सोमवार, 16 मई 2022

हनुमान_तांडव_स्त्रोत

||  #हनुमान_तांडव_स्त्रोत ||

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
 भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, 
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, 
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥

 
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो 
हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ 
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
 
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, 
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, 
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
 
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, 
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः 
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
 
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, 
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
 
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं 
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
 
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं 
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् 
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
 
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा 
यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां 
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
 
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
 
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
 
ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥

🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

☯️ #राहुलनाथ™  🖋️....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई'३६गढ़,भारत

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शनिवार, 14 मई 2022

श्रीसूर्यस्तुति_आदित्यह्रदय_स्तोत्र_सूर्यस्तोत्र_श्रीसूर्यचालीसा

#श्रीसूर्यस्तुति_आदित्यह्रदय_स्तोत्र_सूर्यस्तोत्र_श्रीसूर्यचालीसा
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
#श्रीसूर्य_स्तुति
★★★★★★★
 जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।
 त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
 जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
 सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
 दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
 जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
 सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।
 अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।। 

#आदित्यह्रदय_स्तोत्र
★★★★★★★★★

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । 
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । 
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । 
येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ । 
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । 
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । 
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । 
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ । 
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ । 
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । 
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । 
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। 
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । 
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । 
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । 
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । 
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । 
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । 
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । 
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । 
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । 
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । 
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । 
कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ । 
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । 
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥ 
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ । 
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ । 
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।

#सूर्यस्तोत्र
★★★★★
 
विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री मांल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।

#सूर्यकवचम'
 
याज्ञवल्क्य उवाच-
 
श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।1।
याज्ञवल्क्यजी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।

देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् ।2।
चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।

शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर: ।3।
 
मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।
 
ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:।
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: ।4।
 
मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।
 
सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय: ।5।
 
सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।
 
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति ।6।
 
स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।
 

#श्रीसूर्य_चालीसा
दोहा
 
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
 
#चौपाई
 
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
 
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
 
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
 
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
 
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
 
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
 
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
 
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
 
#दोहा
******
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

#सूर्य_के_12_नाम
*****************
1- ॐ सूर्याय नम:।
2- ॐ मित्राय नम:।
3- ॐ रवये नम:।
4- ॐ भानवे नम:।
5- ॐ खगाय नम:।
6- ॐ पूष्णे नम:।
7- ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।
8- ॐ मारीचाय नम:।
9- ॐ आदित्याय नम:।
10- ॐ सावित्रे नम:।
11- ॐ अर्काय नम:।
12- ॐ भास्कराय नम:।  

#सूर्य_के_रथ_को_खींचने_वाले_सात_घोड़ो_के_नाम
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
सूर्य देव हर सुबह अपने रथ पर सवार होकर पूर्व दिशा से दिन का प्रकाश लेकर आते हैं। पुराणों में बताया गया है कि सूर्य देव के रथ के सारथी #अरुण हैं। अरुण भगवान #विष्णु के वाहन #गरुड़ के भाई हैं।

ऋग्वेद में कहा गया है कि 
'सप्तयुज्जंति रथमेकचक्रमेको अश्वोवहति सप्तनामा' 
यानी सूर्य चक्र वाले रथ पर सवार होते हैं जिसे सात नामों वाले घोड़े खींचते हैं।पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं 
०१-गायत्री, 
०२-3वृहति, 
०३-उष्णिक, 
०४-जगती, 
०५-त्रिष्टुप, 
०६-अनुष्टुप और 
०७-पंक्ति।' 
यह सात नाम सात छंद हैं। यानी सात छंत हैं जो अश्व रुप में सूर्य के रथ को खींचते हैं।

#सूर्य_के_सात_शक्तिशाली_मंत्र
★★★★★★★★★★★★★
०१-ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:
०२-ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित 
      फलम् देहि देहि स्वाहा.
०३-ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, 
      अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
०४-ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ
०५-ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
०६-ॐ सूर्याय नम:
०७-ॐ घृणि सूर्याय नम:

🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
लेखन-सम्पादन-संकलन
☯️राहुलनाथ™ 🖋️....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई'३६गढ़,भारत

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#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।

शुक्रवार, 13 मई 2022

श्रीलक्ष्मीनृसिंह_स्तोत्र_एवं_श्रीलक्ष्मीनृसिंह_सर्वसिद्धिकर_ऋणमोचन_स्तोत्र

#श्रीनृसिंह_एवं_छिन्नमस्तिका_जयंती_जन्मोत्सव_की_हार्दिक_शुभकामनाएं

#श्रीलक्ष्मीनृसिंह_स्तोत्र 
®®®®®®®®®®
श्रीमत् पयॊनिधिनिकॆतन चक्रपाणॆ    भॊगीन्द्रभॊगमणिरञ्जितपुण्यमूर्तॆ ।
 यॊगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपॊत 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ १ ॥
ब्रह्मॆन्द्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकॊटि-   सङ्घट्टिताङ्घ्रिकमलामलकान्तिकान्त ।
 लक्ष्मीलसत्कुच्सरॊरुहराजहंस 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ २ ॥
 संसारघॊरगहनॆ चरतॊ मुरारॆ 
मारॊग्रभीकरमृगप्रवरार्दितस्य ।
 आर्तस्यमत्सरनिदाघनिपीडितस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ३ ॥
 संसारकूपमतिघॊरमगाधमूलम् 
संप्राप्य दुःखशतसर्पसमाकुलस्य ।
दीनस्य दॆव कृपणापदमागतस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ४ ॥
संसारसागरविशालकरालकाल- 
नक्रग्रहग्रसननिग्रह विग्रहस्य ।
व्यग्रस्य रागरसनॊर्मिनिपीडितस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ५ ॥
संसारवृक्षमघबीजमनन्तकर्म- 
शाखाशतं करणपत्रमनङ्गपुष्पम् ।
आरुह्यदुःखफलितं पततॊ दयालॊ 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ६ ॥संसारसर्पघनवक्त्रभयॊग्रतीव्र- 
दंष्ट्राकरालविषदग्द्धविनष्टमूर्तॆः ।
नागारिवाहन सुधाब्धिनिवास शौरॆ 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ७ ॥संसारदावदहनातुरभीकरॊरु- 
ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्य ।
त्वत्पादपद्मसरसीशरणागतस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ८ ॥
संसारजालपतितस्य जगन्निवास 
सर्वॆन्द्रियार्थबडिशार्थझषॊपमस्य ।
प्रॊत्खण्डितप्रचुरतालुकमस्तकस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ९ ॥संसारभीकरकरीन्द्रकराभिघात- 
निष्पिष्टमर्म वपुषः सकलार्तिनाश ।         प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ १० ॥
अन्धस्य मॆ हृतविवॆकमहाधनस्य चॊरैः 
प्रभॊ बलिभिरिन्द्रियनामधॆयैः ।
मॊहांधकारकुहरॆ विनिपातितस्य 
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ ११ ॥
लक्ष्मीपतॆ कमलनाभ सुरॆश विष्णॊ 
वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष ।
ब्रह्मण्य कॆशव जनार्दन वासुदॆव दॆवॆश 
दॆहि कृपणस्य करावलम्बम् ॥ १२ ॥
यन्माययॊजितवपुः प्रचुरप्रवाह- 
मग्नार्थमत्र निवहॊरुकरावलम्बम् ।
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुव्रतॆन स्तॊत्रं 
कृतं सुखकरं भुवि शंकरॆण ॥ १३ ॥

   
#श्रीलक्ष्मीनृसिंह_सर्वसिद्धिकर_ऋणमोचन_स्तोत्र
®®®®®®®®®®®®®®®®®
देवकार्य सिध्यर्थं सभस्तंभं समुद् भवम ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
लक्ष्म्यालिन्गितं वामांगं, भक्ताम्ना वरदायकं ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
अन्त्रांलादरं शंखं, गदाचक्रयुध धरम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
स्मरणात् सर्व पापघ्नं वरदं मनोवाञ्छितं ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
सिहंनादेनाहतं, दारिद्र्यं बंद मोचनं ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
प्रल्हाद वरदं श्रीशं, धनः कोषः परिपुर्तये ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
क्रूरग्रह पीडा नाशं, कुरुते मंगलं शुभम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
वेदवेदांगं यद्न्येशं, रुद्र ब्रम्हादि वंदितम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
व्याधी दुखं परिहारं, समूल शत्रु निखं दनम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
विद्या विजय दायकं, पुत्र पोत्रादि वर्धनम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
भुक्ति मुक्ति प्रदायकं, सर्व सिद्धिकर नृणां ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥
उर्ग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तम् सर्वतोमुखं ।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्य मृत्युं नमाम्यहम॥
य: पठेत् इंद् नित्यं संकट मुक्तये ।
अरुणि विजयी नित्यं, धनं शीघ्रं माप्नुयात् ॥
॥ श्री शंकराचार्य विरचित सर्वसिद्धिकर 
ऋणमोचन स्तोत्र संपूर्णं ॥

🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
लेखन-सम्पादन-संकलन
☯️राहुलनाथ™ भिलाई 🖋️

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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

श्रीतारा_महाविद्या

#श्रीतारा_महाविद्या
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ध्यान स्तुति

प्रत्यालीढपदार्पिताङ्घ्रिशवहृद्घोराट्टहासा परा ।
खड्गेन्दीवरकर्त्रिखर्परभुजा हुङ्कारबीजोद्भवा ॥
खर्वा नीलविशालपिङ्गलजटाजूटैकनागैर्युता ।
जाड्यं न्यस्य कपालके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम् ॥

#श्रीतारा_के_कुछ_मंत्र-
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०१।।ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्‘।।

०२.उग्र तारा महामंत्र:-
।। ॐ ह्ल्रीं ह्ल्रीं उग्र तारे क्रीं क्रीं फट् ।।

०३.तारा महाविद्या महामंत्र    
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट

०४.देवी एक्जता मंत्र-
ह्रीं त्री हुं फट

०५.नील सरस्वती मंत्र-
ह्रीं त्री हुं

०६.शत्रु नाशक मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट

०७.जादू टोना नाशक मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट


०८.लम्बी आयु का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट

०९.सुरक्षा कवच का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट




#अक्षोभ्यमंत्र:-

।। ॐ स्त्रीं आं अक्षोभ्य स्वाहा ।।
।।ॐ भ्रौं भ्रौं स: अक्षोभ्य भैरवाय ह्रौय ह्रौय भं हुं फट।।


#शाबरमंत्र-
ॐ तारा तारा महातारा, ब्रह्म-विष्णु-महेश उधारा, चौदह भुवन आपद हारा, जहाँ भेजों तहां जाहि, बुद्धि-रिद्धि ल्याव, तीनो लोक उखाल डार-डार, न उखाले तो अक्षोभ्य की आन, सब सौ कोस चहूँ ओर, मेरा शत्रु तेरा बलि, खः फट फुरो मंत्र, इश्वरो वाचा.

#मां_ताराकवच-
★★★★★★★★
ॐ कारो मे शिर: पातु ब्रह्मारूपा महेश्वरी ।
ह्रींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी ।।
स्त्रीन्कार: पातु वदने लज्जारूपा महेश्वरी ।
हुन्कार: पातु ह्रदये भवानीशक्तिरूपधृक् ।
फट्कार: पातु सर्वांगे सर्वसिद्धिफलप्रदा ।
नीला मां पातु देवेशी गंडयुग्मे भयावहा ।
लम्बोदरी सदा पातु कर्णयुग्मं भयावहा ।।
व्याघ्रचर्मावृत्तकटि: पातु देवी शिवप्रिया ।
पीनोन्नतस्तनी पातु पाशर्वयुग्मे महेश्वरी ।।
रक्त  वर्तुलनेत्रा च कटिदेशे सदाऽवतु ।
ललज्जिहव सदा पातु नाभौ मां भुवनेश्वरी ।।
करालास्या सदा पातु लिंगे देवी हरप्रिया ।
पिंगोग्रैकजटा पातु जन्घायां विघ्ननाशिनी ।।
खड्गहस्ता महादेवी जानुचक्रे महेश्वरी ।
नीलवर्णा सदा पातु जानुनी सर्वदा मम ।।
नागकुंडलधर्त्री च पातु पादयुगे तत: ।
नागहारधरा देवी सर्वांग पातु सर्वदा ।।

#श्रीमहोग्रताराष्टकस्तोत्रं 
★★★★★★★★★★
मातर्नीलसरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे 
प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।
 फुल्लेन्दीवरलोचनत्रययुते कर्तीकपालोत्पले 
खड्गं चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये॥ १॥
वाचामीश्वरि भक्तकल्पलतिके सर्वार्थसिद्धीश्वरि सद्यः प्राकृतगद्यपद्यरचनासर्वार्थसिद्धिप्रदे। 
 नीलेन्दीवरलोचनत्रययुते कारुण्यवारांनिधे 
सौभाग्यामृतवर्षणेन कृपया सिञ्च त्वमस्मादृशम्॥ २॥
खर्वे गर्वसमहपूरिततनो सर्पादिभूषोज्ज्वले व्याघ्रत्वक्परिवीतसुन्दरकटिव्याधूतघण्टाङ्किते।
सद्यःकृत्तगलद्रजःपरिलसन्मुण्डद्वयीमूर्धज ग्रन्थिश्रेणिनृमुण्डदामललिते भीमे भयं नाशय॥ ३॥
मायानङ्गविकाररूपललनाबिन्द्वर्धचन्द्रात्मिकेहुंफट्कारमयि 
त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधामघटिता स्थूलातिसूक्ष्मा 
परावेदनां नहि गोचरा कथमपि प्राप्तां नु तामाश्रये॥ ४॥
त्वत्पादाम्बुजसेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतांतस्य श्रीपरमेश्वरी त्रिनयनब्रह्मादिसौम्यात्मनः।
संसाराम्बुधिमज्जने पटुतनून् देवेन्द्रमुख्यान् सुरान्मातस्त्वत्पदसेवने हि विमुखान् को मन्दधीः सेवते॥ ५॥मातस्त्वत्पदपङ्कजद्वयरजोमुद्राङ्ककोटीरिणस्ते 
देवासुरसंगरे विजयिनो निःशङ्कमङ्के गताः।
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्द्धां वहन्तः परेतत्तुल्या 
नियतं तथा चिरममी नाशं व्रजन्ति स्वयम्॥ ६॥
त्वन्नामस्मरणात् पलायनपरा द्रष्टुं च शक्ता न ते भूतप्रेतपिशाचराक्षसगणा यक्षाश्च नागाधिपाः।
दैत्या दानवपुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवोडाकिन्यः कुपितान्तकाश्च मनुजा मातः क्षणं भूतले॥ ७॥
लक्ष्मीः सिद्धगणाश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा 
वारिणांस्तम्भश्चापि रणाङ्गणे गजघटास्तम्भस्तथा मोहनम्।
मातस्त्वत्पदसेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः कान्तिः कान्ततरा भवेच्च महती मूढोऽपि वाचस्पतिः॥ ८॥
ताराष्टकमिदं रम्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः। 
प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः॥ ९॥
लभते कवितां दिव्यां सर्वशास्त्रार्थविद् भवेत्। 
लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान् यथेप्सितान्॥ १०॥
कीर्ति कान्तिं च नैरुज्यं सर्वेषां प्रियतां व्रजेत्।
विख्यातिं चैव लोकेषु प्राप्यान्ते मोक्षमाप्नुयात्॥ ११॥
     ।।श्रीमहोग्रताराष्टकस्तोत्रं सुसंपूर्णम्।।


#श्रीतारा_शतनाम_स्तोत्रम् 
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श्रीशिव उवाच ॥

