Rahulnath OSGY
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मंगलवार, 8 नवंबर 2022
श्रीविष्णुसहस्रनाम_स्तोत्रम् [भाग-१]°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
रविवार, 30 अक्तूबर 2022
महिलाओं_को_नहीं_करने_चाहिए_ये_काम
#महिलाओं_को_नहीं_करने_चाहिए_ये_काम?
🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
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#हवन_करना
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स्त्री हवनकर सकती हैं. लेकिन स्त्री कभी भी अकेले हवन नहीं कर सकती हैं. हवन के दौरान स्त्री को मुख्य यजमान के रूप में अपने पति को साथ में रखना होता हैं. कोई भी स्त्री हवन के लिए मुख्य यजमान नहीं बन सकती हैं. सनातन धर्म के पुराने शास्त्रों में इसकी मनाई हैं।
#हनुमानजी_को_स्पर्श_करना
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ये सभी जानते हैं कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं. मान्यता है कि हनुमान बाबा महिलाओं को माता समान मानते थे. इसलिए शास्त्रों में महिलाओं द्वारा उन्हें स्पर्श न करने की बात कही गई है. हालांकि वे दूर रहकर हनुमान जी की पूजा कर सकती हैं।
#नारियल_फोड़ना
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आपने अपने घर और मंदिरों में अगर गौर किया हो तो देखा होगा किन पूजा पाठ या किसी अन्य शुभ कार्य के दौरान नारियल फोड़ने का काम पुरूष ही करते हैं. महिलाओं के लिए इसे वर्जित माना गया है. दरअसल नारियल को मां लक्ष्मी और उर्वरा का प्रतीक माना जाता है. हालांकि महिलाएं भगवान के समक्ष नारियल का भोग खुद सकती हैं।
#जनेऊ_धारण_करना
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हिंदू धर्म में जनेऊ भी पुरुष ही धारण करते हैं महिलाएं नहीं. दरअसल जनेऊ को लेकर शास्त्रों में काफी नियम बनाए गए हैं, साथ ही इसकी शुद्धता का भी विशेष ख्याल रखने की बात कही गई है. मासिक धर्म के समय महिलाओं को शुद्ध नहीं माना जाता, इस दौरान उन्हें पूजा पाठ करने या भगवान को छूने की इजाजत भी नहीं होती. ऐसे में महिलाएं जनेऊ को पहनकर उसके नियमों का पूरी तरह पालन नहीं कर पाएंगी. इसीलिए उनके लिए इसे पहनने की मनाही है. हालांकि शुद्ध रहते हुए वे जनेऊ बना जरूर सकती हैं।
#बलि_देना
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जब भी किसी देवी या देवता को बलि दी जाती है तो ये काम हमेशा पुरुष ही करते हैं क्यों कि महिलाओं के लिए इस काम की भी शास्त्रों में मनाही कि।
द्वारा सोशल मीडिया चित्र एवम् लेख
👉 #आपका
#राहुलनाथ_राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
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☠️ #चेतावनी_डिसक्लेमर:- ☠️
हमारे लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथनानुसार्,ज्योतिष/वास्तु/वैदिक/तांत्रिक/आध्यात्मिक/साबरी ग्रंथो/लोक मान्यताओं/सोशल मीडिया की जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या
#धन्यवाद 🙏🏻
शनिवार, 29 अक्तूबर 2022
स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए?
क्या होता है अध्यात्म?(भाग-1)
🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
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अध्य +आत्म =अध्याय आत्मा का कहा से शुरू करे ??
मै कौन हूँ ।यही पहला अध्याय है आत्मा का!
मै कौन हु ?पूछो अपने आप से,आपका नाम तो माँ बाप ने अपनी पहचान के लिए नाम रखा!समाज के पहचान के लिए दिया है।
तो तुम कौन ???? पता तो करो ।यही साधना है ।।
साधना ये शव्द बड़ा विचित्र है साफ साफ़ कहा है साध ना
जिसे साधना मना है फिर भी प्रयास तो करना ही होगा
पुछो क्या जानना है साधना के विषय में ।।
किसकी साधाना।।।
किसको साधना है ?
खुद को या खुदा को?
