मंगलवार, 2 मई 2017

बगलामुखी का गुप्त रहस्य (पहली बार प्रकाशित)

बगलामुखी का गुप्त रहस्य (पहली बार प्रकाशित)
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आइये मित्रों,आज कुछ परिचर्चा करते है "देवी बगलामुखी"के चमत्कारी विषय मे ।बहुत से मित्र अक्सर मुझसे प्रश्न करते है कि वे देवी की साधना करते है और लगातार कर रहे है किंतु उन्हें पूर्ण रूप से लाभ नही हो रहा है इसका मूल कारण क्या है?
मित्रो,सबसे पहले देवी बगलामुखी के विग्रह पर एक दृष्टि डाले ,क्या दिखता है आपको?ये देवी शत्रु की जिव्हा को  अपने बाये हाथ से खींच रही है और दाये हाथ से शत्रु को मुद्गर से मार रही हैं ये विग्रह देवी के शत्रुओं के प्रति व्यवहार को दर्शाता है,ये देवी के प्रयोग शत्रु की जुबान बंद करने के लिए ,कानूनी कार्यवाही रोकने के लिए किए जाते है।जब कोई आपको बदनाम करने का प्रयास करे तब मूल रूप से ये देवी कार्य करती है।यदि आपको इस देवी से संबंधित परेशानियां नही है तो फिर इनकी साधना ना करे।देवी का पीला रंग पित्त एवं स्तंभन का कारक है सिर्फ स्तंभन ही देवी का मूल शस्त्र है इसके विपरीत यदि आप कोई और इच्छा से ,जैसे शत्रु के मारण की कामना से पूजा करते है तो यही देवी काली में परिवर्तित हो जाती है ,यदि आप वशीकरण की कामना करते है तो यही देवी सरस्वती में भी परिवर्तित हो जाती है किन्तु स्वरूप बदलने पे ये बगला नही रह जाती है।
यहां समझने वाली एक और बात है कि देवी का मूल मंत्र मात्र "ह्लीं"है और इसके अलावा जोड़े गए सब शब्द् प्रार्थना मात्र है सोशल मीडिया में ,किताबो में बार बार देवी के 36 अक्षरों का मंत्र दिया गया है किंतु कही भी मंत्र की मूल विधि आज तक कही दी गई है मैंने कभी नही पढ़ी सभी जगह बस कॉपी पेस्ट कर छापा गया है ।मंत्र में ध्यान से पढ़े की आप क्या पढ़ रहे है आप कह रहे है कि " सभी दृष्टो के बातो को,मुख को ,पैर को रोक दो,जुबान को कील दो,उसकी बुद्धि का विनाश कर दो किन्तु कही भी दृष्ट के नाम-गोत्र एवं ध्यान का उल्लेख नही किया गया है।
हां कुछ जानकार व्यक्ति संकल्प में शत्रु के नाम का उल्लेख करने की सलाह देते है किंतु मंत्र में शत्रु का नाम किस जगह लगाए जिससे मंत्र की चाल सही हो और अक्षर भी 36 रहे ऐसा उपाय क्या कभी आपने किसी किताब में या सोशल मीडिया की पोस्ट में पढ़ा है?निश्चित ही नही पढ़ा होगा।
इसीकारण वश सभी विद्याओ को गुरु शिष्य परंपरा में सम्हाल के रखा गया है ।
इस मंत्रानुसार दृष्टो को मारो!
क्यो भाई क्यो मारो?
उसने आपके साथ क्या बुरा किया है ,जिसके साथ बुरा किया होगा ,उसकी नजर में वो दृष्ट होगा आप क्यो बीच मे अपनी राय जोड़ रहे है।आप करोड़ो मंत्र जाप करो कुछ नही होगा ,जब तक पूरी विधि ना जान पाए।हा दो या चार साधको को मनोवैज्ञानिक रुप से लग सकता है कि सफलता प्राप्त हुई है ।
बगला देवी के बहुत से साधक इस विधि को जानते है और वो अपने अनुयायियों पे देवी के मंत्रो का प्रयोग कर उन्हें स्तंभित कर देते है जिससे कि वो बार बार उस भगत के दरबार का चक्कर लगाने को विवश हो जाये।स्मरण रहे मित्रो ये देवी हो या अन्य देवी देवता ,सब ऊर्जा मात्र है और ऊर्जा को पाप पुण्य से कोई लेना देना नही होता वो तो प्रक्षेपण करने वाले कि आज्ञा के अनुसार कार्य करती है ।विद्युत के वोल्टेज-वाट   इत्यादि को कम करके जब चिकित्सक किसी के प्राण बचाये जा सकते है वही इन्हें बढ़ा के किसी के प्राण भी लिए जा सकते है,इसमें आप कहे कि ऊर्जा पापी है दृष्ट है तो यह ऊर्जा का अपमान हीं होगा।
ऐसे बहुत से मित्र है जिनका कार्य स्तंभन मंत्र किसी सिद्ध से या किताबो से लेकर पढ़ने पर उनके कार्य सब अचानक रुक गए,ऐसे में उनसे इस स्तंभन की विधिवत काट करवा कर पुनः सात्विक में सरस्वती एवं तामसिक में महाकाली का विधिवत अनुष्ठान करवा कर ,उन्हें मैंने ठीक करने का प्रयास किया जिसमें ७०% सफलता भी प्राप्त हुई।
मित्रों ये पोस्ट देवी के विरुद्ध नही बल्कि देवी की उच्च स्तंभन क्षमता को दर्शाने लिखी गई है कृपया पोस्ट को अन्यथा ना ले एवं जब भी किसी भी देवी-देवता की साधना करनी हो तो पहले उनके गुण धर्म एवं क्षमता को भली भांति समझ ले।एवं सही मार्ग दर्शन में रहकर साधना करे।ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जिन्होंने काली,दुर्गा,तारा, बगला का कवर फ़ोटो लगा के ये बताने का प्रयास किया कि वे सिद्ध साधक है किंतु हर पोस्ट में वही आधे- अधूरे मंत्र दिए होते है।
प्राचीन ऋषि मुनियों योगियों ने इसे गुप्त विद्या कहा है अब आप सोचिये की ये इतनी सरल होती तो इसे गुप्त विद्या क्यो कहां गया।यहां पोस्ट पढ़कर बहुत से मित्र शास्त्रो-उपनिषदों का वास्ता देंगे कहेगे की वहां ऋषियों ने लिखा हैं तो मित्रो ये भी समझने का प्रयास करे कि वहा भी गुप्तता को प्राथमिकता देते हुए ,विषय को जन सामान्य से दूर रखा गया था जिससे कि ये विद्या कुपात्रों के हाथ ना पहुच जाए।मूल बातो को गुरु गम्य ही रखा गया था और आज भी गुरु गम्य ही है।इन रहस्यो को समझने के लिए।भगवान राम,कृष्ण को भी गुरु धारण कर विद्या ग्रहण करनी पड़ी थी वरना क्या उनको पढ़ना नही आता था?या उनके पास गुप्तचर नही थे?जो इन विद्याओ की जानकारी निकाल लेते।इसी कारण वश इस बहुमूल्य ज्ञान को गुरु गम्य कर ,सुपात्र के कान में फूंकने (अकेले में बताने)का प्रचलन रहा जो आज भी चल रहा है।क्योकि किताबो में लिखी बाते चोरी हो सकती है किंतु बुद्धि/स्मृति से चोरी नामुमकिन ही है।
मेरी किसी बात से देवी के भक्तों को ठेस पहुची हो या आत्मा आहत हुई हो तो मैं करबद्ध क्षमा मांगता हूं।।
पोस्ट पसंद आने से अवश्य लाइक,कमेन्ट करे ,जिससे कि भविष्य में में आपकी इसी प्रकार सेवा करता रह।आपकी लाइक कमेंट ही मेरे लिए आशीर्वाद है पारितोषित हैं।
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।। राहुलनाथ।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है अतः हमारी मौलिक संपत्ति है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये इस रूप में उपलब्ध नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझ कार्यवाही की जायेगी।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु निर्देशन के साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी बातों ने तो मुझे प्रभावित कर दिया क्या मैं आपसे यह रहस्यमय विद्या सीख सकता हूं।
    क्योंकि मैं भी दस साल पहले से तंत्र सीखने में लगा हूं पर सही कहूं तो क़िस्से कहानियों में ही ऐसी-ऐसी बातें देखने में आती है और जब सीखने निकले तो ऐसी बातें कोई नहीं सिखाता अलग-अलग जगह झांको तो कहेंगे कि गुरु एक बार बनाया जाता है दूसरे से मत सीखो । अरे जब हमें सवाल का जवाब नहीं दिया जाएगा तो कोशिश तो करेंगे।

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  2. हम इस योग्य ही नहीँ कि कोई टीका टिप्पणी कर सकूँ. मैं तो सभी का सुनता हूं, पढ़ता हूं और इस जीवन मृत्व के बीच कि दूरी.....

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