तारिणी तरला तन्वी तारा तरुणवल्लरी ।
तीररूपा तरी श्यामा तनुक्षीणपयोधरा ॥ १॥
तुरीया तरला तीव्रगमना नीलवाहिनी ।
उग्रतारा जया चण्डी श्रीमदेकजटाशिराः ॥ २॥
तरुणी शाम्भवीछिन्नभाला च भद्रतारिणी ।
उग्रा चोग्रप्रभा नीला कृष्णा नीलसरस्वती ॥ ३॥
द्वितीया शोभना नित्या नवीना नित्यनूतना ।
चण्डिका विजयाराध्या देवी गगनवाहिनी ॥ ४॥
अट्टहास्या करालास्या चरास्या दितिपूजिता ।
सगुणा सगुणाराध्या हरीन्द्रदेवपूजिता ॥ ५॥
रक्तप्रिया च रक्ताक्षी रुधिरास्यविभूषिता ।
बलिप्रिया बलिरता दुर्गा बलवती बला ॥ ६॥
बलप्रिया बलरता बलरामप्रपूजिता ।
अर्धकेशेश्वरी केशा केशवासविभूषिता ॥ ७॥
पद्ममाला च पद्माक्षी कामाख्या गिरिनन्दिनी ।
दक्षिणा चैव दक्षा च दक्षजा दक्षिणे रता ॥ ८॥
वज्रपुष्पप्रिया रक्तप्रिया कुसुमभूषिता ।
माहेश्वरी महादेवप्रिया पञ्चविभूषिता ॥ ९ ॥
इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्ना प्राणरूपिणी ।
गान्धारी पञ्चमी पञ्चाननादि परिपूजिता ॥ १०॥
तथ्यविद्या तथ्यरूपा तथ्यमार्गानुसारिणी ।
तत्त्वप्रिया तत्त्वरूपा तत्त्वज्ञानात्मिकाऽनघा ॥ ११॥
ताण्डवाचारसन्तुष्टा ताण्डवप्रियकारिणी ।
तालदानरता क्रूरतापिनी तरणिप्रभा ॥ १२॥
त्रपायुक्ता त्रपामुक्ता तर्पिता तृप्तिकारिणी ।
तारुण्यभावसन्तुष्टा शक्तिर्भक्तानुरागिणी ॥ १३॥
शिवासक्ता शिवरतिः शिवभक्तिपरायणा ।
ताम्रद्युतिस्ताम्ररागा ताम्रपात्रप्रभोजिनी ॥ १४॥
बलभद्रप्रेमरता बलिभुग्बलिकल्पिनी ।
रामरूपा रामशक्ती रामरूपानुकारिणी ॥ १५॥
इत्येतत्कथितं देवि रहस्यं परमाद्भुतम् ।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति तारादेव्याः प्रसादतः ॥ १६॥
य इदं पठति स्तोत्रं तारास्तुतिरहस्यकम् ।
सर्वसिद्धियुतो भूत्वा विहरेत् क्षितिमण्डले ॥ १७॥
तस्यैव मन्त्रसिद्धिः स्यान्ममसिद्धिरनुत्तमा ।
भवत्येव महामाये सत्यं सत्यं न संशयः ॥ १८॥
मन्दे मङ्गलवारे च यः पठेन्निशि संयतः ।
तस्यैव मन्त्रसिद्धिस्स्याद्गाणपत्यं लभेत सः ॥ १९॥
श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि पठेत्तारारहस्यकम् ।
सोऽचिरेणैव कालेन जीवन्मुक्तः शिवो भवेत् ॥ २०॥
सहस्रावर्तनाद्देवि पुरश्चर्याफलं लभेत् ।
एवं सततयुक्ता ये ध्यायन्तस्त्वामुपासते ।
ते कृतार्था महेशानि मृत्युसंसारवर्त्मनः ॥ २१॥
॥ इति स्वर्णमालातन्त्रे ताराशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥


#श्रीतारा_अष्टोत्तर_शतनाम_स्तोत्रम्
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श्रीदेव्युवाच ।
 
 
सर्वं संसूचितं देव नाम्नां शतं महेश्वर ।
यत्नैः शतैर्महादेव मयि नात्र प्रकाशितम् ॥ १॥
पठित्वा परमेशान हठात् सिद्ध्यति साधकः ।
नाम्नां शतं महादेव कथयस्व समासतः ॥ २॥
 
श्रीभैरव उवाच ।
 
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि भक्तानां हितकारकम् ।
यज्ज्ञात्वा साधकाः सर्वे जीवन्मुक्तिमुपागताः ॥ ३॥
कृतार्थास्ते हि विस्तीर्णा यान्ति देवीपुरे स्वयम् ।
नाम्नां शतं प्रवक्ष्यामि जपात् स(अ)र्वज्ञदायकम् ॥ ४॥
नाम्नां सहस्रं संत्यज्य नाम्नां शतं पठेत् सुधीः ।
कलौ नास्ति महेशानि कलौ नान्या गतिर्भवेत् ॥ ५॥
शृणु साध्वि वरारोहे शतं नाम्नां पुरातनम् ।
सर्वसिद्धिकरं पुंसां साधकानां सुखप्रदम् ॥ ६॥
तारिणी तारसंयोगा महातारस्वरूपिणी ।
तारकप्राणहर्त्री च तारानन्दस्वरूपिणी ॥ ७॥
महानीला महेशानी महानीलसरस्वती ।
उग्रतारा सती साध्वी भवानी भवमोचिनी ॥ ८॥
महाशङ्खरता भीमा शाङ्करी शङ्करप्रिया ।
महादानरता चण्डी चण्डासुरविनाशिनी ॥ ९॥
चन्द्रवद्रूपवदना चारुचन्द्रमहोज्ज्वला ।
एकजटा कुरङ्गाक्षी वरदाभयदायिनी ॥ १०॥
महाकाली महादेवी गुह्यकाली वरप्रदा ।
महाकालरता साध्वी महैश्वर्यप्रदायिनी ॥ ११॥
मुक्तिदा स्वर्गदा सौम्या सौम्यरूपा सुरारिहा ।
शठविज्ञा महानादा कमला बगलामुखी ॥ १२॥
महामुक्तिप्रदा काली कालरात्रिस्वरूपिणी ।
सरस्वती सरिच्श्रेष्ठा स्वर्गङ्गा स्वर्गवासिनी ॥ १३॥
हिमालयसुता कन्या कन्यारूपविलासिनी ।
शवोपरिसमासीना मुण्डमालाविभूषिता ॥ १४॥
दिगम्बरा पतिरता विपरीतरतातुरा ।
रजस्वला रजःप्रीता स्वयम्भूकुसुमप्रिया ॥ १५॥
स्वयम्भूकुसुमप्राणा स्वयम्भूकुसुमोत्सुका ।
शिवप्राणा शिवरता शिवदात्री शिवासना ॥ १६॥
अट्टहासा घोररूपा नित्यानन्दस्वरूपिणी ।
मेघवर्णा किशोरी च युवतीस्तनकुङ्कुमा ॥ १७॥
खर्वा खर्वजनप्रीता मणिभूषितमण्डना ।
किङ्किणीशब्दसंयुक्ता नृत्यन्ती रक्तलोचना ॥ १८॥
कृशाङ्गी कृसरप्रीता शरासनगतोत्सुका ।
कपालखर्परधरा पञ्चाशन्मुण्डमालिका ॥ १९॥
हव्यकव्यप्रदा तुष्टिः पुष्टिश्चैव वराङ्गना ।
शान्तिः क्षान्तिर्मनो बुद्धिः सर्वबीजस्वरूपिणी ॥ २०॥
उग्रापतारिणी तीर्णा निस्तीर्णगुणवृन्दका ।
रमेशी रमणी रम्या रामानन्दस्वरूपिणी ॥ २१॥
रजनीकरसम्पूर्णा रक्तोत्पलविलोचना ।
इति ते कथितं दिव्यं शतं नाम्नां महेश्वरि ॥ २२॥
प्रपठेद् भक्तिभावेन तारिण्यास्तारणक्षमम् ।
सर्वासुरमहानादस्तूयमानमनुत्तमम् ॥ २३॥
षण्मासाद् महदैश्वर्यं लभते परमेश्वरि ।
भूमिकामेन जप्तव्यं वत्सरात्तां लभेत् प्रिये ॥ २४॥
धनार्थी प्राप्नुयादर्थं मोक्षार्थी मोक्षमाप्नुयात् ।
दारार्थी प्राप्नुयाद् दारान् सर्वागमदितान् ॥ २५॥
अष्टम्यां च शतावृत्त्या प्रपठेद् यदि मानवः ।
सत्यं सिद्ध्यति देवेशि संशयो नास्ति कश्चन ॥ २६॥
इति सत्यं पुनः सत्यं सत्यं सत्यं महेश्वरि ।
अस्मात् परतरं नास्ति स्तोत्रमध्ये न संशयः ॥ २७॥
नाम्नां शतं पठेद् मन्त्रं संजप्य भक्तिभावतः ।
प्रत्यहं प्रपठेद् देवि यदीच्छेत् शुभमात्मनः ॥ २८॥
इदानीं कथयिष्यामि विद्योत्पत्तिं वरानने ।
येन विज्ञानमात्रेण विजयी भुवि जायते ॥ २९॥
योनिबीजत्रिरावृत्त्या मध्यरात्रौ वरानने ।
अभिमन्त्र्य जलं स्निग्धं अष्टोत्तरशतेन च ॥ ३०॥
तज्जलं तु पिबेद् देवि षण्मासं जपते यदि ।
सर्वविद्यामयो भूत्वा मोदते पृथिवीतले ॥ ३१॥
शक्तिरूपां महादेवीं शृणु हे नगनन्दिनि ।
वैष्णवः शैवमार्गो वा शाक्तो वा गाणपोऽपि वा ॥ ३२॥
तथापि शक्तेराधिक्यं शृणु भैरवसुन्दरि ।
सच्चिदानन्दरूपाच्च सकलात् परमेश्वरात् ॥ ३३॥
शक्तिरासीत् ततो नादो नादाद् बिन्दुस्ततः परम् ।
अथ बिन्द्वात्मनः कालरूपबिन्दुकलात्मनः ॥ ३४॥
जायते च जगत्सर्वं सस्थावरचरात्मकम् ।
श्रोतव्यः स च मन्तव्यो निर्ध्यातव्यः स एव हि ॥ ३५॥
साक्षात्कार्यश्च देवेशि आगमैर्विविधैः शिवे ।
श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यो मननादिभिः ॥ ३६॥
उपपत्तिभिरेवायं ध्यातव्यो गुरुदेशतः ।
तदा स एव सर्वात्मा प्रत्यक्षो भवति क्षणात् ॥ ३७॥
तस्मिन् देवेशि प्रत्यक्षे शृणुष्व परमेश्वरि ।
भावैर्बहुविधैर्देवि भावस्तत्रापि नीयते ॥ ३८॥
भक्तेभ्यो नानाघासेभ्यो गवि चैको यथा रसः ।
सदुग्धाख्यसंयोगे नानात्वं लभते प्रिये ॥ ३९॥
तृणेन जायते देवि रसस्तस्मात् परो रसः ।
तस्मात् दधि ततो हव्यं तस्मादपि रसोदयः ॥ ४०॥
स एव कारणं तत्र तत्कार्यं स च लक्ष्यते ।
दृश्यते च महादेन कार्यं न च कारणम् ॥ ४१॥
तथैवायं स एवात्मा नानाविग्रहयोनिषु ।
जायते च ततो जातः कालभेदो हि भाव्यते ॥ ४२॥
स जातः स मृतो बद्धः स मुक्तः स सुखी पुमान् ।
स वृद्धः स च विद्वांश्च न स्त्री पुमान् नपुंसकः ॥ ४३॥
नानाध्याससमायोगादात्मना जायते शिवे ।
एक एव स एवात्मा सर्वरूपः सनातनः ॥ ४४॥
अव्यक्तश्च स च व्यक्तः प्रकृत्या ज्ञायते ध्रुवम् ।
तस्मात् प्रकृतियोगेन विना न ज्ञायते क्वचित् ॥ ४५॥
विना घटत्वयोगेन न प्रत्यक्षो यथा घटः ।
इतराद् भिद्यमानोऽपि स भेदमुपगच्छति ॥ ४६॥
मां विना पुरुषे भेदो न च याति कथञ्चन ।
न प्रयोगैर्न च ज्ञानैर्न श्रुत्या न गुरुक्रमैः ॥ ४७॥
न स्नानैस्तर्पणैर्वापि नच दानैः कदाचन ।
प्रकृत्या ज्ञायते ह्यात्मा प्रकृत्या लुप्यते पुमान् ॥ ४८॥
प्रकृत्याधिष्ठितं सर्वं प्रकृत्या वञ्चितं जगत् ।
प्रकृत्या भेदमाप्नोति प्रकृत्याभेदमाप्नुयात् ॥ ४९॥
नरस्तु प्रकृतिर्नैव न पुमान् परमेश्वरः ।
इति ते कथितं तत्त्वं सर्वसारमनोरमम् ॥ ५०॥
इति श्रीबृहन्नीलतन्त्रे भैरवभैरवीसंवादे ताराशतनाम तत्त्वसारनिरूपणं विंशः पटलः ॥ २०॥

🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

लेखन-सम्पादन-संकलन
☯️राहुलनाथ™ भिलाई 🖋️

📞➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)
#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।©कॉपी राइट एक्ट 1957)

गुरुवार, 12 मई 2022

#नीलसरस्वती_मंत्र_स्तोत्र_कवच_एवं_साबर_मंत्र_संग्रह

#नीलसरस्वती_मंत्र_स्तोत्र_कवच_एवं_साबर_मंत्र_संग्रह
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#विनियोग :-

॥ ॐ अस्य नील सरस्वती मंत्रस्य ब्रह्म ऋषिः, गायत्री छन्दः, नील सरस्वती देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥

#नील_सरस्वती_मंत्र :-
★★★★★★★★★★

1-॥ ॐ श्रीं ह्रीं हसौ: हूँ फट नीलसरस्वत्ये स्वाहा ॥

( 11 माला जाप करे ) मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का पाठ करे ।

2- मंत्र
नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं।।

3-ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं क्लीं ह्रीं ऐं ब्लूं स्त्रीं
नीलतारे सरस्वती द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः।
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौंः सौः ह्रीं स्वाहा।

#नील_सरस्वती_स्तोत्र
★★★★★★★★★★
 
घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।1।।
 
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।2।।
 
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।3।।
 
सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्।।4।।
 
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।5।।
 
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।6।।
 
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्।।7।।
 
इन्द्रादिविलसदद्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्।।8।।
 
अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।9।।
 
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्कव्याकरणादिकम।।10।।
 
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते।।11।।
 
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।12।।
 
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत।।13।।
 
।।इति नीलसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
इस स्तोत्र को जो व्यक्ति अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी के दिन अथवा प्रतिदिन इसका पाठ करता है उसके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है।स्तोत्र के अंत मे देवी को योनि मुद्रा दिखानी चाहिए।नील सरस्वती की साधना करने से पहले देह रक्षा मन्त्र का 11 बार जाप करें.

#कवच
★★★★
श्रीसरस्वती कवच
श्रीब्रह्मवैवर्त-पुराण के प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४ में मुनिवर भगवान नारायण ने मुनिवर नारदजी को बतलाया कि ‘विप्रेन्द्र! श्रीसरस्वती कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला है। जगत्स्त्रष्टा ब्रह्मा ने गन्धमादन पर्वत पर भृगु के आग्रह से इसे इन्हें बताया था।

॥ब्रह्मोवाच॥
श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्।
श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम्॥
उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वमे।
रासेश्वरेण विभुना वै रासमण्डले॥
अतीव गोपनीयं च कल्पवृक्षसमं परम्।
अश्रुताद्भुतमन्त्राणां समूहैश्च समन्वितम्॥
यद धृत्वा भगवाञ्छुक्रः सर्वदैत्येषु पूजितः।
यद धृत्वा पठनाद ब्रह्मन बुद्धिमांश्च बृहस्पति॥
पठणाद्धारणाद्वाग्मी कवीन्द्रो वाल्मिको मुनिः।
स्वायम्भुवो मनुश्चैव यद धृत्वा सर्वपूजितः॥
कणादो गौतमः कण्वः पाणिनीः शाकटायनः।
ग्रन्थं चकार यद धृत्वा दक्षः कात्यायनः स्वयम्॥
धृत्वा वेदविभागं च पुराणान्यखिलानि च।
चकार लीलामात्रेण कृष्णद्वैपायनः स्वयम्॥
शातातपश्च संवर्तो वसिष्ठश्च पराशरः।
यद धृत्वा पठनाद ग्रन्थं याज्ञवल्क्यश्चकार सः॥
ऋष्यश्रृंगो भरद्वाजश्चास्तीको देवलस्तथा।
जैगीषव्योऽथ जाबालिर्यद धृत्वा सर्वपूजिताः॥

