शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

ज्योतिष_में_हैं_32_प्रकार_के_राजयोग_एवम_सिद्धांत

#ज्योतिष_में_हैं_32_प्रकार_के_राजयोग_एवम_सिद्धांत
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यहां राज योग से आशय सरकारी नौकरी से या सरकारी उच्च पद से है जहां वाहन,निवास जैसी सारी सुविधाएं,नाम-सम्मान,एवं सुखी संतुष्ट जीवन राज योग द्वारा प्राप्त हो जाता है।ज्योतिषीय राजयोग परिकल्पना में राजयोग का अर्थ है वह जीवन जिसमें किसी भी प्रकार की असंतुष्टि ना हो, वह व्यक्ति जो अपने आप में पूर्ण संतुष्ट व आनन्दित हो।
कई बार आपने किसी व्यक्ति विशेष के लिए यह सुना होगा कि वह बहुत भाग्यवान है। जो लोग किस्मत के धनी होते हैं उन्हें सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते देर नहीं लगती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुंडली में बनने वाले राजयोग व्यक्ति को कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचाते हैं। राजयोग कुछ विशेष ग्रहों की युति, स्थान विशेष में उनकी उपस्थिति आदि से बनते हैं। इन राजयोग के कारण व्यक्ति बनता है धनवान।कुंडली में पहला, दूसरा, पांचवां, नौवां और ग्यारहवां भाव धन देने वाले भाव होते हैं। अगर इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन संबंध बनता है तो इस स्थिति में धन योग का निर्माण होता है। इन राजयोग से व्यक्ति का आर्थिक जीवन बेहद समृद्धिशाली बनता है।
ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में कुल 32 प्रकार के राजयोग बताए गए हैं।इनमे से कुछ योगों पे आज परिचर्चा करते और जानते है इनके विषय मे।
जिस मनुष्य की कुंडली में 32 प्रकार के सभी योग पूर्ण रूप से घटित हो जाते हैं,वह मनुष्य चक्रवर्ती सम्राट बनता है। इसमें नीचभंग राजयोग भी प्रमुख माने जाते हैं। आइए देखते हैं जन्मकुंडली में वे कौनसे योग होते हैं जिनके होने पर राजयोग बनता है तथा व्यक्ति को उच्च पद, मान सम्मान, धन तथा अन्य प्रकार की सुख-संपत्ति प्राप्त होती हैं।

#ज्योतिष_के_सिद्धांत
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१.पहला सिद्धांत : जन्मपत्री में जो नीच ग्रह अपने उच्चांश में बली हों तो व्यक्ति राजा के समान ऐश्वर्य भोगता हैं। जबकि उच्च के ग्रह अपने नीचांशो में होने पर व्यक्ति को गरीबी में जीवन बिताना पड़ता है।

२.दूसरा सिद्धांत : जिस मनुष्य का पूर्ण बली चन्द्रमा लग्न को छोड़कर शेष केन्द्र या त्रिकोण (4, 7, 10, 5, 9) में यदि पूर्ण बली शुक्र या बृहस्पति से युति बनाता हो तो वह मनुष्य साक्षात राजा के समान ही सुख-संपत्ति और वैभवपूर्ण जीवन जीता है।

३.तीसरा सिद्धांत : किसी व्यक्ति के जन्म समय में जो भी ग्रह अपनी नीच संज्ञा वाली राशि में स्थित हो या बैठा हो, यदि उस राशि का स्वामी और उसकी उच्च संज्ञा राशि का स्वामी त्रिकोण (5, 9) या केंद्र (1, 4, 7, 10) में बैठा हो तो वह मनुष्य या तो राजा होता है या फिर चारों दिशाओं में घूमने वाला यशस्वी, धार्मिक नेता होता है। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, योगी, शंकराचार्य या इसी तरह के पद पर विराजमान होता है।

४.चौथा सिद्धांत : जिस मनुष्य का कर्क लग्न बृहस्पति से युक्त हो, शुक्र धर्म स्थान में विराजमान हो तथा शनि व मंगल सातवें घर में बैठे हों तो वह मनुष्य सम्राट होता है।

