रविवार, 27 सितंबर 2020

भविष्य का निर्माण


भविष्य का निर्माण
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हम हर रात सोने से पहले अपने भविष्य का निर्माण कर सकते है।फिर चाहे वो अच्छा हो या बुरा।यही वो समय रूपी कुंजी हैं इसका उपयोग अवर्णिम भविभय के निर्माण हेतु किया जा सकता हैं।साधक इस क्षण पे राज करते है और बाकी सब पे ये क्षण राज करता है।इस क्षण पे की गई प्रार्थना पूर्ण होती है।
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।। राहुलनाथ।।™
शिवशक्ति ज्योतिष एवं वास्तु
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बुधवार, 23 सितंबर 2020

ऋण उतारने हेतु उपाय

*👉ऋण उतारने के लिए *
*★एक नारियल पर चमेली का तेल मिले सिन्दूर से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। कुछ भोग (लड्डू अथवा गुड़-चना) के साथ हनुमानजी के मंदिर में मंगलवार को जाकर उनके चरणों में अर्पित करके ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें। तत्काल लाभ प्राप्त होगा।*
।। राहुलनाथ।।™
(ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)
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क्षमा दान

क्षमा दाम
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"आपके मनमें जिस व्यक्ति के प्रति नाराज़गी है ,उसे क्षमा कर दीजिए ,
ह्रदय से क्षमा कर दीजिए | क्षमा करने से हमारे दो चक्र पवित्र हो जाते है |
एक तो आज्ञा चक्र खुलता है क्योंकि वह व्यक्ति आपके आज्ञा चक्र में बैठा हुआ होता है |और दुसरा , क्षमाभावना से ह्रदय चक्र खुलता है |"
🚩जै श्री महाकाल🚩

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कन्या के शीघ्र विवाह हेतु

कन्या के शीघ्र विवाह हेतु विधि ****
श्री विष्णु जी के मंदिर में एक सफ़ेद रुमाल में कन्या से अपनी मनोकामना लिखवा कर ,उस रुमाल में थोड़ी मिश्री डाल दे,फिर उस रुमाल में तिन गाँठ बाद कर भगवान् विष्णु के चरणों में रख कर ,मंदिर की दान पेटी में इच्छानुसार दक्षिणा प्रदान करे।मंदिर से मिलने वाला प्रशाद मात्र कन्या ही ग्रहण करे।भगवान विष्णु की कृपा से कन्या का विवाह जल्दी हो जाएगा।यह विधि शुक्रवार के दिन प्रातः जितने जल्दी हो करे।यह विधि कन्या के लिए कन्या के पिता भी कर सकते है।

यह विधि अमरकंटक में रमते समय एक नाथजी महाराज ने मुझे ,मेरी सेवा से प्रसन्न हो कर बताई थी।श्री नाथ जी के साथ मैं करीब 3 घंटे रहा किन्तु भोजन के उपरान्त उन्होंने मुझे पान खाने की इच्छा बताई थी ,मैं जब उनके लिए पान ले कर वापस आया तब वे नहीं मिले।फिर उस पान को हनुमानजी के मंदिर में चड़ा दिया गया। भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम मुझे प्राप्त हुए।
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#चेतावनी:-  तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से  साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।अन्यथा गलती होने पर हानि होने की संभावना है। विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत ।(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

अहंकार

अहंकार
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उलझनो के संसार का निर्माण अहंकार से ही होता है।समर्पण,प्रेम, आनंद, मौन, समृद्धि, संतुष्टि, विश्वास,ईश्वर के प्रति दासत्व का भाव होने से ही ये उलझन दूर हो सकती है एवं निर्गुण ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।मैं,मेरा घर,मेरी भक्ति,मेरा परिवार,मेरा घर,मेरा शरीर,मेरी आत्मा,मेरा मित्र,मेरा गाँव, मेरा देश,मेरा धर्म इस प्रकार के सभी भाव जिनमे "मेरा" शब्द उपयोग होता है ये सभी अहंकार ही है।और ये अहंकार हमको हमारे लक्ष्य,परिवार, मित्र,समाज और ईश्वर से दूर ही करता है।इस अहंकार को दूर करने से अच्छा उपाय हैं कि स्वयं ही एकांकी रहना,स्वयं में दासत्व भाव को रखना,सभी कार्यो को कर्तव्य पूर्वक समपन्न कर उस कार्य से भी अलग हो जाना।जैसे हनुमान का चरित्र होता है शक्ति-भक्ति सम्पन्न हो कर भी उन्होंने दासत्व का भाव स्वीकार किया।
अहंकार में तीन गए!
धन,वैभव और वंश!
ना मानो तो देख लो!
रावण, कौरव और कंस!