कचवस्यास्य विप्रेन्द्र ऋषिरेष प्रजापतिः।
स्वयं च बृहतीच्छन्दो देवता शारदाम्बिका॥१
सर्वतत्त्वपरिज्ञाने सर्वार्थसाधनेषु च।
कवितासु च सर्वासु विनियोगः प्रकीर्तितः॥२
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वतः।
श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु॥३
ॐ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्रे पातु निरन्तरम्।
ॐ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु॥४ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोऽवतु।
ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु॥५
ॐ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपङ्क्तीः सदावतु।
ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु॥६
ॐ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धौ मे श्रीं सदावतु।
ॐ श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्षः सदावतु॥७
ॐ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्।
ॐ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम हस्तौ सदावतु॥८
ॐ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु।
ॐ वागधिष्ठातृदेव्यै सर्व सदावतु॥९
ॐ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु।
ॐ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु॥१०
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।
सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु॥११
ऐं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैरृत्यां मे सदावतु।
कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु॥१२
ॐ सर्वाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु।
ॐ ऐं श्रीं गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेऽवतु॥१३
ऐं सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु।
ॐ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोर्ध्वं सदावतु॥१४
ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु।
ॐ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोऽवतु॥१५इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम्।
इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मरुपकम्॥
पुरा श्रुतं धर्मवक्त्रात पर्वते गन्धमादने।
तव स्नेहान्मयाऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित्॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवद वस्त्रालंकारचन्दनैः।
प्रणम्य दण्डवद भूमौ कवचं धारयेत सुधीः॥
पञ्चलक्षजपैनैव सिद्धं तु कवचं भवेत्।
यदि स्यात सिद्धकवचो बृहस्पतिसमो भवेत्॥
महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत्।
शक्नोति सर्वे जेतुं स कवचस्य प्रसादतः॥
इदं ते काण्वशाखोक्तं कथितं कवचं मुने।
स्तोत्रं पूजाविधानं च ध्यानं वै वन्दनं तथा॥
॥इति श्रीब्रह्मवैवर्ते ध्यानमन्त्रसहितं विश्वविजय-सरस्वतीकवचं सम्पूर्णम्॥
(प्रकृतिखण्ड ४।६३-९१)

#साबर_मंत्र
★★★★★★
ॐ इक ओंकार, सत नाम करता पुरुष निर्मै निर्वैर अकाल मूर्ति अजूनि सैभं गुर प्रसादि जप आदि सच, जुगादि सच है भी सच, नानक होसी भी सच -
मन की जै जहाँ लागे अख, तहाँ-तहाँ सत नाम की रख ।
चिन्तामणि कल्पतरु आए कामधेनु को संग ले आए, आए आप कुबेर भण्डारी साथ लक्ष्मी आज्ञाकारी, बारां ऋद्धां और नौ निधि वरुण देव ले आए ।
प्रसिद्ध सत-गुरु पूर्ण कियो स्वार्थ, आए बैठे बिच पञ्ज पदार्थ ।
ढाकन गगन, पृथ्वी का बासन, रहे अडोल न डोले आसन, राखे ब्रह्मा-विष्णु-महेश, काली-भैरों-हनु-गणेश ।
सूर्य-चन्द्र भए प्रवेश, तेंतीस करोड़ देव इन्द्रेश ।
सिद्ध चौरासी और नौ नाथ, बावन वीर यति छह साथ ।
राखा हुआ आप निरंकार, थुड़ो गई भाग समुन्द्रों पार ।
अटुट भण्डार, अखुट अपार । खात-खरचत, कछु होत नहीं पार ।
किसी प्रकार नहीं होवत ऊना । देव दवावत दून चहूना ।
गुर की झोली, मेरे हाथ । गुरु-बचनी पञ्ज तत, बेअन्त-बेअन्त-बेअन्त भण्डार ।
जिनकी पैज रखी करतार, नानक गुरु पूरे नमस्कार ।
अन्नपूर्णा भई दयाल, नानक कुदरत नदर निहाल ।
ऐ जप करने पुरुष का सच, नानक किया बखान,
जगत उद्धारण कारने धुरों होआ फरमान ।
अमृत-वेला सच नाम जप करिए ।
कर स्नान जो हित चित्त कर जप को पढ़े, सो दरगह पावे मान ।
जन्म-मरण-भौ काटिए, जो प्रभ संग लावे ध्यान ।
जो मनसा मन में करे, दास नानक दीजे दान ।।”..

 🕉️🙏🏻🚩जयश्री महाकाल🚩🙏🏻

लेखन-सम्पादन-संकलन
☯️राहुलनाथ™ भिलाई 🖋️ 
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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर है।एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

सोमवार, 9 मई 2022

प्रेम और प्रार्थना

प्रेम और प्रार्थना
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प्रेम और प्रार्थना का आनंद उनमें ही है- उनके बाहर नहीं। जो उनके द्वारा उनसे कुछ चाहता है, उसे उनके रहस्य का पता नहीं है। प्रेम में डूब जाना ही प्रेम का फल है। और, प्रार्थना की तन्मयता और आनंद ही उसका पुरस्कार है।
ईश्वर का एक प्रेमी अनेक वर्षो से साधना में था। एक रात्रि उसने स्वप्न में सुना कि कोई कह रहा है,प्रभु तेरे भाग्य में नहीं, व्यर्थ श्रम और प्रतीक्षा मत कर।उसने इस स्वप्न की बात अपने मित्रों से कही। किंतु, न तो उसके चेहरे पर उदासी आई और न ही उसकी साधाना ही बंद हुई।
उसके मित्रों ने उससे कहा,जब तूने सुन लिया कि तेरे भाग्य का दरवाजा बंद है, तो अब क्यों व्यर्थ प्रार्थनाओं में लगा हुआ है?
उस प्रेमी ने कहा,व्यर्थ प्रार्थनाएं? पागलों! प्रार्थना तो स्वयं में ही आनंद है- कुछ या किसी के मिलने या न मिलने से उसका क्या संबंध है? और, जब कोई अभिलाषा रखने वाला एक दरवाजे से निराश हो जाता है, तो दूसरा दरवाजा खटखटाता है, लेकिन मेरे लिए दूसरा दरवाजा कहां है? प्रभु के अतिरिक्त कोई दरवाजा नहीं।
उस रात्रि उसने देखा था कि प्रभु उसे आलिंगन में लिए हुए हैं।
प्रभु के अतिरिक्त जिनकी कोई चाह नहीं है, असंभव है कि वे उसे न पा लें। सब चाहों का एक चाह बन जाना ही मनुष्य के भीतर उस शक्ति को पैदा करता है, जो कि उसे स्वयं को अतिक्रमण कर भागवत चैतन्य में प्रवेश के लिए समर्थ बनाती है।
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१६
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जगतगुरु एवं समर्पित शिष्य

जगतगुरु एवं समर्पित शिष्य
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एक कहावत है कि 
"मानव गुरु शिष्य के कान में मंत्र उच्चारण करता है,जबकी जगद्गुरु भक्त के हृ्दय में बोलता है!"
 साधक में अध्यात्म चेतना का द्वार जागरण होने पर सच्ची दीक्षा होती है! सच्चा गुरु सर्वव्यापी भगवान,अन्तर्यामी परमात्मा है।जो संसार की गती,भर्ता,प्रभू,साक्षी,निवास,शरण,सुहृ्द,प्रभव और प्रलय,अधार,समस्त ज्ञान का निदान और अव्यक्त बीज  है!

"गतिर्भर्ता प्रभु: सा़ई निवास: शरणं सुहृ्त! 
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्!!"
 
साधारण गुरु और शिष्य परस्पर मिलने पर एक-दूसरे में भगवान को देखने का प्रयास करते है! शिष्य गुरु को गुरुओं के गुरु परमात्मा का एक विग्रह समझता है,जिसके माध्यम से भगवत्कृ्पा प्रवाहित होती है! वह इसी रुप में उनकी सेवा तथा उपासना करता है,तथा उनकी आग्या का पालन करता है! भारत में हजारों लोगों द्वारा पाठ किये जाने वाले प्रसिद्ध श्लोकों मेंयह बात व्यक्त हुई है!! 
अग्यानतिमिरान्ध्स्य ग्यामांजनशलाकया!

"चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
अनेकजन्मसम्पाप्तकर्मबन्धविदाहिने!
आत्मग्यानप्रदानेन तस्मै श्री ग्गुरुवे नम:!!"

अर्थात:-"अग्यानान्धकार से अन्ध व्यक्ति के नेत्रों कौ ग्यानरुपी अंजन की शलाका से उन्मीलित करने वाले श्री गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ! अनेक जन्मों के कर्म बन्धनों कों आत्मग्यान प्रदान करके भस्म करने वाले श्री गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ!!
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

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साधना -पूजा के मूल सूत्र-भाग 2

साधना -पूजा के मूल सूत्र-भाग 2
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जगतगुरु एवं समर्पित शिष्य
एक कहावत है कि 
"मानव गुरु शिष्य के कान में मंत्र उच्चारण करता है,जबकी जगद्गुरु भक्त के हृ्दय में बोलता है!"
 साधक में अध्यात्म चेतना का द्वार जागरण होने पर सच्ची दीक्षा होती है! सच्चा गुरु सर्वव्यापी भगवान,अन्तर्यामी परमात्मा है।जो संसार की गती,भर्ता,प्रभू,साक्षी,निवास,शरण,सुहृ्द,प्रभव और प्रलय,अधार,समस्त ज्ञान का निदान और अव्यक्त बीज  है!

