शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

यक्षिणी_नायिका_कवच

#यक्षिणी_नायिका_कवच
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यक्षिणी (या यक्षी ; पालि: यक्खिनी या यक्खी ) हिंदू, बौद्ध और जैन धार्मिक पुराणों में वर्णित एक वर्ग है जो देवों (देवताओं), असुरों (राक्षसों), और गन्धर्वों या अप्सराओं से अलग हैं। यक्षिणी और यक्ष, भारत के सदियों पुराने पवित्र पेड़ों से जुड़े कई अपसामान्य प्राणियों में से एक हैं।
अच्छी तरह से व्यवहार करने वाली और सौम्य यक्षिणियों की पूजा भी की जाती है।यक्षिणी ये कोई प्रेत या भूतिनी नही है, यह अप्सरा तुल्य सोंदर्य की देवी है, जो साधक के सभी मनोरथों को पूर्ण करने के लिए सदेव आतुर रहती है, यक्षिणी कवच वशीकरण के लिए विशेष कृपा प्रदान करता है,यदि आपको इनकी कृपा चाहिए तो इसे अवश्य ही, यक्षिणी कवच का पाठ करना चाहियें, तंत्र शास्त्र अनुसार इस कवच को ग्रहण करने से निश्चित ही सिद्धि मिलती है, इसमें कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है।।।
कुछ प्राचीन ग्रंथ है और कुछ अर्वाचीन ग्रंथ भी हैं। इन सभी ग्रंथों में अनेक प्रकार की इतर योनियों का वर्णन है। जिसमें यक्षिणी नाम की इतर योनि और उसकी साधना का रहस्य बताया गया है। 
यक्षिणी एक योनि होती है, देवी देवताओं और योगिनी के बाद ये सबसे शक्तिशाली योनि मानी गई है, यक्ष और यक्षिणी की कहानियां सिर्फ हिन्दू धर्म मे ही नहीं बल्कि  दुनिया के 80% धर्मों मे मिलती है, यक्षिणी की उत्पत्ति ऐसे बताये गई है, कोई धार्मिक महिला या पुरुष जिसका मन साफ़ हो, जो अच्छे कर्मों को लेकर यदि असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो वो भूत पिशाच आदि निकृष्ट योनि को प्राप्त नहीं होता बल्कि अर्ध देव योनि  यक्ष और यक्षिणी को प्राप्त होता है, और किसी के बुलाने पर उसकी सम्पत्ति या उसकी रक्षा करते है.यक्षिणी को मंत्र साधना द्वारा जाग्रत कर बुलाया जाता है ,यह कई प्रकार की इच्छाओ की पूर्ति करती हैं , यक्षिणी कई प्रकार की होती है और उन का महत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है।
तंत्र ग्रंथों में यक्षिणी तथा यक्ष के साधना के विस्तृत विवरण मिलते हैं।

#प्रमुख_यक्षिणियां_है –
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी,2. मनोहारिणी यक्षिणी,3. कनकावती यक्षिणी,
4. कामेश्वरी यक्षिणी,5. रतिप्रिया यक्षिणी,6. पद्मिनी यक्षिणी,
7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।
#अन्य_यक्षिणियां
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यक्षिणी कई प्रकार की होती है और उन का महत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है।
1- चण्डवेगा यक्षिणी 2- विशाला यक्षिणी 3- लक्ष्मी यक्षिणी 
4- काल कर्णिका यक्षिणी 5- शोभना यक्षिणी 6- दिव्य यक्षिणी 7- वटवासिनी यक्षिणी 8- हंसी यक्षिणी 9- नटी यक्षिणी 
10- विभ्र्मा यक्षिणी 11- रतिप्रिया यक्षिणी 12- सुरसुन्दरी यक्षिणी 13- अनुरागिणी यक्षिणी 14- जलवासिनी यक्षिणी 
15- महाभया यक्षिणी 16- चन्द्रिका यक्षिणी 17- रक्तकम्बला यक्षिणी 18 – विधुजिव्हा यक्षिणी 19- कर्णपिशाचिनी यक्षिणी
20- चामुंडा यक्षिणी21- चिंचीपिशाची यक्षिणी 22- विचित्रा यक्षिणी 
23- पघिनी यक्षिणी
यक्षिणियां अत्यंत कम समय में ही भौतिक व आर्थिक रूप से अपेक्षित परिणाम देकर भौतिक सुख संसाधनों की सहजता प्रदान करती हैं , साथ ही साधक द्वारा उनकी शक्तियों का सही प्रयोग किये जाने पर आध्यात्म के मार्ग में भी सहायक होती हैं !प्रत्येक यक्षिणी के अलग अलग मंत्र होते हैं ओर अलग मंत्र विधियों द्वारा बुलाया जाता है।संकलित

