गुरुवार, 13 जनवरी 2022

श्रीगणेश_वंदना_कवच_पंचरत्नस्तोत्र_एवं_मंत्र_संग्रह

#श्रीगणेश_वंदना_कवच_पंचरत्नस्तोत्र_एवं_मंत्र_संग्रह*******************************************|| श्री गणेश वंदना ||■■■■■■■■■■"नमामि विघ्ननाशनं, गणाधिप: गजाननं।","ऋद्धि सिद्धि दायकं, वरप्रद: विधायकं।।""गजाननं भूतगणादि सेवितम्","कपित्थ जम्बूफल चारू भक्षणम्।""उमासुतं शोकविनाश कारकम्।"'"नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।।"*"जय जय श्रीगणराज"* हिंदीअर्थ********सभी विघ्नों का नाश करने वाले,सभी गणों के अधिपति एवं मैं गजानन (जिनका हाथी के समान मुख है) के कमल के सामान चरणों को नमस्कार करता हु ।रिद्धि एवं सिद्धि प्रदान करने वाले एवं इच्छापुरक वर प्रदान करने वाले विधायक के कमल के सामान चरणों को नमस्कार करता हु ।मैं गजानन (जिनका हाथी के समान मुख है), जिनकी भुत आदि गण सेवा करते है,जो कप्पीथ और जम्बू फल के सार को खाते हैं ,आपके कमल के सामान चरणों को नमस्कार करता हुजो देवी उमा (पार्वती)के पुत्र है और जो जीवन के सभी दुखो का विनाश करते हैं।मैं उन विघ्नेश्वर (परमेश्वर जो जीवन के सभी विध्नों को ख़तम करते है) के कमल के सामान चरणों को नमस्कार करता हु ।श्रीगणेश जी के विभिन्न स्वरुपों का ध्यान■■■■■■■■■■■■■■■■■■■सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेश,लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम ।ब्रह्मादिदेवै: परिसेव्यमानं,सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम ।।#हिन्दीअनुवाद  भगवान गणेश की अंगकान्ति सिन्दूर के समान है, उनकी दो भुजाएँ हैं, वे लम्बोदर हैं और कमल दल पर विराजमान हैं. ब्रह्मा आदि देवता उनकी सेवा में लगे हैं और वे सिद्धसमुदाय से युक्त हैं. ऎसे श्रीगणेशपतिदेव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ. ।।#गजवक्त्र ।।अविरलमदधाराधौतकुम्भ: शरण्य:,फणिवरवृतगात्र: सिद्धसाध्यादिवन्द्य: ।त्रिभुवनजनविघ्नध्वान्तविध्वंसदक्षो,वितरतु गजवक्त्र: संततं मंगलं व: ।।हिन्दी अनुवादजिनका कुंभस्थल निरंतर बहने वाली मदधारा से धुला हुआ है, जो सब के शरण दाता हैं, जिनके शरीर में बड़े-बड़े सर्प लिपटे रहते हैं, जो सिद्ध और साध्य आदि देवताओं के वन्दनीय हैं और तीनों लोकों के निवासी जनों के विघ्नान्धकार का विध्वंस करने में दक्ष हैं, वे गजानन गणेश आप लोगों को सदा मंगल प्रदान करें. ।।#महागणपति।।ओंकारसंनिभमिभाननमिन्दुभालं,मुक्ताग्रबिन्दुममलद्युतिमेकदन्तम ।लम्बोदरं कलचतुर्भुजमादिदेवं,ध्यायेन्महागणपतिं मतिसिद्धिकान्तम ।।हिन्दी अनुवादओंकार के समान, हाथी के समान मुख वाले, जिनके ललाट पर चंद्रमा और बिन्दुतुल्य मुक्ता विराजमान हैं, जो बड़े तेजस्वी और एक दाँत वाले हैं, जिनका पेट लंबा हैं, जिनकी चार सुंदर भुजाएँ हैं. उन बुद्धि और सिद्धि के स्वामी आदि देव गणेश जी का हम ध्यान करते हैं. ।।#विघ्नेश्वर।।विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाड्।विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडो विघ्नेभपंचानन:।।विघ्नोत्तुंगगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाम्बुधौ वाडवो।विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वर: पातु व: ।। हिन्दी अनुवादवे विघ्नेश्वर लोगों की रक्षा करें जो विघ्नान्धकार का निवारण करने के लिये एकमात्र सूर्य हैं. विघ्नरुपी विपिन को जलाकर भस्म करने के लिये दावानाल रुप हैं. विघ्नरुपी सर्पकुल के अभिमान को कुचल डालने के लिये गरुड़ हैं. विघ्नरुपी गजराज को पछाड़ने के लिये सिंह हैं. विघ्नों के ऊँचे पर्वत का भेदन करने के लिये वज्र हैं. विघ्न समुद्र के लिये वड़वानल हैं तथा विघ्न व पाप समूहरुपी मेघों की घटा को छिन्न-भिन्न करने के लिये प्रचण्ड पवन हैं.।।@गणपति।।सिन्दूराभं त्रिनेत्रं पृथुतरजठरं हस्तपद्मैर्दधानं।दन्तं पाशांकुशेष्टान्युरुकरविलसद बीजपूराभिरामम ।।बालेन्दुद्योतमौलिं करिपतिवदनं दानपूरार्द्रगण्डं।भोगीन्द्राबद्धभूषं भजत गणपतिं रक्तवस्त्रांगरागम ।। हिन्दी अनुवादजो सिन्दूर की सी अंगकान्ति धारण करने वाले तथा त्रिनेत्रधारी हैं, जिनका उदर बहुत विशाल है, जो अपने चार हस्त कमलों में – दन्त, पाश, अंकुश तथा वर मुद्रा धारण करते हैं, जिनके विशाल शुण्ड – दण्ड में बीजपूर अर्थात बिजौरा नींबू या अनार शोभा दे रहा है, जिनका मस्तक बालचन्द्र से दीप्तिमान व गण्डस्थल मद के प्रवाह से आर्द्र है, नागराज को जिन्होने भूषण के रुप में धारण किया हुआ है, जो लाल वस्त्र व अरुण अंगराग से सुशोभित है, उन गजेन्द्र-वदन गणपति का भजन करो. ।।