।। श्री काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र।।
।।विनियोग ।।
ॐ ॐ ॐ अस्य श्री प्रत्यंगिरा मंत्रस्य,श्री अंगिरा ऋषिः,अनुष्टुप छन्दः,श्री प्रत्यंगिरा देवता, हूं बीजम्, ह्रीं शक्तिः,क्रीं कीलकं ममाभीष्ट सिद्धये पाठे विनियोगः।
।।अंगन्यास ।।
श्री अंगिरा ऋषये नमः शिरसि,अनुष्टुप छंदसे नमः मुखे
श्री प्रत्यंगिरा देवतायै नमः हृदि,हूं बीजाय नमः गुह्ये
ह्रीं शक्तये नमः पादयो,क्रीं कीलकं नमः सर्वांगे
ममाभीष्ट सिद्धये पाठे विनियोगाय नमः अंजलौ।
।।ध्यान ।।
भुजैश्चतुर्भिधृत तीक्ष्ण बाण,धनुर्वरा - भीश्च शवांघ्रि-युग्मा।
रक्ताम्बरा रक्त तनस्त्रि-नेत्रा,प्रत्यंगिरेयं प्रणतं पुनातु।।
।।स्तोत्र ।।
ॐ नमः सहस्र सूर्येक्षणाय श्रीकण्ठानादि रुपाय पुरुषाय पुरू हुताय ऐं महा सुखय व्यापिने महेश्वराय जगत सृष्टि कारिणे ईशानाय सर्व व्यापिने महा घोराति घोराय ॐ ॐ ॐ प्रभावं दर्शय दर्शय।
ॐ ॐ ॐ हिल हिल ॐ ॐ ॐ विद्द्युतज्जिव्हे बंध-बंध मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ विध्वंसय-विध्वंसय ग्रस-ग्रस पिव-पिव नाशय-नाशय त्रासय-त्रासय विदारय-विदारय मम शत्रून खाहि -खाहि मारय-मारय मां सपरिवारं रक्ष-रक्ष कर कुम्भस्तनि सर्वापद्र-वेभ्यः।
ॐ महा मेघौघ राशि सम्वर्तक विद्युदन्त कपर्दिनी दिव्य कनकाम्भो- रुहविकच माला धारिणी परमेश्वरि प्रिये। छिन्दि-छिन्दि विद्रावय-विद्रावय देवि! पिशाच नागासुर गरुण किन्नर विद्याधर गन्धर्व यक्ष राक्षस लोकपालान् स्तम्भय-स्तम्भय कीलय-कीलय घातय-घातय विश्वमूर्ति महा तेजसे।
ॐ हूं सः मम् शत्रूणां विद्यां स्तम्भय-स्तम्भय।
ॐ हूं सः मम् शत्रूणां मुखं स्तम्भय-स्तम्भय।
ॐ हूं सः मम् शत्रूणां हस्तौ स्तम्भय-स्तम्भय।
ॐ हूं सः मम् शत्रूणां पादौ स्तम्भय-स्तम्भय।
ॐ हूं सः मम् शत्रूणां गृहागत कुटुंब मुखानि स्तम्भय-स्तम्भय।
स्थानम् कीलय-कीलय, ग्रामं कीलय-कीलय मंडलम कीलय-कीलय देशं कीलय-कीलय सर्वसिद्धि महाभागे। धारकस्य सपरिवारस्य शांतिम कुरु कुरु फट स्वाहा।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अं अं अं अं अं हूं हूं हूं हूं हूं खं खं खं खं खं फट स्वाहा। जय प्रत्यंगिरे।
धारकस्य सपरिवारस्य मम रक्षाम् कुरु कुरु ॐ हूं सः जय जय स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ब्रह्माणि! मम शिरो रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वैष्णवि! मम कण्ठं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कौमारी! मम वक्त्रं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नारसिंही! ममोदरं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं इंद्राणी! मम नाभिं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चामुण्डे! मम गुह्यं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा
ॐ नमो भगवति उच्छिष्ट चाण्डालिनि, त्रिशूल वज्रांकुशधरे मांस भक्षिणी, खट्वांग कपाल वज्रांसि-धारिणी। दह-दह, धम-धम, सर्व दुष्टान् ग्रस-ग्रस, ॐ ऐं ह्रीं श्रीं फट स्वाहा।
।।महर्षि अंगिराकृत श्री काली प्रत्यंगिरा स्तोत् संपूर्णम् ।।
विशेष:-शत्रु बाधा,शरीर रक्षा,ग्रहबाधा इत्यादि के लिए यह स्तोत्र अमोघ है।
(राहुलनाथ,भिलाई)
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Ati uttam iska paryog kaise kiya jaata hai kirpa marg darshan kre
जवाब देंहटाएंAri uttam
जवाब देंहटाएंKali astavah mangani
जवाब देंहटाएंJay Mahakali pranam
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