तंत्र के पतन का कारण
बौद्ध काल में तंत्र को बहुत व्यापकता प्राप्त हुई किन्तु फिर वही व्यापकता बौद्ध धर्म के पतन का कारण भी बनी इसका मुख्य कारण रहा है बौद्ध तांत्रिकों के एक संप्रदाय ने सात्विकता के विकार -प्रयास में तंत्र साधना की प्रणाली एवं नियामाचारो में विकृति उत्पन्न कर दी।उन्होंने ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए योग की क्रियाओं में मैंथुन परस्त्री गमन को प्रमुखता दी और सामूहिक सहवास को साधना का अनिवार्य अंग घोषित कर दिया तत्कालीन सामाजिक और अशासकीय परिस्थितियों में उनका ये यौनाचार्य-प्रचार खुब चला ।पंच मकार साधना में मांस,मदिरा,मुद्रा,मिथुन मुख्य हो गए। महाभैरवी की सिद्धि में ये सब आवश्यक माना जाने लगा तथा वस्तु को सिद्ध-सोपान की संज्ञा दे दी गई ।मुक्त यौनाचार्य के पोषण हेतु सामूहिक साधना,कौलाचार, भैरवी-चक्र आदि की प्राणी विकसित हुई जिसके माध्यम से अधिकांश बौद्ध विहारों को मुक्त योग,सामूहिक सहवास और स्वछंद यौन- प्रशिक्षण का केंद्र बना दिया गया बस यही अतिचार तंत्रके विनाश का मुख्य कारण बना और समाज में जागरूक-जनों, बुद्धजीवियों ने तंत्र का विरोध प्रारंभ कर दिया ।
उमा महेश्वर संवाद शिव पार्वती संवाद भैरव भैरवी संवाद और भवानी संवाद में शिव पार्वती ने अपने प्रवचन में मूलतः आध्यात्मिक शांति और अलौकिक शांति की सुख समृद्धि के सिद्धांत बताए थे उन्हीं सिद्धांतों को आगे चलकर विभिन्न विद्वानों ने अनेक रूपों में प्रतिपादित करके तंत्र की अनेक शाखाओं को जन्म दिया विभिन्न प्रकार के संकट पीड़ा आपदा भय विघ्न व्यावधान और अन्य भौतिक बाधाओं के निवारण को तंत्र में वरीयता दी जाती है उद्देश्य के आधार पर मनीषियों ने तंत्र साधना के सात्विक राजसिक और तामसिक यह तीन भेद निर्धारित किए हैं किंतु भौतिकता की दृष्टि से तंत्र की तामसिक साधना सर्वाधिक प्रचलित हुई क्योंकि इसमें दैनिक जीवन की छोटी-बड़ी समस्त आवश्यकता की पूर्ति और विभिन्न बाधाओं के निवारण की कामना ही एकमात्र उद्देश्य होता है इस पर भी तंत्र को पूर्ण रूपेण केवल तामसिक लक्ष्यों का पूरा नहीं कहा जा सकता इसमें भी एक संप्रदाय ऐसा है जो योग के अत्यधिक निकट है और ब्रह्मा का चिंतन दर्शन उसका प्रमुख लक्ष्य होता है ऐसे तंत्र साधक कुंडलिनी जागरण में सिद्ध होकर अनेक प्रकार की अलौकिक शक्तियों के स्वामी बन जाते हैं स्वर साधना प्राणायाम ध्यान धारणा मुद्रा चिंतन और योगिक क्रियाएं इन की साधना के प्रमुख अंग होते हैं भारतीय संस्कृति के इतिहास में कितने ही महापुरूषों और ऋषि मुनियों के प्रसंग मिलते हैं जिन्होंने योग तंत्र की साधना के द्वारा अद्भुत अलौकिक कार्य कर दिखाएं थे भगवान शिव जो तंत्र विद्या के प्रणेता है स्वयं में महान योग साधक हैं आशीष या श्राप द्वारा किसी को कुछ भी दे देने में समर्थ ऋषि-मुनियों की वाक् सिद्धि का मूल रहस्य उनका योग तंत्र में पारंगत होना ही है भारद्वाज, विश्वामित्र,जाबालि,याज्ञवल्क्य, गौतम,कपिल और कणाद जैसे विद्वान तंत्र की साधना के द्वारा ही सक्षम हुए थे जिन श्री हनुमान जी की आज घर घर में पूजा होती है वे भी विभिन्न योग और तंत्र के प्रकार मर्मज्ञ थे यह सभी महापुरुष अपनी शक्ति को सदैव सात्विकता की ओर ले जाने के लिए प्रमुखता रखते थे राजशिक्षा भौतिक समृद्धि पाने की उन्होंने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की यद्यपि भी किसी पीड़ित पर दयार्द्र होकर उसे भले ही धन वैभव दे दिया हो पर स्वयं सेवी रिक्त रहे।काली किताब
*****जयश्री महाकाल****
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