५.पाँचवा सिद्धांत : किसी व्यक्ति के जन्म केसमय जो ग्रह नीच राशि में हो, उस राशि का स्वामी या उसकी उच्चराशि का स्वामी लग्न में हो या चंद्रमा से केंद्र (1,4,7,10) में हो तो वह व्यक्ति स्वभाव से अत्यंत धार्मिक तथा चक्रवर्ती सम्राट होता है।

६.छठा सिद्धांत : जिस व्यक्ति के दूसरे, पांचवें तथा नवें या ग्यारहवें घर में सभी शुभ ग्रह विराजमान हो तो वह मनुष्य धनवान होता है। यदि लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त होकर केंद्र त्रिकोण में उच्च या स्वगृही बैठा हो तो मनुष्य बहुत धनवान राजनीतिज्ञ होता है।

७.साँतवा सिद्धांत : यदि व्यक्ति की कुंडली में नवमेश अपने नवांशनाथ के साथ केन्द्र में पंचमेश से युति बना रहा हो तो ऐसे व्यक्ति का राजा भी सम्मान करते हैं। प्राय: ऐसे लोग उच्च पदस्थ सरकारी अफसर बनते हैं।

८.अथवा सिद्धांत : यदि मेष में गुरु, धन में शनि और चन्द्रमा, दशम में राहु-शुक्र साथ बैठे हो तो व्यक्ति बहुत बड़ा राजनेता बनता है। यदि सभी ग्रह (2,6,7,12) में बैठे हो तो व्यक्ति बहुत ही बड़ा प्रभावशाली राजपुरुष होता है।

#राज_योग_एक_परिचय
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सिंहासन राज योग
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महर्षि भृगु ने कहा है कि जिन लोगों की कुंडली में सभी ग्रह, दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें घर में होते हैं वह महान राजयोग लेकर पैदा हुए हैं ऐसा जनाना चाहिए। इसे सिंहासन योग कहते हैं। इस योग को लेकर पैदा हुआ व्यक्ति राजगद्दी पर विराजमान होता है और राजा बनता है। आज के संदर्भ में बात करें तो ऐसे व्यक्ति कोई मंत्री या सरकारी क्षेत्र में उच्च पद पर विराजमान हो सकते हैं।

ध्वज राज योग
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जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में आठवें घर में अशुभ ग्रह, शनि, सूर्य, राहु मौजूद हों और शुभ ग्रह जैसे गुरु, चंद्रमा, शुक्र लग्न यानी पहले घर में मौजूद हों वह बड़े की किस्मत वाले होते हैं। ऐसे लोग ध्वज नामक राजयोग लेकर पैदा हुए हैं ऐसा मानना चाहिए। ऐसे लोग समाज में आदरणीय होते हैं और बड़े राजनेता हो सकते हैं।

चाप राज योग
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जिनकी कुंडली में गुरु अपनी राशि मीन या धनु में हों। शुक्र तुला राशि में और मंगल अपनी उच्च राशि मेष में स्थित होते हैं वह धन संपत्ति के मामले में बड़े ही सौभाग्यशाली होते हैं। भृगु संहिता के अनुसार ग्रहों की इस स्थिति से चाप नामक शुभ योग बनता है जिससे व्यक्ति राजा के समान प्रभावशाली होता है।

उभयचरी योग
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इस योग के कारण व्यक्ति बनता है बुद्धिमान
कुंडली में यदि चंद्रमा के अतिरिक्त राहु-केतु, सूर्य से दूसरे या बारहवें घर में स्थित हों तो कुंडली में उभयचरी योग का निर्माण होता है। इस राजयोग वाले व्यक्ति का भाग्य बड़ा प्रबल होता है। ऐसे जातक स्वभाव से हंसमुख और बुद्धिमान होते हैं। ये बड़ी से बड़ी चुनौतियों को आसानी से पार कर जाते हैं।

गज-केसरी राजयोग
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इस योग के कारण व्यक्ति अध्यात्म के क्षेत्र में पाता है सफलता
कुंडली में अगर गुरु बृहस्पति चंद्रमा से केन्द्र भाव में हो और किसी क्रूर ग्रह से संबंध नहीं रखता हो तो कुंडली में गज-केसरी राजयोग बनता है। इस राजयोग के कारण व्यक्ति धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में कामयाबी हासिल करता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी सेवाओं में उच्च पद पर बैठते हैं।