@एकाक्षरगणपति।।रक्तो रक्तांगरागांशुककुसुमयुतस्तुन्दिलश्चन्द्रमौलि।र्नेत्रेर्युक्तस्त्रिभिर्वामनकरचरणो बीजपूरान्तनास: ।।हस्ताग्राक्लृप्तपाशांकुशरदवरदो नागवक्त्रोsहिभूषो।देव: पद्मासनो वो भवतु नतसुरो भूतये विघ्नराज: ।। हिन्दी अनुवादवे विघ्ननाशक श्रीगणपति शरीर से रक्त वर्ण के हैं. उन्होने लाल रंग के ही अंगराग, वस्त्र और पुष्पहार धारण कर रखे हैं, वे लम्बोदर हैं. उनके मस्तक पर चन्द्राकार मुकुट है, उनके तीन नेत्र हैं तथा छोटे-छोटे हाथ – पैर हैं, उन्होंणे शुण्डाग्र भाग में बीजपूर अर्थात बिजौरा नींबू ले रखा है. उनके हस्ताग्र भाग में पाश, अंकुश, दन्त तथा मुद्रा है शोभायमान है, उनका मुख गज यानि हाथी के समान है और सर्पमय आभूषण धारण किये हुए हैं. वे कमल के आसन पर विराजमान हैं. सभी देवता उनके चरणों में नतमस्तक हैं, ऎसे विघ्नराजदेव लोगों के लिये कल्याणकारी हों. ।।#हेरम्बगणपति।।मुक्ताकांचननीलकुन्दघुसृणच्छायैस्त्रिनेत्रान्वितै-र्नागास्यैर्हरिवाहनं शशिधरं हेरम्बमर्कप्रभम ।दृप्तं दानमभीतिमोदकरदान टंकं शिरोsक्षात्मिकांमालां मुद्गरमंकुशं त्रिशिखिकं दोर्भिर्दधानं भजे ।।हिन्दी अनुवादहेरम्बगणपति पाँच हस्तिमुखों से युक्त हैं. चार हस्तिमुख चारों ओर है तो एक ऊर्ध्व दिशा में हैं. उनका ऊर्ध्व हस्तिमुख मुक्तावर्ण का है. दूसरे चार हस्तिमुख क्रमश: कांचन, नील, कुंद अर्थात श्वेत और कुंकुम वर्ण के हैं. प्रत्येक हस्तिमुख तीन नेत्रों वाला है. वे सिंहवाहन हैं. उनके कपाल में चन्द्रिका विराजित है और देह की कान्ति सूर्य के समान प्रभायुक्त है. वे बलदृप्त हैं और अपनी दस भुजाओं में वर और अभयमुद्रा तथा क्रमश: लड्डू, दन्त, टंक, सिर, अक्षमाला, मुद्गर, अंकुश और त्रिशूल धारण करते हैं. मैं उन भगवान हेरम्ब का भजन करता/करती हूँ.।। #सिंहगणपति ।।वीणां कल्पलतामरिं च वरदं दक्षे विधत्ते करै।र्वामे तामरसं च रत्नकलशं सन्मंजरीं चाभयम ।।शुण्डादण्डलसन्मृगेन्द्रवदन: शंखेन्दुगौर: शुभो।दीव्यद्रत्ननिभांशुको गणपति: पायादपायात स न: ।। हिन्दी अनुवादजो दायें हाथों में वीणा, कल्पलता, चक्र तथा मुद्रा धारण करते हैं और बाएँ हाथों में कमल, रत्नकलश, सुंदर धान्य मंजरी व अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, जिनका सिंह के समान मुख शुण्डादण्द से सुशोभित है, जो शंख और चन्द्रमा के समान गौरवर्ण हैं तथा जिनका वस्त्र दिव्य रत्नों के समान दीप्तिमान हैं, वे शुभस्वरुप गणपति हमें विनाश से बचायें. ।।#बालगणपति।।क्रोडं तातस्य गच्छन विशदबिसधिया शावकं शीतभानो।राकर्षन बालवैश्वानरनिशितशिखारोचिषा तप्यमान: ।।गंगांम्भ: पातुमिच्छन भुजगपतिफणाफूत्कृतैर्दूयमानो।मात्रा सम्बोध्य नीतो दुरितमपनयेद बालवेषो गणेश: ।। हिन्दी अनुवादबालक गणेश जी अपने पिता शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित बाल चन्द्र कला को कमल नाल समझकर उसे खींच लाने के लिये उनकी गोद में चढ़कर ऊपर लपके लेकिन तृतीय नेत्र से निकली लपटों की आँच लगी तब जटाजूट में बहने वाली गंगा का जल पीने को बढ़े तो सर्प फुफकार उठा. इस फुफकार से घबराए हुए गणेश जी को माता पार्वती बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जाती हैं. ऎसे बाल गणेश हमारे सभी पाप-ताप का निवारण करें.    #गणेश कवच||◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ कवच एक प्रकार का अदृश्य सुरक्षा चक्र है जो मनुष्य को सभी प्रकार के यंत्र तंत्र मंत्र से सुरक्षा प्रदान करता है। कवच बनाने से यह लाभ होता है, जब हम किसी देव विशेष की पूजा और मन्त्र का जाप करते हैं तो मन में उसी देव का विचार होना चाहिए, मन विचलित नहीं होना चाहिए।श्री गणेशाय नमःगौरी उवाच-एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ।।1।।पार्वती जी बोले:हे ऋषि श्रेष्ठ (मरीचि मुनि)हमारा पुत्र गणेश अत्यधिक चप्पल हो गया है बचपन से इन्होंने दुष्ट व्यक्तियों को मारा है और आश्चर्यचकित कार्य कर दिखाए हैं इससे आगे क्या होगा मुझे मालूम नहीं है।दैत्या नानाविधा दुष्टा: साधुदेवद्रुह: खला: ।