🚩जै श्री महाकाल🚩

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मंगल सूत्र और अनाहत (हृदय) चक्र,कुण्डलिनी विज्ञान

मंगल सूत्र और अनाहत (हृदय) चक्र,कुण्डलिनी विज्ञान
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भारतीय सांस्कृति जो कि हमारे ऋषि-मुनियों हमे उपलब्ध हुई है उसके अनुसार,विवाह के समय 7 फेरो के अलावा मंगल सूत्र भी पहनाया जाता है किंतु सोचने का विषय यह है कि जब विवाह दो लोगो का हुआ है तो फिर मंगलसूत्र सिर्फ स्त्री के लिए क्यो?पुरुष के लिए क्यु नही??😊
इसे समझना होगा की हमारे पूर्वजों में और वो साधक,ऋषि-मुनियों ने,जो कि सफल शोधकर्ता भी थे,उन्होंने ये नियम क्यो बनाया।
इस विषय को समझने के लिए हमे भी अध्यात्म का सहारा लेना पड़ेगा।समझने का प्रयास करते है।
हमारे शरीर जो हमे दिखता है उसके के अलावा हमारे और भी शरीर है जो हमे दिखाई नही देते किन्तु वे होते है हमारे प्रत्यक्ष शरीर की पूरी बनावट सूक्ष्म रूप से हमारे अवचेतन मन से होते हुए अतिचेतन मन मे छप जाती है और है हर मन का अपना अलग शरीर होता है जैसे अतिचेतन की इलेक्ट्रॉनिक बॉडी।इस प्रकार हमारे मन सात है भीतर से भीतर के तरफ और हर मन का एक शरीर होता है इन बातों को ध्यान के माध्यम से इसे समझा जा सकता है।बस हमे पता हो कि ध्यान होता क्या है और कैसे किस पे लगाया जा सकता है?
हमारे शरीर के भीतर,हमारे शरीर के सातों मनो के सात चक्र होते है । मूलाधार ,स्वाधिष्ठान, मणि पुर,अनाहत,विशुद्ध,आज्ञा और सहस्त्रार चक्र आदि।इन सभी चक्रो के गुण एवं भावनाये भिन्न-भिन्न होते है।इनमे अनाहत चक्र का मूल गुण प्रेम होता है फिर वह माता-पिता,भाई-बहनों, मित्रो और पति-परिवार सब के लिये हो सकता है।ये चक्र जिसका भी जागृत होता है उसका व्यवहार और वाणी आदि शांत और सौम्य होती है।इन चक्रों को जागृत करने का आसान तरीका है इन चक्रो पे ध्यान लगातार लगाए रखना।इस मंगल सूत्र को धारण करने से ध्यान लगातार चेन या धागे के कारण विशुद्धचक्र पे एवं लॉकेट के अनाहत चक्र से लगातार टकराने से इन दोनों चक्रो पे ध्यान लगातार लगा रहता है चुकी इस मंगलसूत्र को पति द्वारा धारण कराया जाता हैं इसी कारण ध्यान इन चक्रों को सक्रिय करता है और पति के लिए लगातार शुभकामनाएं प्रसारित करता है जिससे पति की आयु,व्यापार, स्वास्थ आदि पत्नी की  मनोस्थिति एवं कामना केअनुसार बनता बिगड़ता रहता है।इस स्थान पे यदि माता-पिता,या अन्य लोगो द्वारा दिया गया लॉकेट सूत्र में दिया जाए तो देने वाले के प्रति,उसकी कामनानुसार फल देने लगते है।इसी क्रिया के अनुसार तावीज आदि धारण कराये जाते है।इसी श्रेणी में यदि इन सूत्रों को यदि कमर में बांधा जाए तो मणिपुर चक्र जागृत होगा,औऱ पैर में बांधा जाए तो मूलाधार चक्र।ये सामान्य सा नियम है कि शरीर मे जहां भी दबाव या स्पर्श महसूस होगा ध्यान वही लगा रहता है।काम वासना में लगे लोगो का मूलाधार,शक्ति एवं जल का ज्यादा उपयोग करने वालो का स्वाधिष्ठान, भोजन में रुचि रखने वालों का मणिपुर,प्रेम से अनाहत,ज्ञान-विद्यादि में रुचि से विशुद्ध एवं एकांकी ध्यानादि से सहस्त्रार सक्रिय हो जाता है।इस विषय को समझने के लिए कुण्डलिनी विद्या को समझना होगा।
।।क्रमशः।।
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चेतावनी:-इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र,
व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है और यहां तांत्रिक-आध्यात्मिक ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र सम्बंधित पोस्ट मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।जिसे मानने के लिए आप बाध्य नहीं है।
विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,©कॉपी राइट एक्ट 1957)
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तंत्र एक वैदिक विद्या