वो जो खुद ही आ सकता है किसी के पुकारने से जो नहीं आता वही खुदा है।
जिसको भी साधना है पहले उसका नाम रखो माता बनके पिता बन के जैसे राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या अन्य कोई भी नाम।
बचपन में जब मुझे डर लगता था तो मै मेरे दोस्त का नाम लेता था
दीपक बचा ले,और मै भय मुक्त हो जाता था।
मन को स्थिर करने के लिए मन से दूर होना पडेगा।
शत्रु जैसा व्यवहार करना पडेगा। जैसे पिता के मना करने पर पुत्र पिता को शत्रु समझने लगता है।
किसी कर्म काण्ड की आवश्यकता नहीं है इसमें ।।
कर्म काण्ड मतलब देवताओं को प्रसन्न करने के अलग अलग उपाय।
अध्यात्म का कर्म काण्ड से कोई लेना देना नहीं है।
वो तो लक्ष्मी के पुजारियो का कार्य है।
रोज मन की एक इच्छा पूरी करो।
इससे संकल्प शक्ति का निर्माण होता है।
इसे ही "संकल्प साधना" कहते है।
मन को एक नाम दो।
राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या गुरुदेव कोई भी नाम।
और सब कुछ उस नाम को समर्पित कर दो।।
किन्तु दिमाग का क्षेत्र गुरु का है। और गुरु को ज्ञान महागुरु ही दे सकते है कोई सद्गुरु ही दे सकते है।।। पढ़ा तो जा सकता है किन्तु उसे समझाना गुरु का ही कार्य होता है।
तंत्र कहता है बच्चे की बलि दो शिशु की बलि दो
और तांत्रिक मानव शिशु पशु को बलि दे देते हैं जो की गलत है।। शास्त्रों में मन को ही पशु कहा गया है। इस पशु के ऊपर नियंत्रण करने वाला ही पशुपति नाथ कहलाता है। पहले किसी एक विषय का चुनाव करो अन्याथा सब भटक जायेगे।
तो पहले क्या? विषय होना चाहिये ।।शान्ख्या,ध्यान,आत्मा,पूजा, इत्यादि।।
तो प्रारम्भ करते है ध्यान से।
ध्यान?
ध नाम का यान।ध+यान=ध्यान
ध=धड़कन +यान
धडकनों का यान
ध्यान ?
धडकनों के यान का नियन्त्र।
इस यान की ऊर्जा क निर्माण श्वास एव भोजन से होता है
जीतनी श्वास बढाओगे उतनी गति इस यान की बड़ जायेगी।
और जितना घटा ओगे गति कम हो जायेगी।
किन्तु ध्यान मोक्ष का मार्ग है।
ध्यान के बिंदु का चयन करना होगा की
ध्यान लगाना कहाँ है
बाहर या भीतर।।।
किन्तु श्वासों को मात्र बढ़ाना या घटाना प्राणायाम नहीं होता।
प्राणायाम तो मात्र एक आयाम है
प्राणायाम से मंत्र सिद्धि नहीं मिलती।सिद्धि में सहायता मिलती ।।
एकाग्रता मिलती है।
जीतनी श्वासों की गति बढाओगे उतने नीचे के चक्रो पे पहुचोगे ।
और जितना श्वासों को घटाने से ऊपर के चक्रो पर पहुचोगे।।
सबसे निचे मूलाधार चक्र उ[ व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©²⁰¹⁷ ]पस्थित होता है।
इस चक्र में श्वासों के गति की आवश्यकता होती है और श्वास के प्रहारों से काम क्षेत्र में स्पंदन होने लगता है।जिससे काम ऊर्जा का जन्म होता है ।
जो वशीकरण में काम आती है
ऊपर सहस्त्रार जहा श्वासों की आवश्यकता ही नहीं होती।वहा शान्ति है मौन है ।एकान्त है यही महादेव का वास है।।
बिना रुके माता के पहाड़ पे चढ़ जाने से भी श्वास बड जायेगी।।
एक जगह बैठे रहो कम हो जायेगी।।
ऊपर के चक्रो में धन नहीं है
ह्रदय चक्र तक ही धन धान्य या।
और जब खुद ही सभी भावो पे नियंत्रण कर लोगे।
तो शिव हो जाओगे।गोरख हो जाओगे।
क्रमशः
👉 आपका
#राहुलनाथ _राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
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#निष्कर्ष:-
हम उम्मीद करते है की,आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा अगर उपयोगी साबित हुआ हैं तो,आगे इसे अपने दोस्तों और परिचितों को शेयर करे एवं लाइक अवश्य करे।जिससे अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।जिससे वह भी इसके बारे में जान सके और इसका लाभ उठा सके।
#धन्यवाद 🙏🏻
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स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार
#स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार
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🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
