।। श्री विश्वनाथाष्टकम् ।।
गंगातरंगरमणीय जटाकलापं
गौरीनिरन्तर विभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रिय मनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
वाचामगोचर मनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णु सुरसेवित पादपीठम् ।
वामेन विग्रहवरेण कलत्रवन्तम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
भूताधिपं भुजंगभूषणभूषितांगं
व्याघ्रजिनाम्बरधरं जटिल त्रिनेत्रम् ।
पाशांकुशभयवर प्रदशूलपाणिम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
शीतांशु शोभितकिरीट विराजमानं
भालेक्षणानल विशोषित पन्चवाणम् ।
नागाधिपा रचितभासुर कर्णपूरम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
पन्चाननं दुरितमत्तमतंगजानां
नागान्तकं दनुजपुंगव पन्नगानाम् ।
दावानलं मरणशोक जराटवीनाम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीय
मानन्दकन्द पराजितमप्रमेयम् ।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
आशा विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापेरतिं च सुनिवार्य मन: समाधौ ।
आदायहृत्कमलमध्यगतं परेशम्
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ।।
वाराणसी पुरपते: स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्य: ।
विद्या श्रियं विपुल सौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्यदेहविलये लभते च मोक्षम् ।।
विश्वनाथाषटकमिदमं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन वसहमोदते ।।
- जिनकी जटाँए गंगा जी की लहरों से भी सुन्दर प्रतीत हो रही हैं । जिनका वाम भाग सदा ही माता पार्वती के लिये सुशोभित रहता है , जो नारायण के प्रिय और कामदेव के मद का नाश करने वाले हैं उन काशी विश्वनाथ को भज । वाणी के द्वारा जिनका वर्णन नही हो सकता , जिनके अनेकों गुण एवं स्वरूप हैं । ब्रह्मा , विष्णु और अन्य देवता जिनकी चरण पादुका का सेवन करते हैं , जो अपने सुन्दर वामांग के द्वारा ( अर्धनारीश्वर ) ही सपत्नीक हैं उन काशी विश्वनाथ को भज ।
जो भूतों के अधिपति हैं , जिनका शरीर सर्प रूपी गहनों से विभूषित है , जो बाघ की खाल का वस्त्र पहनते हैं तथा हाथो मे पाश , अंकुश , अभयवर , और शूल है , उन जटाधारी त्रिनेत्र काशी विश्वनाथ को भज । जो चन्द्रमा द्वारा प्रकाशित किरीट से शोभित हैं , जिन्होंने अपने भालस्थ नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया है , जिनके कानों मे बड़े बड़े साँपों के कुण्डल चमक रहे हैं उन्ही काशीपति विश्वनाथ को भज ।
जो पापरूपी मतवाले हाथियों को मारने वाले सिंह हैं , दैत्य समूहरूपी साँपों को मारने वाले गरुड़ हैं , जो मरण , शोक , और बुढ़ापा रूपी भीषण वन को जलाने वाले दावानल हैं , एैसे काशीपति विश्वनाथ को भज । जो तेजपूर्ण , सगुण , निर्गुण , अद्वितीय , आनन्दकन्द , अपराजित , और अतुलनीय हैं , जो अपने शरीर पर साँपों को धारण करते हैं , जिनका रूप ह्रास-वृद्धि रहित है ( चिर युवा ) एैसे आत्मस्वरूप काशीपति विश्वनाथ को भज ।
जो रागादि दोषों से रहित हैं , अौर अपने भक्तों पर सदा कृपा रखते हैं , वैराग्य और शान्ति के स्थान है , माता पार्वती जिनके सदा साथ रहती हैं , जो धीरता और सुन्दर स्वभाव से सुन्दर जान पड़ते हैं तथा जिनका कण्ठ गरल के पान के चिन्ह ( नीलकण्ठ ) से सुशोभित है उन काशीपति विश्वनाथ को भज । सब आशाओं को छोड़कर , दूसरों की निन्दा त्यागकर , पॉपकर्म से अनुराग हटाकर , चित्त को समाधि मे लगा कर हृदयकमल मे प्रकाशमान परमेश्वर काशीपति विश्वनाथ को भज ।
जो मनुष्य महादेव शिव के इन आठ श्लोकों का स्तवन का पाठ करता है वह विद्या , धन , प्रचुर सौख्य और अनन्तकीर्ति प्राप्त कर देहावसान होने पर मोक्ष प्राप्त करता है । जो महादेव शिव के समीप इस विश्वनाथाष्टकम् का पाठ करता है वह शिवलोक को प्राप्त करता है और महादेव शिव के साथ आनन्दित होता है ।
। जय बाबा काशी विश्वनाथ ।
।। महादेव ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें