Jai shri mahakal Osgy
।।भय ही भुत और प्रेत है।।
॥भय का भुत डराता भी है और जान भी ले लेता है।।
आदेश।।
हमारे सामान्य स्वास्थ और भय का विपरीत सबंध है।जहा स्वास्थ है,वहा भय नहीं और जहा भय है,वहा स्वास्थ नहीं।भय चाहे बीमारी का हो या असफलता का,चाहे वह मृत्यु का हो या असुरक्षा का,चाहे वह अपनी कमजोरी का या अक्षमता का हो या प्रिय व्यक्ति और वस्तुओ के खो जाने का और बिछुड़ जाने का,भय मानव जाती का सबसे बड़ा शत्रु और व्यक्तिगत स्वास्थ,सफलता और खुशियो को निगलने वाला प्रेत है।भय ही बहुत बाधा और प्रेत बाधा है।तंत्र कहता है परिस्थिति में प्रविष्ठ हो जाइए और परिस्थिति से मुक्ति मिल जायेगी।भयावह परिस्थिति से हैम जितना दूर भागने का प्रयास करेगे हम उतना ही अधिक भयभीत होते जाएंगे।इसी परिस्थिति में हम साधारण परिस्थिति को गंभीर और जटिल,मामूली बिमारी को असाध्य और लाइलाज तथा सामान्य व्यक्ति को दुश्मन बना लेते है।
वास्तव में भय हमारे आध्यात्मिक स्त्रोत को ही सुखा देता है।एक भयभीत व्यक्ति अपना ही नहीं अपने परिवार एवम् समाज का भी शत्रु है।आज के जितने भी अपराधी है,चाहे वे राजनीति में हो या किसी व्यवसाय में,चाहे वे सामाजिक और सरकारी प्रतिष्ठान में हो या स्वतन्त्र रूप से अपराध कराते हो,वे भयभीत भयभीत भुत बाधा से ही पीड़ित होते है।हममे से जाने अनजाने भूल होने का कारण भी भय ही होता है।
विभिन्न सम्प्रदायो और मजहबो की दिवारे भी अंधविश्वास और भय पे टीकी है।और विभिन्न धर्मो से अंधविश्वास को निकाल दिया जाए तो विश्व के सारे मजहब और सम्प्रदाय धराशाही हो जायेगे।
अंधविश्वास सामप्रदायिक आवरण में छिपा भय ही है।भय का ताना बाना बुनकर विभिन्न मजहब वालो ने मानव जाती का सबसे बड़ा अहित किया है और नुकसान पहुचाया है।भय ने ही हमें ईर्ष्यालु,क्रोधी,घमंडी,लालची और लोभी बनाया है।हमने हमारे सारे प्रगति के मार्ग को रोक कर हमारे सर्वांगीण स्वास्थ और सारे संबंधो की ह्त्या की है।कुण्डलिनी साधक इस बात से परिचित होंगे की मूलाधार चक्र के ये 4 (घमंड,लोभ,क्रोध एवम् लालाच) गुण है जो साधक को पतन की और ले जाते है!
घमंड (समाज में धौस जमाकर प्रतिष्ठा पाने और प्रतिष्ठित होने की प्रवृति)
लोभ (अपने प्रिय वस्तु का अभाव और न मिलाने का भय)
क्रोध (तर्क का दिवालिया होने का भय)
लालच(अपनी प्रिय वस्तु का बार बार इस्तेमाल करने का भय)
ईर्ष्या (दूसरोंके आगे बाद जाने से अपनी अयोगयता का पर्दाफाश होने का भय)
आदि मनुष्य के सर्वांगीण स्वास्थ की सबसे बढ़ी बाधा है।
ईर्ष्या - से हमारी कमजोरी दुसरो के सामने प्रकट होती है
और हम शक्तिहिन् हो जाते है।
लोभ - हमारी प्रतिरक्षा और प्रतियोगिता कई क्षमता को ध्वस्त कर देता है।
क्रोध-सबसे अधिक हमारी जीवनी शक्ति को बर्बाद करता है।
लालच- हमें ,और अधिक पाने के लिए सदा दुखित किये रहता है,
चाहे वह वस्तु हमारे पास जीतनी भी हो।
अहंकार (घमंड)तो हमें एक दुखत डमरुआ बना ,व्यर्थ का नाच नचा कर थका देता है।ऐसी स्थिति में हम स्वस्थ रहने की कामना कैसे कर सकते है।
॥भय का भुत डराता भी है और जान भी ले लेता है॥
डर जानलेवा भी होता है।बिमारी से कम उसके भय से अधिकांश लोग मरा करते है।भारतीय शास्त्रो में बड़ी रोचक एक कहानी भी है,नारद जी इस पृथ्वी के किसी गाँव में चार पापियो को मार डालने के लिए भगवान से प्रार्थना करते है।और भगवान यमराज को इसके लिए आदेश देते है।
भगवान के आदेश को कार्यान्वित करने के लिए वे कालरा,हैजा को भेजते है।
उस गाँव में हैजा फैलता है और 400 लोग मर जाते है ।इस बात की शिकायत भगवान के पास नारद जी द्वारा किये जाने पर ,हैजा बड़ी विनम्रता से जवाब देता है-प्रभु हमने तो केवल 4 को ही मारा था बाकी 396 तो डर के मारे मर गए।
भय के कारण ही हैम बीमार होते,असफल होते और माना प्रतिष्ठा खो देते है।
असाध्य बीमारियो का मूलकारण तो भय ही है।भय रूपी प्रेत बाधा से छुटकारा पाने के लिए तंत्र का यहाँ सूत्र याद रखना होगा-
"प्राणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया"-
प्राणिपातेन् का अर्थ हुआ की,हम शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टी से जुड़े हुए है इसलिए अपनी प्रगति के साथ साथ समाज के उत्थान के सारे प्रश्नो का जवाब जान लेना और उससे सम्बंधित सारी सारी समस्याओ का समाधान ढूंढ लेना तथा "सेवया"का अर्थ हुआ कर्त्तव्य भावना या यज्ञ भावना से दूसरे व्यक्ति या समाज की मदद करना ही,कार्य से समन्धित भय रूपी भुत को भगाना और स्वस्थ,सफल आकर्षक और आह्लादित व्यक्तित्व को पाना है।
भय से मुक्ति ही तंत्र की भैरव सिद्धि है भय को जीत लिया मतलब भैरव को सिद्ध किया।
आदेश आदेश आदेश
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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