पाराशरी राजयोग
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इस राजयोग के कारण व्यक्ति को मिलता है भौतिक सुख
कुंडली में जब केन्द्र भावों का संबंध त्रिकोण भाव से हो तो ऐसी स्थिति में पाराशरी राजयोग का निर्माण होता है। दशावधि में इस योग के प्रभाव से आप धनी और समृद्धिशाली बनेंगे। आपके पास दौलत, शौहरत, गाड़ी, बंगला आदि सारी चीज़ें होंगी।

चंद्रमा द्वारा राजयोग
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कुंडली में चंद्रमा ग्यारहवें घर में और गुरु तीसरे घर में स्थित होने पर राजयोग बनता है। इस योग को लेकर पैदा हुआ व्यक्ति राजा के समान होता है। यह अपने समाज में प्रसिद्धि प्राप्त करता है और धन संपन्न होता है। इस तरह कुंडली के पांचवें घर में बुध और दसवें घर में चंद्रमा होने पर राजयोग का फल प्राप्त होता है।

उच्च के गुरु द्वारा राजयोग
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कुंडली में गुरु कर्क लग्न में बैठा हो यानी उच्च का गुरु पहले घर में बैठा हो तो बाकी ग्रह अनुकुल नहीं होने पर भी व्यक्ति बहुत ही ज्ञानी, साहसी, धनी और आदरणीय हो जाता है। ऐसे व्यक्ति समाज में आदर पाता है और राजा के समान सुख पाता है।

बुध चंद्र के संयोग से राजयोग
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जिनकी कुंडली में बुध और चंद्रमा दोनों एक साथ वृष राशि में या कन्या राशि में स्थित होते हैं वह अपनी वाणी और चतुराई से जीवन में अपार सफलता प्राप्त करते हैं। भृगृ संहिता के अनुसार, यह चंद्रमा और बुध की इस स्थति राजयोग बनता है। ऐसे लोग राजनीति में भी काफी सफल होते हैं।

विपरीत राजयोग-
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"रन्ध्रेशो व्ययषष्ठगो,रिपुपतौ रन्ध्रव्यये वा स्थिते।
रिःफेशोपि तथैव रन्ध्ररिपुभे यस्यास्ति तस्मिन वदेत,
अन्योन्यर्क्षगता निरीक्षणयुताश्चन्यैरयुक्तेक्षिता,
जातो सो न्रपतिः प्रशस्त विभवो राजाधिराजेश्वरः॥"
 
जब छठे,आठवें,बारहवें घरों के स्वामी छठे,आठवे,बारहवें भाव में हो अथवा इन भावों में अपनी राशि में स्थित हों और ये ग्रह केवल परस्पर ही युत व दृष्ट हो, किसी शुभ ग्रह व शुभ भावों के स्वामी से युत अथवा दृष्ट ना हों तो 'विपरीत राजयोग' का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य धनी,यशस्वी व उच्च पदाधिकारी होता है।
 
नीचभंग राजयोग
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 जन्म कुण्डली में जो ग्रह नीच राशि में स्थित है उस नीच राशि का स्वामी अथवा उस राशि का स्वामी जिसमें वह नीच ग्रह उच्च का होता है, यदि लग्न से अथवा चन्द्र से केन्द्र में स्थित हो तो 'नीचभंग राजयोग' का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य राजाधिपति व धनवान होता है।

