शनिवार, 23 जुलाई 2016

!! सिध्द अवस्था !! वैज्ञानिक विश्लेषण।।

!! सिध्द अवस्था !! वैज्ञानिक विश्लेषण।।
!! प्रत्यक्ष का ग्यान हमको चक्क्षु आदि इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है!
    किन्तु परोक्ष का ग्यान समझा जाता है! देखा नही जाता है !!

विज्ञान मतलब ग्यान+विश्लेश्न+विवेचन=विग्यान !
ग्यान तो पहले से ही उपलब्ध है!बस उसे समझना,परखना,कसौटी में कसना और यदि ग्यान सही निकला तो उसे प्रशस्ति पत्र प्रदान करना ! कि यह ज्ञान सत्य है और  ज्ञानी भी !यहि विज्ञान का मुख्या कार्य है।
विज्ञान की खोज मे ऎसा कोई क्षेत्र नही जहाँ विज्ञान की पहल नही हो!
विज्ञान का ही एक क्षेत्र है “मनोविग्यान” ! मतलब मन के विचारो का ग्यान ! मन के कार्य प्रणालि का विग्यान !!
मनोविग्यान के अनुसार मस्तिष्क के दों भाग होते है !!
1.तार्किक मस्तिष्क (Objective Mind)
2.चैतिक मस्तिष्क (Subjective Mind)
किन्तु ये दोनो भी “मन” नही है “मन” तो इन दोनो पे सवार होता है!
जैसे सारथि कृ्ष्ण रथ पे सवार हो कर पुरे रथ के साथ अपने शर्णार्थि अर्जुन को भी नियंत्रित करते है उसी प्रकार “मन” दोनो मस्तिष्क का नियंत्रक होता है!
ये मन ही हम होते है !ये मन ही “मै” होता है! ये मन हि गोरख भी है!!
इस मन के बहुत से नाम है कोई राम कहता है कोई श्याम ,कोई इसे भगवान कह कर पुजता है कोई शैतान कह कर!यहि मन आत्माराम है !! यहि आदिगुरु भी है !!
तार्किक मस्तिष्क  का कार्य बहिर्मुखि होता है! यह मस्तिष्क हमेशा सवाल पुछता रहता है ! इस मस्तिषक के पांच सलाहकार है जो इसे नित्य हर पल जानकारी देते रहते है !!और यह इन इन्द्रियों की अनुभुतियों के अनुसार प्राप्त संकेतो के अनुसार निर्णय लेता है !यदि इन्द्रियों से गलत संकेत प्राप्त होने पर ये भ्रम का शिकार हो जाता है! ये पांच इन्द्रियों का समुह है जो अपने स्तर पर हमेशा इसे जानकारि प्रदान करते रहते है ! हमारे शारिरिक अवस्थाओ एवं आवश्यक्ताओं की पुर्ति हेतु हि इस मस्तिष्क की सृ्ष्टि हुई है ! इसका जन्म हुआ है!! इसका कार्य है प्राकृ्तिक साधनो द्वार मनुष्य को ईच्छापुर्ति का उपाय बताना और इसका मार्ग प्रशस्त करना ! इसका सबसे बडा शस्त्र है तर्क करना एवं तर्क द्वार बाहरी उलझनो को सुलझाना !
जिसे शरिर शास्त्र में मुख्य मस्तिष्क (Cerebrum) कहा जाता है !

किन्तु अध्यात्मिक अनुभुतियो के दौरान मैने इसे ही “शिवा” कहा है !यही प्रकृ्ति है यही पार्वती भी है!!
