बुधवार, 12 जनवरी 2022

शाबर_मंत्र_महिमा-03

#शाबर_मंत्र_महिमा-03
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#सत_नमो_आदेश_गुरुजी_को_आदेश_ॐ_गुरुजी
758वर्ष पूर्व ली गई गुरुदेव मछिंद्रनाथजी की समाधि का जीर्णोद्धार सुलह स्थित भेडू महादेव की पंचायत डरोह के कस्बा गांव में प्राचीन शिव मंदिर से चालीस फीट दूरी पर श्री मछिंद्रनाथनाथजी की समाधि स्थित है। इस समाधि पर अंकित पटि्टका पर मछिंद्रनाथजी ने 25 दिसंबर 1263 इसवी मंगलवार सायं 4:00 बजे जीवित अवस्था में समाधि ली थी। यह समाधि समय के साथ झाड़ियों से ढक गई थी। जिसकी वजह से यह समाधि नहीं दिखती थी और इसके चारों ओर गंदगी ही गंदगी फैली हुई थी।
अब कुछ समय पहले श्रीनाथ सम्प्रदाय के शिष्यों ने यहां आकर समाधि की चारों तरफ सफाई की और इसका जीर्णोद्धार किया। अब इस समाधि पर दूर दूर से पर्यटक आने जाने लगे हैं और इस जगह की रौनक बढ़ गई है। श्रीनाथजी की समाधि के विषय मे कोई एक स्थान नहीं कहा जा सकता क्योंकि मैंने एक समाधि श्रीमत्स्येन्द्रनाथजी की अवंतिका नगरी उज्जैनी में भी देखी है जो उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि मछिंद्रनाथ की समाधि मछीन्द्रगढ़ में है, जो महाराष्ट्र के जिला सावरगाव के ग्राम मायंबा गांव के निकट है और सुना है कि एक समाधि महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास मिटमिटा गाँवों में भी है जो भी हो हमारे लिए सभी समाधि स्थल गुरुस्थान होने के कारण पूज्यनीय है।मत्स्येंद्रनाथजी द्वारा लिखित ‘कौल ज्ञान निर्णय’ ग्रंथ का लिपिकाल निश्चित रूप से सिद्घ कर देता है कि मत्स्येंद्रनाथ ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्ववर्ती हैं।

 भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ समाज हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। नौ नाथों की परंपरा से 84 नाथ हुए। नौ नाथों के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं।भगवान शंकर को आदिनाथ और दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। इन्हीं से आगे चलकर नौ नाथ और नौ नाथ से 84 नाथ सिद्धों की परंपरा शुरू हुई। 

मत्स्येंद्र , जिसे मत्स्येंद्रनाथ , मच्छिंद्रनाथ ,मछन्दरनाथ,मुन्नानाथ और मिनापा के रूप में भी जाना जाता है , श्रीमत्स्येंद्रनाथजी कई बौद्ध और हिंदू परंपराओं में एक संत और योगी थे । उन्हें पारंपरिक रूप से हठ योग के पुनरुत्थानवादी और साथ ही इसके कुछ शुरुआती ग्रंथों के लेखक के रूप में भी माना जाता रहा है ।इन्हें नाथा सम्प्रदाय के संस्थापक के रूप में भी देखा जाता हैं कहा जाता है कि श्रीनाथजी ने भगवान शिव से शिक्षाओ को प्राप्त किया था।श्रीनाथजी विशेष रूप से कौल शैववाद से जुड़े थे ।श्रीनाथ जी का नवनाथों( महासिद्धों)में स्थान प्राप्त है।
कौल ज्ञान निर्णय के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ ही कौलमार्ग के प्रथम प्रवर्तक थे। कुल का अर्थ है शक्ति और अकुल का अर्थ शिव। मत्स्येन्द्र के गुरु दत्तात्रेय थे।