तंत्र एक वैदिक विद्या
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तंत्र के संबंध में जन सामान्य में सदियों से बहुत सी गलत धारणा मन में बैठी हुई है या बैठा दी गई है कि तंत्र एक हानिकारक विद्या है जबकि तंत्र शास्त्र भी वेदों का एक अंग है एक बार भगवान इंद्र की उकंठा को शांत करने के लिए गुरु बृहस्पति ने इस विद्या का ज्ञान इन को करवाया और बताएं कि तंत्र मंत्र हो या यंत्र तीनों की उत्पत्ति भी वेदों से ही हुई है जितने भी मंत्र हैं उनको तीन भागों में विभाजित किया गया है जैसे जो मंत्र वेदों में वर्णित किये गए हैं जिन्हें ऋषीयो द्वारा बताया गया हैं उन मित्रों को वैदिक मंत्र कहा जाता है तंत्र आचार्य तांत्रिक द्वारा रचित मंत्र तांत्रिक मंत्र एवं औघड़ अवधूत अघोरी द्वारा रचित मंत्र शाबर मंत्र कहलाते हैं शाबरमंत्र के जनक मत्स्येन्द्रनाथ जी को माना गया है जिन्होंने शाबर मंत्र की व्याख्या की एवं उनका निर्माण किया ।इंद्र की शंका का निवारण करते हुए देव गुरु ने कहा कि है हे इंद्र तंत्र शक्ति के समक्ष अस्त्र शस्त्र की शक्ति भी तुच्छ होती है तंत्र शक्ति द्वारा सैकड़ों करोड़ों मिल दूर से भी किसी भी असाध्य कार्य को साध्य बनाया जा सकता है।
प्रारंभ से ही तांत्रिक साधना का स्वरुप अत्यंत रहस्यमई एवं गुप्त रहा है जिसे गुप्त लिपि में लिखा जाता रहा है नेपाल के राज्य पुस्तकालय में
निःश्वासतंत्र संहिता नामक ग्रन्थ सुरक्षित रखा गया है जो कि प्राचीन गुप्त लिपि में लिखा हुआ है 8 वी शताब्दी में यह ग्रंथ प्रचलित रहा था इसके 5 विभाग है और प्रत्येक का नाम सूत्र है लौकिक सुत्र ,धर्म सूत्र,मूल सूत्र,उत्तर सूत्र,नयसूत्र,एवं गुह्य सूत्र ।
वस्तुतः तंत्र विद्या की जनक सदाशिव ही है सौंदर्य लहरी नामक ग्रंथ में तंत्रो की संख्या 64 बताई गई है उसमें उपतंत्र,यामल,डामर,शाबर आदि का उल्लेख किया गया है ।
मृगेंद्र तंत्र में तांत्रिक विकास तथा विभाग का परिचय मिलता है इससे निश्फल शिव के अवबोध रूप ज्ञान पहले नाद के आकार में प्रसूत होता है कामिक आगम बताते हैं कि सदाशिव के ही प्रत्येक मुख से पांच स्रोतों का निर्गम हुआ है इसमें पहला अलौकिक दूसरा वैदिक तीसरा अध्यात्मिक चौथा अतिमार्ग और पांचवा मंत्रात्मक है सदाशिव पंचमुखी है इसलिए स्रोतों की  संख्या भी समस्ति रुप से 25 है लौकिक तथा वैदिक तंत्र भी 5 प्रकार का है
इन सभी पांच स्रोतों की अपनी विशेषता एवं विशिष्टता भी है यथा पूर्वमुख से उत्पन्न तंत्र सभी प्रकार के विघ्नों का हरण करने वाला गरुड़ तंत्र है उत्तर मुख से उद्भुत तंत्र सबके वशीकरण के लिए है पश्चिम मुख से उत्पन्न तंत्र भूत ग्रह निवारक भूततंत्र है तथा दक्षिण मुख से उत्पन्न तंत्र  भैरव तंत्र शतक्षय करता है स्वायंभुव में कहा गया है कि शिव मुख से उत्पन्न ज्ञान स्वरुप्रपरता एक  होने पर भी अर्थ संबंध भेद से  विभिन्न प्रकार है हम इस दृष्टि से शिव ज्ञान 10 प्रकार के तथा रूद्र ज्ञान 18 प्रकार  के होते है उपासना की दृष्टि से तांत्रिक साधना का विभाजन भी होता है उपास्य भेद से भी उस का विभाजन किया जाता है उपास्य में देवी के प्रकार ,भेद के अनुसार विभाजन प्रचलित है उसमे महाविद्यानुसारी विभाग ही अति प्रसिद्ध है इस दृष्टि से काली,तारा तथा श्रीविद्या की साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।कालिकिताब
Posted on नवम्बर 30, 2016 by Rahulnath
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