शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

मेरा लक्ष्य मेरा अनुसंधान

मेरा लक्ष्य मेरा अनुसंधान
प्रारम्भ में सभी उनपे हँसते है जो कुछ विशेष कार्य करना चाहते है समाज का एक बड़ा वर्ग सिर्फ हँसी उड़ाने का कार्य करता है ये वे लोग है जो भयभीत है और इन्होंने अपने जीवन से समझौता कर लिया हुआ होता है,जो जैसा है उसे स्वीकार कर लिया होता है,ये मेहनती नहीं होते ,इनको आदत होती है दूसरे की तरह ,दूसरे की ही खिचड़ी बनाने के,इसमें इनका कोई श्रम नहीं होता।आप को यदि कुछ अनुसंधान करना है तो इनके उपहास को गले लगाना होगा अन्यथा ये आपने अनुसंधान को,एक भीड़ बना के तोड़ना चाहेंगे।
स्मरण रहे जो लोग संसार की हँसी उड़ाने से भयभीत नहीं होते वे अपने आप दुनिया बदल देते है जिसमे ये प्रकृति स्वयं आपका साथ देने लगती है क्योकि प्रकृति चाहती है की मानव के समक्ष उसके भेद उजागर किये जाए,इसके विपरीत जो लोग भयभीत होते है तो दुनिया उनको बदल देती है।70%नकारात्मक लोगो का जमावड़ा है ,भयभीत लोगो का समूह है मात्र,जो इतना भयभीत है की वो अकेले में अनुसंधान तो दूर पूजा भी नहीं कर सकता,दान भी नहीं कर सकता।
निश्चिन्त रहे वही करे जिसकी खोज के लिए ईश्वर ने आपको चुना है किसी के कहने से अपना लक्ष्य ना बदले,मार्ग में परिवर्तन ना करे।सिर्फ बढ़ते जाए,ये यात्रा पिता के शुक्राशय से अकेली प्रारम्भ की थी आपने ,कोई नहीं था तब आपके साथ और आपने अकेले ही इस यात्रा में विजय पाई थी।जो भी घटेगा,अनुसंधान होगा वो अकेले में ही होगा,भीड़ में तमाशा होगा,मदारी का खेल होगा और एक ऐसा मेला होगा जो हर दिन बढते ही जाएगा खर-पतवार की तरह।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
।।राहुलनाथ।।
****JSM OSGY***

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