अतोऽस्य कण्ठे किंचित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि ।।2।।नकारात्मक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों से बचने के लिए बाल गणेश के गले में ताबीज आदि बांधने के विषय में कहो।ऋषि उवाच-ध्यायेत्सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्यं युगेत्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।द्वापरे तु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम्तुर्ये तु द्विभुजं सितांगरूचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ।।3।।मुनि जी बोले:ध्यान,सतयुग में दस हाथ धारण करके सिंह पर सवार होने वाले विनायक जी का ध्यान करें। त्रेता युग में छः हाथ धारण करके व मयूर की सवारी करने वाले, द्वापर युग में चार भुजावाले, नाव में अवतरित रक्तवर्ण गजानन का ध्यान करें तथा कलयुग में दो हाथ व सुंदर श्वेत स्वरूप धारण करके अवतार लेने वाले और अपने भक्तों को सभी प्रकार के सुख देने वाले गणेश जी का ध्यान करें।विनायक: शिखां पातु परमात्मा परात्पर: ।अतिसुंदरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कट: ।।4।।परमात्मा विनायक आप शिखा स्थान में हमारी रक्षा करें। अतिशय सुंदर शरीर वाले अत्यंत समर्थवान गणेश जी मस्तक में रक्षा करें।ललाटं कश्यप: पातु भ्रूयुगं तु महोदर: ।नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्तवोष्ठपल्लवौ ।।5।।कश्यप के पुत्र गणेश ललाट में हमारी रक्षा करें, विशाल उधर वाले गणेश जी हमारी भोहों में रक्षा करें। भालचंद्र गणेश जी हमारी आंखों की रक्षा करें और गज बदन गणेश मुख्य की एवं दोनों होठों की रक्षा करें।जिह्वां पातु गणाक्रीडश्रिचबुकं गिरिजासुत: ।पादं विनायक: पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुख: ।।6।।शिवगणों में बराबर क्रीड़ा करने वाले गणेश जी हमारे ठोडी की रक्षा करें, गिरिजेश पुत्र गणेश जी हमारे तालु की रक्षा करें, विनायक हमारी वाणी की रक्षा करें और विघ्नहर्ता गणेश जी दांतो की रक्षा करें।श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिंतितार्थद: ।गणेशस्तु मुखं कंठं पातु देवो गणञज्य: ।।7।।हाथों के मध्य पाश धारण करने वाले गणेश जी दोनों कानों की रक्षा करें, मनोवांछित फल देने वाले गणेश जी नाक की रक्षा करें। गणों के अधिपति गणेश जी हमारे मुख एवं गले की रक्षा करें।स्कंधौ पातु गजस्कन्ध: स्तनौ विघ्नविनाशन: ।ह्रदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ।।8।।गजस्कंध गणेश जी स्कंधों की रक्षा करें। विघ्नों के विनाशक गणेश जी हमारे स्तनों की रक्षा करें। गणनाथ गणेश हमारे हृदय की रक्षा करें और परम श्रेष्ठ हेरम्ब हमारे पेट की रक्षा करें।धराधर: पातु पाश्र्वौ पृष्ठं विघ्नहर: शुभ: ।लिंगं गुज्झं सदा पातु वक्रतुन्ड़ो महाबल: ।।9।।धरणीधर गणेश जी हमारे दोनों बांहों की रक्षा करें। सर्वमंगल व विघ्नहर्ता गणेश जी आप हमारे पीठ की रक्षा करें। वक्रतुंड और महा सामर्थवान गणेश जी हमारे लिंग व गुह्म की रक्षा करें।गणाक्रीडो जानुजंघे ऊरू मंगलमूर्तिमान् ।एकदंतो महाबुद्धि: पादौ गुल्फौ सदाऽवतु ।।10।।गणक्रीडा नाम धारण करने वाले गणेश जी आप हमारे दोनों घुटनों के जांघों की रक्षा करें। मंगलमूर्ति दोनों ऊरू की रक्षा करें। एकदंत गणेश जी आप हमारे दोनों पांव और महाबुद्धि वाले गणेश जी हमारे गुल्फों की रक्षा करें।क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरक: ।अंगुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशन ।।11।।शीघ्र प्रसन्न होने वाले गणेश जी दोनों बाहुओं की रक्षा करें, भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हमारे हाथों की रक्षा करें। हाथों में पदम धारण करने वाले और शत्रुओं का नाश करने वाले गणेश जी आप हमारी उंगलियों तथा नाखूनों की रक्षा करें।सर्वांगनि मयूरेशो विश्र्वव्यापी सदाऽवतु ।अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतु: सदाऽवतु ।।12।।संपूर्ण विश्वव्यापी मयूरेश सर्वांगों अर्थात सभी अंगों की रक्षा करें। जो स्थान स्त्रोत में नहीं कहे गए हो उनकी रक्षा धूम्रकेतु नामक गणेश जी महाराज करें।आमोदस्त्वग्रत: पातु प्रमोद: पृष्ठतोऽवतु ।प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायक: ।।13।।