#यक्षिणी_मंत्र_साधना
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यक्षिणीयों के नाम एवं मंत्र
1- विद्या यक्षिणी –ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।
2- कुबेर यक्षिणी –ॐ कुबेर यक्षिण्यै धनधान्यस्वामिन्यै धन – धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
2- जनरंजिनी यक्षिणी –ॐ क्लीं जनरंजिनी स्वाहा ।
3- चंद्रिका यक्षिणी –ॐ ह्रीं चंद्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।
4- घंटाकर्णी यक्षिणी –ॐ पुरं क्षोभय भगवति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा ।
5- शंखिनी यक्षिणी –ॐ शंखधारिणी शंखाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा ।
6- कालकर्णी यक्षिणी –ॐ क्लौं कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा ।
7- विशाला यक्षिणी –ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।
8- मदना यक्षिणी –ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।
9- श्मशानी यक्षिणी –ॐ हूं ह्रीं स्फूं स्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।
10- महामाया यक्षिणी –ॐ ह्रीं महामाये हुं फट् स्वाहा ।
11 भिक्षिणी यक्षिणी –ॐ ऐं महानादे भीक्षिणी ह्रां ह्रीं स्वाहा ।
12- माहेन्द्री यक्षिणी –ॐ ऐं क्लीं ऐन्द्रि माहेन्द्रि कुलुकुलु चुलुचुलु हंसः स्वाहा ।
13- विकला यक्षिणी –ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लैं स्वाहा ।
14- कपालिनी यक्षिणी –ॐ ऐं कपालिनी ह्रां ह्रीं क्लीं क्लैं क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।
15- सुलोचना यक्षिणी –ॐ क्लीं सुलोचने देवि स्वाहा ।
16- पदमिनी यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।
17- कामेश्वरी यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।
18 – मानिनी यक्षिणी –ॐ ऐं मानिनि ह्रीं एहि एहि सुंदरि हस हसमिह संगमिह स्वाहा ।
19- शतपत्रिका यक्षिणी –ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।
20- मदनमेखला यक्षिणी –ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।
21- प्रमदा यक्षिणी –ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।
22- विलासिनी यक्षिणी –ॐ विरुपाक्षविलासिनी आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव क्लैं स्वाहा ।
23- मनोहरा यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।
24- अनुरागिणी यक्षिणी –ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।
25- चंद्रद्रवा यक्षिणी –ॐ ह्रीं नमश्चंद्रद्रवे कर्णाकर्णकारणे स्वाहा ।
26- विभ्रमा यक्षिणी –ॐ ह्रीं विभ्रमरुपे विभ्रमं कुरु कुरु एहि एहि भगवति स्वाहा ।
27 वट यक्षिणी –ॐ एहि एहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनी शीघ्रं मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
28- सुरसुंदरी यक्षिणी –ॐ आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा ।
29- कनकावती यक्षिणी –ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।

#यक्षिणीनायिका_कवचम्।।
।। श्री उन्मत्त-भैरव  ।।

श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं ।
यक्षिणी-नायिकानां तु,संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।

हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,
यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –

ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं ।
यक्षिणि स्वयमायाति,कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।

हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय
ही सिद्धि मिलती है ।सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,यक्षिणी-वशमानयेत् ।।

हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में
प्रकाशित किया गया है । इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश मेंहोती है ।

#विनियोग :-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,
श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

#ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
श्री अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि,
साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे
विनियोगाय नमः सर्वांगे।

#मूलपाठ ।।

शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।

भावार्थ:-
मेरे सिर की रक्षा यक्षिणि, ललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्या,
मुख की श्री धनदा और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें ।
आँखों की रक्षा वरदा, नासिका की भक्त-वत्सला करे ।
धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग की रक्षा करे ।
कन्धों की रक्षा किलालपा, गले की कमलानना करें ।
दोनों भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें ।
विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया सदा मेरी रक्षा करें ।
अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।

भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।
अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका ।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।

भावार्थ:-
हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा
नितम्ब-स्थल की रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें।
गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें।
सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान, जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी (जो सभी मन्त्रों की माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें।मेरे सारे शरीर की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें।
अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली धनदा प्रान्तर (लम्बे और सूनसान मार्ग, जन-शून्य या विरान सड़क, निर्जन भू-खण्ड) में रक्षा करें।
लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें।
वरदा मेरी रक्षा करें। सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें।महान संकट के समय, युद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें।
सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें।

इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात् ।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा ।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः ।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

भावार्थ:-
हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है।
इसके स्मरण मात्र से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है।
कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है,
और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी शास्त्रों का ज्ञाता हो जाता है।
अरण्य (वन, जंगल) में इस महा-कवच का पाठ करने से सिद्धि मिलती है।
कुल-विद्या यक्षिणी स्वयं आकर अणिमा, लघिमा, प्राप्ति आदि सभी सिद्धियाँ और सुख देती है।कवच (लिखकर) धारण करके तथा पाठ करके रात्रि में निर्जन वन के भीतर बैठकर (अभीष्ट) यक्षिणि के मन्त्र का १ लाख जप करने से इष्ट-सिद्धि होती है।इस महा-कवच का पाठ करने से वह देवी साधक की भार्या (पत्नी) हो जाती है।इस कवच को ग्रहण करने से सिद्धि मिलती है इसमें कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं है ।

।।   #इति_वृहद_भूत_डामरे_महा_तन्त्रे।।
।।. #श्रीमदुन्मत्त_भैरवी_भैरव_सम्वादे_यक्षिणीनायिका_कवचम्।।
🚩जै श्री महाकाल🚩आदेश आदेश नमो नमः
।। #राहुलनाथ ।।™
(ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)शिवशक्ति ज्योतिष वास्तु एवं अनुष्ठान,भिलाई,३६गढ़
📞+ 917999870013,+919827374074

#आपके_हितार्थ_नोट:-बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।
विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र,दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।

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