"गतिर्भर्ता प्रभु: सा़ई निवास: शरणं सुहृ्त! 
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्!!"
 
साधारण गुरु और शिष्य परस्पर मिलने पर एक-दूसरे में भगवान को देखने का प्रयास करते है! शिष्य गुरु को गुरुओं के गुरु परमात्मा का एक विग्रह समझता है,जिसके माध्यम से भगवत्कृ्पा प्रवाहित होती है! वह इसी रुप में उनकी सेवा तथा उपासना करता है,तथा उनकी आग्या का पालन करता है! भारत में हजारों लोगों द्वारा पाठ किये जाने वाले प्रसिद्ध श्लोकों मेंयह बात व्यक्त हुई है!! 
अग्यानतिमिरान्ध्स्य ग्यामांजनशलाकया!

"चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
अनेकजन्मसम्पाप्तकर्मबन्धविदाहिने!
आत्मग्यानप्रदानेन तस्मै श्री ग्गुरुवे नम:!!"

अर्थात:-"अग्यानान्धकार से अन्ध व्यक्ति के नेत्रों कौ ग्यानरुपी अंजन की शलाका से उन्मीलित करने वाले श्री गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ! अनेक जन्मों के कर्म बन्धनों कों आत्मग्यान प्रदान करके भस्म करने वाले श्री गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ!!
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

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साधना-पूजा के मूल सूत्र-भाग 1

साधना-पूजा के मूल सूत्र-भाग 1
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किसि भी साधना या पूजा को करने के पहले साध को प्राणायाम की साधना करनी चाहिये ये प्राणायाम तीन प्रकार के होते हैं-लघु,मध्यम और उत्तम अनमें प्रथम लघु प्राणायाम 12मात्राऔं का,मध्यम 24 का,तथा उत्तम प्राणायाम 36 मात्राऔं का होता है "आँखो की पलको को खुलने फर बंद होने में जो समयावधि लगती वही एक मात्रा कहलाती है"
इसी प्रकार आसन में बैठने के बाद सर्व प्रथम अपनी गर्दन को 7 बार गोल दाई तरफ से घुमाये फिर 7 बार दाई तरफ से।फिर 7 बार आगे से पीछे की तरफ ले जाएं ।इससे गर्दन के पास की मास पेशियां एवं नसे मुक्त होती है जो कि साधक की साधना में सहयोग प्रदान करती है गर्दन के पीछे का स्थान शक्ति संचार एवं एकत्रीकरण का मूल स्थान उसी प्रकार है जैसे कि मूलाधार का शक्ति स्थान ,जहां सभी नस-नाड़ियो का संग्रह होता है।इस सूत्र का नित्य उपयोग कर हमें साधना करने में बहुत सहायता मिली है।हमारा निजी अनुभव कहता है कि साधक को कुछ दिनों तक इस प्रयोग को अवश्य करके देखना चाहिए।
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

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नवदुर्गा शक्ति कवच 🎂🚩

नवदुर्गा शक्ति कवच 🎂🚩
सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्र
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श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी।
मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१
सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी।
नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२
धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा।
प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३
धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४
वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका।
स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५
भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका।
सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका।
अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका।
मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७
साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका।
जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८
अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका।
पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९
स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका।
प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१०
जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका।
भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११
चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका।
इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२
श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका।
आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३
सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना।
दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।
ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।
ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय।
अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः।
श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः।
ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।
विधि:-सामान्य रूप से नित्य कम से कम 3 पाठ करना उचित होता है दिन रविवार या मंगलवार से प्रारंभ करें।सर्व प्रथम देवी के मंदिरमे जा कर पंचोपचार विधि से पूजन करे।फल-फूल प्रदान करे।प्रसाद में खीर या इच्छानुसार मिष्ठान प्रदान कर मंदिर में ही 3 पाठ कर नित्य 3 पाठ करने की माता से अनुमति प्रदान करे।विधि प्रारम्भ करने के पहले हनुमानजी को प्रणाम करें एवं पूजा सम्पन्न होने पर श्री भैरव जी को प्रणाम करें।इनके बाद रोज अपने निवास स्थान पे एक नियमित समय पे पाठ करे।
ये सामान्य विधि है माता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त हो शारिरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक रक्षा प्राप्त होती हैं।इसके अलावा जटिल विधि भी है सिद्ध करने की किन्तु इसे सिर्फ गुरु आदेश से और हो सके तो गुरु सानिध्य में ही कि जा सकती है।इस स्तोत्र मव भगवती आदिशक्ति नवदुर्गा जी शक्ति विद्यमान है।जिससे शारिक रक्षा,दुखो को दूर करने की शाक्ति है।किसी भी प्रकार के रोग ऋण शत्रु से मुक्ति प्राप्त होती है।यदि आपको लगता है कि आपके या आपके परिवार के ऊपर बाहर की बाधा हो,नजर दोष हो,तो इस कवच का पाठ अवश्य करे।यदि आप चाहे तो संकल्प प्रदान कर इस कवक्ज6 का जाप अनुष्ठान करा कर ,इसे कवच के रूप में धारण किया जा सकता है।किंतु स्मरण रहे अनुष्ठान हेतु अनुष्ठानकर्ता अनुभवी एवं सिद्ध हो।।
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

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रविवार, 8 मई 2022

श्रीबगलामुखी_ध्यान_पंचास्त्र_शाबर_एवं_अन्य_मंत्र

#श्रीबगलामुखी_जयंती_की_हार्दिक_शुभकामनाएं
🚩🙏🏻🕉️🚩🙏🏻🕉️🚩🙏🏻🕉️🚩🙏🏻🕉️🚩🙏🏻🕉️

#श्रीबगलामुखी_ध्यान_पंचास्त्र_शाबर_एवं_अन्य_मंत्र
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ध्यान -1

मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेद्यां
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्यबिभूतिषताङ्गी
देवीं स्मरामि धृतमुद्गर वैरिजिह्वाम्॥
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थितां।
त्रिशूलं पान पात्रं च गदा जिह्वां च विभ्रतीम्॥
बिम्बोष्ठी कंबुकण्ठीं च सम पीन पयोधरां।
पीताम्बरां मदाघूर्णां ध्यायेद् ब्रह्मास्व देवताम्॥

ध्यान -2
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

★ {बगलामुखी पंचास्त्र} ★
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※1※[वडवामुखी अथवा वडवास्त्र]-रण-स्तम्भन कारक है।
※2※[ उल्कामुखी अस्त्र]- तीनों लोकों का स्तम्भन करने में सक्षम है।
※3※[ज्वालामुखी अस्त्र]- देवताओं तथा ऋषियों का स्तम्भन करने में समर्थ है।
※4※[जातवेद मुखी अस्त्र]-ब्रह्मा-विष्णु-महेश का स्तम्भन एवं उनसे रक्षा हेतु ‘जातवेदमुखी’ का प्रयोग किया जाता है।
※5※[बृहदभानमुखी अस्त्र]-सभी प्रकार के काम्य प्रयोगों के लिए ‘वृहदभानुमुखी’ अस्त्र का प्रयोग किया है! यह इतना प्रभावशाली है कि इसके प्रयोग से सवा करोड़ त्रिपुरा समुदाय, 50 करोड़ भैरव, राक्षसों, नारसिंह का तथा करोड़ों पूतनाओं का स्तम्भन बिना किसी विशेष प्रयास के ही हो जाता है।
★★जय श्री पीतांबरा माई की★★

|| वडवामुखी मंत्र || 
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|| ॐ ह्लीं हूं ग्लौं बगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्वदुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्लः वाचं मुखं स्तंभय ह्लः ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशय ग्लौं हूं ह्लीं हुं फट् || विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य वशिष्ठ ऋषिः, पंक्ति छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- नारद ऋषये नमः शिरसि । पंक्ति छन्दसे नमः मुखे । बगलामुखी देवतायै नमः हृदि । ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये । स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।  सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