यदि स्वप्न के वैज्ञानिक आधार पर दृष्टि तो सत्य वनों की क्षणिक अनुभूति का कारण यही है कि वह आत्मा के सुपना शीर्षक में गिरता है या है।जत अवस्था में मस्तिष्क के द्वारा ही शरीर और मन दोनों का होता है, जबकि सुप्तावस्था में सुषुम्ना का 'गेमेंटर' ही मस्तिष्क के समान कार्य करने लगता है। उस स्थिति में यह अपेक्षित नहीं कि सूचनाओं से अवगत रहे। इसे स्पष्ट समझने के लिए यह उदाहरण पर्याप्त होगा कि यदि किसी जागे हुए मनुष्य के शरीर पर बैठ जाएं तो मनुष्य तुरन्त हटा देगा. परन्तु निद्वावस्था में मस्तिष्क को उसका ज्ञान न रहने के कारण मक्खी को हटाने का कार्य सुषुम्ना द्वारा ही किया जाएगा।
मस्तिष्क का उभरा हुआ भाग 'गायराई' कहा जाता है। दो गायराइयों के मध्य एक दरार होती है, जिसे सलकस' कहते हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग (फोरब्रेन) में जो एक गहरा 'सलकस' होता है, उस केन्द्रीय सलकर के समक्ष 'गायरस' में समूचे शरीर को आज्ञा देने वाले कोष होते हैं, जिनका शरीर की सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण रहता है। आगत नसें, जिन्हें पाश्चात्य भाषा में 'अफरेन्ट नर्स' कहते हैं, सूचना लाती और इफरेंट नर्स' सूचना ले जाती हैं। इस प्रकार जटिल से जटिल समस्याओं को भी यह कोष सुलझाते हैं।
#मनुष्य_शरीर_में_विद्यमान_नाड़ियां
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प्राचीन आचार्यों के मत में मानव शरीर में बहत्तर हजार से भी अधिक नाड़ियों की विद्यमानता है, किन्तु इनमें तीन नाड़ियां अत्यन्त प्रमुख तथा प्रसिद्ध हैं। उनके नाम हैं-1. इड़ा 2. पिंगला 3. सुषुम्ना। इन तीनों में भी सुषुम्ना महत्त्व अधिक है। अध्यात्म विद्या में तो उसे सर्वोपरि प्रमुखता दी जाती है। सुषुम्ना की प्रमुखता को तो वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं। का
#सुषुम्ना_का_रहस्य
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सुषुम्ना का महत्त्व जानने के लिए उसके स्वरूप को समझ लेना भी आवश्यक होगा। सुषुम्ना में आकाश के समान पोल होती है तथा यह प्रकाशमयी भी है। अतः इस प्रकाशमयी नाही को ही सूर्यात्मक आकाश और ब्रह्माण्ड के रहस्य से मन फल
सम्बन्ध जोड़ने तथा उसे व्यापक बनाने वाली माना गया है। उसी सुषुम्ना में मन के प्रवाहित होने से मनुष्य को दिव्य स्वप्न दिखाई देते हैं। उस समय मानव की चेतना विराट् क्षेत्र में तैरती है, इसलिए मनुष्य को स्वप्न में नदी, पर्वत, वन, उपवन, भवन, नगर, दुर्ग, खेत, पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा अन्यान्य दिव्य आकृतियाँ दिखाई देती हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में मन का प्रवाह ही उन स्वप्नों का कारण होता है, जो दिव्य तथा स्वप्न होते हैं। यह एक तथ्य है कि मन जब मस्तिष्क का अनुवर्ती न रहकर सुषुम्ना का अनुवर्ती हो जाता है, तब उसकी स्थूलता नष्ट होकर सूक्ष्मता आ जाती है। इस प्रकार स्थूल से सूक्ष्म हुआ चेतन मन ही (सुक्ष्म होने पर) अवचेतन बन जाता है।
इस प्रकार मन के जो भेद चेतन और अवचेतन अथवा बहिर्मन और अन्तर्मन के नाम से कहे हैं, उनमें बहिर्मन जो कार्य नहीं कर सकता, उसे करने में अन्तर्मन सर्वथा समर्थ है। क्योंकि बहिर्मन स्थूल होने के कारण उतनी सामर्थ्य नहीं रखता जितनी कि सूक्ष्म होने के कारण अन्तर्मन रखता है। स्थूल बहिर्मन किसी भी कार्य में स्वतन्त्र नहीं होता, जबकि सूक्ष्म अन्तर्मन अपना कार्य करने में स्वतन्त्र हो जाता है।
पेज-18 ,किताब-स्वप्न ज्योतिष और शकुन विचार,
©प्रकाशकाधीन,प्रकाशक : डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.,X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-2,नयी दिल्ली-110020,वितरक : पंजाबी पुस्तक भण्डार दरीबा कलां, दिल्ली-110006,प्रथम संस्करण: 1998
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