल पाने के लिए चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें। सोते समय तकिये में सौंफ रखने से भी फायदा होता है।
*यदि नौवें भाव में राहु परेशान कर रहा है तो जातक को केसरिया तिलक लगाना चाहिए और सोने के आभूषण धारण करना चाहिए। घर में कुत्ता पालने से भी फायदा होता है।
*दसवें भाव में अगर राहु ग्रह से हानि हो रही हो तो जातक को काले एवं नीले रंग की टोपी पहनने की सलाह दी जाती है।
*ग्यारहवें भाव में राहु हावी हो रहा है तो जातक लौह-धातु धारण करे और किसी से भी कोई विद्युत उपकरण उपहार में ग्रहण न करें।
*बारहवें भाव में होने के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो सोने से पहले तकिये में सौंफ और खाण्ड रखने की सलाह दी जाती है।
||राहु मंत्र का विनियोग||
ऊँ कया निश्चत्रेति मंत्रस्य वामदेव ऋषि: गायत्री छन्द: राहुर्देवता: राहुप्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:॥
दाहिने हाथ में जाप करते वक्त पानी या चावल ले लें,और यह मंत्र जपते हुये वे चावल या पानी राहुदेव की प्रतिमा या यंत्र पर छोड दें।
||राहु मंत्र का देहागंन्यास||
कया शिरसि। न: ललाटे। चित्र मुखे। आ कंठे । भुव ह्रदये। दूती नाभौ। सदा कट्याम। वृध: मेढ्रे सखा ऊर्वौ:। कया जान्वो:। शचिष्ठ्या गुल्फ़यो:। वृता पादयो:।
क्रम से सिर माथा मुंह कंठ ह्रदय नाभि कमर छाती जांघे गुदा और पैरों को उपरोक्त मंत्र बोलते हुये दाहिने हाथ से छुये।
||राहु मंत्र का करान्यास||
कया न: अंगुष्ठाभ्यां नम:। चित्र आ तर्ज्जनीभ्यां नम:। भुवदूती मध्यमाभ्यां नम:। सदावृध: सखा अनामिकाभ्यां नम:। कया कनिष्ठकाभ्यां नम:। शचिष्ट्या वृता करतलपृष्ठाभ्यां नम:॥
राहु मंत्र का ह्रदयान्यास
कयान: ह्रदयाय नम:। चित्र आ शिर्षे स्वाहा। भुवदूती शिखायै वषट। सदावृध: सखा कवचाय: हुँ। कया नेत्रत्रयाय वौषट। शचिष्ठ्या वृता अस्त्राय फ़ट।
||राहु मंत्र के लिये ध्यान||
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली।
चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु: सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥
||राहु गायत्री||
नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।
||राहु का वैदिक बीज मंत्र||
ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥
||राहु का जाप मंत्र||
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥
||राहु स्तोत्र||
राहु: दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्त नन्दन:। अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्र आदित्य विमर्दन:॥
रौद्र: रुद्र प्रिय: दैत्य: स्वर-भानु:-भानु भीतिद:। ग्रहराज: सुधा पायी राकातिथ्य-अभिलाषुक:॥
काल दृष्टि: काल रूप: श्री कण्ठह्रदय-आश्रय:। विधुन्तुद: सैहिकेय: घोर रूप महाबल:॥
ग्रह पीडा कर: दंष्ट्री रक्त नेत्र: महोदर:। पंचविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नर:॥
य: पठेत महतीं पीडाम तस्य नश्यति केवलम। आरोग्यम पुत्रम अतुलाम श्रियम धान्यम पशून-तथा॥
ददाति राहु: तस्मै य: पठते स्तोत्रम-उत्तमम। सततम पठते य: तु जीवेत वर्षशतम नर:॥
||राहु मंगल स्तोत्र||
राहु: सिंहल देश जश्च निऋति कृष्णांग शूर्पासनो।
य: पैठीनसि गोत्र सम्भव समिद दूर्वामुखो दक्षिण:॥
य: सर्पाद्यधि दैवते च निऋति प्रत्याधि देव: सदा।
षटत्रिंस्थ: शुभकृत च सिंहिक सुत: कुर्यात सदा मंगलम॥
उपरोक्त दोनो स्तोत्रों का नित्य १०८ पाठ करने से राहु प्रदत्त समस्त प्रकार की कालिमा भयंकर क्रोध अकारण मस्तिष्क की गर्मी अनिद्रा अनिर्णय शक्ति ग्रहण योग पति पत्नी विवाद तथा काल सर्प योग सदा के लिये समाप्त हो जाते हैं,स्तोत्र पाठ करने के फ़लस्वरूप अखंड शांति योग की परिपक्वता पूर्ण निर्णय शक्ति तथा राहु प्रदत्त समस्त प्रकार के कष्टों से निवृत्ति हो जाती है।
इस लेख के कुछ अंशो का संकलन व्हॉट्सप द्वारा प्राप्त पोस्टो के माध्यम से किया गया है।
संकलित पोस्ट,लेखक एवं संकलन करता :-राहुलनाथ,भिलाई
*****जयश्री महाकाल****
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।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
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