मत्स्येंद्रनाथजी को हठ और तांत्रिक रचनाओं की रचना करने का श्रेय दिया जाता है जैसे कौलजनानिर्णय ("कौला परंपरा से संबंधित ज्ञान की चर्चा"), मत्स्येंद्रसंहिता और "अकुला-विरतंत्र", संस्कृत में हठ योग पर कुछ शुरुआती ग्रंथ हैं । ग्यारहवीं शताब्दी के जेम्स मॉलिंसन, एलेक्सिस सैंडरसन , डेविड गॉर्डन व्हाइट और अन्य लोगों का मानना ​​है कि मरणोपरांत कई कार्यों का श्रेय उन्हें दिया गया।सत्य क्या है इनका मुझे ज्ञान नही है।पद्म, स्कन्द शिव ब्रह्मण्ड आदि पुराण, तंत्र महापर्व आदि तांत्रिक ग्रंथ बृहदारण्याक आदि उपनिषदों में तथा और दूसरे प्राचीन ग्रंथ रत्नों में श्रीनाथ सम्प्रदाय एवं श्री गुरु गोरक्षनाथ की कथायें बडे सुचारु रुप से मिलती है।
श्रीनाथ सम्प्रदाय भारत का परम प्राचीन, उदार, ऊँच-नीच की भावना से परे एंव अवधूत अथवा योगियों का सम्प्रदाय है।
श्रीनाथजी के चेलों की सूची, विभिन्न मंदिरों और प्रजातियों के बीच भिन्न-भिन्न   हो सकती है।किन्तु सामान्य रूप से शामिल सूची प्रस्तूत है।  

मच्छिंद्र गोरक्ष जालीन्दराच्छ।। कनीफ श्री चर्पट नागनाथ:।।
श्री भर्तरी रेवण गैनिनामान।। नमामि सर्वात नवनाथ सिद्धान।।

।।श्री नवनाथ मंत्र एवं नाम।।
।।ॐ श्रीनवनाथाय नमः,।।
श्री दत्तात्रेये नमः,
श्रीआदिनाथाय नमः
श्रीमत्स्येंद्रनाथाय नमः
श्री गोरक्षनाथाय नमः
श्रीजालंधरनाथाय नमः
श्रीकानिफनाथाय नमः
श्री चर्पटीनाथाय नमः
श्रीनागनाथाय नमः
श्रीभर्तृहरिनाथाय नमः
श्रीरेवण नाथाय नमः
श्रीगहनीनाथाय नम
श्रीनव नाथाय नमः
(श्रीनावनाथ भक्तिसार अनुसार)
आदि हो सकती है।मत्स्येंद्रनाथजी के साथ सभी नवनाथ कहे जाते है ।जबकि श्रीगोरक्षनाथजी को आम तौर पर  श्रीनाथजी का प्रत्यक्ष शिष्य माना जाता है।श्रीआदिनाथजी
श्रीउदयनाथजी
श्रीसत्यनाथजी
श्रीसन्तोष नाथजी
श्रीअचल अचम्भे नाथजी
श्रीगजबेली गजकंथडनाथजी
श्रीचौरंगी नाथजी(एवं 
श्री मछेन्द्रनाथजी
श्रीगुरु गोरक्षनाथजी
(द्वारा:-श्रीविलासनाथजी कृत श्रीनाथ रहस्य)
 से ली गई है।जो कि नाथो की सही सूची प्रतीत होती है।

इसके अलावा ये भी हैं:
1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ।
ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चौरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, , गोगा नाथ, पंढरीनाथ और श्री स्वामी समर्थ, गजानन महाराज, साईं बाबा को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं। और विशेष इन्हे योगी भी कहते और जोगी भी कहा जाता हैं। देवो के देव महादेव जी स्वयं शिव जी ने नवनाथो को खुद का नाम जोगी दिया हैं। इन्हें तो नाथो के नाथ नवनाथ भी कहा जाता हैं।द्वारा विकिपीडिया

#विशेष:-इस पोस्ट को लिखने के लिए कुछ व्हाट्सएप पोस्ट एवं अलग-अलग साबर साहित्य का उपयोग किया गया है ऐसे में त्रुटि होने की संभावना हो सकती है कृपया गुरुजन मुझे क्षमा करते हुए मेरा  मार्ग प्रशस्त कर साहित्य की त्रुटियों से अवगत कराएं जिससे कि लेख में भविष्य में सुधार किया जा सके।
#क्रमशः-
🙏🏻🚩जयश्री महाकाल🚩🙏🏻
।। राहुलनाथ।।™ 
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इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य गुरू एवं साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसे मानने के लिए आप बाध्य नही है।अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।विवाद या किसी भी स्थिती में लेखक जिम्मेदार नही होगा।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,

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