ध्यान
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हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे – पीताम्बरधरां देवीं द्विसहस्रभुजान्विताम् । अर्द्ध जिह्वां गदां चार्द्धं धारयन्तीं शिवां भजे ।। जपः- १२ लाख जप करें । हरताल की आहुति देवें । 

|| उल्कामुखी मंत्र || 
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|| ॐ ह्लीं ग्लौं वगलामुखि ॐ ह्लीं ग्लौं सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ग्लौं वाचं मुखं पदं ॐ ह्लीं ग्लौं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ग्लौं जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ग्लौं बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ ग्लौं ह्लीं ॐ स्वाहा || विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य यज्ञवराह ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः- यज्ञवराह ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । ह्लीं बीजाय नमः हृदि । स्वाहा शक्तये नमः गुह्ये । ॐ कीलकाय नमः पादयो । सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

ध्यान
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हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे – विलयानलसंकाशं वीरावेशन संस्थिता । वीराट्टहास महादेवी स्तम्भनास्त्रं भजाम्यहम् ।। १४ लाख जप । हरताल की १ लाख आहुतियाँ देवे । सांख्यायन तंत्र में वीरावेशन संभृताम् । वीराश्रयां महादेवी स्तंभनार्थं भजाम्यहम् ।। लिखा है । 

|| जातवेदमुखी मंत्र || 
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|| ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वगलामुखि सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ बुद्धिं नाशय नाशय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ स्वाहा || पाठान्तर भेद में कहीं “पदं” नहीं है तथा विनाशय के स्थान पर नाशय है । 

विनियोग
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 ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य, कालाग्निरुद्र ऋषिः, पंक्ति छन्दः, ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिः, हूं कीलकं ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः । (सांख्या॰ तंत्र में ह्लीं शक्ति, ह्रौं कीलक कहा है) 
ध्यानम् 
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जातवेदमुखीं देवीं देवतां प्राणरुपिणीं । भजेऽहं स्तंभनार्थं च चिन्मयी विश्वरुपिणीम् ।। पुरश्चरणः- ३० लाख जप ।

 || ज्वालामुखी मंत्र || 
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|| ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर ज्वाला-मुखि ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर जिह्वां कीलय कीलय ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर बुद्धिं विनाशय विनाशय ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर स्वाहा || पाठान्तर भेद में विनाशय के स्थान पर नाशय हैं तथा कईं आचार्यों का मत है कि ज्वालामुखि के स्थान पर बगलामुखि होना चाहिए । 
विनियोग
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ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य, अत्रि ऋषिः, गायत्री छन्दः, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं सर्वशत्रु स्तंभनार्थे, क्षयार्थे जपे विनियोगः । 
ध्यान
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ज्वलत्पुञ्ज समायुक्तां कालानल समप्रभाम् । चिन्मयीं स्तंभनाद्देवीं भजेऽहं विधिपूर्वकम् ।। १२ लाख जप, हरताल से २ लाख आहुति, गोदुग्ध से तर्पण ४ लाख, ब्राह्मण-भोजन दो हजार करे । 

|| वृहद्भानुमुखी मंत्र || 
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|| ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ वगलामुखि १४ सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय १४ जिह्वां कीलय १४ बुद्धिं नाशय १४ ॐ स्वाहा || पाठान्तर भेद “ह्ल्रां ह्ल्रीं” के स्थान पर “ह्लां ह्लीं” तथा विनाशय के स्थान पर नाशय है । 
यह विद्या शत्रु का तेजहरण तथा स्तंभन करती है । परविद्या स्तंभन कर स्वविद्या प्रकाशित करती है ।
 विनियोग
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 ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य, अत्रि ऋषिः, गायत्री छन्दः, ह्लीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं परसैन्य परविद्या स्तंभनार्थे स्वविद्या प्रकाशनार्थे जपे विनियोगः । 
ध्यान
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 कालानलनिभां देवीं ज्वलत्पुञ्ज शिरोरुहां । कोटिबाहु समायुक्तां वैरिजिह्वां समन्वितान् ।। स्तंभनास्त्रमयीं देवीं दृढपीनपयोधराम् । मदिरामोद संयुक्तां वृहद्भानुमुखीं भजे ।। १२ लाख जप, दशांश तालक हवन, गुडोदक तर्पण दशांश ब्राह्मण भोजन ।

#मां_बगलामुखी_के_विशेष_मंत्र 
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ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:

मां बगलामुखी का भयनाशक मंत्र
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ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हर: 

शत्रु नाशक मंत्र
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ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु

सर्व बाधा नाशक मंत्र
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ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधां नाशय नाशय

शत्रुनाशक मंत्र
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ॐ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग: । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा ।

#बगलामुखी_शाबर_मंत्र
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बगलामुखी शाबर मंत्र – 1

ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महाकराली राजमुख बन्धनं ग्राममुख बन्धनं ग्रामपुरुष बन्धनं कालमुख बन्धनं चौरमुख बन्धनं व्याघ्रमुख बन्धनं सर्वदुष्ट ग्रह बन्धनं सर्वजन बन्धनं वशीकुरु हुं फट् स्वाहा।

बगलामुखी शाबर मंत्र – 2
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ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा, सिंहासन पीला, सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे? सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे। बगलामुखी के कौन संगी, कौन साथी? कच्ची बच्ची काक कुतिआ स्वान चिड़िया। ॐ बगला बाला हाथ मुदगर मार, शत्रु-हृदय पर स्वार, तिसकी जिह्ना खिच्चै। बगलामुखी मरणी-करणी, उच्चाटन धरणी , अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी। ॐ बगलामुखीरमे ब्रह्माणी भण्डे, चन्द्रसूर फिरे खण्डे-खण्डे, बाला बगलामुखी नमो नमस्कार।

बगलामुखी शाबर मत्रं-3
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ॐ बगलामुखी महाक्रूरी शत्रू की जिह्वा को पकड़कर मुदगर से प्रहार कर , अंग प्रत्यंग स्तम्भ कर घर बाघं व्यापार बांध तिराहा बांध चौराहा बांध चार खूँट मरघट के बांध जादू टोना टोटका बांध दुष्ट दुष्ट्रनी कि बिध्या बांध छल कपट प्रपंचों को बांध सत्य नाम आदेश गुरू का।

बगलामुखी शाबर मंत्र – 4
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कच्ची बच्ची काक कुतिआ स्वान चिड़िया। ॐ बगला बाला हाथ मुदगर मार, शत्रु-हृदय पर स्वार, तिसकी जिह्ना खिच्चै। बगलामुखी मरणी-करणी, उच्चाटन धरणी , अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी। ॐ बगलामुखीरमे ब्रह्माणी भण्डे, चन्द्रसूर फिरे खण्डे-खण्डे, बाला बगलामुखी नमो नमस्कार।
संकलित पोस्ट द्वारा
************सम्पूर्ण*******************
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
लेखन-सम्पादन-संकलन
#राहुलनाथ_™ 🖋️....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई'३६गढ़,भारत
#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।

रहस्य secret

रहस्य secret
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जीवन मे हमारे कुछ रहस्य,राज (secret)।
ऐसे होते है जिसे हम स्वयं को भी नही बता सकते।
सकारात्म रहस्य आपको शक्ति-इच्छापूर्ति-प्राण।
ऊर्जाओं को प्रदान करते है।
वही नकारात्मक रहस्य आपके जीवन का।
हनन कर वर्तमान एवं भविष्य में भी। 
हमे दुःख एवं निराशा ही प्रदान करते है।
अतः प्रयास करे कि जीवन रहस्यात्मक 
ना हो और यदि हो भी तो सकारात्मक 
जैसे:-किसी की मदद,दान,भक्ति,सेवा 
एवं बड़ो का सम्मान आदी।
🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
👉व्यक्तिगत अनुभूति 

☯️राहुलनाथ™ 🖋️।..

श्री शिव स्तुति

श्री शिव स्तुति 

शीश गंग अर्धांग पार्वती सदा विराजत कैलासी!
नंदी भृंगी नृत्य करत है, गुणभक्त  शिव की दासी!!

सीतल मद्सुगंध पवन बहे बैठी हैं शिव अविनाशी!
करत गान गन्धर्व सप्त सुर, राग - रागिनी सब गासी!!

अक्ष रक्ष भैरव जह डोलत बोलत है अनेक वासी!
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत है गुन्जासी!!

कल्प वृक्ष अरु पारिजात लग रहे हैं लक्षासी!
सूर्य कांति सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्ति नव मीमासी!!

छहों ऋतु नित फलत फुलत है पुष्प चढत है वर्षा सी!
देव मुनि जन की भीड़ पडत, निगम रहत जो नितगासी !!

ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत है, कछु शिव हमको परमसी!
ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर, सदा आनंदित सुखरासी!!