यह मस्तिष्क स्त्रैण है! एवं यह हमेशा असुरक्षित रहता है! तन्त्र में मस्तक,शिश को ही “”कैलाश” कहा जाता है,बाहरी कैलाश से इसका कोई संबंध नही है !! इस कैलाश के शिर्ष पर श्री शिव महादेव के साथ शिवा को सवाल पुछते इस दृ्ष्य को कल्पनाकार ने चित्रों मे उकेरा था ! इसका कार्य है गुस्सा होना,बार-बार रुठना और अपनी ईच्छा की पुर्ति हेतु तत्पर रहना !यदि इसकी इच्छानुसार कार्य नही हो तो ये उब जाती और सो जाति है !!स्वादिष्ट भोजन मे एवं भोग में इनकी होती है!हर बात पे शिकायत करना एवं समाधान प्राप्त करना ये इसका मुख्य कार्य है!इसका संबंध सिधे शिव से होता है किन्तु शिव क किसि से नही!
किन्तु इसके विरुद्ध चैतिक मस्तिष्क का इन्द्रियों से कोई संबंध नहि होता ! इसका कार्य मात्र ग्यान प्राप्ति का साधन करना ,शिवा की बात सुनना एवं अन्तर्मुख होना है! एवं अंतरमुख वृ्त्ति बनाये रखना है! इसमे मन की भवनाये एवं स्मृ्तियों का भंडार होता है जिसे हमने काल कालन्तर से सहज कर रखा होता है ! इसकी कार्य प्रणाली सब से पृ्थक है! जब तार्किक मस्तिष्क(शिवा) का कार्य बंद हो जाता है तब यह स्वप्न अथवा बेहोशि में ,या फिर किसि भी प्रकार से बेहोशी उतपन्न हो जाये तब यह मस्तिष्क अपने आप को अच्छे से एवं पुर्ण रुप से दुसरे पे व्यक्त किया करता है!!ये कठोर है,पुरुष रुप है,शक्तिशालि है !!इसे किसि भी वस्तु मे रुचि नही होति ! ना स्वादिष्ट भोजन मे ,न भोग मे !किन्तु आवश्यक्तानुसार तार्किक मस्तिष्क( शिवा) की इच्छापुर्ति हेतु ये भोगी हो जाता है!! पहले आदिकाल मे इस मस्तिषक का हि सम्राज्य हुआ करता था !! आदिकाल में भोजन,भोग एवं सुरक्षा की भावना ही मुल होती थी !
इस मस्तिष्क के कार्य आश्चर्य जनक एव निराले हुआ करते है! यह बिना आँखो को खोले देख सकता है! यह अपने मन की वृ्त्तियो को ,भावनाओ को दूर तक भेजने मे सक्षम होता है !और दूर से ही यथार्थ ग्यान प्राप्त करलेना इसका मुख्य चमत्कार है ! ये दूसरे के मन के भेद को आसानि से जान लेता है! यहि छटी इन्द्रि भी है! परोक्षग्यान प्राप्त कर लेना इसके लिये इतना हि सुगम है जितना की तार्किक मस्तिषक(शिवा) को प्रत्यक्ष का ग्यान प्राप्त करना!! इसे ही परोक्ष दर्शन कहते है ! यहि “महादेव” है “शिव” है यहि “पराविध्या” है यहि सर्वविध्या है !! तन्त्र मे यहि मुख्य “गुरु” है !! इन तक पहुचाना ही लौकीक गुरु का कार्य होता है !!सारी चमत्कारी शक्तियां इसि के पास होति है !! मेरे कहने का आशय ये है की,लौकीक सृ्ष्टि की शक्तियाँ तार्किक मस्तिष्क( शिवा) के पास होती है एवं अदृ्ष्य,रहस्यमयी एवं प्रालौकीक शक्तियां चैतिक मस्तिष्क( शिव) के पास होति है ! और आवश्यकता अनुसार दोनो अपनी अपनी शक्तियों का आदन-प्रदान करते रहते है!!