प्रसन्नचित्त नाव में विचरण करने वाले गणेश जी बाजूओं के पीछे की रक्षा करें और बाजुओं के आगे की रक्षा करें, बुद्धि के अधिपति पूर्व दिशा में हमारी रक्षा करें तथा सिद्धिदायक आग्नेय दिशा में हमारी रक्षा करें।दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैर्ऋत्यां तु गणेश्वर: ।प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजगर्णक: ।।14।।उमा के पुत्र गणेश जी दक्षिण दिशा में हमारी रक्षा करें, गणों के अधिपति नेत्रत्य दिशा में हमारी रक्षा करें। विघ्नहर्ता गणेश जी पश्चिम दिशा में हमारी रक्षा करें और गजकर्ण वायव्य दिशा में हमारी रक्षा करें।कौबेर्यां निधिप: पायादीशान्यामीशनन्दन: ।दिवोऽव्यादेलनन्दस्तु रात्रौ संध्यासु विघ्नह्रत् ।।15।।निधि में अधिपति गणेश जी उत्तर दिशा में हमारी रक्षा करें। शिवपुत्र गणेश जी ईशान दिशा में हमारी रक्षा करें, एकदंत गणेश जी आप दिन में हमारी रक्षा करें। विघ्नहर्ता रात्रि व संध्याकाल में हमारी रक्षा करें।राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचत:पाशांकुशधर: पातु रज:सत्त्वतम:स्मृति: ।।16।।पाश अंकुश धारण करने वाले व सत रज तम तीन गुणों से जाने जाने वाले गणेश जी आप राक्षस, दैत्य, वैताल, ग्रह, भूत पिशाच आदि से हमारी रक्षा करें।ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् ।वपुर्धनं च धान्यश्र्च ग्रहदारान्सुतान्सखीन् ।।17।।ज्ञान, धर्म, लज्जा, कीर्ति, कुल, शरीर, स्त्री, पुत्र, मित्रों की रक्षा करें।सर्वायुधधर: पौत्रान्मयूरेशोऽवतात्सदा ।कपिलोऽजाबिकं पातु गजाश्रवान्विकटोऽवतु ।।18।।सर्व आयुध धारण करने वाले गणेश जी पोत्रों की रक्षा करें। कपिल नाम गणेश बकरी, गाय आदि की रक्षा करें। हाथी घोड़ों की रक्षा विकट नाम के गणेश जी करें।भूर्जपत्रे लिखित्वेदं य: कण्ठेधारयेत्सुधी: ।न भयं जायते तस्य यक्षरक्ष:पिशाचत: ।।19।।पढ़ने की फलश्रुतिजो उत्कृष्ट बुद्धिमान मनुष्य इस कवच को भोजपत्र पर लिखकर गले में धारण करता है। उसके सामने कभी यक्ष राक्षस व पिशाच नहीं आते।त्रिसंध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत् ।यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ।।20।।जो कोई प्रातः दोपहर व संध्याकाल तीनों काल में कवच स्त्रोत का पाठ करता है तथा विधि पूर्वक जब करता है उसका शरीर वज्र जैसा कठोर बन जाता है। जो कोई यात्रा के समय इसका पाठ करता है उसकी यात्रा सफल होती है, बिना विघ्न के उसे अच्छा फल मिलता है।युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।मारणोच्चटनाकर्षस्तंभमोहनकर्मणि ।।21।।युद्ध के समय वीर पुरुष इस कवच को पढ़ने से शत्रु पर विजय पता है। मारण, उच्चाटन, आकर्षण, स्तंभन व मोहन ऐसी क्रिया करते हैं जिससे शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।सप्तवारं जपेदेतद्दिननामेकविशतिम ।तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशय: ।।22।।जो कोई प्रतिदिन सात बार इसका पाठ करता है या इक्कीसवे दिन इस कवच का पाठ करने से साधक को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि य: ।काराग्रहगतं सद्यो राज्ञा वध्यं च मोचयेत् ।।23।।जो कोई प्रतिदिन इक्कीस बार के नियम से इक्कीस दिन लगातार इसका पाठ करता है तो वह कारागृह एवं राज बंधन से मुक्त हो जाता है।राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्तत्त्रिवारत: ।स राजानं वशं नीत्वा प्रक्रतीश्र्च सभां जयेत् ।।24।।राजा के दर्शन के समय जो कोई पुरुष इस कवच को तीन बार पाठ करें तो निश्चित ही वह राजा को वश में करके राज सभा में विजय व सम्मान प्राप्त करता है।इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।मुद्गलाय च तेनाथ मांडव्याय महर्षये ।।25।।मरीच ऋषि पार्वती से बोले कि यह गणेश कवच कश्यप जी ने मुद्गल ऋषि को सुनाया तथा मुद्गल ऋषि ने मांडव्य ऋषि को सुनाया।मज्झं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ।।26।।मांडव्य ऋषि ने सर्वसिद्धि देने वाली यह कवच पाठ मुझे पढ़ाया, हे देवी इसे भक्तिहीन मनुष्य को नहीं देना चाहिए। श्रद्धावान मनुष्य को यह कवच पाठ देना लाभदायक होता है।अनेनास्य कृता रक्षा न बाधाऽस्य भवेत्कचित् ।राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसंभवा ।।27।।