शनिवार, 23 जुलाई 2016

|| कुण्डलिनी शक्ति ||serpent power

|| कुण्डलिनी शक्ति ||serpent power
काम भाव् जागने से एक प्रकार की तरंगो का भीतर जन्म होताहै या आप ऐसा भी कह सकते है की  इन तरंगो के पैदा होने से काम भाव् पैदा होता है।ये दिव्य तरंगे लाल रंग की होती है और थोड़ी सी  पिले रंग से मिश्रित होती है इसे मूलाधार चक्र में लाल रंग के धरातल से दर्शाया जाता है।स्त्री-पुरुषो के परस्पर आमने सामने आने से ये तरंगे स्वाभाविक रूप से हदय एवम् मस्तिष्क से निकलकर  एक दूसरे की ओर बढ़ने लगती है।इन तरंगो यदि आपस में अनुकूलता प्राप्त होने से वे एक दूसरे में समा जाती है अन्यथा वापस अपने स्थान को ग्रहण कर लेती है जहा से ये पैदा होती है।
इन तरंगो का नाम "काली"तरंग है जो मूलाधार चक्र से निष्कासित होती है।मूलाधार चक्र के निष्क्रिय या दुर्बल होने से काम शक्ति का ह्रास हो जाता है ।और कही मन नहीं लगता है।
इन तरंगो का उपचार कर इनकी बृद्धि कर इन विकारो को दूर किया जा सकता है।
"काली"तरंगे जब पैदा होती है तब वह सम्पूर्ण वीर्य का भक्षण कर जाती है और इस ऊर्जा तरंग को बनाये रखने के लिए अत्यधिक वीर्य की आवश्यकता पढ़ती है अधिक वीर्य के निर्माण के लिए इस काली ऊर्जा को अत्यधिक रक्त का भक्षण करना पड़ता है क्योकि रक्त से ही वीर्य का निर्माण होता है।इस भाव को दर्शाने के लिए काली को मूर्ति या फोटो में रक्त का पान करते दिखाया जाता है।जब जब यह काली(कुंडलीनी)ऊर्जा जागती है तो साधक का शरीर दुर्बल होने लगता है क्योकि यह ऊर्जा जागते ही शरिर के मांस का भक्षण कर जाती है ।
यहाँ समझने वाली बात ये है की हमारे शरिर में हमारे मेरुदंड में एवम् मस्तिष्क में एक प्रकार का चिपचिपा द्रव्य भरा होता है जिसमे हमारे दोनों मस्तिष्क तैरते रहते है इस द्रव्य को मेलीन कहा जाता है और इसे ही रूपको के रूप में "क्षीरसागर"कहा जाता है जहा भगवान विष्णु शेषनाग पर निद्रा आसान लगाए हुए होते है।ये "क्षीर"हमारे कंठ में अक्सर टपकता रहता है।इस "क्षीर"का निर्माण विर्याणुओ के आपसी घर्षण से होता है जैसे मलाई को मथने से मक्खन की प्राप्ति होती है उसी प्रकार वीर्य को मंथन से क्षीर(मेलीन)की प्राप्ति होती है।जब वीर्य का मंथन होता है तो उससे पैदा होने वाला मेलीन भाप के सामान होता है और जीस तरह आपने देखा होगा की जब हम बर्तन को ढक कर पानी गरम करते है तब पानी भाप बन कर ढक्कन पे चिपक जाता है ठीक उसी प्रकार वीर्य के मंथन से ये मेलीन हमारी ऋण की हड्डी के निचले अंतिम बिंदु स्थान में चिपक जाता है और यहाँ से वह मेरुदण्ड में सोख लिया जाता है।इस अंतिम बिंदु स्थान की संरचना स्पंज के समान होती है इसे ही तंत्र में "भैरव" कहा जाता है जो की काली का पुत्र है।
जब "काली"जागती है तो वह वीर्य को और मांस को चाट जाती है किन्तु इससेभी इसका पेट नहीं भरता तब ये भैरव के माध्यम से ही इस मेलीन को भी चाट जाती है।जिससे पहले मेरुदंड का पदार्थ ख़त्म होते जाता है और मेरु दंड में मेलीन की कभी की क्षति पूर्ति के लिए शरीर को मेलीन मस्तिष्क से शोषण करना पड़ता है इस प्रकार मेरुदंड का मेलीन काली पिते जाती है और मेरुदंड  मस्तिष्क से।फिर एक समय ऐसा आता है जब मेरु दंड और मस्तिष्क दोनों से ये द्रव्य ख़त्म हो जाता है।जिससे मस्तिष्क बार बार गर्म होने लगता है।जिससे लगातार क्रोध का जन्म होने लगता है।मेलीन की कमी या वीर्य की कमी जिसभी व्यक्ति में होगी वह व्यक्ति बार बार गालिया देता है ये इस बात का सूचक है की वह व्यक्ति काम भाव से ग्रस्त है।
