सोमवार, 19 सितंबर 2022

चमत्कारी प्रयोग

#चमत्कारी_प्रयोग 
डूबा धन या डूबा व्यवसाय निरंतर घाटा होने से,यह चमत्कारी प्रयोग करे...
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दिन मंगलवार हो या रविवार,दोनो में से किसी एक दिन यह प्रयोग करना है ।आपको लौंग लेनी है जो बिना टूटी-फूटी हो ।आपका जीतना धन डूबा है उसके अनुसार,जैसे मान लेते है कि 1000 रु डूबे है तो 10 लौंग लेनी है 10000 पे 100 लौंग।इस प्रकार से आगे की धनराशि के अनुसार लौंग ले ले,साथ ही 50 ग्राम कौड़ी लुभान, इन दोनों वस्तुओं को एकत्रित करे और दोनों को मिला कर जिससे धन लेना है या व्यापार में घाटा हो रहा है तो उसका उल्लेख कर लकड़ी कोयले पे इन वस्तुओं को जला दीजिये।जिससे धन लेना हो उसका नाम अवश्य ले ।सारी लौंग जलने तक उसी स्थान पे रहे ,दोनो वस्तुएं जलने के बाद 3 चुटकी भस्म की पुड़िया बना कर अपने पास रखे,प्रयोग गुप्त रखे।महाकाल की कृपा से काम हो जाएगा।
🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल महादेव 🔱

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#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,
📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)

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#चेतावनी_डिसक्लेमर:-
इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-
साबरी ग्रंथो,लोक मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)

#तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)
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#शक्ति_के_विविध_रूप-
माया, महामाया, मूल-प्रकृति, अविद्या, विद्या, अव्यक्त, अव्याकृत, कुण्डलिनी, महेश्वरी, आदिशक्ति, आदिमाया, पराशक्ति, परमेश्वरी, जगदीश्वरी, तमस, अज्ञान ये सभी ‘शक्ति’ के पर्यायवाची हैं।

नवदुर्गा, काली, अष्टलक्ष्मी, नवशक्ति, देवी आदि एक ‘पराशक्ति’ की ही अभिव्यक्तियाँ हैं।

महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली शक्ति के तीन प्रधान व्यक्त स्वरूप हैं। राधा और रुकिमणि लक्ष्मी के ही दूसरे रूप हैं और तारा तथा चण्डी देवी के रूप हैं।

प्रकृति व्यक्त और अव्यक्त है। मूल-प्रकृति अव्यक्त है, और इस भेद जगत का बीज है। इसमें जड़ तथा चेतन अभिन्न रूप में रहते हैं। जब ये शरीर में स्थित मूलाधारचक्र की अधिष्ठात्री देवी बनती है, तब ये ‘डाकिनी’ का रूप धारण कर लेती है; स्वाधिष्ठान चक्र में ये ‘राकिनी’ बन जाती है, मणिपुर चक्र में ये ‘लाकिनी’ के रूप में रहती है, अनाहत में ये ‘काकिनी’ के रूप में रहती है तथा विशुद्ध चक्र में ये ‘शाकिनी’ के रूप में रहती हैं।

परा और अपरा प्रकृति
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शक्ति सत्व, रज और तम के द्वारा अपना कार्य करती है। इस स्थूल जगत की सृष्टि के लिये आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी, ये पाँच तत्व अर्थात पंचमहाभूत उनके साधन हैं।  ये पंचतत्व और मन, बुद्धि और अहंकार मिलकर जड अथवा अपरा प्रकृति कहलाते हैं। यह स्वयं संसार के लिये बंधनरूप हैं। 

परा प्रकृति विशुद्ध हैं। ये स्वयं आत्मरूप है, क्षेत्रज्ञ है। ये ही जीवन को धारण करती है। यह समस्त जगत के अन्दर प्रवेश कर उसे धारण किये हुए है। इसे चैतन्य प्रकृति भी कहते हैं।

शक्ति की अवस्थाएँ –
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शक्ति की दो अवस्थाएँ होती हैं – गुण-साम्यावस्था और वैषम्यावस्था। गुण-साम्यावस्था वह अवस्था है जिसमें तीनों गुण – सत्व, रज और तम साम्यावस्था में स्थित रहते हैं, जो प्रलयकाल में होती है। उस समय असंख्य जीव अपने संस्कारों तथा अधिष्ठाता (अधिष्ठाता का अर्थ – कर्म की अदृश्य शक्ति अथवा फलदायिनी शक्ति जो कर्म के अन्दर छिपी रहती है) के साथ अव्यक्त अवस्था में रहते हैं।