कुछ अन्य सिद्ध योग
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१.जन्मपत्री में जो नीच ग्रह अपने उच्चांश में बली हों तो व्यक्ति राजा के समान ऐश्वर्य भोगता हैं। २.जबकि उच्च के ग्रह अपने नीचांशो में होने पर व्यक्ति को गरीबी में जीवन बिताना पड़ता है।
३.जिस मनुष्य का पूर्ण बली चन्द्रमा लग्न को छोड़कर शेष केन्द्र या त्रिकोण (4,7,10,5,9) में यदि पूर्ण बली शुक्र या बृहस्पति से युति बनाता हो तो वह मनुष्य साक्षात राजा के समान ही सुख-संपत्ति और वैभवपूर्ण जीवन जीता है।
४.किसी व्यक्ति के जन्म समय में जो भी ग्रह अपनी नीच संज्ञा वाली राशि में स्थित हो या बैठा हो, यदि उस राशि का स्वामी और उसकी उच्च संज्ञा राशि का स्वामी त्रिकोण (5,9) या केंद्र (1,4,7,10) में बैठा हो तो वह मनुष्य या तो राजा होता है या फिर चारों दिशाओं में घूमने वाला यशस्वी, धार्मिक नेता होता है। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, योगी, शंकराचार्य या इसी तरह के पद पर विराजमान होता है।
५.जिस मनुष्य का कर्क लग्न बृहस्पति से युक्त हो, शुक्र धर्म स्थान में विराजमान हो तथा शनि व मंगल सातवें घर में बैठे हों तो वह मनुष्य सम्राट होता है।
६.किसी व्यक्ति के जन्म केसमय जो ग्रह नीच राशि में हो, उस राशि का स्वामी या उसकी उच्चराशि का स्वामी लग्न में हो या चंद्रमा से केंद्र (1,4,7,10) में हो तो वह व्यक्ति स्वभाव से अत्यंत धार्मिक ७.तथा चक्रवर्ती सम्राट होता है।
८.जिस व्यक्ति के दूसरे, पांचवें तथा नवें या ग्यारहवें घर में सभी शुभ ग्रह विराजमान हो तो वह मनुष्य धनवान होता है।
९. यदि लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त होकर केंद्र त्रिकोण में उच्च या स्वगृही बैठा हो तो मनुष्य बहुत धनवान राजनीतिज्ञ होता है।
१०.यदि व्यक्ति की कुंडली में नवमेश अपने नवांशनाथ के साथ केन्द्र में पंचमेश से युति बना रहा हो तो ऐसे व्यक्ति का राजा भी सम्मान करते हैं। प्राय: ऐसे लोग उच्च पदस्थ सरकारी अफसर बनते हैं।
यदि मेष में गुरु, धन में शनि और चन्द्रमा, दशम में राहु-शुक्र साथ बैठे हो तो व्यक्ति बहुत बड़ा राजनेता बनता है।
११. यदि सभी ग्रह (2,6,7,12) में बैठे हो तो व्यक्ति बहुत ही बड़ा प्रभावशाली राजपुरुष होता है।
१२.जब तीन या तीन से अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होते हुए केन्द्र में स्थित हों।
१३. जब कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होकर वक्री और शुभ स्थान में स्थित हो।
१४.जब तीन या चार ग्रहों को दिग्बल प्राप्त हो।
१५.जब चन्द्र केन्द्र में स्थित हो और गुरु की उस पर दृष्टि हो।
१६.जब नवमेश व दशमेश का राशि परिवर्तन हो।
१७.जब नवमेश नवम में व दशमेश दशम में हो।
१८.जब नवमेश व दशमेश नवम में या दशम में हो।
।।संकलित पोस्ट द्वारा व्हाट्सएप।।
इस पोस्ट को लिखने के लिए स्व अनुभव के साथ साथ आवश्यकता अनुसार कुछ पोस्ट एवं फोट, व्हाट्सएप /फेसबुक/गुगल एवं अलग-अलग पौराणिक साहित्यों  द्वारा ली गई है।

#नोट–यदि आप अपने या अपने किसी परिचित की जन्मकुण्डली में मौजूद योगों के बारे में विस्तार से जानकारी लेना चाहते है तो ज्योतिष परामर्श के लिए आज ही सम्पर्क करें- 9827374074 (परामर्श सेवा निःशुल्क नहीं है)

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           लेखक एवं संकलनकर्ता
     ।। #राहुलनाथ ।।™ (ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)
शिवशक्ति_ज्योतिष_एवं_अनुष्ठान,भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
 #चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य गुरू एवं साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसे मानने के लिए आप बाध्य नही है।अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।विवाद या किसी भी स्थिती में लेखक जिम्मेदार नही होगा।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

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