शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

अमृ्त पान और रहस्यमय कुन्डिलिनी साधना

!!अमृ्त पान और रहस्यमय कुन्डिलिनी साधना !!
वैग्यानिक विशलेशण(व्यक्तिगत अनुभुति)

हम सब के भितर रसो का स्त्राव करने वालि बहुत सी ग्रन्थियाँ(ग्लैण्ड) होति है इन्ही ग्रन्थियों में से एक है "पिनियल ग्रन्थि"! इस ग्रन्थि का शस्त्रार चक्र से सम्बन्ध होता है!जो कि मानव चेतना का मुख्य केन्द्र है!यह ग्रन्थि 'मेलाटोनिन' नाम का रस स्त्राव करति रहति है जिस्से हमारे चित्त कि एकाग्रता का विकास होता रहता है और ये हमे लगातार अन्तर्मुखि बनाति रहति है जो असमान्य और नर्वसनेस के रोगि होते है उन्हे "मेलाटोनिन" दिया जाता जै यह एक हार्मोन्स है !
इस ग्रन्थि से रसो का स्त्राव ध्यान कि अवस्था मे होने लगता है इसि कारण भारतिय योग "समाधि" मे "अमृ्त रस पान" की घोष्णा की गई है या इसे हि अमृ्त रस पान कहता है !
यह रस का स्त्राव दिन मे बहुत कम मात्रा मे होता है!क्योकि हम दिन मे बहिर्मुखि होते है और सन्सारिक कार्यो मे वयस्त रहते है!इस रस का स्त्राव रात्रि मे होता और अन्धेरे मे होता है ! खास कर के रात्रि के 12 बजे से 3 बजे के बिच !! इसि कारण तन्त्र मे रात्रि मे साधना करने का विधान का निर्माण हुआ है जिस्से कि यह रस प्राप्त किया जा सके!
किन्तु आज के इस युग मे देर रात तक जागने के कारण इस रस का हम लाभ नहि उठा पाते !! क्योकि जैसे हि हम निद्रा की मध्यावस्था मे पहुछते है तो यह रस स्त्राव होने लगता है !और् आप रात्रि मे 1 बजे सोयेगे तो मध्यावस्था तक नहि पहुच पायेगे जिस्से कि आपके शरिर मे इस रस कि मात्र कम हो जायेगी !और् अशान्ति,मान्सिक रोग इत्यादि आप मे पनपने लगेगे!!
इसि प्रकार आपके शरिर मे अन्य ग्रन्थियो से रसो क स्त्राव होता रहता है !! जिसेके सन्तुलन करने की विधि हि कुन्डलिनि साधना है! इन ग्रन्थियों को तन्त्र मे "चक्रो" का नाम दिया गया है! ईनकी सन्ख्या मुख्यत: 7 है !
इसि प्रकार अन्य चक्रो से थाईराक्सिन,एड्र्निल,इत्यादि रस निकलते रहते है !इनका कम और ज्यादा करना चक्रो कि और भावनाओ की गति पे निर्भर करता है!!आज कल इन चक्रो का प्रचार प्रसार लगातार किया जा रहा है किन्तु ईन्को नियन्त्रण करने कि सही विधि का ग्यान बहुत हि कम लोगो को है! इन चक्रो के साथ छेड-छाड करने वालो का जिवन संकट मे पड जाता है और इन चक्रो से उतपन्न होने वालि बिमारि का किसि को भि पता नहि होता है!! इन चक्रो के नियन्त्रण मे सर्व प्रथम ईस बात का पता करना आवश्यक होता है की जब आप इस साधना का प्रारंभ करे तब आप्के चक्रो कि वर्तमान मे स्थिति क्या है !समपुर्ण चक्रो के पुर्ण ग्यान के बाद हि ईस विधि का प्रयोग करना होता है!!इन चक्रो के नाम अलग अलग ऋषियो ने अलग अलग रखे  है जैसे :-प्रोस्टेट ग्रन्थि को ही   मुलाधार चक्र, गणेश,काली,कृ्ष्ण ईत्यादि कहा जाता है !!
कालन्तर मे ईनको रहस्यमय तरिके से समाज मे रखा गया जिसे फ़ैन्टम कहानियो के रुप मे बताया गया और इनकी विषेष दिक्शा की विधि रखी गई जो की विग्यान का विषय है और सभि मानव का ईसपे समान अधिकार भी है!!क्योकी भारतिय वेद और शास्त्र आरोग्य को प्रथम प्राथ्मिकता देते है!!ईस समबन्ध मे अधिक जानकारि के लिये आप मुझ से सम्पर्क कर सकते है !!
इन चक्रों के साथ छेड छाड करना भि कानुनि अपराध ही है क्योकि कानुन के मुताबिक किसि भि प्रकार से हार्मोन्स के साथ छेड छाड करना या हार्मोन्स का टेस्ट बिना वैध्यकिय आदेश के करना मना है!!

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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