वैषम्यावस्था वह अवस्था है जब प्रलय के पश्चात साम्यावस्थित शक्ति में स्पंद अर्थात स्फूर्ति होती है, ताकि तिरोहित जीवों को अपने-अपने कर्मों का फल भोगने की इच्छा होती हैं। इससे बह्म सृष्टि के हेतु बाध्य हो जाते हैं और उनके संकल्प मात्र से सृष्टि उत्पन्न हो जाती हैं। 

सृष्टि के समय जब आदिशक्ति के अन्दर क्षोभ होता है तो तीनों गुण- सत्व, रज और तम व्यक्त हो जाते हैं।

दस महाविद्याओं का नाम
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दस महाविद्याओं का सम्बन्ध सती, शिवा और पार्वती से हैं। ये ही विभिन्न रूपों में नवदुर्गा, शक्ति, चामुण्डा, विष्णुप्रिया आदि नामों से पूजित और अर्चित की जाती हैं। देवीपुराण में एक कथा आती है कि जब माता सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में जाना चाही तब भगवान् शिव ने निषेध किया। इससे क्रोधित हो भगवती ने अपनी अङ्गभूता दस देवियों को प्रकट की। माता आदिशक्ति की ये स्वरूपा शक्तियाँ ही दस महाविद्याएँ, जिनके नाम हैं-

काली, तारा, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, मातङ्गी और कमला।
(शक्तियां एक ही है किंतु अलग-अलग नामो से इनको पुकारा जाता है)

शम्भो ! मैं भयंकर रूपवाली भैरवी हूँ। आप भय न करें। ये सभी मूर्तियाँ बहुत सी मूर्तियों में प्रकृष्ट अर्थात मुख्य हैं।

चामुण्डा तन्त्र के अनुसार ये दस महाविद्याएँ हैं- 

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी ।

भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमवती तथा ।।

बगला सिद्धविद्या च मातङ्गी कमलात्मिका ।

एता दस महाविद्या: सिद्धि विद्या: प्रकीर्तिता ।।

दस महाविद्याएँ का स्वरूप –
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वास्तव में काली, तारा, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, और धूमावती – ये महाविद्याएँ रूप और विग्रह में प्रकट रूप में कठोर किन्तु अप्रकट करुण-रूप हैं। भुवनेश्वरी, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, मातङ्गी और कमला ये विद्याओं के सौम्यरूप हैं। एक ही महाशक्ति कभी रौद्र तो कभी सौम्य रूपों में विराजती हैं। रौद्र के सम्यक साक्षात्कार के बिना माधुर्य को नहीं जाना जा सकता और माधुर्य के अभाव में रौद्र की सम्यक परिकल्पना नहीं की जा सकती। इन महाविद्याओं का स्वरूप अचिन्त्य और शब्दातीत है, पर भक्तों और साधकों के लिये इनकी करुणामयी कृपा का कोष नित्य-निरन्तर खुला रहता है। दस महाविद्याओं का स्वरूप इसी रहस्य का परिणाम है, जो अत्यंत गोपनीय है। जिसमें महान दार्शनिक तथा धार्मि क तत्व निहित है। जो काली से कमला तक की ये यात्रा दस स्तरों में पूर्ण होती हैं। (संकलितं पोस्ट एवं छाया चित्र साभार गूगल)

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
हे मां ! आप बुद्धि के रूप में सबों के हृदय में स्थित हो !
क्रमशः:-

#तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-1) पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पे क्लिक करे।👇
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2066685210206589&id=100005953891679

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''इस लेख वर्णित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है।यहां वर्णित नियम/सूत्र/व्याख्याए/तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु
/वैदिक/तांत्रिक/आध्यात्मिक/साबरी ग्रंथो/लोक मान्यताओं/विभिन्स माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी गई है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''हम इसकी पुष्टि नहीं करते।इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।©कॉपी राइट एक्ट 1957))

तंत्र के क्षेत्र में दस महाविद्याएं(भाग-1)