हे देवी इस गणेश कवच के पाठ से बाल गणेश की रक्षा होगी। हमारे शत्रु, राक्षस, दैत्य, दानव, असुर से कोई भय नहीं रहेगा। यह सुनिश्चित समझो।।।अथ श्री गणेश पुराणे गणेशकवचं सम्पूर्णम्।।■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■■■■■■■■■■■■■■■#श्रीगणेश_पंचरत्नस्तोत्र।।   ■■■■■■■■■■■■■■मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ 1 ॥नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ 4 ॥नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं ।प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ 6 ॥इति श्री शंकराचार्य विरचितं श्री महागणेश पञ्चरत्नं संपूर्णम्।।***********************************************************श्रीगणेश_पंचरत्नस्तोत्र इसके भावार्थ इस प्रकार हैं –■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■मै भगवान श्री गणेश को विनम्रता के साथ अपने हाथों से मोदक प्रदान करता हुँ जो मुक्ति के प्रदाता हैं। चंद्रमा जिसके सिर पर मुकुट के समान विराजमान हैं जो राजाधिराज हैं जिन्होंने गजासुर नाम के हाथी दानव का वध किया था और सभी लोगोें के पापों का विनाश कर देते हैं ऐसे गणेश जी की पूजा करते हैं।। 1।।मैं उस भगवान गणेश जी पर सदा ध्यान अर्पित करता हुँ जो समर्पित नहीं हैं, जो उषा काल की तरह चमकते हैं जिसे सभी राक्षस एवं देवता सम्मान करते हैं, जो भगवानों में सर्वोत्तम हैं।।2।।मैं अपने मन को उस चमकते हुए भगवान गणपति के समक्ष झुकाता हुँ जो संसार के सभी खुशियों के प्रदाता हैं, जिन्होंने गजासुर दानव का वध किया था, जिनका बड़ा पेट है, हाथी के तरह सुन्दर चेहरा है, जो अविनाशी हैं, जो क्षमा को भी क्षमा करते हैं और खुशी और प्रसिद्धि प्रदान करते हैं, और बुद्धि के प्रदाता हैं।।।3।।मैं उन हाथी जैसे भगवान की पूजा करता हुँ जो गरीबों का दुख-दर्द दूर करते हैं जो ओम का निवास है, जो भगवान शिव के पहले पुत्र हैं, जो परमपिता परमेश्वर के शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, जो विनाश के समान भयंकर हैं, जो एक गज के समान दुष्ट हैं और धनंजय हैं और सर्प को अपने आभूषण के रूप में धारण करते हैं।।4।।मै सदा उस भगवान को प्रतिबिंबित करता हुँ जिनके चमदार दन्त हैं, जिनके दन्त बहुत सुन्दर हैं, जिनका स्वरूप अमर और अविनाशी है, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं, और जो हमेंशा योगियों के दिल में वास करते हैं।।5।।जो व्यक्ति प्रातःकाल में इस स्तोत्र का पाठ करता है, जो व्यक्ति भगवान गणेश पांच रत्न अपने शुद्ध हृदय मंें याद करता है तुरंत ही उसका शरीर दाग-धब्बों से मुक्त होकर जीवन स्वस्थ हो जायगा, वह शिक्षा के शिखर को प्राप्त करेगा, लम्बा जीवन शांति और सुख के साथ आध्यात्मिक एवं भौतिक समृद्धि के साथ सम्पन्न हो जायेगा।#श्रीगणेश_चालीसा■■■■■■■■■■॥ दोहा ॥जय गणपति सदगुण सदन,कविवर बदन कृपाल ।विघ्न हरण मंगल करण,जय जय गिरिजालाल ॥॥ चौपाई ॥जय जय जय गणपति गणराजू ।मंगल भरण करण शुभः काजू ॥जै गजबदन सदन सुखदाता ।विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥राजत मणि मुक्तन उर माला ।स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।चरण पादुका मुनि मन राजित ॥धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।अति शुची पावन मंगलकारी ॥एक समय गिरिराज कुमारी ।पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।बिना गर्भ धारण यहि काला ॥गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥लखि अति आनन्द मंगल साजा ।देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।बालक, देखन चाहत नाहीं ॥गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥बालक के धड़ ऊपर धारयो ।प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥चले षडानन, भरमि भुलाई ।रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।शेष सहसमुख सके न गाई ॥मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥॥ दोहा ॥श्री गणेश यह चालीसा,पाठ करै कर ध्यान ।नित नव मंगल गृह बसै,लहे जगत सन्मान ॥सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,ऋषि पंचमी दिनेश ।पूरण चालीसा भयो,मंगल मूर्ती गणेश ॥■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■#श्रीगणेश सुकतं**************आ तू न इन्द्र क्षुमन्तं चित्रं ग्राभं सं गृभाय ।