प्रत्यक्ष का ग्यान हमको चक्क्षु आदि इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है! किन्तु परोक्ष का ग्यान समझा जाता है ! देखा नही जाता है! यह स्थुल इन्द्रियों द्वारा नही होता परन्तु शक्तियो के विकसित हो जाने पर मस्तिष्क की शक्तियाँ भी ,जिनसे इन्द्रियों के द्वारा ग्यान प्राप्त किया जाता है! इन शक्तियों को उचित रुप मे,सुक्ष्म या असलि इन्द्रियाँ भी कहा जा सकता है! वे विकसित हो जाति है और उन्से “परोक्ष” का ग्यान आसानी से प्राप्त किया जा सकता है !! ग्यान तो मात्र तरंग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है,जिसे अध्यात्मिक भाषा मे “अनुभुति” कहा जाता है !! किसि की अनुभुति किसि अन्य से भिन्न हो सकती है !कोई पास कि तरंगो को ग्रहण करने मे सक्षम होता है तो कोई दूर की अनुभुतियो को ग्रहण कर लेता है!यह अभयास का विश्य है !जितना अभ्यास होगा अतनि ही शक्ति मे उन्नति होति जाति है इस लिये ऋषियों ने अभयास को धार की संग्या दी है!
इन दोनो मस्तिष्क की कार्य प्रणाली एक दुसरे से भिन्न होति है”शिवा” प्रकृ्ति है,प्रवृ्त्ति है,चल हैएवं तामसिक प्रवृ्त्ति है!इसिलिये इनहे सिंह पे सवार दिखाया जाता है ये मात्र एक रुपक चित्र होता है समझनेर के लिये !! इसके विपरित “शिव”शांत है तार्किक नही है,सिधा ग्रहण करते है!अनकी प्रवृ्त्ति भोली है अत: इनहे नंदि बैल की सवारी पे रुपक द्वार समझाया गया है !!
ये दोनो मस्तिष्क “शिव+शिवा” दोनो हर समय एक साथ काम नही करते ! जब “शिवा” जागती है तब”शिव” सोये रहते है इस रुपक को श्री महाकाली के चित्र मे दर्शाया जाता है ! जहा शिव शव हो जाते है इसके विपरित जब शिव जागते है तब शिवा शांत हो शिवजी के चरणो को दबाती है !!जब कुछ पल के लिये दोनो मस्तिषक कार्य करते है एक साथ तो उस अवस्था को शिव और शिवा का संवाद कहते है !!इस अवस्था मे पुरे धर्मग्रंथो,शास्त्रों एवं वेदो का ग्यान प्राप्त किया ग्या है ! इसे हि तन्त्र में अर्धनारिश्वर के नाम से जाना जाता है!
किन्तु ये दोनो साथ साथ कब काम करते है? ये गुप्त विष्य है!
बस मै इतनी हि जानकारी देना अपना कर्तव्य समझता हुँ कि जब बाये नाक के छिद्र से वायु का प्रभाव चलल रहा हो तो शिव जागृ्त होते है और जब दाये नाक के छिद्र से वायु का प्रवाह चल रहा हो तो शिवा जागृ्त होती है ! जब वायु बाये नाक के छिद्र चल रही हो तो करिब डेठ घंटे बाद वह अपने आप दाये नाक से प्रवाहित होने लगती है यह प्राकृ्तिक नियन है! जब वायु का क्रम बाये से दाये या दाये से बाये बदल रहा हो तो कुछ क्षण के लिये दोनो नाक के छिद्र चलने लगते है यहि “शिव सुत्र” है! इस समय मांगी गई इच्छये पुर्ण होति है !!यदि की किओसी विधि द्वार यदि इस परिवर्तन काल पे मन स्थिर हो जाने से ये अवस्था बनी रहती है !यह वह समय होता है जब न दिन होता है न रात्रि,न स्त्रि न पुरुष !अपने आप दृ्ष्टि भृ्कुटियों के मध्य स्थिर हो जाति है !! और सुनहरा प्रकाश कैलाश पर दिखने लगता है!! यह वह अवस्था है जब साधक के नियंत्रण मे “शिव एव शिवा” दो हो जाते है! और त्रिलोकी वश मे होती है !इसि काल के बारे मे हमारे बुजुर्गो ने कहा है कि दिन मे कभि कभि बोलि बाते सत्य हो जाति है और जिव्हा पे सरस्वति विराजमान हो जाति है यह वही काल है!!इस काल मे कि गई अच्छी और बुरी प्रार्थना पुर्ण होती है!और यदि प्रार्थना न की जाये तो शक्ति संरक्षित "शिवा" के पास होति है! जिसका उपयोग साधक विप्त्ति के समय आहवाहन द्वारा या संकलप शक्ति द्वार कर सकता है! या भविष्य में किसि को आशिर्वाद देने हेतु भी कर सकता है!