तंत्र के क्षेत्र में दस महाविद्याएं(भाग-1)
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तंत्र के क्षेत्र में आये नए भक्तो को ये जानना आवश्यक है कि,तंत्र में 18 महाविद्या का उल्लेख होता है उसमें से मात्र 10 विद्याएं ही प्राप्त होती है और इन 10 महाविद्याओ को दो मार्गो में विभक्त किया गया है।
☀️प्रथम:-काली कुल
☀️काली कुल के अन्तर्गत 4 महाविद्याएं आती है।
🔵1.काली
🔵2.तारा
🔵5.भुवनेश्वरी
🔵3..छिन्नमस्ता
एवं 
☀️द्वितीय:-श्री कुल के अन्तर्गत 6 महाविद्याएं आती है।
🔵6.त्रिपुर भैरवी
🔵2.भैरवी
🔵4.षोडशी
🔵10.कमला
🔵7.धूमावती
🔵8.बगलामुखी
🔵9.मातंगी
तंत्रशास्त्र के अंतर्गत ये ही दस महाविद्याएं होती है।
☀️ सामान्य रूप से इनका क्रम इस प्रकार है।👇
🔵1.काली 
🔵2.तारा 
🔵3.छिन्नमस्ता 
🔵4.षोडशी 
🔵5.भुवनेश्वरी 
🔵6.त्रिपुर भैरवी, 
🔵7.धूमावती, 
🔵8.बगलामुखी, 
🔵9.मातंगी 
🔵10.कमला।
👉आगे की जानकारी हर भाग में क्रमशः प्रदान की जाएगी।
क्रमशः-

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शनिवार, 10 सितंबर 2022

संतोषी_माँ_की_व्रत_कथा_संतोषी_माता_की_व्रत_कथा_और_आरती

#संतोषी_माँ_की_व्रत_कथा_संतोषी_माता_की_व्रत_कथा_और_आरती
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शुक्रवार के दिन माँ संतोषी का व्रत पूजन किया जाता है| पूजा के दौरान संतोषी माता की आरती,पूजन और माता की कथा सुनाई जाती है |
संतोषी माता को सुख और वैभव की देवी माना जाता है| यह व्रत शुकल पक्ष के पहले शुक्रवार से शुरू किया जाता है |संतोषी माता श्री गणेश जिकी पुत्री है |

संतोषी माता की पूजा करने से मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है और संतोषी माता के व्रत और पूजन करने से संतोषी माता प्रसन होकर मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण करती है|

संतोषी माता के 16 शुक्रवार का व्रत रखने का विधान है शुक्रवार के दिन कोईभी खट्टी चीज़ न तो घर में लानी चाहिए और न ही खानी चाहिए

संतोषी माता की व्रत कथा
एक बुढ़िया थी उसके सात बेटे थे,6 कमाने वाले थे और एक कुछ नहीं कमाता था| बुढ़िया 6 की रसोई बनाती ,भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वो सातवे को दे देती |

एक दिन वह पत्नी से बोला-देखो मेरी माँ को मुझसे कितना प्रेम है | वह बोली क्यों नहीं होगा प्रेम वो आपको सबका जूठा जो खिलाती है|वो बोला ऐसा नहीं हो सकता जब तक मैं अपनी आँखों से न देख लू मैं नहीं मान सकता |

कुछ दिन बाद त्यौहार आया घर में सात प्रकार का भोजन और लडू बने| वह जांचने को सर दर्द का बहाना कर पतला वस्त्र सर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया वह कपडे में से सब देखता रहा सब भाई भोजन करने आये उसने देखा माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछाया हर प्रकार का भोजन रखा और उन्हें बुलाया |वह देखता रहा |

जब छेहो भाई भोजन करके उठे तो माँ ने उनकी जूठी थालियों से लडू के टुकड़े उठाकर एक लडू बनाया | झूठन साफ़ करके बुढ़िया माँ ने उसे पुकारा बेटा छेहो भाई भोजन कर गए तू कब खायेगा |वो कहने लगा माँ मुझे भोजन नहीं करना मैं प्रदेश जा रहा हु |

माँ ने बोला कल जाता हुआ आज ही चला जा वो बोला आज ही जा रहा हु |यह कह कर वह घर से निकल गया |
चलते समय पत्नी की याद आ गयी |वह गोशाला में कंडे(उपले )थाप रही थी |