महाहस्ती दक्षिणेन ॥ ८.०८१.०१विद्मा हि त्वा तुविकृर्मि तुविदेष्णं तुवीमघम् ।तुविमात्रमवोभिः ॥ ८.०८१.०२नहि त्वा शूर देवा न मर्तासो दित्सन्तम् ।भीमं न गां वारयन्ते ॥ ८.०८१.०३एतो विन्द्रं स्तवामेशानं वस्वः स्वराजम् ।न राधसा मर्धिषन्नः ॥ ८.०८१.०४प्रस्तोषदुप गासिषच्छ्रवत्साम गीयमानम् ।अभि राधसा जुगुरत् ॥ ८.०८१.०५आ नो भर दक्षिणेनाभि सव्येन प्र मृश । इन्द्र मा नो वसोर्निर्भाक् ॥ ८.०८१.०६उप क्रमस्वा भर धृषता धृष्णो जनानाम् ।अदाशुष्टरस्य वेदः ॥ ८.०८१.०७ इन्द्र य उ नु ते अस्ति वाजो विप्रेभिः सनित्वः ।अस्माभिः सुतं सनुहि ॥ ८.०८१.०८सद्योजुवस्ते वाजा अस्मभ्यं विश्वश्चन्द्राः ।वशेश्च मक्षू जरन्ते ॥ ८.०८१.०९ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ॥ २.०२३.०१निषुसीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् ।न ऋते त्वत्क्रियते किं चनारे महाम: मघवञ्चित्रमर्च ॥ १०.११२.०९अभिख्या नौ मघवन्नाधमानान्सखे बोधि वसुपते सखीनाम् ।रणं कृधि रणकृत्सत्यशुष्माभक्ते चिदा भजा गये अ॒स्मान् ॥ १०.११२.१०ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■#गणेशगायत्री_मंत्र■■■■■■■■–'ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुद्धि प्रचोदयात।।यह गणेश गायत्री मंत्र है। इस मंत्र का प्रतिदिन शांत मन से 108 बार जप करने से गणेशजी की कृपा होती है।#सर्वकार्यसिद्धी_मंत्र'ॐ गं गणपतये नमः' का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्रॐ गं नमः।।रोजगार की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप-ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।विवाह दोषों को दूर करने के लिए पढ़ें त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्रॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।#श्रीगणपति_अथर्वशीर्ष■■■■■■■■■■■त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसित्वमेव केवलं कर्ताऽ सित्वमेव केवलं धर्ताऽसित्वमेव केवलं हर्ताऽसित्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासित्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।। अर्थ- ॐकारापति भगवान गणपति को नमस्कार है। हे गणेश! तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्व हो। तुम्हीं केवल कर्ता हो। तुम्हीं केवल धर्ता हो। तुम्हीं केवल हर्ता हो। निश्चयपूर्वक तुम्हीं इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। तुम साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।। मैं ऋत न्याययुक्त बात कहता हूं। सत्य कहता हूं। अव त्व मां। अव वक्तारं।अव श्रोतारं। अव दातारं।अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।अव पश्चातात। अव पुरस्तात।अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।। हे पार्वतीनंदन! तुम मेरी (मुझ शिष्य की) रक्षा करो। वक्ता (आचार्य) की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पश्चिम से रक्षा। पूर्व से रक्षा करो। उत्तर से रक्षा करो। दक्षिण से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो। चारों ओर से मेरी रक्षा करो। त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।। तुम वाङ्‍मय हो, चिन्मय हो। तुम आनंदमय हो। तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानंद अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम दानमय विज्ञानमय हो। सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।। यह जगत तुमसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत तुममें लय को प्राप्त होगा। इस सारे जगत की तुममें प्रतीति हो रही है। तुम भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो। परा, पश्चंती, बैखरी और मध्यमा वाणी के ये विभाग तुम्हीं हो।  त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।त्वं शक्तित्रयात्मक:।त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वंरूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वंवायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वंब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।। तुम सत्व, रज और तम तीनों गुणों से परे हो। तुम जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से परे हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म औ वर्तमान तीनों देहों से परे हो। