सहज आयाम (व्यक्तिगत अंतर्ध्वनि एवं विचार)
प्राण का भीतर आना और फिर भीतर से बाहर आ जाना ।।
प्राण का भीतर आना और हठ योग द्वारा उसे वही रोक देना।।
प्राण का भीतर जा कर बाहर निकल जाना और फिर उसे हठ योग द्वारा उसे वही रोक देना।
प्राण का सामान्य रूप से चलते रहना।इस प्रकार प्राण के चार आयाम का गोरख धंधा ।
सब की समझ के बाहर है।इसे प्राणायाम ना समझे वो एक अलग विषय है।
मांत्रिक जीतनी भी सिद्धियाँ कही गई है वह इन आयामो में ही सिद्ध होती है।जैसे साँसों के भीतर जाने से वशिकर्णि सिद्धि।।
साँसों के बाहर आने से मारन सिद्धि किन्तु इसमें कही भी किसी मानव का मारन या वशीकरण महादेव ने नहीं कहा।।।
हाथ योग की अपेक्षा सहज योग ही उत्तम है।कोई हठीला नाभि भीतर कर बैठा है तो कोई मूलाधार में रम रहा है।जो है जैसा है उसे उसी रूप में ले लेना ही सहज मार्ग है।उसने आपको सम्पूर्ण कर के ही पैदा किया है।प्रकृति के विरुद्ध चलना अपने आप में स्वयं को साधना है।किन्तु ऐसे ना योगी है ना सन्यासी जो आज इन क्रियाओ को जानते हो।।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार।।।
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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