"काली"को खीर बहुत प्रिय है क्योकि खीर से वीर्य का निर्माण शिघ्रता से होता है किन्तु तंत्र की गुप्त भाषा में वीर्य को ही खीर कहा जाता है।
किन्तु किसी भी प्रकार से यदि वीर्य का निर्माण ज्यादा से ज्यादा किया जायेकिन्तु वीर्यका संखलन ना किया जाए तो ये वीर्य लगातार मेलीन में परिवर्तन हो कर मस्तिष्क में प्रवेश करता रहता है और जितना ज्यादा मेलीन मस्तिष्क में होगा  साधक उतना शांत होता जाता है।और जितना ज्यादा मेलीन मस्तिष्क में बढ़ता है उतना ज्यादा साधक का ओरा बढ़ते जाता है इस ओरा का आपने देवताओ की तस्वीर में मस्तक के पीछे अक्सर देखा होगा जो की देवता की शक्तियो का घोतक होता है।।इसके विपरीत आप जितना ज्यादा बात करेगे और जितना ज्यादा मंत्र जाप करेगे इससे आपके मस्तिष्क का मेलीन सूखते जाएगा क्योकि मंत्र जाप से या ज्यादा बात करने से मस्तिष्क गर्म हो जाता है और इस मस्तिष्क को ठंडा करने की क्रिया में मेलीन जल जाता है।
मतलब साफ़ है की वीर्य ही जीवन है इस वीर्य को जब आप विधियों द्वारा एकत्रित करते है तब उसे वज्रोली एवम् अश्वनी मुद्राओ द्वारा मेरुदंड में लगातार चड़ा भी सकते है इसके लियेआपको दिन में कम से कम 300 बार इन मुद्राओ का प्रयोग करना होगा।इन काली काम तरंगो का नियंत्रण आज्ञा चक्र जागृत होने से किया जा सकता है।किन्तु आज्ञा चक्र गणेश की सूंड की भाँती चंचल होने के कारण ये पूरा कार्य तिल से तेल निकालने जितना मुश्किल हैं इसके विपरीत एक आसान तरिका ये है की आप इसे "काली"को माता रूप में स्वीकार कर ले ,जैसा की श्री रामकृष्ण परमहंस नई ने किया था।मतलब जो है उसमे संतुष्ट रहे। और काम भाव का विचार ना करे।ऐसे में आपकेशरीर में प्राकृतिक रूप से बन्ने वाले वीर्य से लगातार धीरे धीरे वीर्य मेलीन में बदलते रहेगा और शान्ति सिद्धि मोक्ष की प्राप्ति होती रहेगी।इस पुरे ज्ञान की कुंजी गुरु शिष्य परम्परा में सुरक्षित रखी गई है क्योकि ये विषय इतना रोचक है की इसे पढ़ने के बाद नए साधक उत्सुकता वष शुरू कर सकते है और अपना अहित कर सकते है मैंने जो भी लिखा है वो मेरे18 वर्षो की साधना का प्रसाद है किन्तु मुझे ये सब ज्ञान किसी मानवीय शक्ति से प्राप्त नहीं हुआ है आकाश ने बताया है।
तंत्र का मार्ग हठ का मार्ग है यहाँ किसी भी प्रकार से गलती होने से बचने की संभावना नहीं होती।
आदेश...इस लेख का निर्माण मैंने अपनी छोटी सी एवम् अर्ध विक्सित बुद्धि से लिखा है इसमें किसी भी प्रकार से किसी भी देवी देवता का अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं है।मेरा उद्देश्य मात्र आप सभी मित्रो को सही अध्यात्म से परिचय करना मात्र है।

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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