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों से परे हो। तुम मूलाधार चक्र में नित्य स्थित रहते हो। इच्छा, क्रिया और ज्ञान तीन प्रकार की शक्तियाँ तुम्हीं हो। तुम्हारा योगीजन नित्य ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रुद्र हो, तुम इन्द्र हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, तुम सूर्य हो, तुम चंद्रमा हो, तुम ब्रह्म हो, भू:, र्भूव:, स्व: ये तीनों लोक तथा ॐकार वाच्य पर ब्रह्म भी तुम हो। गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।नाद: संधानं। सँ हितासंधि:सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।ॐ गं गणपतये नम:।।7।। गण के आदि अर्थात 'ग्' कर पहले उच्चारण करें। उसके बाद वर्णों के आदि अर्थात 'अ' उच्चारण करें। उसके बाद अनुस्वार उच्चारित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित 'गं' ॐकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मंत्र का स्वरूप (ॐ गं) है। गकार इसका पूर्वरूप है।बिन्दु उत्तर रूप है। नाद संधान है। संहिता संविध है। ऐसी यह गणेश विद्या है। इस महामंत्र के गणक ऋषि हैं। निचृंग्दाय छंद है श्री मद्महागणपति देवता हैं। वह महामंत्र है- ॐ गं गणपतये नम:। एकदंताय विद्‍महे,वक्रतुण्डाय धीमहि,तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।। एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें। यह गणेश गायत्री है। एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।। एकदंत चतुर्भज चारों हाथों में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किए तथा मूषक चिह्न की ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लंबोदर वाले सूप जैसे बड़े-बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर प रक्त चंदन का लेप किए हुए रक्तपुष्पों से भलिभाँति पूजित। भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, सृष्टि के आदि में आविर्भूत प्रकृति और पुरुष से परे श्रीगणेशजी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सब योगियों में श्रेष्ठ है। नमो व्रातपतये। नमो गणपतये,नम: प्रमथपतये।नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय,विघ्ननाशिने शिवसुताय।श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।। व्रात (देव समूह) के नायक को नमस्कार। गणपति को नमस्कार। प्रथमपति (शिवजी के गणों के अधिनायक) के लिए नमस्कार। लंबोदर को, एकदंत को, शिवजी के पुत्र को तथा श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार-नमस्कार ।।10।।  एतदथर्वशीर्ष योऽधीते,स ब्रह्मभूयाय कल्पते।स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते,स सर्वत: सुखमेधते।स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।। यह अथर्वशीर्ष (अथर्ववेद का उप‍‍‍निषद) है। इसका पाठ जो करता है, ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। सब प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक नहीं होते। वह सब जगह सुख पाता है। वह पांचों प्रकार के महान पातकों तथा उपपातकों से मुक्त हो जाता है। सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति,प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति,सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।। सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है। प्रात:काल पाठ करने वाला रात्रि के पापों का नाश करता है। जो प्रात:- सायं दोनों समय इस पाठ का प्रयोग करता है वह निष्पाप हो जाता है। वह सर्वत्र विघ्नों का नाश करता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है। इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।। इस अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे नहीं देना चाहिए। जो मोह के कारण देता है वह पातकी हो जाता है। सहस्र (हजार) बार पाठ करने से जिन-जिन कामों-कामनाओं का उच्चारण करता है, उनकी सिद्धि इसके द्वारा ही मनुष्य कर सकता है। अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति,स विद्यावान भवति।इत्यथर्वणवाक्यं।ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्,न बिभेति कदाचनेति।।