हनुमंत लांगुल्लास्त्र शत्रुन्जय स्त्रोत
।।विनियोग:।।
ऊँ अस्य श्री हनुमल्लांगुलशत्रुन्जय स्त्रोत मंत्रस्य ईश्वर ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री हनुमान रूद्रो देवता हं बीजम्
स्वाहा शक्तिः हृा हृा हृा कीलकम् मम
शत्रुसंहारणार्थे मम सवरिक्षयार्थे जपे विनियोगः।
अब ऋषि न्यास करे -
1. ऊँ ईश्वर ऋषियै नमः - शिरसे ।
2. ऊँ अनुष्टुप छन्दसे नमः - मुखे।
3. ऊँ श्री हनुमान रूद्रो देवता नमः - हृदये।
4. ऊँ हं नमः - गुह्ये।
5. ऊँ स्वाहा नमः - पादयो।
6. ऊँ हृा हृा हृा बडीलकाय नमः - नाभौ।
विनियोगाय नमः सर्वागें।
।।करन्यास:।।
ऊँ हृीं रामदूताय - अगुष्ठाभ्याम् नमः ।
ऊँ हं अक्षयकुमार विध्वसंकाय - अनामिकाभ्याम् नमः।
ऊँ हृैं लंकाविदाहृकाय - तर्जनीभ्याम् नमः।
ऊँ हृौं रूद्रावताराय - मध्यमाभ्याम नमः।
ऊँ हांः सकलरिपु संहारणाय: कनिष्ठाभ्याम् नमः।
ऊँ हृः अंजनयाय: - करतल पृष्ठाभ्याम् नमः।
।।हृदय न्यास:।।
ऊँ हृां आंजनेयाय: हृदयाय नमः।
ऊँ हृीं रामदूताय:- शिरसे स्वाहा।
ऊँ हं अक्षयकुमाराय विध्वंसकाय:- शिखायै वषट्।
ऊँ हृौं लंकाविदाहकाय:- कवचाय हूम।
ऊँ हृौ रूद्रावताराय:- नैत्राय वौषट्।
ऊँ हृ सकलरिपु संहारणाय:- अस्त्राय फट्।
।।मंत्र:।।
त्रैलोभ्यांक्रमण प्रराक्रमाय श्रीराम भक्त मम परस्य च सर्व शत्रुन् चतुर्वर्ण सम्भवान पुस्त्री नपुसंकान।
भूत भविष्यंद् क्वथानान् दुरस्थान, पुस्त्रीनपुसंकान
भूत भविष्यद् वर्तमानान् दुरस्थान समीपस्थान नाश
सकट जाती यान् कलत्रपुत्र मित्रमृत्युं बन्धुसुहृत्
समेतान।राज्ञो राजसेवकान मंत्री सचि सखीना त्यन्तिकान क्षणेन त्वष्टया एतद् दिनावधि मानोपायर मारये मारय अस्त्रैः छेदय-छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय-दाहय अक्षय कुमारवत पाद तलाक्रमेणन आत्रोय्य-आत्रोय्य घातय-घातय भक्तजनवत्सल सीता शोक शोक प्रहारक सर्वत्रभामिन च रक्ष-रक्ष हा हा हा हृुं हृुं हुं।
भूत सघे सहृ भक्षय-भक्षय क्रुद्ध चेतसा नखैविधारय-विदारद दाशादश्माुदू उच्चाटाय-उच्चाटाय पिशाचवद् क्षंशय भ्रंशय घे घे घे हुं हुं हुं फट् स्वाहां।।
ऊँ नमो भगवते श्री हनुमंते महाबल प्रराक्रमाय
महाविप्पति निवारणाय भक्तजन मनः सकल्पनाय कल्पद्रूमाय दुष्टजन मनोरथः स्तम्भनाय प्रभजन प्राणप्रियाय स्वाहा ।।
ऊँ नमो हनुमंते पाहि पाहि एहि एहि सर्वग्रहभुतानां
डाकिनी शाकिनीनां सर्वीवषयान आर्कषय आकर्षय मर्दय मर्दय छेदय छेदय अपमृत्यु
प्रभूतमुल्युपशोषय शोषय ज्वल प्रजवल भूत मंडल पिशाच मंडल निरसनाय भूतज्वर प्रेत ज्वर चातुर्थिकज्वर महेश्वर जवर छिधिं छिधिं भिन्दी-भिन्दी अक्षिशूल कुक्षि शुल शिरोभ्यंतर शूल गुल्म शूल पित्र शूल ब्रह्म राक्षस कुलप्रनज नागकुलविष निविषं कुरू-कुरू स्वाहा।।
।।ध्यान।।
श्रीमन्त हनुभन्तामान्त रिपुमिद् भूमृत्तभुभ्राजित
बाल्गद् बालधिबद्धवैरिमिचय चाभि कटाद्रिप्रभम्।
रोषासेत पिशंगः नेत्र नलिन भूमंगमंगे स्फटतु प्रौद्यच्यण्ड मखूख मण्डल मुख दुख पाह दुः खिनाम्।।
कौपीना काटसूत्र गौज्यजिन युग्देह विदेहात्मज
प्राणाधीशयदारविन्दः निहंत स्वान्तं कृतांन्तद्धिषाम
ध्यात्वेर्व समरांगणे स्यित मकानीय स्वहत्पकंजै
सम्पूजयखिल पूजनोक्तविधिनां साम्प्रार्थयेल्पार्थतेमू ।।2।।
।।हनुमल्लांगुलशत्रुन्जय स्त्रोत ।।
ओं हनुमंत अंजनीसुतो महाबलपराक्रम
