बुधवार, 17 मई 2017

शनि देव-शनि पुजा विधि

पत्नी की पूजा से बहुत प्रसन्न होते हैं शनि देव-शनि पुजा विधि
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शनि पत्नी मंत्र 
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ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा।। 
शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन‍् पुमान्।
दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम।। 

नियमित इस मंत्र का 21 बार जप करने से शनि देव की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

सूर्य और शनि की कृपा एक साथ पाने के लिए
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प्रातः काल सूर्य को देखते हुए
'सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः
मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां दहतु मे शनिः'

नियमित इस मंत्र का 21 बार जप करने से शनि देव की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

दान द्वारा शनि कृपा की प्राप्ति
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मजदूर, भिखारी, आदि कमजोर वर्गों को भोजन करवाने एवम तिल-तेल का दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते है। हैं।

श्री शनि चालीसा
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दोहा
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।

चौपाई

जयति-जयति शनिदेव दयाला।करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।कहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।तृण को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

।।दोहा ।।
प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।
नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।

II शनि कवचं ।।
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अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II 
अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II 
शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II 
निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् II 
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः II १ II 

ब्रह्मोवाच II 

 श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् I 
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् II २ II 

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् I 
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् II ३ II 

ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः I 
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः II ४ II 

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा I 
स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः II ५ II 

स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः I 
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा II ६ II 

नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा I 
ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा II ७ II 

पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः I 
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः II ८ II 

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः I 
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः II ९ II 

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा I 
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः II १० II 

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे I 
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् II ११ II 

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा I 
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा I 
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः II १२ II 

 II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं II 

शनि वज्र पञ्जर कवच
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विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनैश्चर-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्द, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चर-प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।१

ब्रह्मोवाच-
श्रृणुषवमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहरं महप्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।२
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।३
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।
नेत्रे छायात्मजः पातु, पातु कर्णौ यमानुजः।।४
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।
स्निग्ध-कंठस्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः।।५
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा।।६
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटि तथा।
ऊरु ममांतकः पातु यमो जानुयुग्म तथा।।७
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दनः।।८

फलश्रुति

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रोतो भवति सूर्यजः।।९
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा।
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।१०
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।११
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।१२
।।श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारद-संवादे शनि-वज्र-पंजर-कवचं।।

।। राहुलनाथ ©₂₀₁₇।।™,भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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