जिनके सुमिरन सेवा करते टूट जाये यम की फांसी!
त्रिशूल फरसा का ध्यान निरंतर, मन लगाये कर जो ध्यासी!!

दूर करे विपदा शिव तिनकी जन्म सफल शिव्पदपासी!
कैलाशी काशी के वासी, अविनाशी सुध मेरी लीज्यो!
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान दरस दीज्यो!!

तुम तो प्रभु सदा सयाने, अवगुण मेरे सदा ढकियो!
सब अपराध क्षमा कर राहुलनाथ किंकर की विनती सुनियो!!
🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

☯️।।राहुलनाथ।।™🖋️।....
  भिलाई,३६गढ़,भारत

नीलकंठ_स्तोत्रम्

#नीलकंठ_स्तोत्रम्
विनियोग: – 
ॐ अस्य श्री भगवान नीलकंठ सदा-शिव-स्तोत्र मंत्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्ठुप छन्दः, श्री नीलकंठ सदाशिवो देवता, ब्रह्म बीजं, पार्वती शक्तिः, मम समस्त पापक्षयार्थं क्षेम-स्थै-आर्यु-आरोग्य-अभिवृद्धयर्थंमोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनार्थं च श्री नीलकंठ-सदाशिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास: –
श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसेनमः मुखे। श्री नीलकंठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि।

ब्रह्म बीजाय नमः लिंगे। पार्वती शक्त्यैनमः नाभौ। मम समस्त पापक्षयार्थंक्षेम-स्थै-आर्यु-आरोग्य-अभिवृद्धयर्थं

मोक्षादि-चतुर्वर्ग-साधनार्थंच श्रीनीलकंठ-सदाशिव-प्रसाद-सिद्धयर्थे च विनियोगाय नमः सर्वांगे।
#स्तोत्र
ॐ नमो नीलकंठाय, श्वेत-शरीराय, सर्पा लंकार भूषिताय, भुजंग परिकराय, नागयज्ञो पवीताय, अनेक मृत्यु विनाशाय नमः। युग युगांत काल प्रलय-प्रचंडाय, प्र ज्वाल-मुखाय नमः। दंष्ट्राकराल घोर रूपाय हूं हूं फट् स्वाहा। ज्वालामुखाय, मंत्र करालाय, प्रचंडार्क सहस्त्रांशु चंडाय नमः। कर्पूर मोद परिमलांगाय नमः।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं स्फुर अघोर रूपाय रथ रथ तंत्र तंत्र चट् चट् कह कह मद मद दहन दाहनाय ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोर घोर तनुरूप चट चट प्रचट प्रचट कह कह वम वम बंध बंध घातय घातय हूं फट् जरा मरण भय हूं हूं फट् स्वाहा।

अनंताघोर ज्वर मरण भय क्षय कुष्ठ व्याधि विनाशाय, शाकिनी डाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बंधनाय, अपस्मार भूत बैताल डाकिनी शाकिनी सर्व ग्रह विनाशाय, मंत्र कोटि प्रकटाय पर विद्योच्छेदनाय, हूं हूं फट् स्वाहा। आत्म मंत्र सरंक्षणाय नमः।

ॐ ह्रां ह्रीं हौं नमो भूत डामरी ज्वालवश भूतानां द्वादश भू तानांत्रयो दश षोडश प्रेतानां पंच दश डाकिनी शाकिनीनां हन हन।

दहन दारनाथ! एकाहिक द्वयाहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पंचाहिक व्याघ्य पादांत वातादि वात सरिक कफ पित्तक काश श्वास श्लेष्मादिकं दह दह छिन्धि छिन्धि श्रीमहादेव निर्मित स्तंभन मोहन वश्याकर्षणोच्चाटन कीलना द्वेषण इति षट् कर्माणि वृत्य हूं हूं फट् स्वाहा।

वात-ज्वर मरण-भय छिन्न छिन्न नेह नेह भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर तापज्वर बालज्वर कुमारज्वर अमितज्वर दहनज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर रूद्रज्वर मारीज्वर प्रवेशज्वर कामादि विषमज्वर मारी ज्वर प्रचण्ड घराय प्रमथेश्वर! शीघ्रं हूं हूं फट् स्वाहा।

#नीलकंठ_मंत्र 
।।ॐ नमो नीलकंठाय, दक्षज्वरध्वंसनाय श्री नीलकंठाय नमः।।

।।इतिश्री नीलकंठ स्तोत्र संपूर्ण:।।

सूर्यकवचम_सहित_आदित्य_हृदय_स्तोत्र

#सूर्यकवचम_सहित_आदित्य_हृदय_स्तोत्र
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अथ सूर्यकवचम ।।
****सूर्य स्तुति*****
1- श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।।

अर्थात- यह सूर्य कवच शरीर को आरोग्य देने वाला है 
तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।

2- देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत्।।

अर्थात- चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।

3- शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर:।।

अर्थात- मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।

4- ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:।
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित:।।

अर्थात- मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।

5- सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय:।।

अर्थात- सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती है।

6- सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति।।

अर्थात- स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।

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#आदित्य_हृदय_स्तोत्र 
विनियोग
ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः

#पूर्व_पिठिता 
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । 
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । 
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ । 
येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ ।
 जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

#मूल_स्तोत्र 
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । 
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
 वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ । 
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ ।
 तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
 अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । 
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। 
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । 
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । 
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
 नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
 नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । 
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
 कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । 
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । 
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । 
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । 
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । 
कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ । 
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । 
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥ 
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ । 
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ । 
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥

।।सम्पूर्ण ।।
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शिव आदेश

#शिव_आदेश
ॐ अलख निरंजन शिव को आदेश।
अविगत महापुरुष मूल पुरुष पुरुषोत्तम आद पुरुष शिव को आदेश। ज्योति-परमज्योति-अयोनि रूद्र शिव को आदेश। विशूनी विश्वमूर्ति पाताल ग्रहणी शिव को आदेश। मुखेवेद पुराण नासिका गंगा - जमना - सरस्वती शिव को आदेश। ललाटी चंद मस्तके त्रिकुटा देवता धारी शिव को आदेश। नक्षत्री माला अठारह भार वनस्पती हृदय के तैतीस करोड़ देवता धारी शिव को आदेश। सेली सिंगी मीन मेखला बाघाम्बरधारी रोम - रोम सप्त सागरा शिव को आदेश। शिव के बायीं ओर निर्गुण ब्रहम् दाहिनी ओर शक्ति महामाया बीच में स्वयं पूर्ण अखण्ड   ज्योति स्वरूप शिव को आदेश। विभूति धारी बीज मंत्र घोर मंत्र अघोर मंत्र क्षीर मंत्र गायत्री मंत्र अभय जाप तंत्र - मंत्र स्वरूप शिव को आदेश। नर - नारी भूत - प्रेत यक्ष किन्नर इन्द्रादि देवता ब्रह्माण्ड व्यापक शिव को आदेश। साधु - संत योगी - ज्ञानी तपस्वी त्यागी अवधूत हर भक्त के ईष्ट शिव को आदेश। जीवों का आराध्या शिव को आदेश। सूक्ष्म में सूक्ष्म विराटों में व्यापक महातत्त्व शिव को आदेश। सृष्टि उत्पत्ति संहार पालन पंच महातत्त्व शिव को आदेश। चार खानी चार बानी चन्द सूर पवन पानी शिव को आदेश। चराचर सृष्टि का बिज शिव को आदेश। करोड़ों सूर्य प्रकाशनाथ योग आदर्श शिव को आदेश। परमात्मपूर्ण आनंद सर्व शक्तिमान चैतन्य रूप जितेन्द्र मोक्ष कैवल्य मुक्तिदाता भिन्न - अभिन्न शिव को आदेश। महाज्ञानी कृपा साक्षात्कार शिव को आदेश। सर्वनाथ सिद्धों का सतगुरु आदिनाथजि ॐकार शिव को आदेश। इतना शिव सबद निरूपा सम्पूर्ण भया। श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।
श्रीशंभुजती गुरु गोरखनाथ बाल स्वरूप बोलिए। इतना नौ नाथ स्वंरूप मंत्र सम्पूर्ण भया अनन्त कोट सिद्धों में बैठकर गुरु गोरखनाथजि ने कहाया नाथजी गुरुजी आदेश।संकलित पोस्ट व्हाट्सएप द्वारा
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
लेखन-सम्पादन-संकलन
☯️राहुलनाथ™ 🖋️....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई'३६गढ़,भारत