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।1।।
अक्षक्षपण पिंगााक्षदि त्रिजासुक्षयक्कर, लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।2।।
मर्कटाघिप मार्तण्डमण्डलग्रासकारक, लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।3।।
रूद्रावतार संसारदुः ख भाराप्रहारक,
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।4।।
श्रीराम चरणाम्भोज मधुपापितमानस्, लोललांगुलपातेन ममारातीन् निपातय ।।5।।
बालिकाल कोटदक्रान्त सुग्रीवोन्मोचक प्रभो,
लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।6।।
सीता विरह वारीशम अग्नि सीते शतारक,
लोल लांगुलापातेन ममारातीन् निपातयः ।।7।।
रक्षोराज प्रजापाग्नि दहयमान् जगहित्।
लोललागुलापातेन ममारातीन निपातय ।।8।।
ग्रसताशेष जगत्स्वास्थ राक्षसाम्भोधिमन्दर ।
लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।9।।
पुच्छगुच्छ स्फप्द्धूम ध्वजदग्ध निकेतन, लोललांगुलपातने ममारातीन निपातय ।।10।।
जग्न्मनोदुरूल्धय पारावार विलंघन् ।
लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।11।।
स्मृति मात्र समस्तेष्ट पूरणा प्राणतप्रिये ।
लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।12।।
रात्रिचरणभूराशि कत्र्तानैक विकतेन।
लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।13।।
जानकी जानकी जानी प्रेम पात्र परन्तप, लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।14।।
भीमादिक महावीर वीरेवेशादितारक।
लोललांगुलपातेन ममारातीन निपातय ।।15।।
वैदेहि विरहाक्रान्त रामरोष कविग्रह।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।16।।
व्रजागनखदेष्ट्रेश व्रजिव्रजावकुण्ठन ।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातेय।।17।।
अखर्व गर्व गन्धर्व पर्वतोद्भेदनेश्वर।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातेय ।।18।।
लक्ष्मण प्राण संस्त्राणं त्रातं तीक्ष्णकरान्वयं ।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।19।।
रामादि विप्रयोगार्त भरताद्यर्तिनाशन ।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।20।।
द्रोणाचल सुभत्क्षेय समुत् क्षिप्तारिभैव।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।21।।
सीतार्शीवाध सम्पन्न समस्ताभ्य वछिंतम्।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।22।।
वात पित्त कफ श्वास स्वरादि व्याधिनाशन।
लोललागुलपातेन ममारातीन निपातय ।।23।।
।।फल श्रुति।।
इल्येवभश्वतयतलोपाविष्टः शत्रुंजय ना पठेत्सत्वंयः।
सः शीघ्रमेवास्त समस्त शत्रु, प्रभोदत्ते मरूजत प्रसपित।।
**************************************
।। राहुलनाथ ₂₀₁₇।।™
" महाकालाश्रम "
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
पेज लिंक:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
0⃣9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣
चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे। अन्यथा मानसिक हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
विशेष:-इस पोस्ट से सम्बंधित शाब्दिक त्रुटि, पूजा विधि एवं अन्य जानकारी के लिए ऊपर दीये गए नंबर व्हाट्सऐप पे संपर्क करे।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें