सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

निर्वाण...एक अकेली यात्रा

निर्वाण...एक अकेली यात्रा
"जो भावनाओ एवं विचारो का एकत्रीकरण करेगे वो नर्क जैसे दुःखों को भोगेंगे एवं जो भावनाओ एवं विचारो को आत्मसाध कर एकाँकी जिएंगे वो परमात्मा की शरण में सवर्ग को भोगेंगे"

यह दुनिया भावनाओ एवं विचारो का संग्रह मात्र है हर एक विचार अपने जैसे विचारो को आकर्षित एवं एकत्रित करता रहता है ।और जो विचार आकर्षित या एकत्रित नहीं होता वो भी एक विचार ही होता है किन्तु वो पहले विचार से भिन्न होता है वो भी अपने जैसे विचार एवं भावना के अनुसार दूसरे समूह को एकत्रित करता रहता है।इसी प्रकार के वैचारिक मतभेदों के अलग-अलग समूहों का नाम धर्म कहलाता है।इन सबमे वैचारिक व् भावनात्मक समानता नहीं होना सामान्य सी बात है।इन भावनाओ एवं विचारो का वर्गीकरण बहुत पहले ही कर दिया गया है जैसे :-हिन्दू धर्म,मुस्लिम धर्म,सिख ,ईसाई,जैन,फ़ारसी इत्यादि।इन धर्मो के भीतर भी वैचारिक एवं भावनात्मक वर्गीकरण किया गया है जैसे:-ब्राह्मण,क्षत्रिय,शुद्र वैश्य इत्यादि।आज भी नए विचार एवं भावनाओ की खोज अपने चर्म स्तर पर है और इन नई भावनाओ एवं विचारो के मिलने मात्र से पंथ,सम्प्रदाय,दल,धार्मिक सेना ,समुदाय,मिशनों एवं समितियों का निर्माण होते ही जा रहा है।आशय यह है की लगातार मानव को परमात्मा से जोड़ने का कार्य न करके उनको तोड़ने का प्रयास लगातार किया जा रहा है।ये अध्यात्म नहीं है,ईश्वर परमात्मा का मार्ग नहीं है।ईश्वर का मार्ग एकीकरण का मार्ग है समानता का मार्ग है एक रूप में परिवर्तित हो जाने का मार्ग है।परमारमा या परमात्मा के विचारो से भटक जाना ही आत्मा का अस्तित्व है और आत्मा के भटकने का मूल कारण आत्मा में जन्मा अहंकार मात्र है।अहंकार के टूटते ही आत्मा में परमात्मा का समावेश होने लगता है इस प्रकार लगातार टूट कर कई स्तरों को पार करता हुआ आत्मा स्वयं परमात्मा में विलीन हो जाता है।
जिस प्रकार आत्मा पहले शिशु,बाल्य,युवा एवं प्रौढावस्था को प्राप्त करता हुआ मृत्यु को प्राप्त करता हुआ पुनः शरीर धारण कर जन्म लेता है ठीक इसीके विपरीत क्रम मृत्यु,प्रौढावस्था,युवा,बाल्य एवं शिशु अवस्था की ओर बढते हुए परमात्मा में विलीन भी हो सकता है।
इन दोनों मार्गो में से मानव को किस मार्ग की और चलना है इसका निर्णय बुद्धि द्वारा होता है किन्तु मन हमेशा बुद्धि पे भारी ही पड़ता है।मन में लगा आघात बुद्धि को बदल देता है बुद्धि के बदलते ही आत्मा इन दोनों में से एक मार्ग की ओर प्रशस्त होता है।बुद्धि पे आघात लगने से मेरा आशय है की जैसे बुद्ध प्रारंभ में बुद्ध नहीं थे मृत्यु को देखने से आघात हुआ और बुद्धत्व प्राप्त हुआ ,सम्राट अशोक के हृदय का आघात उसे बदलने को विवश किया इस आघात ने अँगुलीमाल जैसे डाकु में परमतत्व को पैदा कर दिया।
बुद्ध एवं बुद्ध जैसे अन्य महान आत्माओ ने एकाँकी में परमात्मा को पाया।आज इन माहान आत्माओ(सभी धर्म की)को जानने वाले इनके अनुयायी अपने विचार एवं भावनाओ का एकत्रीकरण कर पंथ,सम्प्रदाय,दल,धार्मिक सेना ,समुदाय,मिशनों एवं समितियों का निर्माण कर एकांत से दूर ले जा कर उन महान गुरुओ एवं महान आत्माओ के विचारो को अपने कुविचारों से संक्रमित कर रहे  है।एकत्रीकरण तो युद्ध के लिए किया जाता है मोक्ष एवं आध्यात्मिक मार्ग तो एकाँकी ही होता है।बुद्ध में बुद्धत्व ,महावीर में ज्ञान एवं महान आध्यात्मिक संतो में यदि ये तत्व पैदा हुआ होगा तो उस तत्व ने एकत्रिकरण का मार्ग तो नहीं दिखाया होगा क्योकि एकत्रीकरण ,परमात्मा से बहुत दूर करता है।और बोधित्व एकांत में जन्म लेता है।
*****जयश्री महाकाल****
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
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