#रिश्ते_मेरे_रिश्ते
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जिस तरह आँखों के सामने एकदम सामने,करीब नाक के पास,रख कर पत्र नही पढा जा सकता।हमे उस पत्र को आंखों से उचित दूरी तक ले जाना पड़ता है,रखना पड़ता है। ठीक इसी तरह हमारे रिश्ते भी होते है रिश्तों को भी तभी समझा जा सकता है,जब रिश्तों को उचित दूरी से देखा जाए।पत्र को जिस प्रकार पढ़कर,समझा जा सकता है। उसी प्रकार,रिश्तों को भी समझा जा सकता है पढ़कर।किन्तु हम ऐसा नही करते,हम किसी एक रिश्ते के भीतर प्रवेश कर जाते है,उसे अपना सर्वस्व लुटा देते है जिससे अन्य रिश्ते बाधित होते है और वे अपने आपको एकांकी समझते है।हमे आवश्यकता होती है कि, इस समय सब से एक उचित दूरी बना कर,सबके हृदय को समझने की,और सही निर्णय लेने की। 🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©७.०२.२०२२
☯️राहुलनाथ™ भिलाई 🖋️
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रविवार, 6 फ़रवरी 2022
रिश्ते_मेरे_रिश्ते
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