14।। इसके द्वारा जो गणपति को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है। जो चतुर्थी तिथि को उपवास करके जपता है वह विद्यावान हो जाता है, यह अथर्व वाक्य है जो इस मं‍त्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है वह कदापि भय को प्राप्त नहीं होता। यो दूर्वांकुरैंर्यजतिस वैश्रवणोपमो भवति।यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति,स मेधावान भवति।यो मोदकसहस्रेण यजति,स वाञ्छित फलमवाप्रोति।य: साज्यसमिद्भिर्यजति,स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।। जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धानी-लाई) के द्वारा यजन करता है वह यशस्वी होता है, मेधावी होता है। जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा यजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। जो घृत के सहित समिधा से यजन करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है। अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा,सूर्यवर्चस्वी भवति।सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ,वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।महाविघ्नात्प्रमुच्यते।,महादोषात्प्रमुच्यते।महापापात् प्रमुच्यते,स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।। आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से ग्राह कराने पर सूर्य के समान तेजस्वी होता है। सूर्य ग्रहण में महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र सिद्धि होती है। वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है। जो इस प्रकार जानता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है वह सर्वज्ञ हो जाता है। **********अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त।।********** #गणेशजी_के_अन्य_मंत्र■■■■■■■■■■■■गणपतिजी का बीज मंत्र 'गं' है। इनसे युक्त मंत्र- 'ॐ गं गणपतये नमः' का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है।१.षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक:-- ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌ २.किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुंह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।#उच्छिष्ट_गणपति_का_मंत्र- ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ३.आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें -  गं क्षिप्रप्रसादनाय नम: ४.विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें - 'ॐ गं नमः' .रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें-  ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।६.विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है-  ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ #इति_पोस्ट_सम्पूर्णं◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆🙏🏻🚩जयश्री महाकाल🚩🙏🏻लेखक एवं संकलनकर्ता।। #राहुलनाथ ।।™ (ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)शिवशक्ति_ज्योतिष_एवं_अनुष्ठान,भिलाई,छत्तीसगढ़, भारत📞+ 917999870013,+919827374074 (w)पेज लिंक:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य गुरू एवं साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसे मानने के लिए आप बाध्य नही है।अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।विवाद या किसी भी स्थिती में लेखक जिम्मेदार नही होगा।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆#विशेष:-इस पोस्ट को लिखने के लिए स्व अनुभव के साथ साथ आवश्यकता अनुसार कुछ पोस्ट एवं फोट, व्हाट्सएप /फेसबुक/गुगल एवं अलग-अलग पौराणिक साहित्यों  द्वारा ली जाती है। जो किसी मित्र की पोस्ट/फ़ोटो हो सकती,अतः जिनकी पोस्ट है वे संपर्क कर सकते है।ऐसे अवस्था  में त्रुटि होने की संभावना हो सकती है कृपया गुरुजन,मित्रगण मुझे क्षमा करते हुए मेरा  मार्ग प्रशस्त कर साहित्य की त्रुटियों से अवगत कराएं जिससे कि लेख में भविष्य में सुधार किया जा सके।*अगर आपको यह मंत्र पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।*आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह 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