शिवा के शांत होने पर शिव जागृ्त होते है शिव ही परोक्ष है! आत्माओ,भुत-प्रेत को बुलाना,उन्से मन मानि बाते पुछना ,यह परोक्ष दर्शन का विष्य है पश्चिम मे एवं भारत मे भी आत्माओ को साक्षात्कार हेतु बुलाना एवं उनसे प्रश्नोत्तर करने की प्रथा पुरानी है यह परोक्ष दर्षन का होइ चमत्कार है ! इसि कारन वश शिव को भुत –प्रेतो का संगी शास्त्रों मे बताया गया है !! किन्तु य्ह चमत्कार नही मात्र परोक्ष ही है और कुछ नही !!
अभी तक हम थोडा बहुत ग्यान पहले मस्तिष्कक(शिवा) का रखते है जिसे महामाया भी कहते है ओर ठगनी भी कहते है जो इच्छा शक्ति का केन्द्र है और जिसके द्वारा निश्चय करके कार्य किये जाते है! परन्तु दुसरे मस्तिषक(शिव) के कार्यो से जिसका संबंध अनिश्चित प्रभाव के अंकित करने से है आम तौर से हम इस तरफ से अनभिग्य होते है हमारे अंत:करणो में चित्त एक ऎसा स्थान है जिसमे हमारे जन्म जन्मांतर के कार्यों,संस्कारो,वास्नाओ एवं प्राप्त किये हुये ग्यान की स्मृ्ति अंकित होती है! जिससे हम अनभिग्य होते है पुर्व जन्म मे हम पिड-पौधे,जिव-जन्तु,स्त्रि-पुरुष या अन्य जिव का जिवन जी छुके होते है उनकी यादे या उनकी समृ्तिया दुसरे मस्तिषक के भंडार मे उपलब्ध होती है !परन्तु समय,माहौल ,उपकरण उपस्थित होने पर चित्त अपनि वास्ना और स्मृ्ति के आपार भंडार से उसी प्रकार के विचार अंत: करण में उतपन्न कर दिया करता है उन विचारो से केवल स्थुल दृ्ष्टि रखने के कारण हम अनभिग्या होते है इसलिये उन्को अपने ही मस्तिष्क से निकाला हुआ न समझ कर किसि ना किसि आत्मा,रुह आदि बाहरी ऊर्जा को उसका कारण ठहराने की कोशिश करते है !!
इसिलिये शास्त्रों मे गुरु की महिमा शिव,ब्रह्मा,विष्णु,माता-पिता से उपर बताई गई है! क्योकि गुरु हि सही समायोजन करने की विधि बताते है ! याद रखे शिव और शिवा भी आपके वश मे हो सकते है !!यही साधना की शक्ति है जहा शिव भ्क्तों पे कृ्पा करते है !! यही “सिद्ध ” की अवस्था होती है जिसके नियंत्रण में शिव और शक्ति दोनो होते है! यही सिद्ध मुद्रा भी है! इच्छानुसार सिद्ब ही शिव से कार्य ले सकते है और शिवा से भी !! यही सिद्धो की सच्ची मुद्रा है1जहां सभी देवि एवं देवता नत मस्तक होते है क्योकी यहा श्वास ही न लिया जाये तो................................
साधको भक्तों एवं मित्रों ये लेख मेरि अनुभुतियों के अनुसार मैने लिखा है जो ग्यान पाया है वही बताया है किसि भी धर्म ग्रंथ के अनुसार मैने नही कहा! यह मेरे व्यक्तिगत विचार है! इसि मानने के लिये आप बिलकुल भी बाध्य नही है अग्यानता वश कुछ कमी रहे तो मार्ग दर्शन करे ओर अच्छा लगे तो अनुसरण करे !!

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

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