।। श्री राहुलनाथ कृ्त "राहुल रहस्य"" ।।
"धर्म या धार्मिक धंधा"कुछ प्रश्न मित्रों आप से?
अपने छोटे से जीवन काल मे मैनें ज्योतिष्य,वास्तु,तन्त्र,मन्त्र,यन्त्र,मनोविज्ञान ,शरिरिक विज्ञान,समुद्र शास्त्र,मुद्रा विग्यान,अघोर शास्त्र एवं वैदिक-साबर तन्त्र,अंकविज्ञान,रंग विज्ञान,हस्ताक्षर विज्ञान,कामशास्त्र,कौल शास्त्र,रामायण,महाभारत,अग्नि पुराण,एवं अन्य 17 पुरान,कुराण,बाईबल,गुरुग्रंथ साहिव ,भगवत गीताजी,4 वेद,उपनिषद,कोक शास्त्र,काम शास्त्र,कामसुत्र,काल निर्णय,मंत्र-महोदधि,उड्डीश एवं इसि प्रकार अन्य ग्रंथो का अध्यन किया है साथ मे मैने अपने जीवन मे गुरु गोरखनाथ,कबिर,नानक,महाविर,
फ्रायड,जुदुस्तु,संत ग्यानेश्वर,राम-कृ्ष्ण,विवेकानंद,लाहडि महोदय,ओशो के वचनो को पालन करने एवं जिवन मे ढालने का प्रयास किया है !!
मेरा जो भी ज्ञानकोष है वो इन सब के साथ-साथ'साधु-संत,महात्मा,पंडित,ज्योतिष,अघोरी-सिद्ब इत्यादि से सुने-समझे ज्ञान का मिश्रण हो सकता है !!
कुछ लोगो का कहना है कि किताबी ज्ञान कोई कार्य का नही किन्तु यह सत्य नही है आप जब पहली कक्षा मे जाते है तब से आप किताबो के माध्यम से ही अधयन करते है! सब पहले से ही लिखा होता है श्री गुरुदेव या शिक्षक का कार्य उसे समझाना होता है! उसका विस्तृत्त विष्लेशण करना होता है !!
किताबे ही सब कुछ है और आपको आवश्यक्ता होने पर जो भी ज्ञान आपने अर्जित किया है वह जगतगुरु के माध्यम से आप तक पहुचता रहता हैं!!
आप ही सोचिये वेद हजारो साल पहले लिखे गये तो किताबो में ही लिखे गये भलई वो ताल पत्र या भोज पत्र की बनी हो !!किन्तु पिछले 70 वर्षो मे उनके सही रुप को बदल दिया गया है !!
और एक ऎसे गुरु की कलपना करने को कहा जा रहा है जिसके पास उनकी कुँजी है !! या यह सब झुठ है?
रामायण के काल में जव भगवान श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया तब उनहोने सीता जी की मुर्ति स्थापित करके यह सामाज को प्रेरणा दी कि किसि भी यज्ञ में पत्नि का होना आवश्यक है अन्यथा सफलता नही प्राप्त होती है।यह स्त्री जाती का सम्मान राम राज्य में होता था। ऐसा क्या हो गया महाभारत काल तक की स्त्री का अनुपात पांच पुरुषो पे 1 के बराबर हो गया। किन्तु कालंतर मे सब बदल गया ।पत्नि के स्थान पे स्त्री/नारी शब्द का उल्लेख किया गया !!पत्नि के मान को भंग कर दिया गया!!
मै शास्त्रों के विरुद्ध नही हु वेदो के विरुद्ध नही हु मै उन लोगो के विरुद्ध हु जिनहोने इन मे संशोधन किया और मुल विष्य को लोगो की पहुच से दुर कर दिया कारण क्या है???
क्या ज्ञान किस्को कितना मिलना चाहिये इसका फैसला कौन करेगा ??
जो सच्चा संत है उसे आम लोगो से क्या लेना देना?
मैने हिमालय के साधुओ को देखा तपस्या करते हुये ! उनके पास एक वक्त के भोजन की व्यव्स्था नही होती ! शरिर सुख के 28-40 किलो का रह जाता है !! वही साधु है संत है उन्हे जो देश के कल्याणार्थ करना होता है वे करते है और लोगो को पता भी नही चलने देते !! कुछ भी नही है मात्र आम लोगो के साथ धर्म के नाम पर खेल हो रहा है चाहे कोइ भी धर्म हो !!
अस्ली साहित्य तो पहले ही गायब हो गये थे जिनको समहाल के नही रखा गया, बहुत से दस्तावेज आग जनी मे स्वाहा हो गये ,कुछ दस्तावेजो को दिमक ने चाट लिया ! और जो बचे थे उनमे अपनी ईच्छा से किसी ने संशोधन कर सब के सामने रख दिया गया !! धोखा ही तो है आप सब के साथ मेरे साथ। मेरे और आपके मन के साथ। सब कहते है माता ने बताया,पिता से सुना किन्तु माता हो पिता कोई भी हो,ज्यादा से ज्यादा इस समय 90 साल कि हि आयु तर्क संगत लगति है किन्तु इन ज्ञान को तो पहले ही बदला गया है। आखिर वो कौन होगा अभी जो इनकी सत्यता को प्रांमाणि करेगा !! हर वयक्ति श्री गीताजी का अध्यन कर खुद को श्री कृ्ष्ण समझने लगता है!! रामायण पड कर खुद को राम समझने लगता है ये तो उसी प्रकार हुआ! जै की आप ने कोई ब्रुसली की पिक्चर देखी और देखने के बाद 4 घटों के लिये आप ब्रुसली बन गये !! फिर आपने अमिताभ जी की एकशन फ़िल्म देखी और आप अमिताब बन गए।
सावधान रहे कुछ भी न करे !! इन लक्ष्मि के पुजारियो से जो अपनी ही माता-पिता स्वरूप देवताओ के चित्र एवं मुर्ति दिखा के वयवसाय कर रहे है !! यह सभी धर्मों मे हो रहा है !! यहि भेद भाव मानव को मानव से अलग कर रहा है! माता जितनी उनकी है उतनी मेरी भी और आप कि भी !! किसि अन्य कि क्या आवश्यक्ता !! एक विचित्र सा भेष बनाना कोई सफेद वस्त्र पहनता है कोइ भगवा,कोई काला कोई निला कोई हरा! क्या बिना रंगो के ईश्वर प्रसन्न नही होता? होता है बिलकुल होता है!!
ईश्वर तो वस्त्र से तो दुर उसे तो मानव चर्म से भी कोई फर्क नही पडता है !! उसका न्याय शरिरधारि एवं अशरिर धारी दोनो के लिये बराबर है !!
आज कल हर दो दिन के बाद एक नई किताब फेस बुक पे या टेलिविजन पे दिखाई देति है !!
जैसे कालि किताब ,लालकिताब ,सुनहरिकिताब,रुहानि किताब और पता नहि क्या क्या !!
जो लोग ये सब लिखते है या बनाते है वे उन किताबो में ये क्यो नही लिखते की ये पाठ्य सामग्री किस ग्रंथ से ली गई है इसके रचयिता कौन है !! नही लिखेगे वे क्योकी वो शास्त्रोक्त नही है।हिन्दु सनातन धर्म की बुनियाद तो वेद है शास्त्र है पुराण है।गलती उन लोगो की है जो निकम्मे है जो सोचते है ये बाबा जी मुझे ठिक करेगे,वो मातजी मुझे ठिक करेगी, लेकिन खुद के लिये ही कुछ करने के लिये समय नही।
तो वो बाबाजी-माताजी के पास क्या समय होगा।इस संसार मे कोई मुर्ख नही है सभी स्वयंगुरु है।
लेकिन तन्त्र की देवियो की पुजा करने वाला ये समाज यह नही जानता की उनके सामने उनहे ही तन्त्रिक मान्त्रिक बना दिया गया है और उनहे पता भी नही चला !! कलकत्ता में देवी महाकाली के 2003 में दर्शन होने से मैं उनकी पूजा करने लगा,2007 में उज्जैन में महाकाल ले दर्शन होने के बाद ,मैं महाकाल सहित महाकाली का पूजन करने लगा।समय बितने के साथ लोगो ने मुझे बहुत नाम दिए जैसे :-तांत्रिक-मांत्रिक,बाबा-महाराज,अवधूत-अघोरी ,किन्तु मैं आपको बता दु की मैं भी आप जैसे मित्रो के समान सामान्य सा मानव हूँ।नाम में क्या रखा है।किन्तु तंत्र एवं पूजन मेरा शोधनीय एवम् प्रिय विषय है लोग वामाचार की अवहेलना करते है सच्चे-सिद्धो को बदनाम करते है और स्वयं वाम मार्ग की देवि-देवताओ कि निवास मे पुजा करते है!
दुर्गा जी,कालिजी,सरस्वतिजी,लक्ष्मी जी,गणेश जी,पार्वति जी एवं देवोकेदेव महादेव रुद्र भी वामाचारी देवता है ।क्योकि वैदिक ऋषिगण तो मूर्ति कि पुजा ही नही करते थे !! तो ये सब कहा से आये।
"मै भी सोच रहा हु की एक "राहुल रहस्य" नामक एक किताब लिखु और जमीन मे गडा दुं। दो-चार सौ साल बाद जब खुदाई मे वो निकलेगा तो मान्यता तो मिल ही जायेगी"।
क्या कहते है?आप मित्रो???
तो मित्रों मैने जो भी लिखा कीसी भी धर्म की अवहेलना करना मेरा उद्देशय नही है।
मेरा कार्य मात्र सत्य से सब को परिचित कराना है।
जैसे पवन,पानि,वायु ,अकाश एवं भुमी पे सभी जिवो का बराबर अधिकार है उसी प्रकार सत्य पे भी सभी का समान अधिकार है।
!!जय श्री महाकाल!!
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।
चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
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