वह जाकर बोला –
हम जावे प्रदेश आवेंगे कुछ काल,
तुम रहियो संतोष से धरम अपनों पाल |

वह बोली –
जाओ पिया आनंद से हमारो सोच हटाए,
राम भरोसे हम रहे ईश्वर तुम्हे सहाय|
दो निशानी आपन देख धरु मैं धीर,
सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गंभीर|

वह बोला मेरे पास तो कुछ नहीं ,यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे |
वह बोली मेरे पास क्या है ,यह गोबर भरा हाथ है | यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थप मार दी |वह चल दिया,चलते चलते दूर देश पहुंचा | वह एक साहूकार की दुकान थी |

वह जाकर कहने लगा -भाई मुझे नौकरी पर रख लो |साहूकार को जरुरत थी बोला रह जा |लड़के ने पूछा तन्खा क्या दोगे| साहूकार ने कहा काम देख कर दाम मिलेंगे |अब वह सुबह ७ बजे से १० तक नौकरी करने लगा |कुछ दिनों में वो सारा काम अच्छे से करने लगा |

सेठ ने काम देखकर उसे आधे मुनाफे का हिसेदार बना दिया |वह कुछ वर्षो में बहुत बड़ा सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया |

उधर उसकी पत्नी को सास ससुर दुःख देने लगे सारा घर का काम करवा कर उसको लकड़िया लेकर जंगल में
भेजते| घर में आटे से जो भी भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी | एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी ,रस्ते में बहुत सी महिलाये संतोषी माता का व्रत करती दिखाई देती है |

वह वहां खड़ी होकर कथा सुन ने लगी और उनसे पूछने लगी बहनो तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है यदि तुम मुझे इस व्रत का महत्व समजाओगे तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी होंगी | तब एक महिला बोली सुनो-यह संतोषी माता का व्रत है इसे करने से दरिदरता का नाश होता है और जो कुछ मैं में कामना हो सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है

वह महिला बोली -सवा आने का गुड़ चना लेना ,प्रतेक शुक्रवॉर को निरहार रह कर कथा सुन्ना और मनोकामना पूर्ण होने पर उद्यापन करना शुक्रवार के दिन घर में कहते नहीं आनी चाहिए यह सुन बुढ़िया की बहु चल दी |

रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसो से गुड़ चना लेकर माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी – यह मंदिर किसका है सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर माता के चरणों से लिपट गयी और विनती करने लगी माँ मैं अनजान हु व्रत का कोई नियम नहीं जानती हु,मैं दुखी हु | हे माता | जगत जननी मेरा दुःख दूर करो मैं आपकी शरण में हु |

माता को बड़ी दया आयी एक शुक्रवार बिता की दूसरे शुक्रवार उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्र उसके पति ने उसको पैसे भेज दिए यह देख जेठ – जेठानी का मुँह बन गया और उसको ताने देने लगे की अब तोह इसके पास पैसा आ गया अब यह बहुत इतरायेगी| बेचारी आँखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर चली गयी और माता के चरणों में बैठकर रोने लगी और रट रट बोली माँ मैंने पैसा कब माँगा |

मुझे पैसे से क्या काम मुझे तो अपना सुहाग चाहिए |मैं तो अपने स्वामी के दर्शन करना चाहती हु |तब माता ने प्रसन होकर कहा -जा बेटी तेरा स्वामी आएगा |

यह सुन कर ख़ुशी ख़ुशी घर जाकर काम करने लगी अब संतोषी माँ विचार करने लगी इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया तेरा पति आएगा लेकिन कैसे ? वह तो इसे स्वपन में भी याद नहीं करता |

उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा इस तरह माता उस बुढ़िया के बेटे के स्वपन में जाकर कहने लगी साहूकार के बेटे सो रहा है या जगता है | वो कहने लगा माँ सोता भी नहीं जागता भी नहीं कहो क्या आज्ञा है ? माँ कहने लगी -तेरा घर बार कुछ है के नहीं |वह बोला -मेरे पास सब कुछ है माँ -बाप है बहु है क्या कमी है |

माँ बोली -भोले तेरी पत्नी घोर कष्ट उठा रही है तेरे माँ बाप उसे परेशानी दे रहे है |वह तेरे लिए तरस रही है तू उसकी सुध ले |वह बोला हां माँ मुझे पता है पर मैं वहां जाऊ कैसे ?

