शनिवार, 23 जुलाई 2016

“क्षीण सिद्धियों का मायाजाल”(वैज्ञानिक विश्लेषण)

“क्षीण सिद्धियों का मायाजाल”(वैज्ञानिक विश्लेषण)
!! जै श्री महाकाल !!
अत्यधिक मंत्र जाप से मन का उच्चाटन हो जाता !!एक प्रकार सिंड्रों पैदा होता है जिसे विग्यान दिमाग की बिमारी कहते है!!बहुत से अलग-अलग मन्त्रों के जाप से एक साथ बहुत से सिंड्रों एक साथ पैदा होने लगते है!! जो साधक को पागल बना देते है समाज की नजर में !!
क्योकी साथ के जिवन मे वो सब होता रहता है!!सिन्ड्रों सरलता से पैदा किया जा सकता है !
जब आप की किसि एक चरित्र को पुर्ण एकाग्रता से पढ्ते है या दोहराते है?जव आपका दिमाग एक ही व विषय पे सोच रहा हो एक ही विष्य को देख रहा हो !जब एक ही विषय को सुन रहा हो !एक ही विषय को बोल रहा हो!एक ही विषय  को स्पर्ष कर रहा हो !! तो वो विषय आकृ्ति लेने लगता हैं और यदि ये कार्य लगातार चलता रहे तो वो आकृ्ति बोलने भी लगती है !!यहि तन्त्र कि सिद्धि कहलाति है !! बहुत से मित्र लगातार मुझसे पुछते है की सिद्धि हो गई है ये कैसे पता करे??
तो जवाब साधारण है सिंड्रों के द्वारा !
किन्तु एक समय में एक सिन्ड्रों को सहने की हमारी क्षमता होति है!!किन्तु अधिक सिंड्रो को सहने की मन की क्षमता ना होने के कारण !!पागलपन उतप्न्न होने लगता है!
यह सिन्ड्रों बहुत शक्तिशालि होता है !! जब आप सिद्ध हो जाते है तब यह सिन्ड्रों आपकी बातो को अ़क्षरों के रुप में याद रखता है !!और आवश्यक्ता होने पे जवाब देता है!!
आध्यात्म मे इसे मन्त्र विद्या कहते है!
आध्यात्म मे किसि एक की शरण मे रहने कहा गया है जिससे समाज का कल्याण हो सके !!
किन्तु तन्त्र मे तो बहुत सी आकृ्तियाँ पैदा करने का प्रचलन है !!जो की खुद के लिये भी और समाज के लिये भी घातक होता है!!इसि प्रकार से 33 करोड सिन्ड्रों पहले से बने हुये जिस में मानव जिवन उलझा रहता है!और नये नये सिन्ड्रों पैदा होते रहते है लगातार !!जो लोग इस विधि को जानते है वे कभि ऐसा कार्य नही करते जिससे सिन्ड्रों पैदा हो !!जैसे महाविर,बुद्ध  हो जाना !! मेरे अनुसार ईश्वर तक पहुचने का मार्ग इससे भिन्न है !! कुछ भि नहि होना ही ईश्वर तक पहुचने का सरल मार्ग है!!इस सिन्ड्रों के विष्य मे कुछ हद तक एक हिन्दी पिक्चर “लगे रहो मुन्ना भाई” मे दिखाने का प्रयास किया गया है!!शास्त्रों मे इस विधि को “क्षीण सिद्धियों का मायाजाल” कहा गया है!!

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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