माँ कहने लगी -मेरी बात मान सवेरे नाहा धो कर संतोषी माता का नाम ले ,घी का दीपक जला कर दुकान पर चला जा |देखते देखते सारा लेंन देंन उतर जायेगा सारा माल बिक जायेगा सांझ तक धन का भरी ढेर लग जायेगा |थोड़ी देर में देने वाले रूपया लेन लगे सरे सामान का ग्राहक सौदा करने लगे |

शाम तक धन का भरी ढेर इकठा हो गया और संतोषी माता का यह चमत्कार देख कर खुश होने लगा और धन इकठा कर घर ले जाने के लिए वस्त्र,गहने खरीदने लगा और घर को निकल गया | उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है |लौटते वक़्त माता जी के मंदिर में आराम करती है |

प्रतिदिन वह वही विश्राम करती थी अचकन से धूल उड़ने लगी धूल उड़ती देख वह माता से पूछने लगी -हे माता यह धूल कैसी उड़ रही है |

हे पुत्री तेरा पति आ रहा है अब तू ऐसा कर लकड़ी के तीन ढेर तैयार कर एक एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर में रख और तीसरा अपने सर पर |

तेरे पति को लकड़ियों का गठर देख तेरे लिए मोह पैदा होगा वह यहाँ रुकेगा ,नाश्ता पानी खाकर माँ से मिलने जायेगा |तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर चौक पर जाना और गठर निचे रख कर जोर से आवाज़ लगाना |लो सासुजी |

लकड़ियों का गठर लो,भूसी की रोटी दो ,नारियल के खेपड़े में पानी दो ,आज मेहमान कौन आया है ?
माता जी से अच्छा कह कर जैसा माँ ने कहा वैसा करने लगी |

इतने में मुसाफिर आ गए | सूखी लकड़ी देख उनकी इच्छा हुई कि हम यही आराम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। आराम करके गांव को चले गए । उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह आती है। लकड़ियों का बोझ आंगन में उतारकर जोर से आवाज लगाती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने के लिए कहती है- बहु ऐसे क्यों कह रही है ? तेरा मालिक आया है। आ बैठ भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है।

अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है। मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। वह बोला- ठीक है मां मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की चाबी दो, उसमें रहूंगा।

मां बोली- ठीक है,तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।

पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जेठानी के लड़कों को भोजन के लिए गई। उन्होंने कहा ठीक है पर पीछे से जेठानी ने अपने बच्चों से कहा , भोजन के वक़्त खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन न हो।

लड़के गए खीर खाकर पेट भर गया , लेकिन खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, हमने खीर नहीं खानी है। वह कहने लगी खटाई नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।

लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए। लड़के उसी समय इमली लेकर खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने गुस्सा किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी कहने लगे। लूट-लूट कर धन लाया था , अबपता लगेगा जब जेल की मार खाएगा। बहु से यह सहन नहीं हुए।

रोती हुई मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, यह क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी। माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। वह कहने लगी- माता मैंने क्या अपराध किया है, मैंने भूल से लड़कों को पैसे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली- अब भूल मत करना।

वह कहती है- अब भूल नहीं होगी,अब वो कैसे आएंगे ? मां बोली- जा तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति मिला।उसने पूछा – कहां गए थे?

वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह खुश होकर बोली अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया|

वह बोली- मुझे दोबारा माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा- करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना।

लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो। वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, दक्षिणा की जगह उनको एक-एक फल दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।

माता की कृपा हुई नवमें मास में उसे सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी। मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।

देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल चली आ रही है, लड़कों इसे निकालो , नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रौशनदान में से देख रही थी, ख़ुशी से चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है।

इतने में सास को क्रोध आ गया | वह बोली- क्या हुआ है है? बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।

वह बोली- मां मैं जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है। सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम नादान हैं , तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो। बोलो संतोषी माता की जय।

#संतोषी_माता_की_आरती
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
जय संतोषी माता,मैया जय संतोषी माता ।

अपने सेवक जन को,सुख संपति दाता ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

सुंदर चीर सुनहरी,मां धारण कीन्हों ।

हीरा पन्ना दमके,तन श्रृंगार लीन्हों ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

गेरू लाल छटा छवि,बदन कमल सोहे ।

मंदर हंसत करूणामयी,त्रिभुवन मन मोहे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी,चंवर ढुरे प्यारे ।

धूप, दीप,नैवैद्य,मधुमेवा,भोग धरें न्यारे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

गुड़ अरु चना परमप्रिय,तामें संतोष कियो।

संतोषी कहलाई,भक्तन वैभव दियो ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

शुक्रवार प्रिय मानत,आज दिवस सोही ।

भक्त मण्डली छाई,कथा सुनत मोही ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

मंदिर जगमग ज्योति,मंगल ध्वनि छाई ।

विनय करें हम बालक,चरनन सिर नाई ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

भक्ति भावमय पूजा,अंगीकृत कीजै ।

जो मन बसे हमारे,इच्छा फल दीजै ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

दुखी,दरिद्री ,रोगी ,संकटमुक्त किए ।

बहु धनधान्य भरे घर,सुख सौभाग्य दिए ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

ध्यान धर्यो जिस जन ने,मनवांछित फल पायो ।

पूजा कथा श्रवण कर,घर आनंद आयो ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

शरण गहे की लज्जा,राखियो जगदंबे ।

संकट तू ही निवारे,दयामयी अंबे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

संतोषी मां की आरती,जो कोई नर गावे ।

ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति,जी भरकर पावे ॥

॥ ॐ जय संतोषी माता ॥

संतोषी माता व्रत विधि
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◆सुख की कामना से संतोषी माता के 16 शुक्रवार व्रत किये जाते है
◆घर में सुन्दर पवित्र जगह पर संतोषी माता की प्रतिमा लगाए।
◆संतोषी माता के सामने एक कलश भर के रखे कलश के   ऊपर एक बर्तन में चना गुड़ भरकर रखे।
◆संतोषी माता के सामने घी का दीपक जलाये।
◆संतोषी माता को फूल,नारियल ,लाल वस्त्र या चुनरी चढ़ाये।
◆माता संतोषी को गुड़ और चने का भोग लगाए।
◆संतोषी माता का नाम लेकर कथा शुरू करनी चाहिए।
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🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈
🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल

*राहुलनाथ™* 🖋️....
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)

#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
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शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

चमत्कारी_मंत्र_सभी_खतरों_से_सुरक्षित_रखता_है

#चमत्कारी_मंत्र_सभी_खतरों_से_सुरक्षित_रखता_है
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भगवान गौतम बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया। उन्होंने दुःख, और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया, उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है, उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की भी निंदा की। 
वैशाख माह की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है।
अगर आप अपने जीवन में कभी निराशा और मार्ग से भटक जाओ तो भगवान गौतम बुद्ध के उपदेश को जरूर पढ़े, यह सरे विचार आपको सत्य के मार्ग पर लेकर जायँगे।

बौद्ध धर्म का यह चमत्कारी मंत्र सभी प्रकार के खतरों से सुरक्षा के लिए जपा जाता है। यह निम्न षडाक्षरीय मंत्र आने वाले हर संकटों से सुरक्षित रखता है। इस षडाक्षरीय मंत्र का उल्लेख अवलोकितेश्वरा में किया गया है। पढ़ें मंत्र- 
 #बीज_मंत्र - 
 'ॐ मणि पदमे हूम्‌' 
 
* इस मंत्र का जप बौद्ध धर्म की महायान शाखा में प्रमुख रूप से किया जाता है। 
* यह मंत्र अक्सर प्रार्थना चक्र, स्तूपों की दीवार, धर्म स्थानों के पत्थरों, मणियों आदि में खुदा हुआ या चित्रित रूप में मिल जाता है। 
* जिस प्रार्थना चक्र पर यह मंत्र खुदा होता है उसको 1 बार घुमाने पर माना जाता है कि उसने इस मंत्र को 10 लाख बार जपा है। 
* यह मंत्र अंगूठी या अन्य आभूषणों में भी मुद्रित रहता है।
 * बताया जाता है कि जो कोई इस मंत्र को जपता है, 
    वह सब खतरों से सुरक्षित हो जाता है। 
    (संकलित पोस्ट)

🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल महादेव 🔱

🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈
#राहुलनाथ ™ 
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)

#चेतावनी_डिसक्लेमर:-
इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-
साबरी ग्रंथो,लोक मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।